विश्व हिन्दी सम्मेलन में ख्यातिनाम लेखकों को आमंत्रण नहीं




भारत सरकार द्वारा मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में भोपाल में रह रहे हिन्दी के शीर्षस्थ लेखकों को आमंत्रण भी नहीं भेजा गया है। भोपाल में हिन्दी साहित्य के कई ऐसे शीर्षस्थ लेखक हैं, जिन्हें पद्मश्री एवं साहित्य अकादमी का अवार्ड मिला है और जिनकी रचनाओं के अनुवाद दुनिया की कई भाषाओं में की गई है।

बीते 9 सितम्बर को आयोजित  एक पत्रकार वार्ता में कई वरिष्ठ हिन्दी लेखकों ने विश्व हिन्दी सम्मेलन को लेकर सवाल खड़े किए। साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि राजेश जोशी ने कहा कि विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिन्दी, ज्ञान एवं विवेक के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। यह कैसा सम्मेलन है, जिसमें हिन्दी के वरिष्ठ भाषाविद एवं लेखकों को आमंत्रित नहीं किया गया है। उन्होंने सवाल खड़े किए कि हिन्दी भाषी प्रदेश में विश्व सम्मेलन करने से हिन्दी का किस तरह से भला होगा? उन्होंने कहा कि इसमें अहिन्दी भाषी लेखकों को भी बुलाया जाना चाहिए था।

सांस्कृतिक मोर्चा की ओर से आयोजित पत्रकार वार्ता में कवि राजेश जोशी, संस्कृतिकर्मी रामप्रकाश त्रिपाठी, कवि कुमार अंबुज, कवि राजेन्द्र शर्मा, कथाकार ओम भारती, कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव सहित कई लेखक शामिल हुए। श्री जोशी ने कहा कि विदेश राज्य मंत्री का यह बयान बहुत ही हास्यपद है कि उन्होंने लेखकों को इसलिए आमंत्रित नहीं किया कि वे दारू पीते हैं। उन्होंने कहा कि सेना में ज्यादा शराब की खपत है, तो क्या उन्हें शराब के लिए याद किया जाना चाहिए या फिर उनके देश हित में उल्लेखनीय योगदान के लिए याद किया जाना चाहिए। अफसोस की बात है कि उन्हें लेखकों के योगदान के बारे में कुछ नहीं मालूम, तभी वे ऐसी बातें कर रहे हैं।

लज्जाशंकर हरदेनिया ने कहा कि एक ओर जनपक्षधर साहित्यकारों की हत्या हो रही है, तो दूसरी ओर भाषा एवं साहित्य के सृजन की बातें की जा रही हैं। क्या लेखकों एवं साहित्यकारों के बोलने की आजादी पर अंकुश लगाकर इस तरह के आयोजन से भाषा का कुछ भला हो सकता है।


कुमार अंबुज ने कहा कि भोपाल में पद्मश्री मंजूर एहतेशाम, पद्मश्री रमेशचंद्र शाह, पद्मश्री मेहरून्निसा परवेज, पद्मश्री ज्ञान चतुर्वेदी, साहित्य अकादमी से सम्मानित गोविन्द मिश्र, राजेश जोशी जैसे हिन्दी के शीर्षस्थ रचनाकारों सहित कई ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने हिन्दी को दुनिया में विस्तार दिया है, पर सरकार ने उन्हें आमंत्रित करना तक मुनासिब नहीं समझा। निश्चय ही इस आयोजन की मंशा हिन्दी भाषा को संरक्षित एवं विस्तार करने की नहीं है, बल्कि कुछ और ही है। साहित्यकारों ने सरकार से ऐसे आयोजनों पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की।

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