हिंसा के परतों के बीच “तितली”
जावेद अनीस
जौहर,चोपड़ा और
बड़जात्या की फिल्मों में अमूमन सुखी और संपन्न परिवारों के बारे में बताया जाता है,जहाँ नैतिकता व
संस्कारों का ध्यान हद दर्जे तक रखा जाता है.वहां कोई टकराहट नहीं होती है और ये हर तरह से एक आदर्श
परिवार होते हैं जहाँ सभी लोग खुश रहते हैं. यह सब दर्शकों को अच्छी फीलिंग देती है लेकिन कनु बहल की फिल्म “तितली” का परिवार वास्तविक है, यह दिल्ली के एक कार लूटने वाले परिवार
के बारे में है। यहाँ जिंदगी कठोर है और सब कुछ वास्तविक लगता है,आपका साबका
गालियों,हिंसा,क्रूरता से पड़ता है. “तितली” एक डार्क और जागरूक फिल्म
है जो आपको समाज के अंधेरे कोनों की तरफ ले जाती है. यह आपको सोचने और विचलित होने के लिए मजबूर करती है. “तितली” की खासियत यह है कि वो हिंसा को महिमामंडित नहीं करती है और ना ही
हिंसा दिखाने के लिए इसे हथियारों का सहारा लेना पड़ता है, यह हिंसा को पूरी ईमानदारी से उसके
स्वाभाविक रूप में दिखाती है. क्रूरता और हिंसा इसके किरदारों में ही बिखरे हैं. हम अपने
फिल्मों में आस-पास
के अंधेरे कोनों को परदे पर
देखने को आदी नहीं हैं, लेकिन इसमें दहला देने वाले दृश्य हैं.यह महिलाओं की घटती
संख्या पर आई फिल्म “मातृभूमि' की याद दिलाती है.
शायद यह हिंदी फिल्मों का संतुलित दौर है, जहाँ एक तरफ घोर अवास्तविक
फिल्में बन रही हैं तो दूसरे छोर पर “मसान” और “तितली” जैसी रीयलिस्टिक फिल्में भी
बनाई जा रही है, एक भरपूर पैसा कमाती है तो दूसरी पर्याप्त दर्शक और भरपूर तारीफ
बटोरती है. इधर तितली जैसी फिल्मों के लिए इंडस्ट्री के बड़े नाम और दिग्गज किस तरह
से अपना दरवाजा खोलने के लिए मजबूर हुए हैं उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता
है कि ‘तितली’ के निर्माताओं में दिबाकर
बैनर्जी के साथ–साथ यशराज फिल्म्स का नाम
भी शामिल है और हाँ ‘तितली’ का टैगलाइन ‘हर फैमिली, फैमिली नहीं होती”आदित्य चोपड़ा ने दिया है.
यह पहले ही कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में नाम कमा
चुकी है, यह एक महानगर की कहानी है
जहाँ कई छोटे शहर, कस्बे और गावं बसते हैं, जिनमें से ज्यादातर विकास
की एकतरफा दौर में पीछे रह गये हैं, कहानी इन्हीं में से किसी ऐसे परिवार है जो अभावों में रह रहा है और अपने आप
को जिंदा रखने के लिए हिंसा और लूट का सहारा लेता है. कहानी दिल्ली के एक परिवार
की है, जिसमें डैडी (ललित बहल)
अपने तीन बेटों विक्रम (रणवीर शौरी), बावला (अमित सयाल) और
तितली (शशांक अरोड़ा) के साथ रहते हैं. परिवार मुख्य रूप से लूटमार का काम करता है, इस काम में घर के दोनों
बड़े भाई विक्रम और प्रदीप आगे बढ़ चुके हैं जबकि छोटा भाई तितली इन सब से बाहर निकल
कर कोई और रास्ता चुनना चाहता है. इस बीच तितली का ध्यान काम पर लगाने के लिए उसकी
शादी नीलू (शिवानी रघुवंशी) से कर दी जाती है. लेकिन नीलू की यह शादी जबरदस्ती हुई
वह तो प्रिंस को चाहती है।तितली
और नीलू दोनों को यहाँ से आजाद होना है, इसलिए वे साथ मिल कर काम करने का फैसला करते हैं जिससे उन्हें इस अनचाही जिंदगी से आजादी मिल सके।
फिल्म की बड़ी खासियत इसके किरदार हैं,सभी किरदार वास्तविक लगते
हैं और कलाकारों के चुनाव में नाक की बनावट की समानता तक का ध्यान रखा गया है
जिससे सभी किरदार एक परिवार के सदस्य लगें, कहीं भी कोई अदाकारी करता
हुआ नहीं लगता है, रणवीर शौरी को अरसे बाद कुछ मनमाफिक काम मिला है और इस मौके
का उन्होंने भरपूर इस्तेमाल किया है. बावला के किरदार में अमित सयाल बेहतरीन हैं
इससे पहले वे ‘लव सेक्स और धोखा’ में अपना कमाल दिखा चुके
है. लेकिन हैरान तो तितली
के किरदार में शशांक अरोड़ा और नीलू के किरदार में शिवानी रघुवंशी करते हैं, दोनों की ही
यह पहली फिल्म है और दोनों को ही इस तरह के जीवन का बिलकुल भी अनुभव नहीं है, ये दोनों अपनी ख़ामोशी से भी प्रभावशाली अभिनय का
प्रदर्शन करते
हैं. शशांक अरोड़ा एक इंटरव्यू में
बता चुके हैं कि किस तरह से उन्हें तितली के किरदार की तैयारी के लिए मुंबई के
बीच पर शौच करना पड़ा और अपने आप को ह्यूमिलीऐटिड महसूस करने के लिए अपने गालों पर
हवाई चप्पल से मार खानी पड़ी थी.
कनु बहल लम्बे समय तक दिबाकर बैनर्जी के सहायक निर्देशक के
रूप में काम कर चुके हैं,बतौर डायरेक्टर यह उनकी पहली फिल्म है, ‘तितली’ के रूप में शुरुवात करते
हुए वे अपने इरादों को जाहिर कर चुके हैं. विपरीत धारा के फिल्मकारों के रूप में
एक और सशक्त नाम शामिल हो चूका है. कनु बहल और “तितली” दोनों को नजर अंदाज करना मुश्किल है।
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