नरेन्द्र मोदी का सरदार पटेल के प्रति प्रेम

झूठ और दुष्प्रचार में हिटलर के साथी गोएबल्स को भी मात दे रहे है मोदी

शमसुल इस्लाम

गुजरात के मुख्यमंत्री और हिंदुत्व आइकन नरेंद्र मोदी ने 11 जून, 2013 को गांधीनगर में पशुधन और दुग्ध विकास पर आयोजित एक अखिल भारतीय सम्मेलन का उद्धाटन करते हुए किसानों से लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करने के राष्ट्रव्यापी अभियान की घोषणा की जिन्हे इकट्ठा करने के बाद उनसे सरदार पटेल की स्मृति में ''एकता की प्रतिमा'' बनाई जायेगी जो नेहरू के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री थे।

उन्होंने घोषणा की: ''31 अक्टूबर, 2013 को सरदार पटेल की जयंती के अवसर पर हम प्रत्येक गांव के किसानों द्वारा उपयोग किये गये किसी भी उपकरण के लोहे के छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान प्रारंभ करेंगे जिसमें पूरे देश के पांच लाख से अधिक गॉव शामिल होंगें। इस लोहे को प्रतिमा के निर्माण में इस्तेमाल किया जाएगा।'' यह प्रतिमा ''एकता की मूर्ति'' 182 मीटर (392 फुट) ऊॅंची होगी जिसे दुनियाँ में सबसे ऊंची मूर्ति होने का श्रेय प्राप्त होगा। सरदार वल्लभभाई पटेल की यह मूर्ति दक्षिण गुजरात में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बाँधा के सामने बनाई जायेगी। मोदी ने यह कहते हुये दु:ख जताया कि ''आधुनिक भारत के निर्माता सरदार पटेल ने देश को जोड़ा है किन्तु धीरे-धीरे उनकी यादें धुंधाली पड़ती जा रही है।'' उन्होने घोषणा की कि उनकी स्मृति को पुनर्जीवित करने के लिए और भारत के लौह पुरुष के लिए एक उपयुक्त श्रध्दांजलि के रूप में हम यह मूर्ति बना रहे है जो न्यूयार्क में बनी स्वतंत्रता की मूर्ति (Statue of Liberty) से ऊंचाई में दुगनी होगी। उन्होंने याद दिलाते हुये यह भी कहा कि सरदार पटेल भी एक किसान थे जिन्होने आजादी की लड़ाई में किसानों को साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
                 
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जो आर.एस.एस. के पूर्णकालिक सदस्य है की इस भव्य परियोजना से कुछ प्रासंगिक सवाल पैदा होते है। वे पशुधन और डेयरी पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्धाटन कर रहे थे, जो दोनों ही अकाल, कृषि भूमि के औद्योगिकीकरण और उच्च लागत के कारण बहुत खराब दौर से गुजर रहे हैं। पशुधान और डेयरी उद्योग की खुशहाली अनिवार्य रूप से किसानों की खुशहाली के साथ जुड़ी हुई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में कर्ज, घटिया बीज/खाद, उच्च लागत और पानी की कमी जैसी अंतहीन समस्याओं के कारण प्रत्येक 40मिनिट में एक भारतीय किसान ने आत्महत्या की है। इसी दशक में अकाल,चरनोई भूमि के सीमित हो जाने और उपजाऊ भूमि को औद्योगिक घरानों और माफिया बिल्डरों को सौंप दिये जाने से लाखों पशु मर गये है। डेयरी उत्पाद विलासिता की वस्तु बन गये है एवं आम भारतीय की पहुंच से बाहर हो गये है। भारत कुपोषित बच्चों और महिलाओं की सबसे ज्यादा संख्या के साथ दुनिया में सबसे आगे है। यह चौंकाने वाली बात है कि मोदी ने इस बिगड़ते परिदृश्य पर कोई टिप्पणी नही की।
               
मोदी का सरदार पटेल के प्रति प्रेम कई कारणों से दिलचस्प है। पटेल कांग्रेस के एक नेता थे जो गांधी के अहिंसा के सिध्दांत से प्रेरित थे। उन्होने 1928 में बारदोली में किसानों के एक बहुत बड़े और शक्तिशाली आंदोलन का नेतृत्व किया था जिसे बारदोली सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश समर्थक अंग्रेजी प्रेस ने इसे बारदोली में ''साम्यवाद'' तथा पटेल को उसके ''लेनिन'' के रूप में वर्णित किया।
              
 पटेल को इस वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद ''सरदार'' की उपाधि से सम्मानित किया गया था। किसानों का यह आंदोलन ब्रिटिश शासकों और जमीदारों द्वारा उन पर भारी लगान थोप देने तथा बंबई के दौलतमंदों को कृषि भूमि का बहुत बड़ा भाग बेच देने के विरोधा में प्रारंभ हुआ था। सरदार पटेल ने आंदोलन का नेतृत्व किया लेकिन उन्होने कांग्रेस के सभी महिला एवं पुरूष कार्यकर्ताओं को चाहे वे हिन्दू हो या मुसलमान, इस आंदोलन में संलग्न कर दिया था। इसमें इमाम साहेब अब्दुल कादिर, उत्तमचंद दीपचंद शाह, मोहनलाल कामेश्वर पंडया, भक्तिबा देसाई, दरबार गोपालदास देसाई, मीठूबेन पेटिट, जुगतरामभाई दवे, सूरजबेन मेहता, उमर सोबानी और फूलचंद कवि जैसे लोग शामिल थे जिन्होने औपनिवेशिक शासक और उनके चाटुकारों को जमीनी स्तर पर चुनौती दी थी।
               
एक महत्वपूर्ण तथ्य जिस पर ध्यान देना आवश्यक है वह यह है कि इस अवधि में तत्कालीन हिंदू महासभा और आर.एस.एस. ने इस ऐतिहासिक संघर्ष से स्वयं को अलग रखा। अंग्रेजों के विरूध्द स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले प्रमुख कांग्रेसी नेता सरदार पटेल के नाम का मोदी द्वारा उपयोग करना हिंदुत्व केम्प की एक चाल है जिससे कि लोग इस कैम्प के लोगों को भी स्वतंत्रता आंदोलन के एक भाग के रूप में देखें जबकि उन्होने स्वतंत्रता आंदोलन को धोखा दिया है। हो सकता है कि सरदार पटेल के नाम को लेकर चलने वाला यह खेल सफल हो जाये क्योंकि एक पार्टी के रूप में कांग्रेस अपनी उपनिवेशिकता विरोधी विरासत के प्रति उदासीन हो गई है।
              
मृत व्यक्ति बोलते नही है, और सरदार पटेल सच्चाई को सामने रखने के लिये प्रकट नही हो सकते। हालांकि,समकालीन दस्तावेज दर्शाते है कि सरदार पटेल के लिए मोदी और हिंदुत्व कैम्प का प्रेम झूठ पर आधारित है। सरदार पटेल हिंदुत्व की राजनीति से घृणा करते थे है और आर.एस.एस.पर प्रतिबंध लगाने वाले पहले व्यक्ति थे। सरदार पटेल के अधीन गृह मंत्रालय द्वारा 4 फरवरी 1948 को जारी सरकारी विज्ञप्ति जिसमें आर.एस.एस. पर प्रतिबंध लगाया गया था को पढ़ने से सब कुछ स्पष्ट हो जाता है जो इस प्रकार है:-
              
 ''भारत सरकार ने 2 फरवरी 1948 को पारित अपने संकल्प में देश में कार्य कर रही घृणा और हिंसा फैलाने वाली उन ताकतों को समूल नष्ट करने के लिये दृढ़ निश्चय घोषित किया था जो हमारे देश की स्वतंत्र को खतरे में डाल रही है और उसके अच्छे नाम को बदनाम कर रही है। इस नीति का अनुसरण करते हुये भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गैर कानूनी घोषित करने का निर्णय किया है।''
        
इस विज्ञप्ति में आगे यह भी कहा गया था कि आर.एस.एस. पर प्रतिबंध इसलिये लगाया गया है क्योंकि संघ के सदस्यों द्वारा अवांछित और खतरनाक गतिविधियों को संचालित किया गया जा रहा है। यह पाया गया है कि देश के अनेक भागों में आर.एस.एस. के सदस्य हिंसक गतिविधियों जिनमें आगजनी, लूट, डकैती और हत्या सहित अवैधा हथियार और गोला बारूद एकत्रित करना शामिल है, में लिप्त पाये गये है। वे लोगों को आतंकी तरीके अपनाने, आग्नेयात्रों को एकत्रित करने, सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा करने और पुलिस तथा सेना को गलत काम के लिये उकसाने के लिये लघु पुस्तिकाएँ और पर्चे बांटते हुये पाये गये है।
               
वे सरदार पटेल ही थे जिन्होने गृह मंत्री रहते हुये आर.एस.एस. के तत्कालीन प्रमुख गुरु गोलवलकर को यह कहने में जरा भी संकोच नही किया कि उनका संगठन गांधी की हत्या करवाने और हिंसा भड़काने के लिए जिम्मेदार था। गोलवलकर को 11 सितंबर 1948 को लिखे एक पत्र में सरदार पटेल ने कहा था-
              
''हिन्दुओं को संगठित करना और उनकी मदद करना एक बात है किन्तु अपनी तकलीफों के कारण निर्दोष और असहाय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों से बदला लेना एकदम अलग है... इसके अलावा, कांग्रेस से उग्र विरोध के कारण व्यक्तित्व,शालीनता या मर्यादा की अनदेखी कर उन्होने लोगों के बीच अशांति फैलाई है। उनके सभी भाषण सांप्रदायिकता के जहर से भरे हुये थे। हिंदुओं के उत्साह और उनकी सुरक्षा के लिए उन्हे संगठित करने हेतु यह जहर फैलाना आवश्यक नही था। इस जहर के अंतिम परिणामस्वरूप ही गांधीजी के अमूल्य जीवन का बलिदान देश को सहना पड़ा। अब सरकार या जनता की रत्ती भर सहानुभूति भी आर.एस.एस. के साथ नही बची है बल्कि वास्तव में उसके प्रति विरोध बढ़ गया है। यह विरोध तब और गंभीर हो गया जब गांधीजी की मृत्यु के बाद आर.एस.एस. के लोगों ने खुशियाँ मनाई और मिठाइयाँ बाँटी। इन परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ कार्रवाई करना सरकार के लिये आवश्यक हो गया है ...तब से आज तक छह महीने बीत चुके हैं। हमे आशा थी कि इतना समय बीत जाने के बाद आर.एस.एस.के लोग भली भॉति सोच-समझकर ठीक रास्ते पर आ जायेंगे। किन्तु मुझे जो सूचनाएँ प्राप्त हुई है वे इस बात का प्रमाण है कि वे अपनी उन्ही पुरानी गतिविधियों में नई जान डालने का प्रयास कर रहे है।''
             
सरदार पटेल इस बात की निरंतर आलोचना करते रहे कि गाँधीजी की हत्या के लिये हिंदुत्व ब्रिगेड ही संयुक्त रूप से जिम्मेदार थी। 27 फरवरी 1948 को नेहरू को लिखे एक पत्र में उन्होने कहा था-
               
 ''वह हिन्दू महासभा की कट्टर शाखा थी जो सीधो सावरकर के अधीन थी जिसने यह साजिश रची और उसे अंजाम दिया। यह बात भी सामने आती है कि यह षड़यंत्र सिर्फ 10 लोगों तक सीमित था..... निश्चय ही उनकी (गाँधीजी की) हत्या का आर.एस.एस. और हिन्दू महासभा के उन लोगों ने स्वागत किया जो उनके सोचने के तरीके और उनकी नीतियों का घोर विरोध करते थे।''
            
 सरदार पटेल ने हिंदू महासभा के जाने-माने नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को 18 जुलाई 1948 को लिखे एक पत्र में फिर इसी तथ्य पर जोर दिया:
              
 ''जहाँ तक आर.एस.एस. और हिंदू महासभा का गांधीजी की हत्या से संबन्ध होने की बात है, यह मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है और मैं इन दोनों संगठनों की इसमें भूमिका पर कुछ नही कहना चाहता,किन्तु हमारी सूचनाएँ यह पुष्टि करती है कि इन दो संगठनों की गतिविधियों के ही परिणामस्वरूप विशेषकर आर.एस.एस. के कारण देश में ऐसा वातावरण निर्मित हो गया था जिसमें यह भयानक घटना संभव हुई। मेरे मन मे कोई संदेह नही है कि हिन्दू महासभा की कट्टरपंथी शाखा षड़यंत्र में शामिल थी। आर.एस.एस. की गतिविधियों ने सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए एक स्पष्ट खतरा पैदा कर दिया है। हमारी सूचनाएँ बताती है कि वे गतिविधियाँ प्रतिबंध के बावजूद समाप्त नही हुई है। वास्तव में, जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है आर.एस.एस. के वर्ग अधिक आक्रामक होते जा रहे है और अधिक संख्या में विधवंसक गतिविधियों में लिप्त हो रहे है।''
               
 इन सब तथ्यों के बावजूद नरेंद्र मोदी सरदार पटेल के प्रति प्रेम करने का दावा करते है। यह सिर्फ इतना दर्शाता है कि मोदी को स्वार्थपूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए झूठ का सहारा लेने से कोई परहेज नहीं है। सरदार पटेल तो पहले से ही एक वीर महापुरूष है। मोदी को उनका निर्माण करने की जरूरत नही है। उन्हे और आर.एस.एस. को तो सिर्फ यह तथ्य छुपाना है कि सरदार पटेल उनके संगठन के विरोधी थे और उन्होने उनके विरूध्द कार्यवाही की थी। अब इसे तो सिर्फ चोरी ही कहा जा सकता है कि जो उनके नही है वे उन्हें अपना बनाने में लगे हुये है। ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करना हिन्दुत्व कैंप की रणनीति की विशेषता है। गोएबल्स तो मर गया, लेकिन मोदी चिरायु हों।    


(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती महाविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के व्याख्याता तथा एक सक्रिय रंगमंचकमी जिन्होने राष्ट्रवाद तथा द्वि-राष्ट्र के सिध्दान्त पर गहन शोधकार्य किया है)

No comments: