बहुमत की आस्था, बहुमत का धर्म......... अंततः बहुमत

"न लुटता दिन को तो, रात को क्यों बेखबर सोता 
रहा खटका न चोरी का, दुआ देता हूँ रहजन को "
                                                         "ग़ालिब"
सच ही है,रात को चैन से सोया ही जाएगा जो लुटेरे दिन को ही लूट गए सब.और अधिक आशा लगाना बेमानी है.खैर...!!!
कहा जाता है, आस्था पर तर्क नहीं,लेकिन जितने तर्क आस्था के लिये दिए जा रहे हैं,जितने प्रमाण जुटाए जा रहे हैं, आस्था दर्शन के किसी सिद्धांत की तरह प्रतिपादित करने की कोशिश सी लगती है.और आस्था तर्क से ही नहीं बस बहुमत से भी तय होगी.बहु प्रतीक्षित अयोध्या फैसले का इंतज़ार भी जैसे ग़ालिब की भाषा में रात में बेखबर सोना ही है,जब सब कुछ सुबह ही लुट गया था.राम जन्मभूमि के फैसले के बाद अपने आनंद को समाहित नहीं करने वाले चाहे हिन्दू महासभा के रविशंकर हों या आर एस एस के भागवत साहब,शांति की अपील देते नज़र आ रहे हैं. फैसले के पहले इनकी विनम्रता और शांति की अपीलों में धमकियां नज़र आती हैं,और फैसले के बाद शब्दों से फूटता दंभ और आनंद.अंततः  कोई हैरानी की बात नहीं की १०००० पृष्ठों की इस रिपोर्ट में निर्मोही अखाड़े के मोह को भी संतुष्ट किया गया एवं रामलला मूर्ति की प्रस्थापना को आस्था से जोड़कर उसकी रक्षा हेतु प्रतिबद्ध होता कानून संविधानगत नहीं आस्थागत फैसले दिया करेगा.४९ में अचानक से रामलला प्रकट हो जाना,और ६० साल बाद मस्जिद के नीचे अचानक पुरातन वस्तुओं का मिलना,उनका राम मंदिर से सम्बंधित साबित हो जाना कोई अचरज नहीं है.और ये हैरानगी का सिलसिला बहुमत ने तैयार किया यह १९४९ में भी था,१९९२ में भी था २०१० में भी हो गया.सवाल तो हजारों उठाए जा सकते हैं किन्तु कानून के पास जाने से पहले निश्चित हो लें कि सवाल तर्कबद्ध न हो आस्थागत हो,कानून आपकी ज़रूर मदद करेगा,या कानून न सही कानून के पीछे बैठे बहुमत वर्ग आपका फैसला करेगा और बहुमत सिर्फ हिन्दू होता है.
 ___________________________

नहीं ऐसा कभी नहीं हुआ
आदमी और कबूतर ने एक दूसरे को नहीं देखाऔरतों ने शून्य को नहीं देखाकोई द्रव यहाँ बहा नहीं...


नहीं कोई बच्चा यहाँ
सरकंडे
की तलवार लेकर
मुर्गी
के पीछे नहीं भागा
बंदरों के काफिलों ने कमान मुख्यालय पर डेरा नहीं डाला
मैंने सारे लालच सारे शोर के बावजूद केबल कनेक्शन
नहीं
लगवाया
चचा
के मिसरों को दोहराना नहीं भूला
नहीं
बहुत सी प्रजातियों को मैंने नहीं जाना जो सुनना चाहा
सुना
नहीं,
गोया
बहुत कुछ मेरे लिए नापैद था


नहीं
पहिया कभी टेढा नहीं हुआ
नहीं
बराबरी की बात कभी हुयी ही नहीं
{हो सकती भी थी }

उर्दू
कोई ज़बान ही थी
अमीर
खानी कोई चाल ही थी


मीर
बाक़ी ने बनवाई जो
कोई
वह मस्जिद ही थी



नहीं
तुम्हारी आंखों में
कभी
कोई फरेब ही था
*******************
युवा संवाद जबलपुर   

5 comments:

  1. हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है दोस्त.. ऐसे ही लिखते रहिये..

    ReplyDelete
  2. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.

    ReplyDelete
  3. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete

  4. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई
    ब्लाग जगत में आपका स्वागत है
    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    भिलाई में मिले ब्लागर

    ReplyDelete