मध्यप्रदेश के लिये अमित शाह का नया गेम प्लान
जावेद अनीस
30 May 2018, इंडिपेंडेंट मेल |
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पिछले साल अगस्त
महीने में जब भोपाल आये थे तो उन्होंने ऐलान किया था कि 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से शिवराज सिंह चौहान चेहरा होगें
और उनके अलावा किसी दूसरे नाम पर विचार नहीं किया जाएगा. मध्यप्रदेश में इस
साल के अंत तक चुनाव होने वाले हैं लेकिन अब लगता है कि इसको लेकर भाजपा ने अपनी
रणनीति बदल डाली है. बीते 4 मई को जब अमित शाह भोपाल में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में
कुछ घंटों के लिये आये थे तो इस बार उनका सुर बदला हुआ था जिसमें उन्होंने साफतौर
पर कहा है कि मध्यप्रदेश में आगामी चुनाव के लिये पार्टी की तरफ से कोई
चेहरा नहीं होगा और इसे संगठन के दम पर लड़ा जाएगा. जिसका साफ मतलब है कि इस बार
शिवराजसिंह को भाजपा की तरफ से चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया जाएगा. बाद में प्रदेश
अध्यक्ष राकेश सिंह ने भी अमित शाह के इसी बात को दोहराते कहा कि ‘मप्र में भाजपा
का कोई चुनावी चेहरा नहीं होगा, संगठन चुनाव लड़ेगा.’ जबकि ये वही शिवराज हैं जिनके
नाम पर भाजपा साल 2009 और 2013 का चुनाव लड़कर जीत हासिल कर चुकी है.
दरअसल पिछले कुछ समय से मध्यप्रदेश
में गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री बदलने की खबरें आती
रहती हैं. पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान खुद शिवराजसिंह ने “मेरी कुर्सी खाली
है, जो चाहे वह बैठ सकता है” कहकर सनसनी मचा दिया था जिसके
कई
मायने निकाले गये. दिल्ली से आते ही शिवराज का “कुर्सी
खाली है” वाला बयान देना और भोपाल आकर अमित शाह का यह कहना कि इस बार विधानसभा
चुनाव संगठन के दम पर लड़ा जाएगा बहुत कुछ संकेत देते हैं. इस बीच ऐसी अफवाहें भी चल रही हैं कि चुनाव
से पहले भाजपा नेतृत्व द्वारा मध्यप्रदेश में भी उपमुख्यमंत्री का फार्मूला अपनाया
जा सकता है जिससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रतिनिधित्व देते हुये
सत्ता संतुलन साधा जा सके.
दरसल मध्यप्रदेश में संघ और आईबी के आंतरिक सर्वे इस बात की तरफ
इशारा कर रहे है कि इस बार शिवराज और उनकी सरकार के खिलाफ असंतोष है और नयी टीम
बनकर कांग्रेस जिस तरह से कमर कस रही है उससे भी कड़ी टक्कर मिलना तय है.
एक दूसरा कारण यह है कि अमित शाह व मोदी की भाजपा में शिवराजसिंह
चौहान उन चुनिन्दा बचे नेताओं में से एक हैं जिनकी अपनी खुद की जमीन है और जो पूरी
तरह से अपने पैरों पर खड़े हैं. एक तरह से मध्यप्रदेश शिवराज का माडल है, अब अगर यहां
भाजपा उनके नाम से चुनाव लड़कर तीसरी बार भी सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो फिर
उनकी स्थिति पार्टी में अनगद के पैर की तरह हो जायेगी और वे चुनौती देने की स्थिति
में आ सकते हैं. राजनीति अनिश्चताओं का खेल है अगर भविष्य में मोदी/अमितशाह के
लिये पार्टी के भीतर कोई विपरीत स्थिति बनती है तो फिर शिवराजसिंह बड़े आसानी से एक
विकल्प के तौर पर उभर कर सामने आ सकते हैं. आज भी मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह भाजपा
के लिए पर्याय बने हुये हैं और यहाँ हर चीज पर उनकी छाप है. हर हार या जीत उन्हीं
के खाते में दर्ज होती है इसलिए अगर इस बार शिवराज सिंह चौहान को चेहरे के तौर पर पेश
नहीं किया जाता है तो फिर मोदी और अमित शाह के लिए यहां रास्ता खुल जायेगा और एक तरह
से मध्यप्रदेश में भी उनका पूरा नियंत्रण हो जायेगा.
4 मई को भोपाल में प्रदेश भर से आये कार्यकर्ताओं
को संबोधित करते हुये अमित शाह ने जो बातें कही थी उससे मध्यप्रदेश में आगामी
विधानसभा चुनाव के लिए उनके गेम प्लान का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है. पहली बात
जो साफ़ तौर पर उभर कर सामने आ रही है वो ये है कि इस बार चुनाव के दौरान शिवराज को
फ्री हैण्ड नहीं मिलने वाला है और इस पर असली नियंत्रण अमित शाह का रहेगा, उन्हीं
के बनाये गये रणनीति के आधार पर भाजपा चुनाव
लड़ेगी. दूसरे शब्दों में कहें कि इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस का मुकाबला शिवराज
से नहीं मोदी और अमित शाह से होगा और सिंधिया या कमलनाथ की जगह राहुल गांधी को
सामने आने के लिये उकसाया जायेगा जिससे मामला मोदी बनाम राहुल का बन सके यह एक मास्टर प्लान
है जिसमें इस एक तीर से दो शिकार किये किये जायेंगें, पहला तो यह कि एक ही चेहरे से उपजे ऊब से ध्यान हटाया जा सकेगा और दूसरा बहुत ही निर्बाध तरीके से शिवराज से
उनकी जमीन छीन ली जायेगी.
दूसरा गेमप्लान माइक्रो लेवल बूथ मैनेजमेंट का है जिसमें अमित शाह को महारत
हासिल है. इस बार मध्यप्रदेश में भाजपा बूथ स्तर पर सबसे ज्यादा ध्यान देने जा रही
है. मध्यप्रदेश में भाजपा संगठन बहुत मजबूत है. भाजपा दावा करती है कि यहां उसके
65 लाख सक्रिय सदस्य है, योजना इन्हें ही सक्रिय करने की है जिसके तहत कर्नाटक के
तर्ज पर मध्यप्रदेश में भी बूथ स्तर पर अर्द्ध पन्ना प्रमुख (हाफ पेज प्रभारी)
नियुक्ति करने की योजना है. इस फार्मूले के तहत मतदाता सूची के प्रत्येक आधे पन्ने
में जितने वोटर आते हैं उनसे हाफ पेज को संपर्क में रहना होता है और इनमें से भी
खास उन मतदातों पर फोकस करना होता है जो भाजपा के परम्परागत वोटर नहीं हैं. मध्यप्रदेश
में करीब 65200 पोलिंग बूथ हैं इस हिसाब से 35 लाख हाफ पेज प्रभारियों की जरूरत
पड़ेगी.
अमित शाह का तीसरा गेमप्लान दिग्विजय सिंह के भूत को वापस लाकर शिवराज सरकार
की नाकामियों पर परदा डालने का है. जिसके तहत भाजपा के 15 साल के शासनकाल के मुकाबले 2003 तक के 'दिग्विजय शासन काल' को सामने रखकर चुनाव लड़ने की रणनीति
अपनाई जायेगी. कार्यकर्ता सम्मलेन के दौरान अमित शाह भाजपा के
कार्यकर्ता को यह निर्देश दे चुके है कि वे गांव-गांव जाकर 2003 से पहले दिग्विजय
काल” के समय राज्य की स्थितियों और आज की स्थितियों का तुलनात्मक ब्यौरा दें.
कार्यकर्ता सम्मलेन के दौरान 2003 और 2018 के तुलनात्मक विकास का ब्यौरा देने वाली
प्रदर्शनी भी लगायी गयी थी और अब चुनाव के दौरान जारी होने वाले प्रचार सामग्रियों
में भी भाजपा द्वारा अपने 15 साल की उपलब्धियों के साथ 'दिग्विजय शासन काल' की तुलना पेश की जायेगी. दरअसल अपने
उपलब्धियों को बताने के बजाये खुद को विपक्ष में पेश करते हुये विपक्ष पर ही सवाल
उठाना उसकी खामियों को गिनना मोदी और अमित शाह का पुराना नुस्खा है जिसे वे गुजरात
के समय से ही सफलतापूर्वक उपयोग लाते रहे हैं.शायद
कांग्रेस को भी भाजपा के इस गेमप्लान का अंदाजा हो गया है इसलिये नर्मदा यात्रा से
वापस लौटने के बाद दिग्विजय सिंह ने जो राजनीतिक यात्रा शुरू करने का ऐलान किया था
उसे रद्द कर दिया गया है. इस सम्बन्ध में दिग्विजय सिंह ने कहा है कि “मैं
विधानसभा वार यात्रा निकालने वाला था लेकिन अब मैं जिलों में बैठकें और चर्चा
करूंगा.”
जाहिर है मध्यप्रदेश को चौथी बार फतह करने के लिये भाजपा की तरफ से अमित
शाह का ताजा गेमप्लान तैयार है जिसे भेद पाना कांग्रेस के लिये आसान नहीं होगा.
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