कविता :- क्या होगा ?





वीरा-
मां
अगर मैं न सीखूं
खाना बनाना
तो क्या होगा ?’
हमारी बदनामी होगी
तेरी ससुराल में।


मां
अगर मैं न कर पाऊं
कशीदाकारी, घर की सफाई
गृहस्थी की मांग पूरी
तो क्या होगा ?’
कट जाएगी नाक तेरे पिता की
हम नहीं रह जाएंगे
किसी को मुंह दिखाने के काबिल।


मां
यदि मैं
भाई की तरह
सड़कों पर घूमना चाहूं
देर से घर आना चाहूं
बकना चाहूं गालियां मर्दाने ढंग से
पहनना चाहूं पैंट शर्ट हरदम
न मानना चाहूँ
इस चारदीवारी के
अंदर के नियम
तो क्या होगा ?’

तू हमें जीते जी मार देगी
ठौर नहीं मिलेगी नर्क में भी हमें।


मां

मैं यह नहीं जानना चाहती
कि तुम लोगों का
या औरों का क्या होगा
और क्या नहीं होगा-


मां
मैं यह जानना चाहती हूँ 
कि मेरे
अपने जीवन में क्या होगा
?’

(वर्तमान साहित्य से साभार)

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