अमजद साबरी को सलाम



-एल.एस. हरदेनिया



वैसे तो इस्लाम शांति व सद्भाव का धर्म माना जाता है परंतु रमज़ान के माह में इस धर्म की पवित्रता और उच्च आदर्षों के प्रति विशेष ध्यान दिया जाता है। इस्लाम के अनुयायी माहभर रोज़ा रखते हैं। रोज़ा रखने के दौरान वे एक बूंद पानी भी नहीं पीते हैं। किसी चीज़ के खाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर इतना नियंत्रण रखता है वह कभी हिंसक घटना कर ही नहीं सकता। रमज़ान के महीने में यह अपेक्षा की जाती है कि रोज़ा रखने वाला न सिर्फ हिंसा से दूर रहे वरन् हिंसक विचार भी अपने मन में न लाए।

परंतु हैरत इस बात का है कि इन अपेक्षाओं के बावजूद अनेक मुस्लिम बहुल देशों से रमज़ान के दौरान घटित हिंसक घटनाओं की रिपोर्ट आ रही है। इनमें से कुछ घटनाएं दिल दहलाने वाली हैं। इसी तरह की एक दर्दनाक क्रूरता से भरपूर घटना दिनांक 22 जून को पाकिस्तान में हुई। दिनांक 22 जून को कराची में दिन दहाड़े एक महान सूफी गायक की हत्या कर दी गई। जिस गायक की हत्या की गई उनका नाम अमजद साबरी है। उनकी ख्याति न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि दुनिया के महान गायकों में थी। वे सूफी दर्षन से जुड़ी कव्वालियां गाते थे। जब वे अपना गायन पेश करते थे तो हज़ारों श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उनके गायन को सुनते थे।

22 जून को साबरी अपने एक मित्र के साथ कराची के भीड़ भरे इलाके से गुज़र रहे थे तभी दो मोटरसाईकिल सवार युवकों ने उनके वाहन पर गोलियां दागीं। इन अज्ञात हमलावरों ने अमजद साबरी को निषाना बनाया। वे स्वयं कार चला रहे थे। दोनों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया। थोड़े समय बाद साबरी की मौत हो गई और कुछ समय बाद उनके साथी की भी मृत्यु हो गई। घटना के कुछ समय बाद तालिबान के एक गुट ने साबरी की हत्या की ज़िम्मेदारी ली। तालिबान के एक प्रवक्ता ने यह कहा कि हां हमने साबरी को मारा है क्योंकि वे ईष्वर-विरोधी थे।

यहां यह उल्लेखनीय है कि अमजद साबरी के पिता गुलाम फरीद साबरी भी एक महान सूफी गायक थे। दूसरे दिन साबरी के जनाज़े को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उनके जनाज़े में लगभग तीस से पैंतीस हजार लोग शामिल हुए। मैंने स्वयं पाकिस्तान की प्रसिद्ध लेखिका ज़ाहिदा हिना से बात की। उनका कहना था कि पाकिस्तान के सभी समझदार नागरिकों ने साबरी की हत्या के लिए आंसू बहाए हैं। उन्हें उनके पिता की कब्र के पास ही दफनाया गया। साबरी के जनाजे़ में जो लोग शामिल हुए उनमें पाकिस्तान की राजनीति, फिल्म, कला, साहित्य और उद्योग की बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल थीं।

साबरी की हत्या के कुछ दिन पूर्व बांग्लादेश में भी एक पैंसठ साल के सूफी संत की हत्या की गई। उसके कुछ दिन पहले बांग्लादेश में ही उदार विचारों के धनी एक प्रोफेसर की हत्या की गई थी। इन दोनों हत्याओं की ज़िम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली थी जो इस समय सारी दुनिया में कहर मचाए हुए है।

क्रूरता की ये घटनाएं उस समय चरम पर पहुंच गईं जब पाकिस्तान की एक मां ने 20 जून को अपनी गर्भवती बेटी की हत्या की। 21 जून को अफगानिस्तान में 25 लोगों की हत्या की गई, इनमें भारत के दो नागरिक भी शामिल थे। 19 जून को बांग्लादेष में एक लड़की की हत्या कर दी गई। 17 जून को बांग्लादेश में ही एक ऐसे व्यक्ति की हत्या कर दी गई जो धर्मनिरपेक्ष विषयों पर किताबें छापता था। 8 जून को इस्तांबुल में 11 लोग एक बम विस्फोट की घटना में मारे गए।

जोर्डन में पांच बेकसूर लोगों को एक आतंकी हमले में मार दिया गया। यह घटना शरणार्थियों के एक कैंप के सुरक्षा दफ्तर में हुई। 7 जून अफगानिस्तान में एक अमरीकी पत्रकार और उसके साथ रहने वाला उनका अनुवादक मारा गया। पाकिस्तान में ही एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी गई। बांग्लादेष में बलात्कार का विरोध करने पर एक महिला की हत्या हुई। अमरीका में 14 जून को एक मुस्लिम व्यक्ति ने अनेक लोगों की हत्या कर दी। जो मारे गए वे सभी ऐसे नागरिक थे जिनका किसी भी धर्म या समाज से विरोध नहीं था।

13 जून को पाकिस्तान में एक टीवी शो चल रहा था। इस शो में आॅनरकिलिंग के विषय पर बातचीत हो रही थी। इस बातचीत में पाकिस्तान के एक महत्वपूर्ण सिनेटर शामिल थे। कार्यक्रम की संचालिका ने जब कुछ ऐसे प्रष्न पूछे जो उन्हें अच्छे नहीं लगे, इस पर इन सिनेटर महोदय ने स्टूडियो के भीतर ही उस महिला एंकर की पिटाई कर दी, जिसे उस शो के दर्षकों ने भी देखा। पाकिस्तान में एक हिंदू की इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि उसने इफ्तार के पहले खाना खाने का प्रयास किया था। 8 जून को बांग्लादेष में एक मंदिर के पुजारी की बिना कारण हत्या कर दी गई। 21 जून को अफगानिस्तान में 14 नेपाली मारे गए। इन सबकी हत्या की ज़िम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली।

18 जून को पाकिस्तान में एक महिला ने अपनी गर्भवती बेटी की हत्या कर दी। इस गर्भवती महिला से उसका परिवार इसलिए नाराज़ था क्योंकि उसने उनकी बिना इजाज़त के शादी की थी। शादी के कुछ दिन बाद उसके परिवार ने उसे अपने घर यह कह कर बुलाया कि ‘‘अब हम लोगों ने तुम्हें माफ कर दिया है’’। परंतु जैसे ही वह आई उसके थोड़े समय बाद उसकी गला घांेटकर हत्या कर दी गई। हत्या करने वालों में उसकी मां भी शामिल थी।

इसी दरम्यान यह खबर आई है कि हिंदू और सिक्ख अफगानिस्तान को छोड़कर भाग रहे हैं। यह सिलसिला रमज़ान के महीने मंे भी चालू है। वैसे भी अनेक मुस्लिम देषों में इस्लामिक स्टेट ने कहर मचाकर रखा है और इस कहर के सबसे ज्यादा षिकार मुसलमान ही हो रहे हैं। सबने उम्मीद की थी कि कम से कम रमज़ान के महीने में हिंसक घटनाओं का सिलसिला थमेगा परंतु यह अपेक्षा भी निराषा में बदल गई।

मुझे याद है कि बरसों पहले इज़राईल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध चल रहा था परंतु जब रमज़ान का महीना आया तो दोनों पक्षों ने युद्ध रोकने की घोषणा कर दी थी।

अमजद साबरी की हत्या के बाद पाकिस्तान के अनेक समाचारपत्रों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। एक समाचारपत्र ने यह भी लिखा कि हत्या के कुछ दिन पूर्व साबरी ने अपने लिए सुरक्षा की मांग की थी। उन्होंने इस संबंध में पुलिस को एक पत्र भी लिखा था। परंतु उनकी इस मांग के प्रति ध्यान नहीं दिया गया। सिंध सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष फकरे आलम ने भी इस बात की पुष्टि की है कि साबरी ने पुलिस से सुरक्षा की मांग की थी।

साबरी की हत्या के दो दिन पूर्व ही सिंध हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीष के पुत्र का अपहरण कर लिया गया था। अभी तक अपहरत व्यक्ति का पता नहीं लगा है। कराची पाकिस्तान का सबसे अधिक असुरक्षित शहर माना जाता है। दो वर्ष पूर्व जब मैं कराची में था तब मुझे वहां के अनेक नागरिकों ने यह बताया कि इस शहर में रहने वालों को अपना कफन हमेषा तैयार रखना पड़ता है। साबरी की हत्या के एक दिन पूर्व अहमदी समाज के एक डाक्टर की हत्या की गई थी। अहमदी समाज के लोग पाकिस्तान में स्वयं को सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस करते हैं।


साबरी की हत्या की निंदा पाकिस्तान के सभी राजनैतिक दलों के नेताओं और समाज के अन्य प्रमुख लोगों ने भी की है। इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रवक्ता नईम-उल-हक ने यह आरोप लगाया कि कराची में कोई सुरक्षित नहीं है। वहां के एक और प्रमुख नागरिक वसीम अख्तर ने कहा है कि कराची में बाहुबलियों का राज है। बाहुबलियों के अनेक संगठन प्रतिबंधित हैं परंतु वे खुलेआम कराची की सड़कों और गलियों में आपको ढूंढते मिल जाएंगे।

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