मदन कश्यप कि कविता :- क्योंकि वह जुनैद था


मदन कश्यप



चलती ट्रेन के खचाखच भरे डिब्बे में
चाकुओं से गोद-गोद कर मार दिया गया
क्योंकि वह जुनैद था
झगड़ा भले ही हुआ बैठने की जगह के लिए
लेकिन वह मारा गया
क्योंकि वह जुनैद था
न उसके पास कोई गाय थी
न ही फ़्रिज में माँस का कोई टुकड़ा
फिर भी मारा गया क्योंकि वह जुनैद था
सारे तमाशबीन डरे हुए नहीं थे
लेकिन चुप सब थे क्योंकि वह जुनैद था
डेढ़ करोड़ लोगों की रोजी छिन गयी थी
पर लोग नौकरी नहीं जुनैद को तलाश रहे थे
जितने नये नोट छापने पर खर्च हुए
उतने का भी काला धन नहीं आया था
पर लोग गुम हो गये पैसे नहीं
जुनैद को खोज रहे थे
सबको समझा दिया गया था
बस तुम जुनैद को मारो
नौकरी नहीं मिली जुनैद को मारो
खाना नहीं खाया जुनैद को मारो
वायदा झूठा निकला जुनैद को मारो
माल्या भाग गया जुनैद को मारो
अडाणी ने शांतिग्राम बसाया जुनैद को मारो
जुनैद को मारो
जुनैद को मारो
सारी समस्याओं का रामबान समाधान था
जुनैद को मारो
ज्ञान के सारे दरवाजों को बंद करने पर भी
जब मनुष्य का विवेक नहीं मरा
तो उन्होंने उन्माद के दरवाजे को और चौड़ा किया जुनैद को मारो!!
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ईद की ख़रीदारी कर हँसी-ख़ुशी घर लौट रहा
पंद्रह साल का एक बच्चा
कितना आसान शिकार था
चाकुओं से गोद-गोद कर धीरे-धीरे मारा गया
शायद हत्यारों को भी गुमान न था
कि वे ही पहुँचाएंगे मिशन को अंजाम तक
कि इतनीआसानी से मारा जाएगा जुनैद
चाकू मारने के हार्डवर्क से पराजित हो गया
अंततः मनुष्यता का हावर्ड
वह मारा गया क्योंकि वह जुनैद था!




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