जीना जंजाल
जावेद अनीस
-----------
26 जून की रात नरसिंहपुर जिले के गाँव मड़गुला के अहिरवार(अनुसूचित जाति) समुदाय के लोगों के लिए जान लेवा साबित हुई, जब
उनके ही गाँव के दबंग राजपूतों ने लाठी, बल्लम, तलवार और हाकी से हमला कर दिया, इस
दौरान अहिवार मोहल्ले के बुजर्गों
महिलाओं और बच्चों
को भी नहीं बक्शा गया. इस हमले में एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है
करीब 17 लोग घायल हैं जिसमें से सात लोग गंभीर है, पूरा मामला खेतों में कम मजदूरी
पर काम करने से इनकार कर देने का है,जिसके बाद सबक सिखाने के लिए यह हमला अंजाम
दिया गया, गौरतलब है कि इस गाँव में अहिरवार समुदाय का उत्पीडन नया नहीं है.इससे
पहले भी वहां इस तरह की घटनायें होती रही हैं, 2009 में वहां इसी तरह के एक बड़ी
वारदात हुई थी जब मड़गुला और आसपास के गावों के अहिरवार समुदाय के लोगों ने मृत मवेषी नहीं उठाने का निर्णय लिया था. इसके बाद गाँव के दबंग
जातियों द्वारा उनपर सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध थोप दिया गया था. 26 जून की घटना के बाद सभी अहिरवार परिवारों ने गाँव छोड़ दिया
है और वर्तमान में गाडरबाडा नगरपालिका के मंगल भवन परिसर में रह रहे हैं, पीड़ितों
का कहना है कि उनका ठीक से इलाज नहीं किया गया है, कई लोगों को समय से पहले ही अस्पताल
से डिस्चार्ज कर दिया गया है और उन्हें दवाईयां भी बाहर से पैसे देकर खरीदनी पड़
रही हैं. सभी लोग बहुत दहशत में है और किसी भी कीमत पर गाँव वापस नहीं जाना चाहते
हैं।
पीड़ितों के अनुसार पूरी घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है, घटना से दो दिन पहले सुबह
महादेव राजपूत और भगवान अहिरवार के बीच दो एकड़ खेत में तुअर के फर्रे बीनने की बात
1000 रुपये में तय हुई, जब भगवान अहिरवार
महादेव के खेत में गया तो पाया कि खेत दो एकड़ का नहीं बल्कि साढ़े तीन एकड़ का था, इसके
बाद वह काम करने नहीं गया, बाद में मिलने पर जब महादेव राजपूत ने भगवान से पूछा कि
तुम काम पर क्यों नहीं आये तो भगवान ने उसे यह कहते हुए काम करने से मना कर दिया
कि जमीन साढ़े तीन एकड़ की है जबकि सौदा दो ही एकड़ का हुआ है, इसी बात को लेकर दोनों
के बीच कहा सुनी हो गयी और महादेव राजपूत ने भगवान अहिरवार की जूतों से पिटाई कर
दी और उसे जातिगत गली देते हुए कहा कि “तुम्हारी हिम्मत कैसी हुई काम करने से मना करने
की... यह हमारा खेत है तो हम जानेंगें कि कितना बड़ा है कि तुम जानोगे”. उस समय
भगवान अहिरवार वापस आ गया लेकिन बाद में मौका पाकर उसने साईकल के चैन से महादेव
राजपूत पर तीन वार कर दिये। इसके बाद रात में आठ से साढ़े आठ बजे के बीच बड़ी संख्या में राजपूत समुदाय के लोगों ने अहिरवार
मोहल्ले पर हमला कर दिया, उस समय कुछ लोग
खाना खा रहे थे तो कुछ सो
रहे थे, हमला करने से पहले
बिजली भी काट दी गयी थी, पीड़ितों का कहना है कि हमलावर करीब पैतीस से चालीस के बीच थे, सभी के हाथों में लाठी,
बल्लम तलवार और हाकी जैसे हथियार थे, इस दौरान घरों में भी तोड़-फोड़ की गयी, कई
लोगों के गाड़ियों को भी जला दिया गया।
धर्मेन्द्र अहिरवार जिनके ताऊ की इस हमले में मौत हो चुकी है बताता है कि हमले
के समय वे घर पर ही था और तखत के नीचे छुप कर अपनी जान बचायी थी, हमलावरों के वापस
जाने के बाद धर्मेन्द्र ने सब से पहले 108 नंबर पर एम्बुलेंस के लिए
फोन किया लेकिन वहां से बात करने वाले ने यह कहते हुए फोन काट दिया कि उसे नींद आ रही
है और वे नहीं आ सकते है,धर्मेन्द्र ने दोबारा फोन लगाया तो वहां से एक नंबर देते
हुए कहा गया कि एम्बुलेंस के लिए ऑनलाइन नरसिंहपुर पर बात करो, धर्मेन्द्र ने जब
दिये गए नंबर पर बात किया तो वहां से एक और फोन नंबर दिया गया जो कि साईखेड़ा थाने
का नंबर था, इसके बाद धर्मेन्द्र अहिरवार ने साईखेड़ा थाने में फोन किया, जहाँ उसकी
थानेदार से बात हुई, इसके बाद करीब 45 मिनट बाद पुलिस गाँव आई,
मड़गुला पहुँच कर पुलिस वालों ने
लोगों की गंभीर स्थिति देखते हुए सबसे पहले एम्बुलेंस के लिए फोन किया तब जाकर वहां 6 एम्बुलेंस पहुँच सकीं,जिसमें 17 लोगों को जो कि बुरी तरह
से घायल हुए थे अस्पताल पहुँचाया गया, इन 17 लोगों में से 6 लोगों की हालत बहुत गंभीर थी, सभी को पहले
नरसिंहपुर ले जाया गया फिर वहां से ज्यादा गंभीर घायलों को जबलपुर रेफर कर दिया
गया, घटना के अगले ही दिन सुबह एक व्यक्ति अजुद्दा अहिरवार की मृत्यु हो गयी जो कि
हमले के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गये थे।
इस घटना के बाद मड़गुला गाँव के करीब साठ अहिरवार परिवारों के एक सौ अस्सी लोग गाडरबाडा
पलायन कर गये थे, वहां स्थानीय नेता सुनीता पटेल ने उनके रहने और खाने का इन्तेजाम
करवाया, करीब एक सप्ताह बाद नरसिंहपुर के कलेक्टर आये तो उन्होंने नगरपालिका को
निर्देश दिया कि पीड़ितों को नगरपालिका के मंगल भवन परिसर में रहने और खाने की व्यवस्था
किया जाए, इसके बाद सभी पीड़ितों को प्रशासन द्वारा मंगल भवन ले जाया गया वहां वे
दो दिन ही रह पाए थे कि नगर पालिका के लोगों ने कह दिया कि अब आप लोग अपने गाँव वापस
जायें और अगर गाँव वापस नहीं जायेंगें तो उन्हें यहाँ भी रहने नहीं दिया जाएगा, वहां से यह लोग
फिर पुराने जगह सुनीता पटेल के यहाँ वापस आने को
मजबूर हो गये, वहां वे एक रात रहे. इसी दौरान भोपाल से अहिरवार समाज संघ के
कुछ पदाधिकारी आ गए थे जिन्होंने इस सम्बन्ध में एस.डी.एम. और तहसीलदार से बात की,
जिसके बाद पीड़ितों को दोबारा मंगल भवन में
रहने की जगह मिल पायी जहाँ पर वे अभी तक रह रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि 2000 रूपये के अलावा अभी तक किसी को भी मुआवजा नहीं मिला है,
जबकि कलेक्टर ने पीड़ितों से कहा था कि घायलों को एक लाख अस्सी हज़ार और मृतक के
परिवार को सात लाख रूपया दिया जाएगा.
धर्मेन्द्र अहिरवार बताते हैं कि चूँकि घटना के अगले ही दिन एक व्यक्ति की मौत
हो गयी थी तो हम एफ.आई.आर. तो नहीं करा पाए थे लेकिन इस मामले में 37 लोगों का नाम
जो कि हमले में शामिल थे पुलिस को दे दिया था, जिसमें से 21 लोगों को ही नामजद
किया गया है, इन 21 लोगों में से भी दो ऐसे नाम हैं जिनके नाम का कोई व्यक्ति गाँव
में नहीं रहता है, अभी तक इस मामले में कुल पंद्रह लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है,
बाकी लोग फरार हैं। पीड़ितों का कहना है कि उन्हें एफ.आई.आर. की कॉपी एक सप्ताह बाद प्राप्त हुई और
अभी तक किसी भी पीड़ित का ठीक से बयान तक दर्ज नहीं किया गया है।
इसको लेकर अहिरवार समाज संघ म. प्र. के प्रान्तीय
अध्यक्ष डॉ जगदीश सूर्यवंशी जो कि एक बार वहां का दौरा करके पीड़ितों से मिल चुके
हैं का कहना है कि “इस केस को कमजोर करने
की कोशिश की जा रही है प्रशासन इस मामले में लीपा-पोती कर रहा है,आरोपियों पर 302
की धारा नहीं लगायी गयी है जबकि एक व्यक्ति कि मौत हो चुकी है।“
पीड़ित द्वारा प्रशासन पर इलाज में भी लापरवाही बरतने का आरोप लगाया जा रहा है,
पीड़ितों का कहना है कि उनका ठीक से इलाज नहीं किया गया, गंभीर रूप से घायलों को भी
जबलपुर से समय से पहले डिस्चार्ज करके गाड़रवाड़ा में भर्ती कर दिया गया, जहाँ
सुविधाओं का अभाव है, उन्हें बाजार की दवाईयां लिखी जा रही है और लोग अपने पैसों
से दवाईयां खरीदने को मजबूर हैं, डॉ. जगदीश सूर्यवंशी कहते हैं कि लोगों का इलाज
सही तरीके से नहीं हो रहा है, राज्य सरकार के नियम के अनुसार किसी भी मरीज को बाहर
की दवाई नहीं लिखी जा सकती है, इस तरह के प्रकरण में तो मानवता के आधार पर भी
ध्यान रखा जाना चाहिए, इसके बावजूद पीड़ितों को बाहर से दवाई खरीदनी पड़ रही है।
अब यह लोग मड़गुला गाँव किसी भी कीमत वापस नहीं जाना
चाहते हैं, उन्हें प्रशासन के इस तसल्ली पर भी कोई भरोसा नहीं है जो दोनों पक्षों के
बीच समझौता करने और गाँव में ही एक पुलिस चौकी स्थापित करने का भरोसा दिला रहे हैं,
लेकिन लोगों की मांग है कि उन्हें किसी दूसरी जगह बसने के लिए जमीन उपलब्ध कराई
जाए, कलेक्टर की तरफ से घायलों को एक लाख अस्सी हज़ार देने का जो वादा किया गया है, वह भी अपर्याप्त है, क्योंकि
पीड़ितों का कहना है कि हम सब को नयी जगह पर नए सिरे से जिंदगी शुरू करनी होगी,
जमीन मिलने पर हमें सबसे पहले घर बनाना होगा इसलिए घर बनाने और जिंदगी पटरी पर
लाने के लिए उन्हें सरकार से और ज्यादा मदद चाहिए।
कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष रामेश्वर
नीखरा भी गाड़रवाड़ा का दौरा कर चुके हैं, इस पूरे मामले में उनका कहना है कि “हमारी लोगों से बात हुई
है, लोग काफी डरे हुए हैं, इलाज भी ठीक ढंग से नहीं हुआ है, इस पूरे मामले में प्रशासन
की तरफ से गंभीरता नहीं दिखाई गयी है, अब लोग अपने गाँव वापस नहीं जाना चाहते
हैं लेकिन उनपर उसी गाँव में
ही वापस जाने का दबाव डाला जा रहा है, हमने प्रशासन से मांग की है कि इन्हें कहीं
और बसाया जाए ताकि वे भयमुक्त रह सकें साथ ही साथ पीड़ितों को उचित मुआवजा भी मुआवजा दिया जाए”।
2009 में भी मड़गुला और आसपास के गाँवों में जातिगत उत्पीडन की बड़ी वारदात देखने को मिली थी, इसको
लेकर सामाजिक संगठनों द्वारा एक फैक्ट फाइंडिंग भी की गयी थी जिसमें पाया गया था कि
इसकी शुरुआत अहिरवार समुदाय के लोगों के एक सामूहिक रूप से लिए गए उस निर्णय से
हुई जिसमें उन्होंने कहा कि ‘अब वे मरे हुए मवेशी नहीं उठायेंगें, उनका कहना था
कि चूंकि हम सदियों से मरे हुए मवेशी उठाते
चले आ रहे हैं इसीलिए उनके साथ छुआछूत व भेदभाव
का बर्ताव किया जाता है। इसके जवाब
में मड़गुला गाँव के दबंगों ने पूरे अहिरवार समुदाय पर
सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया, कोटवार
के माध्यम से यह एलान करा
दिया गया कि अहिरवार समुदाय के जो लोग
सवर्णों के यहाँ बटाईदारी
करते हैं उन्हें उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना वे तय करेंगें, इसी तरह से मजदूरी भी
आधी कर दी गयी. इसके अलावा उनके सार्वजनिक स्थलों के उपयोग जैसे सार्वजनिक नल, किराना की दुकान
से सामान खरीदने, आटा चक्की से
अनाज पिसाने, शौचालय जाने के
रास्ते और अन्य दूसरी सुविधाओं के उपयोग पर जबर्दस्ती रोक लगा दी गई थी। उस समय भी
कई सारे परिवार गाँव छोड़ कर पलायन कर गये
थे और प्रशासन द्वारा बहुत बाद में इनकी सुध ली गयी थी।
लेकिन यह घटना चिंगारी के रूप में बनी रही और साल 2012 में गाडरवारा तहसील के मारेगाँव में दोबारा उभर कर सामने आई जहाँ एक बार फिर मामला मृत मवेशी को उठाने का था, इस उत्पीड़न को लेकर वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा एक फैक्ट फाइंडिंग का गठन किया गया था, इस रिपोर्ट के अनुसार मारेगाँव के अहिरवार समुदाय पर गाँव के सवर्णों द्वारा मृत मवेशी उठाने के लिए दबाव डाला जा रहा था लेकिन वे लोग मना कर रहे थे जिसके बाद गाँव में ढिढोरा पिटवा कर यह ऐलान करा दिया गया कि अहिरवार समाज से कोई भी किसी तरह का सबंध नही रखेगा, उनके गाँव के अंदर आने पर रोक लगा गया, गाँव में स्थिति सभी दुकानदारों को अहिरवार लोगों को राशन, किराना का सामान देने से मना कर दिया, आटा चक्की वालों से भी कहा गया कि वे अहिरवार समाज के किसी भी परिवार का अनाज नही पीसेगें। गाँव के हैण्डपम्प और कुओं से उनके पानी लेने पर रोक लगा दी गयी, यहाँ तक कि गाँव के तालाब पर तारों की बाड़ लगा दी गई ताकि अहिरवार समाज का व्यक्ति नित्यकर्म के लिए भी तालाब के पानी का उपयोग ना कर सके, मंदिर के दरवाजे उनके लिए बंद कर दिये गये। अहिरवार समुदाय के लोगों के गाँव में मजदूरी करने पर रोक लगा दी गई. यह सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार लम्बे समय तक चला। इस मामले में लगातार प्रयास कर रहे लज्जाशंकर हरदेनिया का कहना है कि हम 2012 से लगातार मारेगावं में हुयी घटना को लेकर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन समस्या में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है।
दरअसल यह केवल गाडरवारा तहसील का मसला नहीं है, मध्यप्रदेश में जातिगत भेदभाव की जड़ें कितनी गहरी है उसका अंदाजा 2010 में
मुरैना जिले के मलीकपूर गॉव में हुई एक घटना से लगाया जा सकता है जहाँ एक दलित महिला ने स्वर्ण जाति के व्यक्ति के कुत्ते को
रोटी खिला दी, जिस पर कुत्ते के मालिक ने पंचायत में कहा कि एक दलित द्वारा रोटी खिलाऐ जाने के कारण उसका कुत्ता अपवित्र हो
गया है, गॉव के पंचायत ने दलित महिला को उसके इस ‘‘जुर्म’’ के लिए 15000 रूपये के दण्ड़ का फरमान सुनाया। इन उत्पीडन के कई रूप हैं जैसे नाई
द्वारा बाल काटने को मना कर देना, चाय की
दुकानदार द्वारा चाय देने से पहले जाति पूछना और खुद को दलित बताने पर चाय देने से मना कर देना या अलग
गिलास में चाय देना, पंच/सरपंच को
मारने पीटने, शादी में घोड़े पर बैठने पर रास्ता रोकना और
मारपीट करना, मरे हुए मवेशियों को जबरदस्ती उठाने को मजबूर करना, मना करने पर
सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार कर देना, सावर्जनिक नल से पानी भरने पर रोक लगा देना जैसी घटनाऐं कुछ उदाहरण मात्र है जो अभी भी यहाँ अनुसूचित जाति के लोगों के आम दिनचर्या का हिस्सा हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में
अनुसूचित जाति की आबादी 15.6 % है, पिछले पांच साल के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो
के आकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2009 से 2012 के बीच दलित उत्पीड़न के दर्ज किये गए
मामलों में मध्यप्रदेश का स्थान पांचवां बना रहा, 2013 में यह एक पायदान ऊपर चढ़ कर
चौथे स्थान पर पहुच गया है।
अहिरवार समाज संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ जगदीश सूर्यवंशी कहते हैं कि “पूरे
मध्यप्रदेश में इस तरह की घटनायें कम होने के बजाए बढ़ रही हैं और स्थिति लगातार
गंभीर होती जा रही है,वे दावा करते हैं कि राज्य के 99 प्रतिशत गाँवों में दलितों को मंदिरों में प्रवेश
नहीं दिया जाता है, 75 प्रतिशत से अधिक गाँवों में दलित समुदाय के लोग सावर्जनिक शमशानघाट में क्रियाकर्म नहीं कर सकते
हैं और मजबूरन उन्होंने अपने अलग शमशान घाट बना रखे हैं, 25 प्रतिशत से अधिक गाँवों में सावर्जनिक नल या हैंडपंप से दलित
समुदायों के लोगों को पानी पीने नहीं दिया जाता है, 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में
मध्यान भोजन के समय दलित समुदाय के बच्चों को अलग बैठाकर भोजन कराया जाता है।
आखिर क्या वजह है कि प्रदेश में
लगातार इतने बड़े पैमाने पर दलितों के साथ अत्याचार के मामले सामने आ रहे हैं इसके बावजूद मध्यप्रदेश की राजनीति में दलित उत्पीड़न कोई राजनैतिक मुददा नही बन पा रहा हैं? इसका जवाब यह है कि प्रदेश के ज्यादातर प्रमुख राजनैतिक दलों के एजेन्ड़े में दलितों के सवाल सिरे से ही गायब
हैं। तभी तो मड़गुला की घटना पर बयान देते हुए गाडरवारा से भाजपा विधायक गोविन्द पटेल कहते हैं
कि, “ऐसे झगड़े तो होते रहते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, पाकिस्तान का भी
भारत से झगड़ा चल रहा है, जो घटना हुई है वह किसी भी तरह से जातिवाद की लडाई नहीं
है”। अब यह केवल इत्तेफाक तो नहीं हो सकता कि मध्यप्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष रामेश्वर नीखरा भी कहते हैं
कि “यह जातीय संघर्ष नहीं है इसे कुछ लोग जबरदस्ती जातीय संघर्ष बना रहे हैं,
नरसिंहपुर तो बड़ा समरसता वाला जिला रहा है वहां तो पहली बार इस तरह की कोई घटना
घटी है।“
इन सब पर वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया
कहते है कि “हमारा अनुभव यह है कि मध्यप्रदेश में दलितों को लेकर राजनीतिक, सामाजिक
और प्रशासनिक स्तर पर संवेदनहीनता व्याप्त है और यह लोग दलितों की समस्या को
समस्या ही नहीं मानते हैं।”
राजीनामा के लिए दबाव बनाया जा रहा है
इस पूरे
घटनाक्रम में जिस एक व्यक्ति की मौत हुई है वह राजू अहिरवार के पिता अजुद्दा अहिरवार
थे, 25 साल के राजू अहिरवार भी बुरी तरह से घायल हैं और इस समय उनका गाडरवारा के
सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है. राजू के दोनों पैर और एक हाथ पर गंभीर चोटें
आई हैं, घटना के बाद उन्हें जबलपुर शासकीय विक्टोरिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहाँ उन्हें केवल तीन दिन तक रखा
गया. उसके बाद उन्हें अस्पताल से जबरदस्ती डिस्चार्ज कर दिया गया, राजू का कहना है
कि मेरे पिता जी खत्म हो गये थे, इस वजह से मैं सदमे में था उसी दौरान मुझ से डिस्चार्ज
पेपर पर दस्तखत करा लिया गया, राजू बताते हैं कि जब वे जबलपुर अस्पताल में भर्ती
थे तो उनके तीन हजार तक खर्च हो गये थे क्योंकि उनहें बाहर से दवा लाने को कहा
जाता था, गाडरवारा अस्पताल में भी यही हो रहा
है यहाँ भी बाहर से दवा लेने में उनके करीब चार हज़ार रुपये खर्च हो चुके हैं,वे
कहते हैं कि यहाँ पर मेरा सही इलाज नहीं हो रहा है, डॉक्टर ध्यान नहीं देते और दूर
से ही देख कर चले जाते हैं, अगर इसी तरह से मेरा इलाज चला तो मुझे ठीक होने में एक
साल भी लग सकते हैं।
पिता के मृत्यु के बाद राजू के घर में अब कोई कमाने वाला नहीं है,घर में राजू
के अलावा उसके बूढ़े दादा-दादी हैं वे भी हमले से घायल हैं , इसके अलावा परिवार में
उनकी मां और पंद्रह साल का भाई है, यह सभी लोग गाडरवारा के मंगल भवन में रह रहे
हैं, अभी मुआवजे के रूप में उन्हें पिताजी के अन्त्योष्टि के लिए 4000 रूपये मिले
थे जो की उसी में खर्च हो चुके हैं। राजू अहिरवार का कहना है कि उसपर राजीनामा के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा
है, कुछ लोग अस्पताल आकर उसपर दबाव डालने और डराने की कोशिश कर रहे हैं।
छुआछूत में सबसे आगे
·
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च
(एनसीएईआर) और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड की तरफ से इसी साल आयी एक रिपोर्ट के अनुसार देश के सत्ताईस प्रतिशत लोग किसी न
किसी रूप में छुआछूत को मानते हैं और इस मामले में मध्यप्रदेश तिरपन प्रतिशत के साथ देश में पहले नंबर पर है।
·
स्थानीय
संगठन दलित अधिकार अभियान द्वारा 2014 में जारी
रिपोर्ट “जीने के अधिकार पर काबिज छुआछूत” के अनुसार मध्यप्रदेश के 10 जिलों
के 30 गांवों में किये गये सर्वेक्षण के दौरान निकल कर आया है कि इन सभी गावों में लगभग सत्तर प्रकार के छुआछूत का प्रचलन है इसी तरह से भेदभाव
के कारण लगभग 31 प्रतिशत
दलित बच्चे स्कूल में अनुपस्थित रहते हैं.
इस साल की प्रमुख घटनायें
·
इस साल जनवरी में दमोह जिले के अचलपुरा गांव
में दबंगों द्वारा दलित समुदाय के लोगों को पीटा गया,इसके
बाद प्रशासन
और पुलिस के अधिकारियों के मौजूदगी में 12 दलित परिवार
गावं छोड़ कर चले गये, क्योंकि उन्हें पुलिस और प्रशासन से
अपनी सुरक्षा का भरोसा नहीं था.
·
मई की गर्मियों में अलीराजपुर
जिले के घटवानी गांव के 200 दलितों ने खुलासा किया
कि वे एक कुंए से गंदा पानी पीने को मजबूर हैं क्योंकि छुआछुत की वजह से उन्हें
गावं के इकलौते सार्वजनिक हैंडपंप से पानी नहीं लेने दिया जाता है, जबकि जानवर वहा से पानी पी सकते हैं.
·
10 मई को रतलाम जिले के
नेगरुन गांव में दबंगों ने दलितों की एक बारात पर इसलिए पथराव किया क्योंकि दूल्हा
घोड़ी पर सवार था। इसके बाद बारत को पुलिस सुरक्षा में निकलना पड़ा और दूल्हे
हेल्मेट पहनवाना पड़ा, तब जाकर बारात निकल पायी।
·
शिवपुरी जिले के कुंअरपुर गांव में इस साल
हुए पंचायत चुनाव में एक दलित महिला अपने गांव की उप सरपंच चुनी गई थीं,
जिन्हें गांव के सरपंच और कुछ दबंगों ने मिलकर उनके साथ मारपीट की
और उनके मुंह में गोबर भर दिया ।
·
13 जून को छतरपुर जिले के
गणेशपुरा में दलित समुदाय कि एक 11 वर्षीय लड़की हैंडपंप से
पानी भरने जा रही थी, इसी दौरान दबंग समुदाय के व्यक्ति ने
लड़की की इसलिए पिटाई कर दी क्योंकि उसके खाने पर लड़की की परछाई पड़ गई थी।
No comments: