मौलाना आपकी जन्नत का रास्ता बड़ा दोज़खी है


अंसारी फरहाना
Statue of the Liberated Woman  removing her headscarf, Baku, Azerbaijan
मेशा की तरह मौलाना साहब को कौम के हाल की बड़ी फ़िक्र है लेकिन आजकल वो मुस्लिम औरतों के लिए बड़े फ़िक्र में हैं और वो कौम को जगाना चाहते हैं की औरतो की पोजीशन बहुत खराब है हमने सोचा आज हमारे हक की बात है थोडा सा जागने में आखिर बुराई क्या है ?


मौलाना साहब ने तक़रीर शुरू की और वही हो गया जिसका मुझे डर था, उन्होंने कहा की एक मुसलमान लड़की के लिए मज़हबी अरकान के आलावा भी ये जानना बेहद जरुरी है की उसका शोहर उसका हाकिम होता है और अपने शोहर के लिए लड़की के कुछ अहम फराइज हैं जिनको हर लड़की को पूरा करना चाहिए क्योंकि आदम को जन्नत से अम्मा हव्वा ने निकलवाया और औरत हर बुरी वजह की जड़ है पहला कत्ल भी औरत की वजह से हुआ, यकीं हो तो हदीस देख , इसलिए जरुरी है की एक लड़की अपने शोहर के लिए अपनी ड्यूटीज को जाने "एक अच्छी बीवी वही होती है जो अपने शोहर के लिए खाना पकाए, उसका घर साफ़ रखे, उसी के लिए उसका हर साज सिंगार हो और उसकी खूबसूरती केवल उसके शोहर के लिए ही हो वो उसकी खिदमत करे और शोहर को जब भी बीवी की ज़रूरत हो तो उसके लिए हर वक्त तैयार रहे हद ये है की अगर आप नमाज़ पढ़ने जा रही है और आपके शोहर को बीवी की ज़रूरत है तो आपका फर्ज बनता है की पहले आप अपने शोहर की ज़रूरत पूरा करे, एक अच्छी  बीवी अपने शोहर के बच्चो की अच्छी परवरिश करने वाली होती है और अगर कोई भी इन सब अरकानो को अदा करेगी तो इंशाल्लाह अल्लाह तबारक ताला उसको जन्नत में जगह देंगे''.
तकरीर में मौजूद सभी औरत मर्द मौलाना साहब से सहमत थे और माशाल्लाह और बेशक की आवाजें गूंज रही थी इस मंज़र से रूबरू होकर हमें अपने मरहूम दादे अब्बा की बचपन की एक कहानी याद गयी.
दो दोस्त थे, पहले ने दूसरे से कहा की कव्वाली क्या होती है हमको भी सुननी है दूसरे दोस्त पहले दोस्त को महफ़िल में गया और वहाँ बैठा दिया कव्वाली शुरू हो गयी थोड़ी देर बाद पहले वाले ने दूसरे से कहा-भाई कव्वाली तो दिखा दो इस पर दूसरा बोला भाई यही कव्वाली है ये सुनते ही पहला दोस्त जोर जोर से चिल्लाने लगा, वाह वाह वाह. यही हाल वहाँ मौजूद लोगो का था.
अब सवाल उठता है की इस तरह की बातो के पीछे मकसद क्या होता है ? इसका एक ही मकसद है की औरतों को दिमागी तौर पर ऐसा बनाया जाए की उनको अपने वजूद का एहसास हो और इसके लिए मज़हब सबसे अच्छा रास्ता है क्योंकि वहाँ तो "अक्ल का दखल ही नहीं है " ये गुलामो की तिजारत है जहाँ पर मुसलमान औरतो को उनके शोहर का गुलाम बनाने का कारखाना इजाद किया जा रहा है ये औरत को उसके वजूद को सिर्फ और सिर्फ एक जिस्म तक सिमित करने की साज़िश है जो की उसके शोहर की ख्वाहिशो को पूरा करके जन्नत कमाने का जरिया बना रहे और उसके अपने वजूद की कोई गुंजाईश ना रहे.
बचपन से सुनती आई हूँ "माँ के पैर के नीचे जन्नत होती है लेकिन इससे पता चल जाता है की एक बीवी शोहर के पाँव के नीचे ही रह गयी कई लोगो को तकलीफ होना लाज़मी है पर हकीकत यही है की आप गुलाम तैयार कर रहे हैं और गुलाम बीवियों की औलादे भी गुलाम ही पैदा होंगी.
उत्पादन के दवारा उत्पादक के शोषण का ये नज़ारा हर मज़हब में मौजूद है.



1 comment:

  1. dil me hai khvaahish-e-huur-o-jannat aur zaahir me shauq-e-ibaadat/ shaiKh jii aap jaise Allah vaalon se Allah bachaaye

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