टूटते -दरकते रिश्तो का रक्षाबन्धन
स्वदेश कुमार सिन्हा
सावन के महीने में
जब रिमझिम वारिश होती रहती है तब हमारी संस्कृति में पर्वो की शुरूआत होती है। इनमें
अनेक पर्व ऐसे हैं जिनका धार्मिक से ज्यादा सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है। इसी
माह मनाया जाने वाला भाई -बहनो के प्रेम का पर्व रक्षाबन्धन है। बाजार में अनेक
पर्वो की तरह इसे भी अपने आगोश में ले लिया है। इसलिए इस पर्व की मूल आत्मा तथा इसमें
निहित मूल्य खो से गये हैं ।
उपभोक्तावाद के
बढ़ते प्रभाव के साथ-साथ आज सामूहिकता का ह्यस होता जा रहा है। ब्यक्तिगत उन्नति
और स्वार्थ सबसे महत्वपूर्ण हो गये हे। यह
आज भाई-बहन ,भाई-भाई, पिता-पुत्र , पति-पत्नी आदि
सभी रिश्तो में देखा जा रहा है।
बाजारीकरण के
फलस्वरूप टी0वी0, फिल्मे ,इण्टरनेट सहित
तमाम माध्यमों से यह मनोवृत्तियान तैयार हो रही , नतीजन एक तरफ बाजार में सोने चांदी की मॅहगी राखियो से लेकर राखी का आन लाईन बाजार
बढ़ रहा है। ब्राण्डेड कम्पनियों के मॅहगे गिफ्ट ओर उपहारो का चलन शुरू हो गया है।
दूसरी तरफ प्यार और स्नेह की डोर कमजोर पड़ती जा रही है। पश्चिमी जगत में करीब दो
सौ वर्ष पहले ही संयुक्त परिवारो का विघटन हो गया था। वहां पर आज एकाकी परिवारो
में भी विवाह पति पत्नी के रिश्तो पर बहस चल पड़ी हैं। इसलिए वहां मदर डे ,फादर डे , फे्रण्डशिप डे
जैसे दिवसो की परम्पर भी इन्ही कारणो से पड़ी। कम से कम वर्ष में एक दिन तो लोग अपने इन रिश्तो को हॅसी -खुशी से
मना सकते है। इसलिए वहां सामाजिक आचरण
निभाने में हमारे देश की तरह कोई अंतर्विरोध नही दिखता।
रक्षाबन्धन के
बारे में यह सामाजिक मान्यता है कि मध्यकाल में विदेशी आक्रमणो से स्त्रियों के
असुरक्षित हो जाने के कारण राजस्थान में इस पर्व का प्रचलन शूरू हुआ बाद में यह
सारे देश में फैल गया। परन्तु यह कथा भी आती है मेवाड़ की महारानी कर्मवती ने अपने
राज्य की रक्षा के लिए मुगल सम्राट हुॅमायु को राखी भेजी थी। तथा हुमायूं उनके
राज्य की रक्षा के लिए सेना लेकर गया भी था।
नारीवादियों तथा अन्य बहुत से लोगो का यह मानना है कि आज के
समय में स्त्रियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं सेना ,पुलिस ,वायु सेना के
पायलट के अलावा डा0, इन्जीनियर से
लेकर बड़े बड़े कम्पनियों का संचालन खुद कर रही हैं । आज वह अपनी रक्षा करने में खुद
सक्षम है। इस पर्व की यह अवधारणा की भाई बहन की रक्षा करेगा उसके कमजोर तथा दुर्बल
सिद्ध करती है। यह बात काफी हद तक सही हो सकती है। परनतु समाचार पत्र विचलित करने
वाले खबरो से भरे रहते हे। जो आज भाई बहन
के पवित्र रिश्तो पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हैं । उ0प्र0 के सिद्धार्थनगर
जिले में कुछ दिनों पूर्व जमीन के एक
विवाद में चचेरे भाई ने बहन को चाकू घोप कर मार डाला। बरेली में एक भाई ने बहन का
गला काट कर उसकी हत्या कर दी। हरियाणा में जाति एवं गोत्र से बाहर विवाह करने वाली
एक लड़़की तथा उसके पति को उसके सगे भाईयों तथा पिता ने दिल्ली में खोजकर मार डाला
तथा बड़े गर्व से इस कृत्य को स्वीकार भी कर लिया। अनेक परिवारो में पैतृक
सम्पत्ति के विवाद में भाई बहनो के बीच मुकदमें चल रहे हैं । इस मर्यादेत रिश्तो को तार-तार करने वाली अनेक घटनायें
पतिदिन घट रही हैं ।
हम लोगो के बचपन में
परिवार में बहनो का बहुत महत्व था। विशेष रूप से पिता की बहन बुआ का। शादी ,विवाह तथा अन्य
पारिवारिक संस्कारो में बुआ की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। यद्यपि यह प्रथाये आज
भी किसी न किसी रूप में मौजूद हैं परन्तु इन
रिश्तो में अपनापन तथा लगाव समाप्त होता जा रहा हैं। ऐसे भी अनेक उदाहरण मिलते थे।
जब पिता की मृत्यु के बाद बहन ने भाई अथवा भाई ने बहन के भविष्य तथा खुशियों के
लिए अपनी ब्यक्तिगत खुशियों की कुर्बानी कर दी। रिश्तो के इस बदलते हुए परिदृश्य
के बारे में समाजशास्त्रियों का कहना है कि यह रिश्तो के संक्रमण का दौर है।
पुराने समाजो में संयुक्त परिवारो में भले आपस में स्नेह और विश्वाश की डोर बहुत
मजबूत दिखती हो परन्तु वहां पर महिलाओ को घर के किसी विषय पर यहाँ तक कि अपनी
सन्तानो के भविष्य के बारे में भी किसी भी निर्णय में भागीदारी करने का कोई अधिकर
नही था। लड़की का घर शादी के बाद पराया हो जाता था। सारे फैसले पिता ,पति अथवा घर के
बड़े बुजुर्ग करते थे।
आज हालात बड़ी तेजी से बदल रहे है स्त्रियों की घरो तथा घर के बाहर भी फैसलों में भागीदारी बढ़ रही है। वह पितृसत्तात्मक समाज
में पुरूष वादी वर्चस्व को चुनौती दे रही है । इन कारणो से भी आपसी रिश्तो में
तनाव बढ़ रहे हैं । कानून ने जरूर महिलाओ केा पिता तथा पिता तथा पति की सम्पत्ति में
हिस्सा दे दिया है परन्तु व्यवहार में आज
भी पिता की सम्पत्ति में भाईयों से हिस्सा बांटने वाली बहन को समाज में अच्छी निगाहो से नही देखा
जाता हैं। बहनो से राखी बॅधवाने वाले भाई भी उनसे सम्पत्ति में हिस्सा नही बाॅटना
चाहते अक्सर विधवा स्त्रियां पति और पिता दोनो की सम्पत्ति से वंचित होकर कष्ट का
जीवन ब्यतीत करते देखी जाती हैं । इन्ही सब कारणो से आज पेैतृक सम्पत्ति के
बॅटवारे के लिए अनेक जगह भाई बहन के बीच कानूनी लड़ाइयाँ भी चल रही हैं ।
वर्तमान समय में ज्यादा
तर बच्चो के सामने भाई बहन के रिश्तो की
गरिमा मर्यादा और एक दूसरे के प्रति समर्पण के भाव को जानने समझने के लिए आज कोई
उदाहरण मौजूद ही नही है। आज के एकल परिवारो में वे अपने माता पिता को भाई बहनो के
साथ रिष्ता निभाते देख ही नही पाते तथा वे भी वैसे ही होते चले जाते हैं ।
अपने अनेक अंतर्विरोधों
के बावजूद भारतीय समाज में परिस्थियों के अनुसार अपने आप को ढ़ाल लेने की अद्भुत क्षमता है। आज भी अनेक ऐसे समाचार आते
रहते में जब भाई ने बहन की प्राण रक्षा के लिए किडनी दान में दे दी। अथवा भाई ने
अपना विवाह न करके छोटे भाई बहनो को पढ़ाया लिखाया उन्हे अपने पैरो पर खड़ा होने
के लिए अपने को कुर्बान कर दिया। तमाम अन्धेरो के बीच आशा के दीप आज भी टिमटिमा
रहे हैं । यही आशा के दीप रक्षा बन्धन जैसे पर्वो को आज भी जीवित रखे है ।
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