शेर और बकरी (लधु कथा )
कहा जाता है कि हमारे देश में कभी शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे। इसमें हालांकि कई पेच हैं। एक सवाल यह उठता है कि जिस घाट पर वे इकट्ठा पानी पीते थे वहॉ दोनों में से पहले कौन आता था ?
यह सवाल मैने अपने एक साथी से पूछा, तो वह बोला ‘ तुम भी अजीब हो। पहले तो बकरी आयेगी, तभी तो उसे देखकर शेर आयेगा?’
प्रश्न यह है कि ऐसी क्या मजबूरी थी कि शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे ? इन्सानों ने अपनी जाति के हिसाब से अलग अलग कुंओं की सुविधा बना रखी थी पर पशु जगत के साथ यह अन्याय क्यों? क्योंकि पशु समाज मनुष्य जगत की नकल नही करता।
भरपेट मांस खाकर शेर पानी की तलाश में निकल पड़ा। भटकता हुआ वह जंगल से बाहर निकल आया। थोड़ी दूर पर एक कस्बा था, शेर उधर ही चल पड़ा। कस्बे के बाहर कुछ बकरियॉ एक घाट पर पानी पी रही थी। शेर ने कुछ देर प्रतीक्षा करना ठीक समझा। पानी पीकर सारी बकरियॉ तो चल पड़ी सिर्फ एक बकरी रह गई।
शेर चुपके से उसके निकट आकर बोला ‘थोड़ा सा पानी मै भी पी लूं ?’
बकरी ने सोचा ‘ मुझे इतना महत्व दे रहा है। इतना तो चुनावों में उम्मीदवार भी जनता को नही देता।’ उसने आंख झपकाकर स्वीकृति दे दी, हालांकि घाट उसका नही था। इस प्रकार शेर ने शिकार के लिए नये घाट पर अपनी जगह बनाई।
आखिरकार युग बदला। केबल संस्कृति ने पाव पसारे। एक लोकप्रिय चैनल का एक फोटोग्राफर उस दृष्य की खोज में निकल पड़ा,जिसमें शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते हों। कई दिन तक वह मारा मारा फिरता रहा।
आखिरकार वह एक छोटे से कस्बे के बाहर पहुंचा। वहॉ एक बकरी एक घाट पर पानी पी रही थी और एक शेर घाट के निकट पहुंच रहा था। ज्योंही शेर ने अपना मुंह पानी में डाला, फोटोग्राफर ने तुरंत फोटो खींच ली।
को इतने निकट पा कर भी आपने उसका शिकार क्यों नही किया?’
शेर ने मीड़िया को महत्व देते हुए कहा, ‘ यह बकरी अभी जाकर अपनी सहेलियों से मेरी उदारता का गुणगान करेगी। इस प्रकार ये बकरियॉ मेरी एफ-डी (फिक्स डिपाजिट) हो गई हैं।’
फोटोग्राफर चलते चलते इस सच्चे इतिहास पर चिंतन करने लगा। उसने कैमरे से वह रील निकालकर फेंक दी।
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