राजस्थान के भीलवाड़ा में दलितों का सामाजिक बहिष्कार

भंवर मेघवंशी

आज भी राजस्थान के दलित ऐसी गुलामी के दौर में जीने को लाचार है कि सुनकर कलेजा फटने लगता है और आक्रोश से आंखों में खून उतर आता हैजो लोग यह पूछते है कि अब कहां है छुआछूत और भेदभावउन्हें मैं कोर्इ जवाब नहीं देना चाहता हूंसिर्फ अपने साथ भीलवाड़ा जिला मुख्यालय से महज 18 किलोमीटर दूर स्थित बड़ा महुआ गांव ले जाना चाहता हूं जहां के दलित पिछले 167 दिनों से सामाजिक बहिष्कार झेलने को अभिशप्त है.

इन दलितों का अपराध केवल इतना ही है कि उन्होंने सवर्णों के विरोध के बावजूद सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द्र के प्रतीक लोकदेवता रामदेव पीर की शोभायात्रा जलझूलनी एकादशी को बकायदा प्रशासन की लिखित स्वीकृति से निकालीऐसी धार्मिक शोभायात्रा को यहां 'बेवाण कहा जाता हैयह बेवाण निकाला गया 8 सितंबर 2011 कोउस दिन से गांव के सवर्ण हिंदुओं ने दलित समाज के 31 परिवारों को गांव से बहिष्कृत कर दियाउनका सार्वजनिक स्थलों पर उठना-बैठना बंद कर दिया गया.

हुक्का-पानी बंद कर दिया गयाअब नार्इ बाल नहीं काटते हैकिराणा स्टोर पर सामान नहीं मिलता हैसार्वजनिक होटलों  रेस्टोरेंटों में चाय  खाद्य पदार्थ नहीं दिए जाते हैअनाज की पिसार्इ नहीं की जाती हैआटा पिसाने के लिए दलितों को 15 किलोमीटर दूर के अन्य गांवों में जाना पड़ता हैसवर्ण हिंदुओं के मोहल्लों के नलों में प्रतिदिन पानी की सप्लार्इ की जाती है जबकि दलित मोहल्ले में 5 दिन में एक बार जलापूर्ति की जाती हैदलित मिस्त्रियों को काम पर नहीं बुलाया जाता हैदलित मजदूरों को निर्माण मजदूरी अथवा खेत मजदूरी पर नहीं लगाया जाता है.

यहां तक कि राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम (महानरेगामें भी दलित जाति के लोगों को काम पर नहीं लगाया जाता हैइन दलितों के जाब कार्ड वर्ष 2009 के बाद से खाली हैहाल ही में एक दिवसीय ग्रामीण चौपाल से पूर्व खानापूर्ति करने के लिए पंचायत के सचिव ने दलित परिवारों से जाब कार्ड मंगवाकर अपने पास रख लिएताकि इन खाली जाब कार्डों को कोर्इ देख नहीं लेबाद में आनन-फानन में एक मस्टररोल भी जारी कर दिया गयाजिसमें दलितों के नाम भी लिखे गएमगर उन्हें सूचित ही नहीं किया गयाबाद में यह कह दिया गया कि प्रशासन ने तो मस्टररोल जारी कर दिया मगर दलित समुदाय के लोग काम पर आते ही नहीं है.

इन दलितों को सार्वजनिक बसों में भी नहीं चढ़ने दिया जाता हैगांव में 35 ऑटो हैजिनमें इन्हें नहीं बिठाया जाता हैनिजी वाहनों से आने-जाने पर अकेले में मारपीट और हमला होने का डर हमेशा बना रहता है.

इस प्रकार जिला मुख्यालय तक की मात्र 18 किलोमीटर की दूरी भी दलितों के लिए पार करना मुशिकल होती जा रही हैयहां के दलितों का दर्द यह है कि उन्हें सरकारी बसों में भी नहीं बैठने दिया जाता है तथा आए दिन सवर्णो द्वारा उनके विरुद्ध झूठी शिकायतेंपरिवाद और मुकदमे दर्ज करवा दिए जाते है.

इस अत्याचार का सूत्रधार गांव का एक शख्स है कल्याणमल जाटजिसका महाराष्ट्र के जालना जिले में कम्प्रेशर का व्यवसाय हैगांव की राजनीति उसी के र्इर्द-गिर्द चलती हैउसे गांव में 'श्रीसरकार कहा जाता हैहमने देखा कि बड़ा महुआ गांव में आज भी राज्य सरकार और केंद्र सरकार का हुकुम नहीं चलता है, 'श्रीसरकार का ही हुकुम चलता है.

यह गैर संवैधानिक सत्ता 'श्रीसरकार दलितों द्वारा निकाले गए बेवाण से नाराज हो गर्इ तथा उसके नेतृत्व में इकट्ठा हुए गांव के 50 ग्रामीणों ने हमसलाह होकर गैरकानूनी निर्णय ले लिया कि आज से बड़ा महुआ के 31 दलित रेगर परिवार सामाजिक रूप से बहिष्कृत रहेंगे तथा इनसे बात भी नहीं की जाएगीअगर कोर्इ इनकी मदद करेगा अथवा इनसे बात भी कर लेगा तो उस पर 11 हजार रुपए का आर्थिक दण्ड लगाया जाएगा तथा उसे भी सामाजिक बहिष्करण का शिकार होना पड़ेगा.

पीडि़त दलितों ने इस सामाजिक बहिष्कार की शिकायत पुलिस अधीक्षक भीलवाड़ा को 12 सितंबर 2011 को ही कर दी मगर मुकदमा दर्ज किया गया घटनाक्रम के चार माह बाद 24 जनवरी 2012 कोदलितों ने सदर थाना में दी प्राथमिकी में बताया किगांव के एक मनुवादी समूह ने बैठक आयोजित कर दलित समुदाय के सामाजिक बहिष्कार की मुनादी करा दी हैतब से अब तक दलितों का सामाजिक बहिष्कार जारी हैगांव में दलित रेगरों को दुकानों से सामान देनेहोटलों पर चाय देनेसार्वजनिक स्थलों पर बैठनेगांव में किसी प्रकार का काम देनेटैंपों में सवारी के रूप में बिठाने तथा खेतों पर कार्य देने पर प्रतिबंध लगा हुआ हैसरकारी नल से भी पानी नहीं दिया जाता है.

21 जनवरी 2012 को तो हद ही हो गर्इ जब 'श्रीसरकार तथा उसके गुंडों ने दलितों की पेयजल आपूर्ति ठप्प कर दीविरोध करने पर दलितों को ढेढकमीननीच की भद्दी-भद्दी गालियां देने लगेहाथापार्इ पर उतारू हो गएजान से मारने  सबक सिखाने और गांव में जीना दूभर करने की बात कहकर फर्जी मुकदमों में फंसाने की धमकियां देने लगेलाठी-डण्डों से मारपीट की कोशिश की गर्इ तथा बाद में गांव के बाजार बंद करवा दिए गए तथा दलितों के विरुद्ध माहौल बनाने के लिए शाहपुरा भीलवाड़ा मार्ग भी जाम कर दिया गयाराजकीय विधालय में अध्ययनरत दलित समाज के छात्र-छात्राओं को भी स्कूल से निकाल कर भगा दिया गया.

उपरोक्त परिस्थितियों के आधार पर 24 जनवरी 2012 को सदर थाना भीलवाड़ा में 'श्री सरकार तथा उसके 4 गुर्गो के विरुद्ध एक नामजद एफआर्इआर अनुसूचित जाति जनजाति (अत्याचार निवारणअधिनियम की धारा 3 (1)(5)(10) तथा (14) एवं भारतीय दण्ड संहिता की धारा 341, 323  143 में दर्ज की गर्इ और जांच अधिकारी सीओ सदर रामकुमार कस्वां को बनाया गया.

दलितों का रोना यह है कि जांच अधिकारी जाट हैआरोपी भी जाट हैश्रीसरकार भी जाटयहां का सचिव भी जाट हैपटवारी भी जाट हैउप सरपंच जाट हैजिला परिषद सदस्य जाट हैडेयरी अध्यक्ष जाट हैविधायक जाट है तथा जिला कलक्टर भी जाट है.

दलित जिन लोगों के अत्याचार से त्रस्त हैउसी जाट समुदाय के लोग चारों तरफ हैमारते भी वही हैपुचकारते भी वही हैधिक्कारतें भी वही हैउन्हीं के हाथों पिटो और उन्हीं की शरण में जाकर बचो.

ऐसा नहीं है कि बीते साढ़े पांच माह में यहां के दलितों ने न्याय के लिए संघर्ष नहीं किया होवे इंसाफ की गुहार लेकर 10 बार जिला कलक्टर के पास, 5 बार उपखंड अधिकारी के पास, 6 बार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष के पास, 3 बार एस.पीके पास, 2 बार अतिरिक्त जिला कलक्टर के पास तथा एक बार राज्य के गृह सचिव और एक बार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास जा चुके है मगर न्याय आज भी उनके लिए दूर की कौड़ी हैसामाजिक बहिष्कारअमानवीय बर्तावबर्बरताआर्थिक पाबंदियां और घुट-घुट कर जीना-मरना ही उनकी नियति बन गया है.

जिस प्रशासन से वे न्याय  सुरक्षा मांगने जाते हैवही उसको धमकाता हैआज स्थिति यह है कि जिन 8 दलित युवाओं ने अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद की हैवे सभी फर्जी मुकदमों में फंसाए जा चुके हैयहां 31 दलित रेगर परिवारों में से 28 परिवारों के मुखियाओं को बेवजह पाबंद किया जा चुका है.

आज उनके पास कोर्इ रोजगार नहीं हैपीने को पानी नहीं हैउनके हाथों को कोर्इ काम नहीं हैबाजार में जा नहीं सकतेबसों में बैठ नहीं सकतेकिसी से बात नहीं कर सकतेअब उनकी हिम्मत टूटती जा रही हैन्याय की उम्मीद से चमकती आंखों की चमक क्षीण होती जा रही हैआशा का स्थान आंखों की निराशा ले रही हैइनका दुर्भाग्य यह है कि ये सभी दलित कर्इ पीढि़यों से उस कांग्रेस के कट्टर ही नहींकट्टरतम समर्थक हैजिसके युवराज उत्तरप्रदेश में दलितों के घर खाना खा रहे है और रातें बिता रहे हैमगर उन्हीं की पार्टी की राज्य और केंद्र में सरकार होने के बावजूद उन्हीं के समर्थक दलित न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं.

बड़ा महुआ के ये निरीह दलित आज अपने ही राज में सामाजिक बहिष्कार के शिकार होकर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैइनकी सुध लेने वाला कोर्इ नहीं है तो इस क्षेत्र के सांसद केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री डासी.पीजोशी इनकी पीड़ा से बावस्ता है और  ही ये गरीब पीड़ित दलित अपनी व्यथा को राहुल गांधी तक पहुंचाने में सक्षम हैऐसे में इनकी कौन सुनेगा?

राज्य के सारे दलित  मानवाधिकार संगठन शायद इन दिनों सामूहिक अवकाश पर है अथवा डायलिसिस करवा रहे हैसूबे  जिले की सरकार तो कोमा में हैचारों तरफ सिर्फ और सिर्फ एक ही आवाज आती है-'श्रीसरकार, 'श्रीसरकार, 'श्रीसरकार अथवा दलितों की कातर आर्तध्वनि त्राहिमामत्राहिमामत्राहिमामलोकतंत्र में दलित दमन की ऐसी मिसाल और कहां मिलेगीदेखना चाहते है तो बड़ा महुआ चले आइए.

(लेखक डायमंड इंडिया के संपादक है और दलितआदिवासी एवं घुमंतु समुदायों के प्रश्नों पर राजस्थान में कार्यरत हैउनसे 09460325948 अथवा bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

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