परम्परा और संस्कृति के नाम पर जारी है महिलाओं की मानसिक गुलामी

हमारे समाज आज भी बहुत सारी परम्पराए जारी है जो की महिलाओं की मानसिक गुलामी को और भी मजबूत कर रही है . मीडिया द्वारा इनको खूब पिरचारित किया जा रहा है . इन मानसिक गुलामी की परम्पराऔ का प्रचलन बढ़ता ही  जा रहा ही जो की चिंता का विषय है . यहा हम  साथी आनंद ताम्रकार  की रचना पोस्ट कर रहे है .




 कल रात नर छिपकली ने मादा छिपकली से कहा –
तूने आज मेरी लंबी आयु की कामना के लिए

उपवास नहीं रखा ?
ज़रा इंसानी समाज की बीवियों को देख
वो अपने पति के लिए
करवाचौथ का व्रत रख रही हैं
और यहाँ एक तू है
कि आज भी अपने शिकार को तक रही है।


इस पर मादा छिपकली बोली –
क्यों इसमें नाराज़गी की क्या बात है
और वैसे भी वो तो इंसानी ज़ात है
मैं उनकी तरह नहीं कर सकती
तुम्हारी खातिर मैं भूखी नहीं मर सकती
तुम क्यों इंसानी समाज की तुलना
अपने समाज से कर रहे हो
कहीं तुम भी तो इंसान नहीं बन रहे हो
इंसानी समाज में बहुत तबाही है
कहीं चोरी, डकैती, कहीं पैसा उगाही है


और तो और जो पत्नी
अपने पति की लंबी उम्र के लिए
उपवास रख रही है
वही पत्नी अपने उसी पति के हाथों
दहेज की बलि चढ़ रही है
अगर तुम भी उसी इंसानी सभ्यता को अपनाओगे
तो तुम्हारा क्या भरोसा
एक दिन शिकार की तलाश में
मुझे भी निगल जाओगे


जब इंसानी समाज में व्रत रखने वाली नारी का
सत्कार नहीं होता
तो अच्छा ही है कि हमारी कम्यूनिटी में
करवाचौथ नाम का
कोई त्यौहार नहीं होता।

1 comment:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया प्रदीप जी, मैंने तो बस दहेज़ के लिए अपनी ही पत्नी को मारने वालों के ऊपर एक व्ययंग किया था... जिसे आपने युवा संवाद में स्थान देकर इस रचना को प्रोत्साहित और महिलाओं की मानसिक गुलामी के खिलाफ लोगों को जागृत किया है......
    निशित ही इसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं...

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