हाँ, हम सब हरामज़ादे हैं.....
(पिछले महीने, दिल्ली में, केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति ने 'रामज़ादे' बनाम 'हरामज़ादे' वाला चर्चित घोर सांप्रदायिक वक्तव्य
अपने एक भाषण में दिया था, इस मंत्री के इस वक्तव्य से विचलित हो
कर चर्चित कवि-लेखक-पत्रकार और मीडियाकर्मी मुकेश कुमार ने एक कविता लिखी है उसे यहाँ साझा किया जा रहा है .मुकेश कुमार 'परख', 'सहारा समय', 'न्यूज़ एक्स्प्रेस', 'मौर्या टीवी' के अलावा वे हिंदी की 'हंस', 'कथादेश' आदि प्रमुख पत्रिकाओं में लिखते रहे
हैं. अभी कुछ ही समय पहले, मीडिया उद्योग के भीतरी और बाहरी
आयामों को प्रामाणिकता के साथ जांचने-परखने की उनकी संजीदा कोशिश -'कसौटी पर मीडिया' पुस्तक के रूप में राजकमल प्रकाशन से
आयी है.
हाँ, हम सब हरामज़ादे
हैं.....
पुरखों की कसम खाकर
कहता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे हैं
आर्य, शक, हूण, मंगोल, मुगल, अंग्रेज,
द्रविड़, आदिवासी, गिरिजन, सुर-असुर
जाने किस-किस का रक्त
प्रवाहित हो रहा है
हमारी शिराओं में
उसी मिश्रित रक्त से
संचरित है हमारी काया
हाँ हम सब वर्णसंकर
हैं।
पंच तत्वों को साक्षी
मानकर कहता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे
हैं!
गंगा, यमुना, ब्रम्हपुत्र, कावेरी से लेकर
वोल्गा, नील, दजला, फरात और थेम्स तक
असंख्य नदियों का पानी
हिलोरें मारता है हमारी कोशिकाओं में
उन्हीं से बने हैं हम
कर्मठ, सतत्
संघर्षशील
सत्यनिष्ठा की शपथ लेकर
कहता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे
हैं!
जाने कितनी संस्कृतियों
को हमने आत्मसात किया है
कितनी सभ्यताओं ने
हमारे ह्रदय को सींचा है
हज़ारों वर्षों की लंबी
यात्रा में
जाने कितनों ने छिड़के
हैं बीज हमारी देह में
हमें बनाए रखा है
निरंतर उर्वरा
इस देश की थाती
सिर-माथे रखते हुए कहता हूँ
कि हम सब हरामज़ादे
हैं!
बुद्ध, महावीर, चार्वाक, आर्यभट्ट, कालिदास
कबीर, ग़ालिब, मार्क्स, गाँधी, अंबेडकर
हम सबके मानस-पुत्र हैं
तुम सबसे अधिक स्वस्थ
एवं पवित्र हैं
इस देश की आत्मा की
सौगंध खाकर कहता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे
हैं!
हम एक बाप की संतान
नहीं
हममें शुद्ध रक्त नहीं
मिलेगा
हमारे नाक-नक्श, कद-काठी, बात-बोली,
रहन-सहन, खान-पान, गान-ज्ञान
सबके सब गवाही देंगे
हमारा डीएन परीक्षण
करवाकर देख लो
गुणसूत्रों में मिलेंगे
अकाट्य प्रमाण
रख दोगे तुम कुतर्कों
के धनुष-बाण
मैं एतद् द्वारा घोषणा
करता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे हैं
हम जन्मे हैं कई बार कई
कोख से
हमें नहीं पता हम किसकी
संतान हैं
इतना जानते हैं पर
जिसके होने का कोई
प्रमाण नहीं
हम उस राम के वंशज नहीं
माफ़ करना रामभक्तों
हम रामज़ादे नहीं!
हे शुद्ध रक्तवादियों,
हे पवित्र
संस्कृतिवादियों
हे
ज्ञानियों-अज्ञानियों
हे साधु-साध्वियों
सुनो, सुनो, सुनो!
हर आम ओ ख़ास सुनो!
नर, मुनि, देवी, देवता
सब सुनो!
हम अनंत प्रसवों से
गुज़रे
इस महादेश की जारज़
औलाद हैं
इसलिए डंके की चोट पर
कहता हूँ
हम सब हरामज़ादे हैं।
हाँ, हम सब हरामज़ादे हैं।
उदय प्रकाश जी के फेसबुक पेज से साभार
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