कल्याणकारी योजनाओं में आधार का पेंच
जावेद अनीस
2007 में शुरू की गई मिड डे
मील भारत की सबसे सफल सामाजिक नीतियों में से एक है, जिससे
होने वाले लाभों को हम स्कूलों में बच्चों कि उपस्थिति बाल पोषण के रूप में देख
सकते हैं. आज मिड डे मील स्कीम के तहत देश में 12 लाख स्कूलों के 12 करोड़ बच्चों
को दोपहर का खाना दिया जाता है. इस योजना पर सरकार सालाना करीब साढ़े नौ हजार
करोड़ रुपये खर्च करती है. 28 फरवरी, 2017 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा मिड डे मील से जुड़ी एक अधिसूचना जारी की गयी
जिसमें कहा गया था कि मिड डे मील योजना का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य
होगा ,जिनके पास आधार नंबर नहीं है
उन्हें आधार कार्ड बनवाने के लिए 30 जून तक का समय है उसके बाद आधार कार्ड नहीं
होने की स्थिति में मिड डे मील लेने के लिए आधार कार्ड की रजिस्ट्रेशन स्लिप
दिखानी होगी. अपने इस कदम को लेकर मंत्रालय का तर्क है कि कि आधार कार्ड कि
अनिवार्यता से इस योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता आएगी साथ ही इसका लाभ लेने
वालों को आसानी होगी. इस अधिसूचना पर हंगामा
होने के बाद सरकार द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया गया जिसमें कहा गया कि
“यह सुनिश्चित किया गया है कि
आधार न होने के कारण किसी को भी लाभ से वंचित न किया जाए. अगर किसी
बच्चे के पास आधार नहीं है तो अधिकारी उसे आधार नामांकन सुविधा उपलब्ध
करायेंगें जब तक ऐसा न हो लाभार्थियों को मिल रहे लाभ जारी रहेंगे”.
हालांकि बाद में जारी प्रेस विज्ञप्ति में नियमों में
किसी किस्म की ढील नहीं दी गई है यहाँ बस शब्दों कि हेरा फेरी ही कि गयी है, प्रेस विज्ञप्ति के बाद भी 28 फरवरी,
2017
को जारी की गई अधिसूचना का सारा ज्यों का तयों बना हुआ है जिसमें कहा गया था कि कि देश के 14 करोड़ बच्चों
को आधार कार्ड उपलब्ध कराने पर ही भोजन कराया जाएगा और अगर उनके पास आधार कार्ड
नहीं है तो उसे बनवाना ही पड़ेगा.
जानकार बताते हैं कि मिड डे
मील जैसी योजनाओं में आधार कि अनिवार्यता का नकारात्मक असर पड़ सकता है और
इससे देश के सबसे गरीब और जरूरतमंद
प्रभावित होंगें. योजना में "फर्जीवाड़ा रोकने के लिये भी यह कोई प्रभावकारी तरीका नहीं है. इसके लिये सरकार को आधार अनिवार्य
करने के बजाये योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने पर ध्यान देना चाहिए चाहिए
जिससे इनमें लोगों की भागेदारी बढ़े,
दुनिया
भर के अनुभव बताते हैं कि योजनाओं को लागू करने में लोगों कि सहभागिता और जन
निगरानी बहुत अच्छे उपाय साबित हुए हैं
इससे गड़बड़ी होंने की गुंजाइश ना के बराबर रह जाती है .
कल्याणकारी योजनाओं में आधार
कि अनिवार्यता को को लेकर कई गंभीर सवाल
हैं , एक तो इसमें फिंगर प्रिंट मैच करने कि समस्याएँ है और
दूसरी इस बात कि आशंका है कि आधार कि बहाने सरकार लोगों की निगरानी करना चाहती है , निजता को लेकर भी
सवाल हैं पिछले दिनों आधार कार्ड बनाने वाली एजेंसी द्वारा महेंद्र सिंह धोनी जैसे हाई प्रोफाइल क्रिकेटर कि निजी
जानकारी सोशल नेटवर्किंग साइट पर लीक कर देने का मामला सामने आ चूका है ऐसे में
आधार कार्ड की वजह से देश के करोड़ों लोगों की निजता कैसे बनी रहेगे इसकी गया
ग्यारंटी है, आधार कार्ड का पूरा डाटाबेस
कोई भी अपने फायदे के लिए उपयोग कर सकता है या उसकी जानकारी लीक कर सकता है. निजता
और निगरानी का मसाला लोगों के मौलिक
अधिकारों से जुड़ता है शायद इसी वजह से
आधार नंबर को अनिवार्य बनाए जाने को लेकर कई जानकार और सामाजिक कार्यकर्ता इसका विरोध कर रहे हैं उनका कहना है कि सबकुछ
आधार से जोड़ देने से आधार कार्ड धारकों
की निजी जानकारियां चुराने, आर्थिक घपले करने, पहचान का दुरुपयोग करने और तमाम सूचनाओं का ग़लत इस्तेमाल
करने का ख़तरा बढ़ जाएगा. मिड डे मील के मामले में तो मसला बाल अधिकारों से भी
जुड़ता है इस तरह से सरकार देश के बच्चों को एक तरह से बच्चों को जबरदस्ती एक ऐसे
काम के लिये मजबूर कर रही है जिसमें इन नाबालिगों कि कोई रज़ामंदी नहीं है.
सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं
के लिए आधार की अनिवार्यता को लेकर हमेशा से ही
विवाद रहा है, आधार की संवैधानिकता को
चुनौती देने वाली याचिकायें कई साल से सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है इस बीच अदालत द्वारा समय-समय पर अंतरिम निर्णय भी
सुनाये गए हैं,
जैसे
2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि रसोई गैस सब्सिडी जैसी सामाजिक
सुरक्षा योजनाओं के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं किया जा सकता इसी तरह से 2015 में
भी अदालत ने मनरेगा, पेंशन, भविष्य निधि,
प्रधानमंत्री
जनधन योजना आदि को आधार कार्ड से जोड़ने की इजाजत तो दी, पर साथ में ही यह भी कहा कि यह स्वैच्छिक होना चाहिए, अनिवार्य नहीं. इस बार भी इसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा
एक बार फिर स्पष्ट किया गया है कि सरकार और उसकी एजेंसियां समाज कल्याण योजनाओं के
लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं कर सकती है और सिर्फ आधार न होने की वजह से किसी
व्यक्ति को किसी भी सरकारी योजना के फायदे
से महरूम नहीं रखा जा सकता है .लेकिन इन सबके बावजूद बावजूद सरकार लगातार आधार की अनिवार्यता बढ़ाती
जा रही है मध्यान्ह भोजन योजना इस सूची में एक नयी कड़ी है जिसे रोज़ी रोटी अधिकार
अभियान सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन बताया है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि
आधार कार्ड लोगों को मिलने वाली किसी भी सेवा के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता.
अभियान का कहना है कि कि मिड डे मील भारतीय बच्चों का एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत क़ानूनी तौर पर और साथ
ही साथ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लागू किया गया है, सरकार के इस कदम को मिड डे मील योजना जैसी कल्याणकारी
योजनाओं में रुकावट पैदा होगी.
राष्ट्रीय बाल अधिकार
संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष शांता
सिंहा द्वारा सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार को अनिवार्य पर अंतरिम रोक लगाने
को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कि गयी थी जिसमें केंद्र सरकार द्वारा
कल्याणकारी योजनाओं में आधार को अनिवार्य करने का पर अंतरिम रोक लगाने कि मांग कि
गयी है . इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 27 जून को
सुनवाई करेगा, सरकार ने सरकारी योजनाओं में
आधार कि अनिवार्यता के लिये 30 जून की डेडलाइन थ कर रखी है इसलिए इसलिए 27 जून कि
सुनवाई बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. हालांकि केन्द्र सरकार अपने रुख पर अड़ा हुआ
है उसने तो 27 जून को
याचिका पर होने वाली सुनवाई का भी
विरोध करते हुए कहा है कि 30 जून की समय सीमा को अब और आगे नहीं बढ़ाया जाएगा.
इस बीच राजस्थान हाईकोर्ट
द्वारा राज्य सरकार के राशन के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता लागू करने के आदेश पर
रोक लगा देने से उम्मीदें बढ़ी हैं दरअसल राजस्थान सरकार ने 24 मार्च 2017 को
सूबे में राशन सामग्री के वितरण के लिए
आधार कार्ड को अनिवार्य कर दिया था . उम्मीद है राजस्थान सरकार को मिले इस झटके से
दिल्ली सरकार कोई सबक सीखेगी.
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