अब तू आज़ाद है विनायक


-प्रशांत कुमार दुबे


वैसे भी तू जेल के भीतर भी तो आज़ाद ही था 
कौन भला रोक पाया है, लोगों को बिनायक होने से 
ना कोई सरकार ना ये चंद टटपुन्जिये |
दरअसल बिनायक होने के लिए बिनायक बनना पड़ता है 
जो इनके बस की बात नहीं 
तो ये चीत्कारते हैं, चीखते हैं और बरगलाते हैं लोगों को 
वैसे हम सब भी बिनायक ही हैं 
जब तू अन्दर था बिनायक तो हम बाहर बिनायक थे 
हमने तख्तियों पर लिखा था बिनायक 
कि यदि 
आदिवासियों के दुःख दर्द मैं शामिल होना जुर्म है 
तो हम सब बिनायक हैं 
यदि केवल नक्सली साहित्य पढ़ लेने से तू माओवादी हो गया 
तो हम सब बिनायक हैं 
और हमें बिनायक बनने के लिए 
किसी सरकार के सर्टिफिकेट की जरुरत नहीं | 
पर हम आज थोड़े खुश हैं क्यूंकि हमें देश मैं लोकतंत्र की 
हलकी ही सही, पर सौंधी सी खुशबू आई है 
पर ये भी हम नहीं भूले हैं कि 
यह देश हमारी भाषा मैं बात नही करता 
यह बहरी सरकारों और बहुत हद तक बाहरी न्याय व्यवस्था का देश है 
उसकी सामन्ती बोली है, उसकी पाखंडी बोली है 
पर अब जब तू भी आजाद है 
तो 
हम मिलकर इसे हमारी भाषा मैं बात करना सिखायेंगे 
बच्चा-बच्चा देश मैं अब बिनायक होगा 
क्यूंकि तू अब आज़ाद है |

1 comment:

  1. vinayak sen ki aazadi......aam Logon k liye khushi ki baat h...........Janta ki aawazon k samne shashan ko jhukna hi hota h.....aur jo shashan lachila nahi hota vo toot jaata h...khatm ho jaata h ////// ek baat aur :- Vinayak sen - Jinda-baad !

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