केरल ने कैसे हराया कोरोना को?


एल. एस. हरदेनिया

Courtesy -Surendracartoonist


राष्ट्र के स्तर पर केरल और विश्व के स्तर पर क्यूबा ने जिस मुस्तैदी से कोविड-19 का मुकाबला किया है उसकी चारों तरफ भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है। पिछले कुछ दिनों से केरल में कोरोना के नए मामले आना लगभग बंद हो गए हैं। यदि आ भी रहे हैं तो सिंगल डिजिट (अर्थात 10 से कम) में हैं।

केरल ने कैसे इस भयानक महामारी पर नियंत्रण पाया उसकी कहानी दिलचस्प तो है ही उनका उत्साह बढ़ाने वाली भी है जो आज भी कोरोना को परास्त करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयासरत हैं। कोरोना के रोगियों की पहचान जल्दी से जल्दी करनाआक्रामक टेस्टिंग और रोगियों और उनके संपर्क में आए व्यक्तियों को 28 दिन तक (जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 14 दिन का क्वोंरेनटाइन आवश्यक बताया है) क्वोंरेनटाइन करना केरल में इसलिए संभव हो सका क्योंकि वहां सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था अत्यधिक मजबूत है।

केरल में 30 जनवरी को एक व्यक्ति में इस महामारी के लक्षण पाए गए। उसी दिन से वहां की सरकार ने रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाने प्रारंभ कर दिए। नतीजे में 13 अप्रैल तक रोगियों की संख्या 378 तक सीमित रही,  केवल तीन रोगियों की मृत्यु हुई और 198 रोगी पूर्णतः स्वस्थ हो गए। 27 मार्च को 39 व्यक्ति रोगग्रस्त पाए गए जो एक दिन में पाए गए नए रोगियों की सबसे ज्यादा संख्या थी। 19 मार्च को केवल एक नया रोगी पाया गया और 12 अप्रैल को मात्र दो नए रोगी पाए गए। केरल में 18 जनवरी को सभी अस्पतालों को सचेत कर दिया गया था और उसी दिन से विदेशों से आने वालों की स्क्रीनिंग प्रारंभ कर दी गई थी। विदेश से आने वालों को तुरंत एक कार्ड दिया जाता था जिसमें उन्हें उनकी यात्रा और स्वास्थ्य की जानकारी देनी पड़ती थी।

प्रदेश के पांचों विमानतलों को एक-दूसरे से जोड़ दिया गया और वहां एंबुलेंस सेवाएं 24 घंटे उपलब्ध कराई गईं। इसके साथ ही यदि कोई यात्री बुखारखांसी या श्वास संबंधी समस्या से पीड़ित पाया जाता था तो उसे निकटतम अस्पताल में भर्ती करवाकर इसकी सूचना जिला मेडिकल कार्यालय को दे दी जाती थी। नियंत्रण कक्ष स्थापित किए गएमास्कदस्ताने समेत स्वास्थ्य कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक सामग्री (पीपीई) और दवाईयों का संग्रह किया जाने लगा और कुछ ही दिनों में इनका यथेष्ठ स्टाक बना लिया गया। जिलों के अस्पतालों में आईसोलेशन वार्ड तैयार करने के आदेश दे दिए गए। चार फरवरी को केरल को कोविड-19 से संकटग्रस्त राज्य घोषित कर दिया गया। तीस जनवरी से 8 मार्च के बीच रोगियों से मिलकर व्यक्तिगत जानकारियां एकत्रित की गईं और उन लोगों का पता लगाया गया जिनके संपर्क में ये रोगी आए थे। ऐसे लोगों का पता लगने के बाद उनके विस्तृत परीक्षण किए जाने लगे। यदि ऐसे लोग रोग ग्रस्त पाए गए तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कर उनका इलाज किया जाने लगा। 9 मार्च को यह पता लगा कि तीन सदस्यों का एक परिवार इटली से वापिस आया है और उसने इसकी सूचना नहीं दी है। इसके बाद इस तरह की गलती करने वालों की पहचान करने के लिए विशेष अभियान प्रारंभ कर दिया गया। इस अभियान के दौरान संबंधितों की यात्रा की तारीखसमय और कहां-कहां गए इसकी जानकारी प्राप्त कर चार्ट बनाए जाने लगे। घर में क्वोंरेनटाइन काफी सख्ती से किया जाने लगा।

16 मार्च तक घर में क्वोंरेनटाइन किए गए लोगों की संख्या 12,470 हो गई थी। 11 अप्रैल आते-आते ऐसे लोगों की संख्या 1,22,676 हो गई। इन लोगों को 28 दिन तक क्वोंरेनटाइन में रखा गया जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित 14 दिन की अवधि से दुगनी थी। क्वोंरेनटाइन किए गए व्यक्तियों से अधिकारी हर दिन तीन बार संपर्क करते थे और यह सुनिश्चित करते थे कि वे क्वोरेनटाइन के प्रावधानों का पूर्णतः पालन कर रहे हैं। इस कार्य हेतु 16,000 टीमें गठित की गईं। इसके साथ ही 12 अप्रैल तक 14,989 सैपिंल परीक्षण के लिए भेजे गए। इनमें से 13,802 निगेटिव निकले। एक से 13 अप्रैल के बीच दस लाख लोगों के 227 प्रकार के परीक्षण किए गए। यहां यह उल्लेखनीय है कि केरल की आबादी 3 करोड़ 40 लाख है। 28 मार्च को केरल के मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि द्रुत गति से दुबारा परीक्षण किया जाएगा। इसके लिए रक्त और लार के नमूने लिए जाएंगे और 45 मिनट में उसका नतीजा आ जाएगा। जो लोग क्वोरेंटाइन में हैं उनका दुबारा परीक्षण किया जाएगा ताकि यह पता लग सके कि मरीज की स्थिति कैसी है और वह कब तक पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएगा।

इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि डाक्टर न सिर्फ स्वस्थ रहें वरन् पूरी तरह फिट भी रहें। डाक्टरों को तीन समूहों में विभाजित किया गया। इनमें से एक समूह को कोविड-19 से पीड़ित मरीजों और आईसोलेशन वार्डों की देखभाल की जिम्मेदारी दी गईदूसरे समूह को ओपीडी में आने वालों तथा आपातकालीन रोगियों की देखरेख का कार्य सौंपा गया और तीसरे समूह के डॉक्टरों अपने घरों पर रहने के लिए कहा गया ताकि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें डयूटी पर बुलाया जा  सके। केरल में लॉकडाउन के सकारात्मक नतीजे आए हैं। 24 मार्च को केरल में 109 गंभीर मामले थे जो शायद देश में सर्वाधिक थे। लॉकडाउन लागू होने के  बाद इनकी संख्या प्रतिदिन कम होती गई और 3 अप्रैल के बाद वे केवल 4 प्रतिशत रह गए।

टाईम्स आफ इंडिया‘ में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि यदि केरल में कोविड-19 पर शीघ्र विजय प्राप्त की तो इसका श्रेय सुपरहीरोज को नहीं जाता है। वहां के मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री जो किया वह काबिलेतारीफ है परंतु इसका वास्तविक श्रेय वहां की मजबूत स्वास्थ्य अधोसंरचना और नागरिकों की चेतना को जाता हैवहां मैदानी स्तर पर स्वास्थ्य संस्थाओं और नागरिकों की पारस्परिक एकता को जाता है। फिर चाहे संकट महामारी का हो या बाढ़ का।                                                                                                                                                                                  


1 comment: