विधानसभा चुनाव नतीजे और कांग्रेस का भविष्य
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जावेद अनीस
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दो राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी
को सबसे ज्यादा लाभ हुआ है और अब उसने सही मायनों
में अपने आप को देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय
पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है। हरियाणा
में जहां बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिला है, वहीं महाराष्ट्र
में भी वह सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई है, वहां 25 साल
बाद कोई पार्टी 100 सीटों का आंकड़ा पार करने में कामयाब हो
पायी है। खास बात यह है कि इन दोनों ही राज्यों में भाजपा के तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं
घोषित किया गया था, यहाँ भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को ही पार्टी के
चेहरे के तौर पर पेश किया गया था, अति आत्मविश्वास से भरा उसका यह दावं कामयाब रहा
और लोकसभा चुनावों के बाद प्रधानमंत्री के रूप में
नरेंद्र मोदी अपने पहली परीक्षा पास हो गये हैं।
दरअसल
पिछले सालों में देश की राजनीति और इसके तौर तरीकों में बहुत बदलाव आया है, नब्बे
के दशक में उदारीकरण के नयी आर्थिक नीतियों के लागू होने के बाद अब एक पीढ़ी और
उसकी इच्छायें जवान हो गयी है, इस दौरान अभूतपूर्व
रूप से सूचना के स्रोत भी बढे हैं टी.वी चैनल, सोशल–मीडिया, इन्टरनेट, मोबाइल,
व्हाट्स-अप जैसे जनमाध्यमों की पैठ अब कस्बों को पार करते हुए गाँवों तक हो गयी है,
इसके नतीजे में जनता का मानस और उनका आसपास की चीजों को देखने का नजरिया बदला है।
इस बदलाव
का असर देश के राजनीतिक मिजाज पर भी पड़ा है, एक नयी पीढ़ी आई है जिसका परंपरागत राजनीति से विश्वास उठा है और वह यहाँ
कुछ बदलाव देखना चाहती है , उसके चेतना में “आर्थिक प्रगति (नरेन्द्र मोदी के शब्दों में
विकास ) और दक्षिणपंथ का मेल है ।
इन बदलावों को भाजपा या यूँ कहें नरेन्द्र मोदी ने बहुत पहले अच्छी तरह से समझ
लिए था और उसी के हिसाब ने उन्होंने खुद और भाजपा के तौर -तरीके, शबदावली, भाषा आदि
में बदलाव किया, इसका सबसे बड़ा प्रयोग लोकसभा चुनाव में किया गया, जिसके नतीजे में
हम ने देखा कि इस मुल्क को पहली बार सामाजिक और आर्थिक रूप से एक मुकम्मल दक्षिणपंथी विचारधारा के रुझान वाली सरकार मिली । इस प्रयोग
ने भाजपा और यूपीए सरकार को ही नहीं बदला बल्कि इसका असर देश के राजनीति पर भी पड़ा
है इससे मुख्यधारा के राजनीति की पिच, भाषा, तौर - तरीके, शबदावली, चुनाव लड़ने ,
पार्टी और सरकार चलाने के तौर- तरीकों में भी बदलाव आया है ।
देश की प्रादेशिक राजनीति भी केंद्रीकृत होने की
दिशा में बढ़ रही है, सूबों के क्षत्रपों
का स्थान एक राष्ट्रीय ले रहा है, नतीजे आने के बाद बीजेपी प्रवक्ता
शाहनवाज हुसैन बयान देते हैं कि इन विधान सभा चुनावों में जनता ने प्रधानमंत्री
मोदी के नेतृत्व में विश्वास किया है , बीजेपी
सांसद किरीट सौमैया बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि हम 'मिनी मोदी' सरकार बनाएंगे और उनकी
सोच को लागू करेंगे।
दूसरी तरफ हम पाते हैं कि बाकी पार्टियाँ और उनके नेता
अपने पुराने दायरे में सिमट कर उसी पिच पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं जो पीछे छूट
गया है . देश में सबसे लम्बे समय तक राज करने वाली “ग्रांड ओल्ड” पार्टी का हाल तो
सबसे खराब हैं उसके उतार का सिलसला लगातार जारी है और अब स्थिति यह है कि उसके
आस्तित्व पर ही सवाल उठने लगा है, यह सब देख सुन कर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के जोड़ी द्वारा भारत को कांग्रेस
मुक्ति बनाने का अतिवादी दावा सही जान पड़ता है ।
मोदी और उनकी भाजपा धीरे – धीरे
कांग्रेस की जगह ले रही है ,भविष्य
में झारखंड जम्मू-कश्मीर, बिहार,
बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल जैसे राज्यों में एक के बाद एक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन
शायद खुद कांग्रेस को
ही इसमें उम्मीद की कोई किरण नजर आती दिखाई नहीं दे रही है ,
दूसरी तरफ भाजपा है जो अपने “भारत विजय”
के मिशन को लेकर बहुत उत्साहित नज़र आ रही है ।
नयी सरकार बन्ने के बाद से नरेंद्र मोदी के मुकाबले कांग्रेसी नेतृत्व भी अदृश्य
सा हो गया है , पार्टी के पास अब ऐसा कोई नेता नहीं है जो ‘फ्रंट’ से लीड कर सके । लेकिन
अकेले लीडरशिप ही कांग्रेस की समस्या नहीं है ।
आये दिन कांग्रेस के नेतागण मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए दलील पेश करते नज़र
आते हैं कि, इस सरकार के पास अपना विजन नहीं है और यह हमारे कार्यक्रमों को ही आगे
बढ़ा रही है। दरअसल कांग्रेस नेताओं कि इसी दलील में ही कांग्रेस के मूल समस्या का
जड़ छिपा है । भाजपा ने अपने आप को कांग्रेस के विकल्प के तौर पर पेश किया था,
सत्ता मिलने के बाद वह कांग्रेस कि भूमिका को उससे भी बेहतर तरीके से निभा रही है ,
आज हम सब गवाह हैं कि मोदी के नेतृत्त्व
में “मोदी सरकार” कांग्रेस के उदारवादी आर्थिक नीतियों को नयी उचाईंयां दे रहे है,
एक समय मनमोहन सिंह के “कांग्रेसी-नुमा” विकास दर का जो पहिया धीमा पड़ गया था मोदी
बड़ी मेहनत और मुश्तेदी से उसे गति देने के कोशिश में मशगूल हैं , इस मामले में तो वे वाजपेयी
से भी आगे नज़र आ रहे है क्यूंकि
उन्होंने संघ को इस बात के लिए मना लिया
है कि वह हिन्दुतत्व के अपने सामजिक अजेंडे को लागू कराने के लिए आर्थिक क्षेत्र में स्वदेशी का राग
अलापना बंद कर दे ।
भाजपा और मोदी सरकार तो कांग्रेस से उसके दो सबसे बड़े प्रतीकों गाँधी और
नेहरु को भी हथियाने की कोशिश में हैं ,पिछले
दिनों प्रधानमंत्री द्वारा गांधी जयंती के मौके पर “स्वच्छ भारत अभियान”
की शुरुआत की गयी है इसमें संघ
परिवार के किसी नेता को नहीं बल्कि गाँधी जी को प्रतीक बनाया गया है, इसी तरह से केंद्र
सरकार द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री
जवाहर लाल नेहरू की 125वीं
जयंती के आयोजन लिए नैशनल कमिटी फिर से गठित कि गयी है इस कमेटी की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे, और मोदी
सरकार के मंत्री इसमें मेंबर होंगे, इस
कमिटी
में गांधी परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं किया गया है ।
राजनीति में राजनीतिक दलों के लिए सबसे पहली शर्त होती है कि वे अपने आप को
विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करें , लेकिन
यहाँ कांग्रेस पार्टी बीजेपी का विकल्प नहीं बल्कि पीछे छूट गया छाया उसका साया नजर
आ रही है । ऐसे में सवाल उठता है कि जब
भाजपा ही कांग्रेस से बेहतर कांग्रेस बन
जाये तो “ग्रांड ओल्ड पार्टी” के पास विकल्प ही क्या बचता है ?
इसका विकल्प तो बस एक ही है कांग्रेस का गैर कांग्रेसीकरण, लेकिन यह बहुत
मुश्किल और दुस्साहस भरा काम होगा , इसकेलिए कांग्रेस पार्टी को अपने परछाई से
पीछा छुड़ाते हुए पूरी तरह से अपना मेकओवर करना होगा । अगर वह चाहती है कि मोदी –
शाह के कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का सपना
नाकाम साबित हो तो इसके लिए उसे और उसके नेता को नरेन्द्र मोदी, उनकी पार्टी और सरकार के विकल्प के रूप में पेश होना
पड़ेगा । इस मुल्क में एक साथ दो दक्षिणपंथी पार्टियां कामयाब नहीं हो सकती हैं
इसलिए कांग्रेस को देश की मौजूदा सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के आर्थिक सामाजिक अजेंडे के बरअक्स नया विकल्प देना होगा ।
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