दंगों पर नियंत्रण पाने के लिए गुजरात मॉडल को अपनाने की मांग

एल. एस. हरदेनिया

      
लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात के विकास मॉडल की खूब चर्चा हुई। स्वयं नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में बार-बार गुजरात मॉडल की बात करते थे। मोदी कहते थे मुझे सत्ता सौंपिए गुजरात मॉडल के जरिये देश विकास के ऐसे रास्ते पर दौड़ेगा कि जितनी प्रगति कांग्रेस के 65 साल के राज में नहीं हो पाई वह मेरे 60 महीने के शासन में हो जायेगी। गुजरात मॉडल क्या है वह अभी तक आम आदमी की समझ में नहीं आ पाया है। चुनाव के बाद गुजरात के विकास मॉडल की चर्चा लगभग थम गई है। गुजरात के विकास मॉडल के स्थान पर गुजरात के एक और मॉडल की चर्चा प्रारंभ हो गई है। यह है दंगों पर नियंत्रण करने का मॉडल । भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ने सुझाव दिया है कि गुजरात मॉडल से साम्प्रदायिक दंगों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

आखिर दंगों पर नियंत्रण पाने का यह गुजरात मॉडल है क्या, जिन भाजपा नेता ने दंगों पर नियंत्रण करने के लिये गुजरात मॉडल का सुझाव दिया है उनका कहना है कि 2002 के बाद गुजरात में एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। दंगे में हिंसा दोनों तरफ से होती है, परंतु 2002 के फरवरी-मार्च में जो हुआ था वह दंगा नहीं था वरन् कत्लेआम था। जिसे अंग्रेजी में जेनोसाइड कहते हैं। जेनोसाइड का अर्थ है किसी जाति विशेष धर्म विशेष के मानने वालों की सामूहिक हत्या। 2002 में गुजरात में यही हुआ था। 2002 के फरवरी-मार्च में गुजरात के अनेक स्थानों पर योजनाबद्ध तरीके से सामूहिक हत्यायें की गईं थीं। इस कत्लेआम में या तो पुलिस प्रशासन शामिल था या उसने मूक दर्शक की भूमिका निभाई थी। लोगों को घरों में बंदकर के जला दिया गया था। अनेक महिलाओं के साथ बलात्कार भी हुआ था। बच्चों तक पर रहम नहीं किया गया था। न सिर्फ दंगों के दौरान बाद में भी मुसलमानों को लगातार आतंकित किया गया। पूरे के पूरे गांवों से मुसलमानों को बहिष्कृत कर दिया गया था। जो भाग गये थे उन्हें फिर से उन गांवों में बसने नहीं दिया गया। जहां जहां दंगा पीडि़तों ने नई बस्तियां बसाई वहां बुनियादी नागरिक सुविधाएं नहीं दी गईं। ऐसी अनेक बस्तियों में स्कूल नहीं खुल सके, अस्पताल नहीं बनने दिये, कहीं-कहीं पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं कराया गया, अनेक स्थानों पर उनकी आर्थिक रीढ़ भी तोड़ दी गई।

अर्थात दंगों पर नियंत्रण करने का गुजरात मॉडल है किसी जाति विशेष, धर्म विशेष या नस्ल विशेष के लोगों का कत्लेआम करवाना और बाद में उन्हें अपने पैरों पर खड़े नहीं होने देना। स्वभाविक है कि उसके बाद दंगा नहीं होगा। पिटने और लुटने के बाद किसकी हिम्मत है उफ करने की या प्रतिशोध करने की।

इस बीच भाजपा के एक अन्य नेता ने एक और घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत हिन्दू राष्ट्र बन जायेगा। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दबाव में भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद का उम्मीदवार घोषित किया था उसके बाद अंग्रेजी अखबार द हिन्दू के एक प्रतिनिधि ने नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में जाकर वहां उपस्थित संघ के कुछ पदाधिकारियों से भेंट की थी। प्रतिनिधि ने भेंट वार्ताओं पर आधारित अपनी रिपोर्ट द हिन्दू के अक्टूबर 18, 2013 के अंक में छापी थी। अपनी रिपोर्ट में प्रतिनिधि प्रशांत झा ने लिखा कि मैंने जानना चाहा था कि संघ ने नरेन्द्र मोदी को क्यों चुना तो मुझे उत्तर मिला क्योंकि हमें भरोसा है कि नरेन्द्र मॉडल व्यवस्था में परिवर्तन करेंगे। प्रशांत झा ने बात को और स्पष्ट करने को कहा। इस पर बताया गया कि वर्तमान व्यवस्था  तथाकथित अल्पसंख्यकों को लाभ पहुंचाने के लिये बनाई गई है। इस व्यवस्था के चलते मुसलमानों का तुष्टीकरण किया जा रहा है। जब केन्द्र में हम सत्ता में आयेंगे तो तुष्टीकरण का यह रवैया समाप्त हो जायेगा। जैसा कि गुजरात में हुआ है। देखिये गुजरात में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है।यदि ऐसा होता है तो मुसलमानों की क्या प्रतिक्रिया होगी मैंने जानना चाहा। इस पर संघ के नेताओं ने कहा कि ‘‘वे पाकिस्तान तो जा नहीं सकते। वे विकास करें। परंतु मुख्य प्रश्न यह है कि वे भारत के प्रति वफादार रहें न कि किसी अन्य देश के प्रति।

यहां पर स्मरण दिलाना प्रासंगिक होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना जिन उद्देश्यों के लिये की गई थी उनमें भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना प्रमुख है। संघ का हिन्दू राष्ट्र का मॉडल वैसा ही है जैसा पाकिस्तान का इस्लामिक गणतंत्र है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को लगभग समाप्त कर दिया गया है। अल्पसंख्यकों को विशेषकर वहां रहने वाले हिन्दुओं को चुनचुन कर भगा दिया गया। उनके द्वारा छोड़े गये मकानों और अन्य चल-अचल संपत्तियों पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया। पाकिस्तान की नींव घृणा पर खड़ी है। घृणा करने वाला राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। पाकिस्तान आज भी दुनिया का सर्वाधिक पिछड़ा देश है। पिछले वर्ष मैं पाकिस्तान गया था। मेरे प्रवास के दौरान वहां के अनेक नौजवानों से बातचीत के दौरान यह कहा कि वे भारत से घृणा नहीं करते ईष्र्या करते हैं। यदि हम प्रारंभ से ही धर्म आधारित राष्ट्र बन जाते तो हमारी स्थिति भी पाकिस्तान के समान होती।

भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिये हमें यहां के अल्पसंख्यकों के साथ वैसा ही व्यवहार करना होगा जैसा पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों के साथ किया गया। आज भी पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं। अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा ने पाकिस्तान में ऐसा रूप ले लिया है कि वहां अब सुन्नी व शिया मुसलमानों में आये दिन संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। चूंकि वहां शिया मुसलमानों की संख्या सुन्नियों की तुलना में कम है, इसलिये अब वहां शियाओं पर आये दिन ज्यादतियां की जा रही हैं। उनके साथ वैसा ही व्यवहार हो रहा है जैसा वहां रहने वाले हिन्दुओं और ईसाईयों के साथ होता है। स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि पाकिस्तान में रहने वाले शिया मांग कर रहे हैं कि उन्हें अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया जाए।

फिर यह भी जानना आवश्यक है कि हिन्दू राष्ट्र में दलितों का क्या स्थान होगा। क्या हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाएगा जैसा उनके साथ आज हो रहा है।


इस तरह यह कहा जा सकता है कि सांप्रदायिक दंगों पर नियंत्रण करने का गुजरात मॉडल और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की परिकल्पना न सिर्फ देश के बुनियादी हितों के विरूद्ध है वरन् देश को तोड़ने वाला खतरों से भरपूर इरादा है।

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