सऊदी ब्लॉगर राईफ बदवी की कविता: गैलिलियो को समझौता नहीं करना चाहिए
गैलिलियो को समझौता नहीं करना चाहिए
गैलिलियो को समझौता नहीं
करना चाहिए
फिर से सच को
मंसूर की सूली की रस्सियों में पड़ी गरहें
खोलने की जरूरत
पड़ गयी है
फिर से सुकरात को
जहर आलूद ख़्वाबों से स्नान
करके
ताबीर होना पड़ेगा
प्रोमेथियस को
हमारे सदी के गिद्धों को अपना जिगर खिलाने के लिए
एक बार फिर अपना
जिगर पैदा करना पड़ेगा
वक्त की रवानी को
जारी रखने के लिए
मखदूम बिलावल को
एक बार फिर लहु
में जिस्म तेल करना पड़ेगा
राईफ बदवी
उसके जलते जिस्म को बुझाने के लिए
तुमहारे नए खून की जरूरत पड़ गयी है
ईसा इब्ने मरियम
को दो हजार पंद्रह की घड़ियाल की
सुईयों में फिर
से मसलूब होना पड़ेगा
कूफा और सीरिया के खामोश
तमाशाईयों के
बीच से गुजरना पड़ेगा
लेकिन फिर भी राईफ बदवी
गैलिलियो को आज समझौता नहीं
करना चाहिए
(राईफ बदवी सऊदी अरब के एक ब्लॉगर हैं जिन्हें
साइबर क्राइम और धर्म के अपमान के आरोप में
1000 कोड़ों
और दस साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई है )
Galileo Must Not Recant
Galileo must not recant.
Truth again
must untie the knots at Mansoor’s
neck.
Again Socrates
must baptize himself in hemlock
dreams
to enact them.
Prometheus must grow his liver once
more
to feed our century’s eagles.
To keep time turning,
Mukhdoom Bilawal, oil its gears!
Render your body to the grindstones
again!
Raif Badawi,
Bruno’s trial has reconvened.
His body burns. Extinguish the flames
with your fresh blood.
The great clock chimes Two Thousand
Fifteen
and Jesus, son of Mary, must hang
from its dials.
Hussain, with his head on his own
spear,
must trudge the streets of Syria and
Kufa,
parting hushed throngs.
Again, Raif Badawi—
Galileo must not recant.
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