मंदसौर से उठी लपटें
जावेद अनीस
Chauthi Duniya (23 July to 29 July 2018 ) |
कुछ समय से “मंदसौर”
लगातार सुर्खियों में बना हुआ है, इस बार मामला 7 वर्षीय बच्ची के साथ की गयी
दरिंदगी का है जिसके बाद शिवराज सरकार प्रदेश में कानून व्यवस्था के सवालों को लेकर
घेरे में है. पिछले साल किसानों के खिलाफ पुलिस द्वारा की गयी गोलीकांड की गूंज
सियासी हलकों में अभी बनी ही हुयी है, हालांकि इस दौरान मंदसौर गोलीकांड से
उठे लपटों को दबाने की हर मुमकिन कोशिश की गयी है. हाल में ही आयी जाँच रिपोर्ट में
भी इस पर खूब लीपापोती की गयी है लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद शिवराज सरकार किसानों
के इस आक्रोश को दबा पाने में विफल रही है. इधर एक नाबालिग बच्ची के
साथ हुई दुष्कर्म की वारदात के बाद मंदसौर एक बार फिर शिवराज सरकार के खिलाफ
आक्रोश के केंद्र के रूप में उभरा है. इस बार मुद्दा कानून व्यवस्था का है और सूबे
में मासूम बच्चियों व महिलाओं को सुरक्षित वातावरण ना दे पाने के लिये कटघरे में उन्हीं
शिवराजसिंह सिंह चौहान की सरकार है जो खुद को प्रदेश के बच्चियों का मामा कहलवाना
पसंद करते है. पिछले कुछ महीनों के दौरान मध्य प्रदेश में एक के बाद एक हुई मासूम
बच्चियों से दुष्कर्म की घटनाओं ने कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं.
पिछले साल सूबे में बच्चियों के साथ दुष्कर्म पर फांसी का कानून बनाना गया था लेकिन
यह उपाय भी बेअसर साबित हुआ है.
मंदसौर की घटना ने पूरे
देश को झकझोर दिया है, 26 जून के दिन बहुत हैवानी तरीके से एक 7 वर्षीय बच्ची का अपहरण
करके उसके साथ सामूहिक ज्यादती की गयी. इस दौरान
दुष्कर्मियों ने वहशीपन की तमाम हदें पार करते हुये उस बच्ची के साथ जो
सलूक किया है वो दहला देने वाला है, दरिंदों द्वारा ना केवल बच्ची के साथ दुष्कर्म किया
गया बल्कि उसके गुप्तांग में रॉड या लकड़ी जैसी कोई वस्तु भी डाला गया जिससे उसकी आंतें बाहर निकल गयी
थीं.
मध्यप्रदेश सरकार
द्वारा अपनी लापरवाहियों के लिये एक अलग पहचान बना चुके इंदौर के एमवाय अस्पताल
में बच्ची के इलाज कराये जाने के फैसले को लेकर भी सवाल उठाये गये. इस सम्बन्ध में
कांग्रेस नेता विवेक तन्खा का बयान है कि “यदि किसी मंत्री को बुखार भी आ जाए तो
एयर ऐंबुलेंस बुलाई जाती है, उस बच्ची के साथ हैवानियत हुई है, इंदौर के एमवाय
अस्पताल में उसका इलाज नहीं हो सकता सरकार को उसे एयर ऐंबुलेंस से दिल्ली के किसी
अच्छे अस्पताल में इलाज के लिये भेजना चाहिए”. पीड़िता का परिवार भी एमवाय अस्पताल
में बच्ची के इलाज से संतुष्ट नहीं था. पीड़िता के पिता द्वारा आरोप लगाया गया कि बच्ची
को तकलीफ होने और एक आंख से दिखाई नहीं देने के बावजूद भी अस्पताल प्रशासन द्वारा उसे
डिस्चार्ज करने को कहा गया. इस मामले में सत्ताधारी भाजपा के नेताओं की बेशर्मी भी
देखने को मिली, पीड़िता का हालचाल जानने के लिये क्षेत्र के भाजपा सांसद सुधीर
गुप्ता और विधायक सुदर्शन गुप्ता अस्पताल गये तो इस दौरान विधायक महोदय पीड़िता की
मां से यह कहते हुये दिखाई पड़े कि 'सांसद जी को धन्यवाद बोलिए, स्पेशल आपके लिए आए हैं.'
मध्यप्रदेश में इस
साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने को हैं ऐसे में विपक्ष इस मामले को लेकर सत्ताधारी
भाजपा को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा है. कांग्रेस पार्टी ने मंदसौर
दुष्कर्म मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उठाते हुये कहा कि मध्यप्रदेश महिलाओं और
बच्चियों के खिलाफ हो रहे अपराधों का गढ़ बन गया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सरकार
पर हमला करते हुये कहा कि “भाजपा के राज में मध्यप्रदेश 'बलात्कार की
राष्ट्रीय राजधानी' बन गया है”. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ
से भी ट्विट किया गया कि “मध्य प्रदेश के मंदसौर में आठ साल की एक लड़की के साथ
गैंगरेप हुआ है, जो जिंदगी और मौत से जूझ रही है, इस बर्बर घटना ने मुझे व्यथित कर दिया है”.
कांग्रेस द्वारा यह
आरोप भी लगाया गया कि शिवराज सरकार ने 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ
दुष्कर्म करने वालों को सजा-ए-मौत देने का कानून तो बना दिया है लेकिन इस कानून का
डर दिखाई नहीं दे रहा है. दरअसल मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है जहां 12 साल से कम आयु की बच्चियों के साथ बलात्कार करने
वालों के लिये कानून पारित किया गया है. पिछले साल मध्यप्रदेश
विधानसभा ने बारह साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ हुए बलात्कार के मामलों में
फांसी की सजा तय करने के लिए “दंड विधि (मध्य प्रदेश संशोधन) विधेयक” पारित
किया था जिसके मुताबिक 12 साल या इससे कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार या
सामूहिक बलात्कार के मामलों में अपराध सिद्ध होने पर दोषियों को कम से कम 14 साल
की कैद और अधिकतम फांसी की सजा सुनाई जा सकती है. इससे पहले भारत सरकार ने बच्चों
के साथ बढ़ रहे अपराधों को देखते हुए 2012 में एक विशेष कानून पास्को एक्ट तो मौजूद
ही था, जो बच्चों को छेड़खानी,बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा
प्रदान करता है.
लेकिन इन कानूनों का
कोई खास असर होता दिखाई नहीं पड़ रहा है. भोपाल स्थित सामाजिक संस्था विकास संवाद द्वारा
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के पिछले 16 साल के आंकड़ों का विश्लेषण
किया है जिसके निष्कर्ष भयावह है. रिपोर्ट के अनुसार पिछले 16 सालों (2001 से 2016
तक) के दौरान बच्चों के प्रति अपराध के सबसे ज्यादा मामले (95324 मामले) मध्यप्रदेश
में दर्ज हुये हैं और इस दौरान मध्यप्रदेश में बच्चों के प्रति अपराध के मामलों
में 865 प्रतिशत वृद्धि हुयी है. इसी तरह से इन 16 वर्षों के दौरान बच्चों से
बलात्कार और गंभीर यौन अपराधों के मामले भी सबसे ज्यादा मामले (23659 मामले)
मध्यप्रदेश में ही दर्ज किये गये हैं, इस दौरान यहां बच्चों के साथ बलात्कार के
मामलों में 1109 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
विडम्बना
ये है कि बच्चों के प्रति अपराध के मामले तो बढ़े ही है लेकिन इसी के साथ ही
अदालतों में बच्चों के प्रति अपराध के लंबित मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट
के अनुसार इन 16 वर्षों में मध्यप्रदेश
में बच्चों के प्रति अपराध के लंबित मामलों में 1420 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, इस
दौरान जिन 404 मामलों का ट्रायल
पूरा हो चूका है उसमें भी केवल 157 मामलों (38.9) मामलों में ही सजा हो सकी है.
उपरोक्त
परिस्थितियों को देखते हुये किसी भी संवेदनशील और जवाबदेह सरकार की प्राथमिकताओं
में बच्चों की सुरक्षा का सवाल सर्वोच्च होना चाहिये था लेकिन ऐसा लगता है कि
शिवराजसिंह चौहान के एजेंडे में बच्चों की सुरक्षा का मसला न्यूनतम है. तभी तो मध्यप्रदेश
के 2018-19 के कुल बजट में से केवल 0.044 प्रतिशत (2.05 लाख करोड़ रूपये) ही बच्चों
की सुरक्षा के लिये आवंटित किये गये हैं, वहीँ लोगों को मुफ्त तीर्थ यात्रायें कराने
के लिये चलायी जा रही “मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना” के लिये 200 करोड़ रूपये का
आवंटन किया गया है. प्राथमिकता स्पष्ट है ‘बच्चे वोट बैंक नहीं है’ इसलिये उन्हें
असुरक्षा के अँधेरे सुरंग में छोड़ दिया गया है जबकि मुफ्त तीर्थ यात्रा कराके
वोटों की फसल उगाया जा सकता है.
बच्चों की सुरक्षा जैसे
गंभीर और बुनियादी मसले पर मध्यप्रदेश सरकार लफ्फाजी और डायलागबाजी करती हुयी ही नजर
आ रही है जिससे जनभावनाओं के उबाल को संतुष्ट किया जा सके. मंदसौर दुष्कर्म के बाद
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ''ये दरिंदे धरती पर बोझ हैं, ये धरती पर जीवित रहने
के लायक नहीं हैं'' और “हम यह सुनिश्चत करेंगें कि आरोपी को शीघ्र
फांसी की सजा दिलवायी जा सके” जैसे बयान देते ही नजर आये हैं. वे अच्छी तरह जानते
है कि आज के माहौल में फांसी की सजा का एलान एक लोकप्रिय कदम है. लेकिन
विशेषज्ञ
मानते
हैं
कि
अकेले
कड़े
कानून
ही
काफी
नहीं
हैं
और
कई
बार
तो
कड़े
कानूनों
से
यह
खतरा
बढ़
जाता
है
कि
कहीं अपराधियों में इससे बचने
के
लिए
पीड़ितों
की
हत्या
का
चलन न बढ़ जाये, दरअसल यह मसला सिर्फ दोषियों को फांसी दिलाकर हल हो जाने वाला नहीं है बल्कि इसके
एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है जिसमें लैंगिक समानता के मूल्यों को बढ़ावा
देने ,यौन शिक्षा, दोषियों के सामजिक बहिष्कार और कानून व्यवस्था पर गंभीरता से
ध्यान देने जैसी बातें शामिल हैं.
मंदसौर
गोलीकांड से मध्यप्रदेश के किसान पहले से ही आक्रोशित थे लेकिन अब दुष्कर्म की
घटना के बाद से आम लोगों में भी बिगड़ती कानून-व्यवस्था को लेकर गुस्सा देखने को
मिल रहा है. मंदसौर में हुयी इन दोनों घटनाओं ने विपक्ष को हमलावर होने का मौका दे
दिया है. पिछले दो सालों के दौरान मंदसौर शिवराज सरकार के खिलाफ जनाक्रोश के
केंद्र के रूप में उभरा है और आने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्य अखाड़ा
मंदसौर ही होगा. चुनावी साल में मंदसौर से उठी लपटें सत्ताधारी भाजपा के लिये घातक
साबित हो सकती हैं जबकि विपक्षी कांग्रेस इसका भरपूर सियासी फायदा उठाना चाहेगी. मंदसौर
का मालवा-निमाड़ की लगभग 65 सीटों पर असर देखने को मिल सकता है. जाहिर है इसका
नुकसान सत्ताधारी भाजपा को ही उठाना पड़ेगा.
No comments: