हे राम ! माधव
सुभाष
गाताडे
जनाब राम माधव, जो अपनी बाल्यावस्था से संघ से जुड़े
रहे हैं और कभी उसके आधिकारिक प्रवक्ता भी रह चुके हैं, / फिर बाद
में उस पद से हटाए गए या खुद हट गए/ और फिलवक्त़ भाजपा के वरिष्ठ नेता के तौर पर
सक्रिय रहते हैं, उन्होंने अंतरराष्टीय योग दिवस के दिन – एक विश्लेषक के
मुताबिक – ‘डबल डिलीट
आसन’ किया। अपने किस्म
का यह पहला आसन – जिसके बारे में पहले किसी ने सुना भी नहीं था, उसकी जरूरत इस
वजह से पड़ी क्योंकि टिवटर तथा अन्य सोशल मीडिया में बेहद सक्रिय रहनेवाले माधव ने
राज पथ पर योग दिवस के आयोजन में उपराष्टपति हामिद अंसारी की गैरमौजूदगी को लेकर
बिना हक़ीकत जाने जो टिवट किए, यहां तक कि राज्यसभा टीवी – जिसकी सदारत
उपराष्टपति करते हैं – के प्रसारण को देखे बिना जिस तरह उस पर यह आरोप लगा दिया कि
‘उसने योग दिवस को
ब्लैकआउट’ कर दिया, उसके चलते उनकी
काफी फजीहत हुई। यूं तो पहले टिवटर पर मौजूद उनके फाॅलोअर्स ने उनके टिवट को
रिटिवट किया, मगर जब असलियत सामने आयी तब खुद राम माधव ने अधिक फजीहत से
बचने के लिए पहले ‘सॉरी’ कहलानेवाला टिवट किया और बाद में उन दोनों टिवट को डिलीट
किया अर्थात हटा दिया।
शाम तक आते आते यह साफ हुआ था कि न केवल राज्यसभा टीवी ने
योग दिवस कार्यक्रम का ‘सजीव प्रसारण’ अर्थात लाइव टेलीकास्ट किया था, यहां तक कि
उपराष्टपति की गैरमौजूदगी इस वजह से थी कि उन्हें सम्बधित कैबिनेट मंत्री ने
न्यौता ही नहीं दिया था। जिस तरह इस ‘टिवटर युद्ध’ में उन्हें तथा
इसी बहाने अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा था, उसके चलते उनके
कार्यालय ने बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर स्थिति स्पष्ट की तथा राम माधव जैसों
को केन्द्र में रख कर यह भी बताया कि प्रोटोकाल नामक चीज़ होती है, जिसे उपराष्टपति
को मानना पड़ता है।
यह कहना मुश्किल है कि संघ के थिंक टैंक समझे जाने वाले
जनाब राम माधव, जो चन्द किताबों के लेखक भी हैं, किस हद तक जनतांत्रिक प्रक्रियाओं की बारीकी समझ सकेंगे
क्यांेकि उनके लिए उनका कुछ अर्थ नहीं होता। अगर वह वाकई उपराष्टपति की गैरमौजूदगी
को लेकर चिंतित होते, जो उनके हिसाब से ‘राष्टीय गौरव’का कार्यक्रम था
तो वह तत्काल उनके कार्यालय में फोन कर सच्चाई मालूम कर लेते। दरअसल उनका मकसद यही
था कि उनकी अनुपस्थिति को रेखांकित किया जाए। अपने अनुदारवादी और असमावेशी एजेण्डा
को आगे बढ़ाने की यह अप्रत्यक्ष कोशिश थी और उपराष्टपति हामिद अंसारी चूंकि अल्पसंख्यक
समुदाय से जुड़े हैं, इसलिए बहाना भले वह बनें, मगर असली निशाना
समूचे समुदाय को, उसकी देशभक्ति को कटघरे में खड़ा करना था।
हम जानते हैं कि यह कोई पहली दफा नहीं है कि सम्मानित
उपराष्टपति महोदय को इस घटिया तरीके से निशाना बनाया गया, और उनको बदनाम
करने की मुहिम छेड़ी गयी। जिन दिनांे राष्टपति ओबामा यहां आए थे, तब राम माधव के ‘परिवारजनों’ ने ही इसी किस्म
का बेबुनियाद विवाद खड़ा किया था। हुआ यूं कि राजपथ पर गणतंत्रा दिवस परेड के
आयोजन के वक्त़ जबकि राष्टपति सेनाओं की सलामी ले रहे थे, तब उपराष्टपति
सावधान की मुद्रा में खड़े दिखे थे। ‘आखिर हामिद अंसारी ने राष्टीय झंडे को
सलामी क्यों नहीं दी ?’ स्वयंभू देशभक्तों के लिए सबसे बड़ा सवाल यही था। सोशल
मीडिया पर शेअर की जा रही उस तस्वीर में ग्रहमंत्री राजनाथ सिंह और विदेश
मंत्री सुषमा स्वराज दोनों ही राष्टीय झंडे को सलामी देते नहीं दिख रहे थे, मगर उनकी
देशभक्ति पर सवाल उठानेवाला कोई नहीं था। उपराष्टपति को अपमानित करनेवाले तमाम
नफरत भरे टिवट किए गए जिसमें उन्हें ‘जिहादी हमदर्द’, ‘भारत
विरोधी’, ‘देशद्रोही’ का दर्जा दिया
गया ; कुछ ने उन पर
महाअभियोग चलाने पर जोर दिया।
विवाद को देखते हुए उपराष्टपति कार्यालय ने प्रेस विज्ञप्ति
जारी कर ऐसे मामलों में प्रोटोकाल क्या है यह बताया। उसमें इस बात का विशेष उल्लेख
था कि जब राष्टगान हो रहा हो तब प्रमुख सम्मानित व्यक्ति और यूनिफार्म में
रहनेवाले अन्य लोग सलामी देते हैं, जो सिविल पोशाक में होते हैं, वह सावधान की
मुद्रा में रहते हैं। गणतंत्रा दिवस की परेड में, सर्वोच्च सेनापति
होने के नाते भारत का राष्टपति सलामी लेता है और प्रोटोकाल के हिसाब से उपराष्टपति
खड़ा रहता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राष्टीय स्वयंसेवक संघ ने
हमेशा आज़ादी के आन्दोलन से दूरी बनाए रखी थी और बर्तानवी साम्राज्यवादियों के
खिलाफ व्यापक जनता की एकता को तोड़ने की – धर्म के आधार पर कोशिश की – इस मामले में वह
उन इस्लामिस्ट संगठनों का प्रतिबिम्ब दिखता है, जिन्होंने भी बर्तानवी सरकार की हिमायत
करना अधिक फायदेमंद देखा था। यह अकारण नहीं था कि आज भी इस देश की जनता के साथ
उसके द्वारा किए इस द्रोह की असलियत को जनता भूली नहीं है। इस धब्बे से मुक्त होने
का एक आसान तरीका उसने यही दूंद लिया है कि अपने दुश्मनों पर देशद्रोही होने की
तोहमत लगाते रहा जाए ताकि उसके द्रोह की बात कोई न करे। इतनाही नहीं जब स्वाधीन
भारत के संविधान का निर्माण हो रहा था, एक व्यक्ति एक वोट के आधार पर नए निज़ाम
के बीज डाले जा रहे थे तब मनुस्म्रति को ही संविधान बनाने की हिमायत करके उसने एक
व्यक्ति एक पद या गरिमा पर आधारित बन रहे संविधन की मुखालिफत की थी।
दोनेां ही मामलों में जहां उपराष्टपति पद की गरिमा को चोट
पहुंचाने की कोशिश की गयी, दरअसल संघ और उसके आनुषंगिेक संगठनों की कार्यप्रणाली को
उजागर करते है। उन्हें समुदायों को बदनाम करने, प्रक्रियाओं का उल्लंघन करने, संस्थाओं को
निशाने पर लेने आदि से कोई गुरेज नहीं है, हर आनेवाले दिन में हम उनके आवाज़ो की
बढ़ती तीव्रता को भी देख रहे हैं। हर सन्तुलित मना व्यक्ति के सामने यही विकल्प
हैं कि वह लगातार सतर्क रहे ताकि संघ का बहुंसंख्यकवादी एजेण्डे को हर मुका़म पर
चुनौती दी जा सके।
शायद इस वक्त़ हम डा राहत इंदौरी की पंक्तियों को याद कर
सकते हैं / जिनका उल्लेख एनआरआई इंडियन्स फोरम की अपील में किया गया है।/
‘जो
आज साहिब ए मसनद हैं कल नहीं होंगे
किरायेदार
हैं जाति मकान थोड़े है।
सभी
का खून शामिल यहां की मिटटी में
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी
है। ’
Courtesy -Hum Samvet
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