प्रेस विज्ञप्ति :- काले कानून को चुनौती दी जाएगी

प्रदेश में नागरिकों के मौलिक अधिकार को कुचलने की कोशिश
काले कानून को चुनौती दी जाएगी


भोपाल: 23 अगस्त 2015- मध्यप्रदेश सरकार ने ताबड़तोड़ ढंग से एक ऐसा विधेयक विधानसभा से बिना किसी बहस के पारित करवाया है संभवतः जिसका मकसद सत्ताधारी नेताओं और अन्य प्रभावशाली लोगों के भ्रष्टाचार और गैरकानूनी कार्यों के खिलाफ नागरिको को कोर्ट जाने से रोकना है। इस विधेयक का नाम है “मध्यप्रदेश तंग करने वाली मुकदमेबाजी निवारण विधेयक 2015”। वास्तव में व्यापमं जैसे महाघोटाले के प्रकाश में आने के बाद सरकार अपनी विभिन्न भर्ती परीक्षाओं की चयन प्रक्रिया और अन्य मामलों से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण तथ्य जनता से छिपाना चाहती है।

ये आरोप यहां पर आयोजित एक पत्रकारवार्ता में विभिन्न पार्टियों  एवं संगठनों के प्रतिनिधियों ने लगाए। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री सहित अन्य प्रभावशाली लोगों, मंत्रियों के खिलाफ अब कोर्ट में याचिका लगाना या मुकदमा दायर करना बहुत कठिन होगा। चूँकि एडवोकेट जनरल ने यदि ऐसी शिकायतों पर आपत्ति लगा दी तो हाईकोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों में ऐसे केस दायर हीं नहीं हो सकेंगे।

उन्होंने कहा कि जिस तरह बिना बहस के ताबड़तोड़ ढंग से इस विधेयक को विधानसभा से पारित करवाया गया और इसे कानून का रूप देने के लिए तुरत-फुरत अधिसूचना जारी की गई उससे प्रदेश सरकार की मंशा बिल्कुल साफ हो गई है। यह कानून संविधान द्वारा प्रदत्त हमारे मौलिक अधिकारों का सरासर उल्लंघन है। संविधान के अनुच्छेद 32 से 35 के तहत हमारे मौलिक अधिकारों को अमल में लाने के लिए सरकार के विरुद्ध पाँच तरह की रिट दाखिल करने का प्रावधान है। परन्तु सरकार इन याचिकाओं पर अंकुश लगाना चाहती है।

मध्य प्रदेश के जानेमाने विधिवेत्ता एवं प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता श्री आनंद मोहन माथुर ने भी इस कानून को हमारे मूलभूत अधिकारों पर हमला बताया है।

ऐसा है नया कानून:

महाधिवक्ता द्वारा किसी याचिका या मुकदमे को तंग या परेशान करने वाला बताने के बाद हाईकोर्ट संबंधित पक्षकार की सुनवाई के बाद आदेश जारी कर उसे किसी भी न्यायालय में सिविल या अपराधिक कोई भी प्रकरण दायर नहीं करने का निर्देश दे सकेगा। यदि उसने पूर्व में कोई प्रकरण दायर कर रखा है तो उस प्रकरण को तत्काल वापस लेना होगा। ऐसे मुकदमे हाईकोर्ट में हाईकोर्ट की अनुमति और अन्य अदालतों में जिला और सेशन न्यायाधीश की अनुमति के बगैर दायर नहीं किए जा सकेंगे।

न्यायालय या न्यायाधीश जब तक इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाते कि इस मुदकमे से न्यायालय की प्रक्रिया का दुरूपयोग नहीं हो रहा है, संबंधित पक्ष को मुकदमा दायर करने की अनुमति नहीं मिलेगी।


कोर्ट को असीमित अधिकार-

विश्वस्तसूत्रों से ज्ञात हुआ है कि इस अलोकतांत्रिक कानून को बनाने की अनुशंसा मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की तरफ से की गई।
वैसे भी पीआईएल दायर होने पर उच्च न्यायालय उसका गुण-दोष पर परीक्षण करता है और फिर उसको विचारार्थ मंजूर करता है। जब हाईकोर्ट किसी भी मुकदमे का निर्णय करने में सक्षम है तो इस तरह की याचिकाओं के लिए एडवोकेट जनरल से स्वीकृति लेने की क्या जरूरत है? इस दृष्टि से ये कानून कोर्ट के अधिकारों पर भी अतिक्रमण है और जनहित याचिकाओं को रोकने की साजिश है।

अपील का भी अधिकार नहीं..

नए कानून के अनुसार हाईकोर्ट द्वारा संबंधित याचिका या मुकदमे को तंग या परेशान करने वाला मानने के बाद निरस्त किए जाने पर इस मामले की सुनवाई या अपील कहीं नहीं की जा सकेगी। यह हाईकोर्ट का अंतिम फैसला माना जाएगा। न्यायालय में मामला दायर करने के लिए पक्षकार को यह साबित करना अनिवार्य होगा कि उसने यह प्रकरण तंग या परेशान करने की भावना से नहीं लगाया है और उसके पास इस मामले से संबंधित पुख्ता दस्तावेज मौजूद हैं।

हाई कोर्ट को नियम बनाने की शक्ति.!

यहीं नहीं इस कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए विधानसभा ने पहली बार नियम-उपनियम बनाने की शक्ति हाईकोर्ट को प्रदान की है। इसका मतलब यह है कि कार्यपालिका के बजाए न्यायपालिका ही इस कानून का क्रियान्वयन भी करेगी।

कानून को चुनौती दी जाएगी

भारतीय संविधान के मुताबिक कानून बनाने का अधिकार केवल विधायिका को है और अदालतें संविधान और नागरिकों के अधिकारों की संरक्षक है। यह कानून न सिर्फ हमारे मौलिक अधिकारों बल्कि कोर्ट के अधिकारों का भी अतिक्रमण है। इसलिए हम विभिन्न लोकतांत्रिक संगठनों के प्रतिनिधि मध्यप्रदेश सरकार के इस काले कानून को प्रत्येक प्रकार की चुनौती देंगे। दुःख की बात यह है कि आम लोग तो छोडि़ए अनेक कानून के विशेषज्ञों को भी नहीं मालूम की ऐसा काला कानून मध्यप्रदेश की विधानसभा ने पारित किया है। इसलिए इस कानून के खतरनाक पहलुओं से हम आम लोगों को अवगत कराएंगे। यदि आवश्यक समझा गया तो न्यायपालिका में भी इसे चुनौती दी जाएगी। हमें इस बात का भी अफसोस है कि विधायकों ने इस महत्वपूर्ण कानून पर अपने विचार प्रकट नहीं किए और सरकार की मनमानी चलने दी।


विधायकों को लॉ-मेकर कहा जाता है। इस गैरजिम्मेदाराना ढंग से यदि कानून पास होते रहे तो इससे हमारे देश की लोकतंत्र की नींव कमज़ोर हो जाएगी। 

------------

राष्ट्रीय सेक्युलर मंच द्वारा जारी  

No comments: