पाक - भारत दक्षिणपंथियों में समानतायें
एल एस हरदेनिया
वैसे तो हमारे देश व पाकिस्तान के बीच
में अनेक असमनताएं हैं परंतु एक समानता है। और यह समानता दोनों देषों की
दक्षिणपंथी ताकतों के बीच में है। यह समानता है सर्वोच्च न्यायालय के उन निर्णयों
को न मानना जिनका चरित्र एक उदार, समतामूलक
एवं प्रगतिषील समाज के निर्माण में सहायक होता है।
अभी हाल में दिए गए दो ऐसे निर्णयों का
उल्लेख प्रासंगिक होगा। इनमें से एक निर्णय पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने
दिया है एवं दूसरा हमारे देष के सर्वोच्च न्यायालय ने।
पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने
अपने निर्णय में एक गरीब ईसाई महिला को दिए गए मृत्यु दंड को रद्द कर दिया था। इस
महिला का नाम आसिया है जो पिछले कई वर्षों में जेल के सींखचों के पीछे थी। वहां की
निचली अदालत ने आसिया को मृत्युदंड दिया था। उसने इस निर्णय के विरूद्ध वहां के
हाईकोर्ट में अपील की थी। आसिया को ईष निंदा का दोषी पाया गया था। पाकिस्तान के
कानून के अनुसार इस्लाम के विरूद्ध निंदात्मक टिप्पणी करने पर मृत्युदंड दिया जा
सकता है।
आसिया एक खेतिहर मजदूर है। एक दिन काम
के दौरान उसे प्यास लगी और उसने मुसलमान मजदूरों के पात्र. से पानी लेकर पी लिया।
इसपर उसके साथी मजदूरों ने आपत्ति की। इसपर आसिया ने कुछ ऐसे शब्द कह दिए जो कानून
के अनुसार ईष निंदा की श्रेणी में आते थे। इसके बाद यह मामला अदालत में पहुंचा और
अदालत ने उसे ईषनिंदा का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई। उसने इस फैसले के खिलाफ
अपील की। मामला पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने उसे मृत्युदंड की सजा
से मुक्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के विरूद्ध पाकिस्तान में जबरदस्त
आंदोलन हुआ। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद आसिया असुरक्षित है।
दक्षिणपंथियों का पाकिस्तान में भारी दबदबा है और वे उसे जान से मारना चाहते हैं।
इस धमकी के चलते वह किसी अन्य देष में शरण लेने के लिए मजबूर है।
आसिया पिछले कई वर्षों से जेल में है।
पाकिस्तान के पंजाब राज्य के तत्कालीन गर्वनर सलमान तासीर ने जेल जाकर आसिया से
मुलाकात की और ईष निंदा कानून के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी यह ‘हरकत‘ दक्षिणपंथियों को नागवार गुजरी और उन्होंने तासीर के खिलाफ जबरदस्त
अभियान छेड़ दिया। इस अभियान के कारण माहौल इस हद तक जहरीला हो गया कि तासीर के
मलिक मोहम्मद कादरी नामक एक सुरक्षाकर्मी ने ही 4 जनवरी 2011 को उनकी हत्या कर दी।
पाकिस्तान में इस सुरक्षाकर्मी के सम्मान में कई जुलूस निकाले गए और उसे वैसा
सम्मान दिया गया जो साधारणतः एक हीरो को दिया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने आसिया को राहत तो
दी परंतु न्यायालय ने इस अत्यधिक जघन्य कानून के संबंध में किसी प्रकार की टिप्पणी
नहीं की। यदि कोई जज ऐसी टिप्पणी करता तो उसके लिए भी जिंदा रहना मुष्किल हो जाता।
आज भी पाकिस्तान में कोई व्यक्ति इस कानून के विरूद्ध आवाज उठाने की हिम्मत नहीं
करता।
हमारे देष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
दक्षिणपंथी विचारों और ताकतों का सबसे बड़ा प्रतिनिधि है। सर्वोच्च न्यायालय ने अभी
हाल में केरल के सबरीमाला मंदिर के बारे में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। परंपरा
के अनुसार इस मंदिर में 10 से 50 आयुवर्ग की महिलाओं का प्रवेष वर्जित था। इस आयु
समूह की महिलाएं रजस्वला हो जाती हैं और इस दौरान उन्हें अपवित्र माना जाता है।
चूंकि वे अपवित्र होती हैं इसलिए सबरीमाला में उनका प्रवेष वर्जित है।
इस मुद्दे को लेकर सर्वोच्च न्यायालय
में याचिका दायर की गई। काफी लंबे समय तक चली सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने
अपने निर्णय में इस प्रतिबंध अवैधानिक और भेदभावपूर्ण बताते हुए आदेष दिया कि हर
आयु की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेष दिया जाए। हिन्दुओं के एक बड़े हिस्से
ने इसे हिन्दू धर्म की परंपराओं में अनुचित हस्तक्षेप माना। इस विरोध का आरएसएस ने
संगठित रूप से विरोध प्रारंभ किया और केरल में जबरदस्त आंदेलन छेड़ दिया।
दिनांक 31 जनवरी 2019 विष्व हिंदू
परिषद द्वारा आयोजित धर्मसंसद को संबोधित करते हुए राष्टीय स्वयंसेवक संघ के
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागव ने कहा कि अयप्पा मंदिर (सबरीमाला) की परंपरा में आस्था
रखने वाले हिन्दू समाज का अविभाज्य अंग हैं। निर्धारित आयु समूह की महिलाओं को
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद सबरीमाला मंदिर में नहीं जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय धार्मिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप कर रहा
है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि श्रीलंका से हिन्दू महिलाआें को लाकर मंदिरों
में प्रवेष दिलाया गया।
प्रयागराज में आयोजित धर्म संसद मं एक
प्रस्ताव पारित किया गया जिसके द्वारा सबरीमाला में प्रवेष के मुद्दे को अयोध्या
में राम मंदिर निर्माण से जोड़ा गया। भागवत ने कहा कि सबरीमाला एक सार्वजनिक स्थल
नहीं है। वह एक ऐसा स्थल है जिसकी अपनी परंपरा और अनुषासन है। सर्वोच्च न्यायालय
यह बात भूल गया गया कि उसके इस निर्णय से करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस
पहुंचेगी। भागवत ने यह घोषणा भी की कि एक फरवरी से संपूर्ण देष में एक अभियान
चलाया जाएगा। 15 फरवरी तक चलने वाले इस अभियान के माध्यम से यह बताया जाएगा कि
अयप्पा मंदिर के भक्त हिन्दू समाज के अभिन्न अंग हैं और उनकी समस्या संपूर्ण
हिन्दू समाज की समस्या है।
साधारणतः यह समझा जाता है कि वामपंथी
प्रजातंत्र और प्रजातांत्रिक समाज में स्थापित संस्थाओं में आस्था नहीं रखते हैं।
परंतु हमारे देष में स्थिति पूरी तरह भिन्न है। न सिर्फ सबरीमाला के मामले में
वरन् कई अन्य मामलों में वामपंथी प्रजातांत्रिक समाज की संस्थाओं की रक्षा के लिए
अग्रणी पंक्ति में रहे हैं। केरल की वामपंथी सरकार अपनी पूरी ताकत से सर्वोच्च
न्यायालय के निर्णय को अमलीजामा पहनाने के लिए प्रतिबद्ध है। न सिर्फ सरकार वरन्
वहां का समाज, विषेषकर महिलाएं, पूरी तरह से वहां की वामपंथी सरकार को
सहयोग दे रही हैं।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के
निर्णय के समर्थन में केरल की महिलाओं ने भारी-भरकम अभियान चलाया। इस अभियान में
लगभग 50 लाख महिलाओं ने मानव श्रृंखला
बनाई। इस मानव श्रृंखला को दुनिया की अबतक की सबसे बड़ी मानव श्रृंखला माना गया।
संभव है इस मानव श्रृंखला में भाग लेने वाली महिलाओं के बारे में भी भागवत यह कहें
कि इन्हें श्रीलंका से लाया गया था।
भागवत यह बात जानते होंगे कि एक देष के
नागरिक को दूसरे देष में जाने के लिए वीजा लेना पड़ता है और वीजा दूतावास द्वारा
जारी किया जाता है जिसपर केन्द्र सरकार का नियंत्रण होता है। क्या केन्द्र सरकार
ने इन 50 लाख महिलाओं को वीजा दिया था? भागवत
का यह वक्तव्य हास्यास्पद है।
अतः पुनः यह कहना उचित होगा कि
पाकिस्तान और भारत के दक्षिणपंथियों के बीच अद्भुत समानता है। पाक-भारत दक्षिणपंथी
जिन्दबाद.
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