हिन्दू-मुस्लिम विवाह जेहाद नहीं, असली भारत है
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सैफ अली खान
मैं एक खिलाड़ी का बेटा हूँ। मैं इंग्लैंड, भोपाल, पटौदी, दिल्ली और मुंबई में पला-बढ़ा हूँ और जिन भी हिन्दू या मुसमानों को जानता हूँ,
उनसे कहीं ज्यादा भारतीय हूँ, क्योंकि मैं हिन्दू और मुसलमान दोनों हूँ। मैंने यह लेख लोगों पर अथवा भारत और यहाँ के गांवों में सांप्रदायिकता की समस्याओं पर टिप्पणी करने के लिए नहीं लिखा बल्कि यह एक ऐसा मुद्दा है जो मेरे दोस्तों और उनके परिवारों से जुड़ा हुआ है। जब मेरे माता-पिता शादी करना चाहते थे तब शुरू में किसी के भी द्वारा इस रिष्ते को सरलता से स्वीकार नहीं किया गया। नवाबों और ब्राह्मणों के अपने-अपने मुद्दे थे। और जाहिर है, दोनों धार्मिक पक्षों के कट्टरपंथियों ने उन्हें मौत के घाट उतार देने की धमकियां दी।
लेकिन फिर भी शादी हो गयी। हकीकत यह है कि मेरी दादी के लिए भी यह आसान नहीं था,
उन्हें भी शादी करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
लोगों की नजर में पटौदी के नवाब के साथ उनका यह रिष्ता उपयुक्त नहीं था किन्तु संभवतया नवाब होने के कारण यह थोड़ा आसान रहा हो। हम हमारे बुजुर्गों के जीवन की असली रोमांटिक कहानियों के बीच बड़े हुए है जिन्होंने अपने प्यार को पाने के लिए शादी की और परम्पराओं की बहुत अधिक परवाह नहीं की।
हम इस विष्वास के साथ बड़े हुए है कि भगवान के अनेक नाम है लेकिन वह एक ही है। जब करीना की और मेरी शादी हुयी, तो हमें भी वैसी ही जान से मार देने की धमकियाँ मिली। इंटरनेट पर लव जिहाद
जैसी हास्यास्पद बाते की गयी। हम जिस भी धर्म या उपासना पद्धति में विष्वास करते है उसका पालन करते है। हम उनके बारे में बात करते हैं और एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते हैं।
मुझे विष्वास है कि हमारे बच्चे भी ऐसा ही करेंगे। मैंने चर्च में प्रार्थना की और करीना के साथ बड़े पैमाने पर धार्मिक
कार्यक्रमों में भाग लिया है जबकि करीना ने दरगाह पर सर झुकाया है और मस्जिदों में प्रार्थना की है। अपने नए घर में गृहप्रवेष के समय शुद्धिकरण के लिए हमने
हवन करवाया, कुरान का पाठ करवाया और पादरी से पवित्र जल भी छिड़काया- हमने अषुद्धि रह जाने की कोई सम्भावना नहीं रहने दी। धर्म क्या है? विश्वास क्या है?
क्या इसकी एक सही परिभाषा मौजूद है?
मैं नहीं जानता।
लेकिन मैं संदेह जरूर जानता हूँ। संदेह का कौतुहल मेरे मन में सदैव रहा है। संदेह हमें विश्वास देता है। संदेह हमें प्रष्न करते रहने के लिए विवश् करता है और वही हमें जीवित बनाये रखता है।
यदि हम किसी चीज के बारे में सुनिष्चित हो जाते हैं,
तो कट्टर बनने का खतरा पैदा हो जाता है।
धर्म को बहुत सारी चीजों से अलग किया जाना चाहिए। हमारे धर्म भय पर आधारित हैं। द ओल्ड टेस्टामेंट में लोगों के लिए (अब्राहम और उसकी नस्ल के लिए)
एक प्रॉमिस्ड लैंड (बाइबिल के अनुसार ईश्वर द्वारा प्रदत्त स्वर्गीय भूमि) के बारे में कहा गया है, जबकि वहां तो लोग पहले से ही रहते थे। लेकिन समस्या आज भी ज्वलंत है। भगवान के नाम पर यहाँ लोगों पर बहुत ज्यादा अत्याचार होते रहे है। मैं जानता हूँ कि अच्छे लोग अपनी बेटियों की शादी मुसलमानो से करने से डरते है। उनके मन में धर्मान्तरण, शीघ्र तलाक और कई शादियों का डर रहता है जो लड़की की बजाय लड़कों के अधिक अनुकूल है। यह सब निस्संदेह बहुत पुराना हो गया है।
इस्लाम को प्रासंगिक होने के लिए बहुत ज्यादा आधुनिक होने और खुद को नवीनीकृत करने की आवष्यकता है। हमें
बुराई से अच्छाई को अलग करने के लिए एक जोरदार उदारवादी आवाज की जरूरत है। इस्लाम पहले कभी जितना लोकप्रिय रहा उससे आज कहीं ज्यादा अलोकप्रिय हो गया है। यह मेरे लिए बड़ी शर्म की बात है क्योकि मैंने हमेषा इस्लाम को चाँद, रेगिस्तान,
सुलेख, उड़ते कालीन, और आलिफ लैला के रूप में देखा है। मैंने इसे हमेषा शांति और विनम्रता के
धर्म के रूप में रूप में महसूस किया है। जैसे ही मैं बड़ा हुआ, तो मैंने देखा की इसे तोड़-मरोड़ कर बहुत बुरे रूप में लोगों दवारा उपयोग किया जा रहा है, तो मैंने सभी मानव निर्मित धर्मों से अपने आप को दूर कर लिया है। मैं वैसा ही आध्यात्मिक होना स्वीकार करता हूँ जैसा मैं हो सकता हूँ।
खैर, जो भी हो, मैं विषय पर लौटता हूँ,
अच्छी खबर यह है कि किसी को भी शादी करने के लिए अपना धर्म बदलने की जरूरत नहीं है। विषेष विवाह अधिनियम, जो देष का एक महत्वपूर्ण कानून है इसके तहत यदि आप विवाह करते है
तो यह आप पर लागू होता है। यह किसी भी धार्मिक कानून से ऊपर है। मेरे मत से यह सही मायने में धर्मनिरपेक्ष है।
भारत का ताना-बाना अनेक धागों से मिलकर बुना गया है--
जिसमे ब्रिटिष, मुस्लिम और हिन्दू सहित अनेक दूसरे लोग भी शामिल है।
आज के भारत में एक प्रमुख चिंता का विषय है कि हम अपने अतीत को
मिटाते जा रहे है। यह कहना कि मुसलमानों की भारत के निर्माण में कोई भूमिका नहीं है,
उनके महत्त्व और योगदान को नकारना है। यह कहना ऐसा कहने जैसा ही है कि महिलाओं की भारत के निर्माण में कोई भूमिका नहीं हैं। हमें इस्लाम को नकारने की जरूरत क्यों है?
यह हकीकत है। हमारा सदैव सहअस्तित्व रहा है। इस बात से इंकार करना हमारी विरासत को लेकर हमें धोखा देने जैसा है।
मैं नहीं जानता कि लव जिहाद क्या है। यह एक जटिलता है, जो भारत में पैदा की गयी है। मैं
अंतर्सामुदायिक विवाहों के बारे में भली भांति जानता हूँ,
क्योंकि मैं
ऐसे ही विवाह से पैदा हुआ हूँ और मेरे बच्चे भी ऐसे ही विवाह से पैदा हुए है। अंतर्जातीय विवाह (हिन्दू और मुसलमान के बीच) जिहाद नहीं है। बल्कि यही असली भारत है। भारत एक मिश्रित संस्कृति से युक्त है। अम्बेडकर कहते
थे कि जातिवाद को मिटाने का एकमात्र तरीका अंतर्जातीय विवाह है। यह केवल अंतर्जातीय विवाह के माध्यम से ही संभव है कि आने वाले कल के भारतीय देष को सही दिषा में आगे ले जाने में सक्षम हो सके। मैं इस तरह के अंतर्जातीय विवाह से पैदा हुआ हूँ और मेरी जिंदगी ईद,
होली और दिवाली की खुषियों से भरपूर है। हमें समान अदब के साथ आदाब और नमस्ते कहना सिखाया गया है।
यह दुखद है कि धर्म को बहुत ज्यादा महत्व दे दिया गया है और मानवता तथा प्रेम को पर्याप्त महत्व
नहीं दिया गया है। मेरे बच्चे मुसलमान पैदा हुए, लेकिन वे हिंदुओं की तरह रहते हैं,(उन्होंने घर में एक पूजा स्थल बना रखा है) और वे बौद्ध बनना चाहेंगे, तो उन्हें मेरा पूरा आषीर्वाद होगा। हम लोग इसी तरह से बड़े हुए है। हम संयुक्त है। यह महान देष हमारा हैं। हमें जो भिन्न करते है वे हमारे मतभेद है। अब हमें सिर्फ एकदूसरे के प्रति सहिष्णुता से आगे जाने की आवष्यकता है। हमें एक दूसरे को स्वीकार करने, सम्मान करने और प्यार करने की जरुरत है। यह पूरी तरह सुनिष्चित है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देष नहीं हैं। आजादी के बाद हमारा इरादा धर्मनिरपेक्ष बनने का ही था और हमारे संविधान ने इसे संभव बनाने के लिए प्रत्येक संरचनाये प्रदान की लेकिन छह दषक बीत जाने के बाद भी हमने धर्म को कानून से अलग नहीं किया। स्थिति को और अधिक बदतर बनाने के लिए हमने विभिन्न लोगों पर
विभिन्न कानूनों को लागू कर दिया। ऐसे में यह असंभव है की हम एक हो जाये। हिंदुओं के लिए अलग कानून और मुसलमानों के लिए अलग कानून हैं। यह परेषानी पैदा होने का एक बड़ा कारण है।
मुझे लगता है कि हम सभी भारतीयों के लिए एक जैसा कानून होना चाहिए, समान नागरिक संहिता होनी चाहिए और हम सभी को स्वयं में एक राष्ट्र के रूप में सोचना चाहिए। पहले हम राष्ट्र है, हमारे सभी धर्म अनिवार्यतः इसके बाद में हो ऐसा होना चाहिए। अपने बच्चों को भगवान और उसके हजार नामों के बारे में पढ़ाएं लेकिन पहले हम उन्हें अपने साथ रहने वाले लोगों का सम्मान और प्यार करना सिखाएं, यह अधिक महत्वपूर्ण है। मैंने पहले किसी काल्पनिक परी में विष्वास करना छोड़ा और अंततः सांता क्लॉस में भी विष्वास खो दिया।
मैं वास्तव में नहीं जानता हूँ कि मैं एक निजी ईष्वर के बारे में क्या महसूस करता हूँ। लेकिन मैं प्यार में विष्वास करता हूँ और अच्छा बनने और
दुनिया के लिए मददगार होने की कोषिष कर रहा हूँ। मुझे हमेषा सफलता नहीं मिलती और ऐसे में मुझे बुरा महसूस होता है। मैं सोचता हूँ कि मेरी अंतरात्मा ही मेरा ईष्वर है और वह मुझसे कहती है कि पटौदी में एक पेड़ जिसके पास मेरे पिताजी को दफनाया गया है वह मेरे लिए किसी भी मंदिर, चर्च या मस्जिद से अधिक भगवान के करीब है। (हम
समवेत)
(सैफ अली खान एक अभिनेता और निर्माता है)
धर्म क्या है? विश्वास क्या है? क्या इसकी एक सही परिभाषा मौजूद है? मैं नहीं जानता। लेकिन मैं संदेह जरूर जानता हूँ। संदेह का कौतुहल मेरे मन में सदैव रहा है। संदेह हमें विश्वास देता है। संदेह हमें प्रष्न करते रहने के लिए विवश् करता है और वही हमें जीवित बनाये रखता है।
ReplyDeleteयदि हम किसी चीज के बारे में सुनिष्चित हो जाते हैं, तो कट्टर बनने का खतरा पैदा हो जाता है। धर्म को बहुत सारी चीजों से अलग किया जाना चाहिए। हमारे धर्म भय पर आधारित हैं।
इस पोस्ट के लिये आप तक और सैफ़ अली ख़ान तक हमारा सलाम पहुंचे ....