हर औरत पेन्सिल नहीं होती



एच. बी. बलोच
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मुझे पेंसिलों की खुशबू क्यों पसंद है ?

शायद इसलिये की

मुझे उनसे लिखना या फिर उनको छीलना पसंद हो

मैं पेंसिलों को छीलता हूँ

दोबारा छीलने के लिये उनकी नोकें तोड़ देता हूँ

जो किसी को भी चुभ सकती हैं

कुछ भी लिख सकती हैं

कहीं से घुस कर कहीं से भी निकल सकती हैं

मुझे उनके कसमसाते, लरजते,थिरकते वजूद से

एक पुर्लज्जत, तफ्खर अमीज़ झुर झरी महसूस होती है

जिसे बेहतर तौर पर एक पेंसल छीलने वाला ही महसूस कर सकता है

उनके अंदर से मुख्तलिफ़ रंगदार नर्म गूदे  बरामद होते हैं

हर औरत पेन्सिल नहीं होती

मगर हर औरत की तरह उन सबकी लकड़ी एक जैसी होती है

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लालटेन से साभार 


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