ईसाई भी शिकार हैं संघ प्रेरित आतंकवाद के
@ फादर डॉमनिक एमानुएल
स्वामी असीमानंद द्वारा मालेगॉव,हैदराबाद की मक्का मस्जिद,अजमेर की दरगाह शरीफ और समझौता एक्सप्रेस में बम विस्फोटों में अपना हाथ होना स्वीकार करने के पश्चात् मीड़िया व सार्वजनिक क्षेत्र में विवाद इस बात को लेकर नही है कि अब इसे हिन्दु आंतकवाद की संज्ञा दी जाए अथवा गेरुआ आंतकवाद।
विवाद अब एक ओर इस बात को लेकर है कि स्वामी असीमानंद के साथ आर.एस.एस. के इन्द्रेश कुमार सहित अन्य कार्यकर्ताओ का कितना हाथ होना और दूसरी ओर आर.एस.एस. के मुखिया मोहन भागवत और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा कांग्रेस पर यह आरोप लगाना कि यह सब 2जी स्पेक्ट्रम व कॉमनवेल्थ खेलों में हुए घोटालों से ध्यान हटाने की एक चाल है अर्थात उनका कहना है कि हिन्दु संगठनों के आंतकी हमलों में न तो आर.एस.एस. का हाथ है और न ही स्वामी असीमानंद द्वारा रहस्योदघाटन में कुछ सच्चाई है।
चंद अखबारों और टीवी चैनलों को छोड़ कर, सामान्यरुप मीड़िया ‘बम के जवाब में बम’ नीति में लिप्त पाए गये अपराधियों के बारे में बहुत ज्यादा चर्चा नही कर रहा है। मीड़िया में एक और महत्वपूर्ण मुददा जो अभी तक उजागर नही हुआ है और जिसके लिए मैं पिछले दो साल से प्रयत्नरत् हूं कि मीडिया व जांच पड़ताल करनी वाली संस्थाऐं क्योंकर केवल मुस्लिम ठिकानों पर बम विस्फोट को ही हिन्दू संगठनों के आतंकवाद तक सीमित रखे हुए है ? मुझे इस बात से बेहद हैरानी है कि ना तो मीड़िया ने और ना ही अन्य संस्थाओं ने; इन्ही हिन्दू संगठनों द्वारा ईसाई समुदाय पर हुए जानलेवा हमलों को हिन्दू आतंकवाद से जोड़ने की बात सोची। पिछले कुछ वर्षो में इन संगठनों द्वारा ईसाई संस्थानों व उनके नन व पादरियों पर हमलों की संख्या प्रतिवर्ष एक हजार की संख्या पार कर चुकी है। मध्यप्रदेश में चर्च के प्रवक्ता फादर आनंद मुटुगंल की अगुवाई में दायर एक याचिका पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायलय ने मध्यप्रदेश सरकार से इस बात का स्पष्टीकरण मांगा है कि वहॉ पर जब से भाजपा की सरकार आई है, ईसाईयों पर हिन्दू संगठनों द्वारा 180 से अधिक हमले कैसे हुए?
बम विस्फोटों की गंभीर घटनाओं की छानबीन के बाद अब जाकर मीड़िया का ध्यान असीमानंद जैसे लोगों पर आकर टिका है। ये वही असीमानंद है जिन्होनें गुजरात के डांग जिले में ईसाईयों को निशाना बनाने का भार अपने कंधों पर लिया था। स्वामी असीमानंद बंगाल से 1995 में डांग में आकर बसे और उसी क्षण से उन्होनें वहॉ के ईसाईयों के विरुद्व काम करना आरंम्भ कर दिया। दिसंबर 1998 में क्रिसमस के ही दिन जब ईसाई बड़ी मात्रा में क्रिसमस मनाने एकत्र हुए तो उन्होनें ठीक उसी स्थान पर एक विशाल हिन्दू रैली का आयोजन किया। ईसाईयों की भीड़ में अपने आदमी को भेजकर अपनी रैली पर पत्थर फिकवाएं और उसके बहाने ईसाईयों के खिलाफ आंतकवादी गतिविधियों का जो सिलसिला जारी किया वह पूरे बारह दिनों तक चलता रहा जिसमें असीमानंद से प्रेरित आंतकवादियों ने डांग जिले के कई गिरजाघरों और स्कूलों में जमकर आगजनी की और ईसाई ननों व पादरियों के साथ मारपीट व अभद्र व्यवहार किया। उस समय पीडित ईसाई समाज को समझ नही पड़ रहा था कि वे सहायता के लिए किस ओर झांके क्योंकि गुजरात में भी भाजपा की सरकार और केन्द्र में भी थी भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार।
उसी दौरान तत्कालीन प्रधांनमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बयान दिया कि देश में धर्म परिर्वतन पर बहस होनी चाहिए। इस बयान ने ईसाईयों के जले पर नमक छिडकने का काम किया। इससे ईसाईयों के विरुद्व असीमानंद और लक्ष्मानंद सरस्वती जैसे आंतक फैलाने वालों को तो यह स्पस्ट संदेश मिल ही गया कि वे ईसाईयों के विरुद्व अपना काम बेधड़क रुप से चलने दें। उन्हें न तो सरकार का, ना पुलिस का और न ही छानबीन करने वाली संस्थाओं का कोई डर था। ‘बम के बदले बम’ की नीति अपनाने से पहले और ईसाईयों पर और अधिक कहर ढहाने के उददेष्य से असीमानंद ने ही डांग जिले में 2006 में पहली बार शबरी कंभ का आयोजन यह नारा देकर किया ‘‘हर एक आदमी जो ईसाई बनता है उससे देश का एक दुश्मन बढ़ता है।’’
स्वामी असीमानंद के 1998 के षड़यंत्र के तर्ज पर 2007 में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने भी वही खेल उड़ीसा के कंधमाल में दोहराया। 23 दिसंबर 2007 को कंधमाल जिले के गॉव में जब ईसाई क्रिसमस की तैयारी में सजावट कर रहे थे तो स्वामी लक्ष्मणानंद ने अपने कुछ चेलों के साथ वहॉ पहुचकर उन्हें सब बंद करने को कहा क्योंकि वे वहॉ पर कुछ हिन्दू त्यौहार मनाना चाहते थे। उस समय शुरु हुई छोटी सी झड़प ने दंगों का रुप धारण कर लिया और लक्ष्मणानंद के लोगों ने वहॉ के ईसाईयों और उनकी संस्थाओं पर लगातार आठ दिनों तक हमला किया। आठ महीने बाद 23 अगस्त 2008 में स्वामी लक्ष्मणानंद की माओवादियों ने हत्या कर दी और पुलिस के कथन और माओवादियों द्वारा उनकी हत्या की जिम्मेदारी लेने के बावजूद इन हिन्दू आंतकवादियों ने लगातार 42 दिनों तक ईसाईयों पर इस कदर बेरहमी से आक्रमण किया कि उसमें 100 लोगों की जानें गई,कई घायल हुए,147 गिरजाघर व ईसाई संस्थानों को और 4000 से ज्यादा घरों को जलाया और तोड़ा गया जिसके फलस्वरुप लगभग 50,000 लोग बेघर हो गये।
ग्लेंडिस स्टेंस के पति और उनके मासूम बेटों की हत्या के बाद दारा सिंह जैसे आंतकवादी को ग्लेडिस द्वारा क्षमा प्रदान करने का भी ईसाईयों के विरुद्व घृणा से भरे इन क्रूर लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा।
कर्नाटक में जब से भाजपा की सरकार बनी है, वहॉ पर ईसाईयों पर हमलों की संख्या दिन दुगनी और रात चौगुनी हो गई है। कर्नाटक उच्च न्यायलय के न्यायधीश जस्टिस माइकल सलडाना के अनुसार कर्नाटक में 500 दिनों के भीतर ईसाईयों और उनकी संस्थाओं पर 1000 आक्रमण हुए और ये केवल राम सेना के कार्यकर्ताओं ने नही किए थे, इनमें बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद,आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ता शामिल है।
ईसाई समुदाय का मानना है कि बम विस्फोटों में लिप्त कार्यकताओं को अवष्य ही हिन्दू आंतकवाद के नाम पर पकड़ा जाना चाहिए, परंतु फिर भी उनका सवाल मीडिया, सरकार और छानबीन करने वाली संस्थाओं से है कि उनके समुदाय पर इतनी बड़ी संख्या में इन्ही आंतकवादियों द्वारा किये गए हमलों को कोई गम्भीरता से क्यों नही लेता। वोट बैक की तलाश में रहने वाले राजनीतिक दलों से तो कोई उम्मीद नही की जा सकती पर मीडिया से तो उम्मीद की ही जा सकती है कि कम से कम वह तो उनकी बात को अवष्य ही आम लोगों के सामने लेकर आयेगा।
ye sab likhne se pehle ham ye kyu bhul jate he ki isai samaj kis tarah se gareeb aur lachar logo ki lachari ka fayda uthakar unka dharm parivartan kar raha he. Isai samaj jab badi sankhya me hindu logo ka dharm parivartan karwa raha hota he tab khabar kyu nahi chapi jati. Ham hindu logo ne agar apne dharm ki raksha nahi kari to aane wali peedi ke liye samay bada hi kathin hoga. Really shame .....
ReplyDeletearticle seems based on facts n figure, it shows actual condition. as an indian v hv to think about it and act aginst non humaneterian people..............
ReplyDeletejai hind