भागलपुर दंगे के 25 साल

-एल.एस. हरदेनिया



आज से 25 वर्ष पहले आजादी के बाद देश का सबसे बड़ा सांप्रदायिक दंगा बिहार के शहर भागलपुर में हुआ था। यह वीभत्स दंगा 24 अक्टूबर 1989 से प्रारंभ होकर कई दिनों तक चला था। एक मोटे अंदाज के अनुसार इस दंगे में 3000 से ज्यादा लोग मारे गये थे। भागलपुर के बाद दंगों में मारे गये लोगों का सबसे बड़ा आंकड़ा गुजरात का है।

यह भागलपुर वही शहर है जहां कुछ लोगों की आंखों में गर्म सूजा घुसेड़कर अंधा कर दिया गया था। भागलपुर में सांप्रदायिक हिंसा का एक पुराना इतिहास है। भागलपुर में सबसे पहला हिन्दू-मुस्लिम दंगा 1924 में हुआ था। उसके बाद 1936, 1946 और 1966 में भी दंगे हुए थे। परंतु ये सब दंगे गलियों और मुहल्लों तक सीमित रहे थे और थोड़े दिनों में नियंत्रित हो गये थे। परंतु 1989 में हुआ दंगा इन सबसे अलग था। भागलपुर में 1983 से ही सांप्रदायिक तनाव प्रारंभ हो गया था। 1983 से 1989 तक छोटी-छोटी घटनाओं को गंभीर रूप दे दिया जाता था। सांप्रदायिक तनाव ने उस समय गंभीर रूप ले लिया जब एक पुस्तक का प्रकाशन हुआ। इस पुस्तक का शीर्षक था ‘‘बोया पेड़ बबूल का’’। यह पुस्तक एक प्रोफेसर ने लिखी थी जिनका नाम धनपति पांडे था। इस पुस्तक में हजरत मोहम्मद के विरूद्ध अपमानजनक बातें लिखी गईं थीं। इससे मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंची। इसी बीच अदालत ने किताब के पक्ष में निर्णय दे दिया जिसने अग्नि में घी का काम किया। जिस न्यायाधीश ने किताब के बारे में निर्णय दिया था उसके ऊपर एक युवक ने गोली दागी। सौभाग्य से युवक का निशाना चूक गया परंतु गोली मारने वाला युवक पकड़ लिया गया। इस घटना से तनावपूर्ण वातावरण और गहरा हो गया। 1986 में राम-जानकी रथ निकाला गया। इस रथ को मुस्लिम बहुल इलाकों से गुजरने की अनुमति नहीं दी गई। इससे स्थिति ने विस्फोटक रूप ले लिया। अनुमति नहीं मिलने के बावजूद रथ यात्रा मुस्लिम बहुल इलाकों से निकाली गयी। रथ यात्रा का आयोजन विश्व हिन्दू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया था।

1989 के अप्रैल माह में रामनवमी के अवसर पर ऐसा ही जुलूस निकाला गया। इस जुलूस के आयोजकों ने भी मुस्लिम क्षेत्रों से गुजरने की अनुमति मांगी परंतु अनुमति नहीं मिली। इससे तनाव और गहरा गया। इसी बीच पुलिस ने सख्त कार्यवाही की। कार्यवाही के चलते हिन्दू और मुसलमान गिरफ्तार किये गये। परंतु पुलिस अधीक्षक के आदेश से हिंदुओं को रिहा कर दिया गया। इस इकतरफा कार्यवाही से मुसलमान नाराज हुए। इसके बाद 12 अगस्त 1989़ को मुहर्रम के अवसर पर पुनः विवाद हो गया। इस दरम्यान पुलिस ने हिंदुओं के प्रति पक्षपाती रवैया अपनाया। इससे मुसलमानों को बुरा लगा। प्रशासन के पक्षपाती रवैये के चलते मुसलमानों ने मुर्हरम का जुलूस रद्द कर दिया। विसारी पूजा इस क्षेत्र में मनायी जाती है। परंतु 1989 में उसे बड़े जोरदार ढंग से मनाने का निर्णय लिया गया। इस तरह का निर्णय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद की पहल पर लिया गया था। प्रशासन ने इन सब बातों को गंभीरता से नहीं लिया और स्थिति बद से बदतर हो गई। न सिर्फ पुलिस, प्रशासन वरन् सेक्युलर तत्वों ने भी बिगड़ती स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया।

इस बीच शिलापूजन की तैयारियां प्रारंभ हो गईं। शिलापूजन की तैयारियां अगस्त से ही प्रारंभ हो गईं थीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने स्थिति पर हर हालत में नियंत्रण रखने का आदेश दिया। शांति बनाये रखने के लिये बैठकें आयोजित की गईं। इन बैठकों में मुसलमानों के प्रतिनिधियों ने इस बात पर आपत्ति की कि हिंदू संगठन जानबूझकर हमारे मोहल्लों से धार्मिक जुलूस निकालते हैं और भड़काने वाले नारे लगाते हैं। प्रशासन की तरफ से यह आश्वासन दिया गया कि किसी भी जुलूस में 50 से ज्यादा लोगों को शामिल करने की इजाजत नहीं दी जाएगी और ना ही उन्हें किसी प्रकार के नारे लगाने दिए जायेंगे। परंतु ये सब आश्वासन खोखले साबित हुए और 22 अक्टूबर 1989 को जो जुलूस निकला उसमें 50,000 लोग शामिल हुए और अनेक आपत्तिजनक भड़काऊ नारे लगे। जब यह जुलूस मुस्लिम बहुल इलाका फतेहपुर पहुंचा तो पूरा जोर लगाकर अत्यधिक भड़काने वाले नारे लगाए गए। उसी दरम्यान एक बम का विस्फोट हुआ, जिसके चलते लोग यहां वहां भागने लगे। लोगों ने पत्थर फेंकना चालू किया और अनेक दुकानों को लूट लिया। जब यह सब हो रहा था उस समय भीड़ में वहां के पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट भी उपस्थित थे। पूरे शहर में जंगल की आग की तरह खबरे फैल गईं। अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। डरे हुए लोग अपने-अपने घरों में बंद हो गए। अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल से ले लाए। दुकानों के शटर गिरा दिए गए। वैसे 19 अक्टूबर से ही यह आदेश दे दिए गए थे कि हर जगह पुलिस की जबरदस्त मौजूदगी होनी चाहिए परंतु इन आदेशों का भी पालन नहीं हुआ। जिन भी अधिकारियों ने इन आदेशों का पालन नहीं किया उनके विरूद्ध किसी किस्म की कार्यवाही नहीं हुई।

स्थिति बिगड़ती गई। भयभीत मुसलमान तातरपुर चैक में इकट्ठा होने लगे। शिलापूजा का जुलूस धीरे-धीरे तातरपुर चैक की तरफ बढ़ रहा था। जुलूस में शामिल लोग मुसलमानों के विरूद्ध भड़काऊ नारे लगा रहे थे। मुसलमानों ने अनुरोध किया कि जुलूस को रोक दिया जाए परंतु प्रशासन ने इस संबंध में कोई भी कदम नहीं उठाया। पत्थर फेंकना चालू रहा। जुलूस भंग हो गया और उसमें शामिल लोग शूजागंज बाजार में घुस गए और मुसलमानों की दुकानों को लूटना चालू कर दिया। यह सब पुलिस वालों की उपस्थिति में हो रहा था जो चुपचाप यह सब कुछ देख रहे थे। सारे शहर में दंगा फैल गया। जो मुसलमान सुरक्षित जगहों पर नहीं पहुंच सके उन्हें मार डाला गया। इस तरह की घटनाएं अनेक स्थानों पर हुईं। यह अफवाह फैलाई गई कि भागलपुर विश्वविद्यालय के 400 हिंदू विद्यार्थियों की हत्या कर दी गई है। ये विद्यार्थी मुसलमानों द्वारा संचालित छात्रावास में रहते थे। बाद में पता चला कि यह सिर्फ एक अफवाह थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों ने यह भी अफवाह फैलाई की एक महिला कालेज की छात्राओं के साथ बलात्कार किया गया है। 400 हिंदू बच्चों की हत्या और हिंदू छात्राओं के साथ बलात्कार की अफवाहों ने दंगे को वीभत्स रूप दे दिया। और न सिर्फ पूरा भागलपुर शहर वरन् आसपास के जिलों में भी सांप्रदायिकता की आग फैल गई। अनेक जगहों से हत्याओं की खबरे आती रहीं। अनेक स्थानों से हथियारों की लूटपाट की खबरे भी आती रहीं।

यहां यह उल्लेखनीय है कि जब भागलपुर में यह दंगा हुआ था उस समय बिहार में कांग्रेस की सरकार थी। कुछ समय बाद बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार बनी। दंगा पीडि़तों को अपेक्षा थी कि धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक कहे जाने वाले लालू यादव अपराधियों को दंड दिलवायेंगे और दंगा पीडि़तों की आंखों से आंसू पोछेंगे। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि दंगाईयों में अनेक यादव शामिल थे। आखिर लालू यादव, यादवों को कैसे नाराज करते। लालू यादव की सरकार के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अपराधियों को दंड दिलवाने की आवश्यक पहल की। इसके बावजूद अभी भी दंगा पीडि़तों को जितनी राहत मिलनी थी वह नहीं मिल पायी है।


इस वीभत्स दंगे की 25वीं बरसी के अवसर पर भागलपुर में एक विशाल कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रतिनिधि आयेंगे और इस मुद्दे पर विचार करेंगे कि भविष्य में इस तरह की जघन्य सांप्रदायिक संघर्ष की घटनाएं कैसे रोकी जाएं। सम्मेलन 7, 8, 9 नवंबर 2014 को भागलपुर में आयोजित है।

No comments: