मुसलमानों का सबसे बुरा दुश्मन



अकबरुद्दीन ओवैसी आप मुसलमानों के ऐसे दुश्मन हैं जो उनकी ही आस्तीन में रह कर उन्हें ही डस लेता है.भारत के 25 करोड़ मुसलमानों को यहां के सौ करोड़ हिंदुओं से भिड़ाने की बात कह कर आपने मोहम्मद अली जिन्ना की याद दिला दी है.तभी तो शायर जावेद अख्तर ने आपको “मुसलमानों का सबसे बुरा दुश्मन” तक कह दिया.मुझे ही नहीं भारत के करोड़ों मुसलमानों को जावेद अख्तर की बात सही लगी.



आपका हावभाव आपका आचरण जिन्ना की दूसरे फेज की राजनीतिक पारी की तरह है.आप मत भूलिए कि जिन्ना ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए देश के टुकरे करवाने में अपना किरदार निभाया था. बेशक इस काम में सावरकर टाइप हिंदू फंडामेंटलिस्ट भी शामिल थे. पर आज का भारत 1947 का भारत नहीं है. आप भले ही हैदराबाद के मुसलमानों के कुछ हिस्से को वरगला सकते हों लेकिन देश के करोड़ो मुसलमान आपकी जागीर नहीं हैं.

जिन्ना की राह पर अकबरुद्दीन ओवैसी
आप उस पार्टी से संबंध रखते हैं जिसकी नीव आपके दादा अब्दुल वहीद ओवैसी ने रखी थी.ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहदुल मुसलेमीन( एएमआईएम) को आपका खानदान एक लिमिटेड कम्पनी की तरह पिछले पचास-साठ साल से चला रहा है. आप यानी आपका ओवैसी खानदान महाराष्ट्र के ठाकरे खानदान की तरह ही है. आप के दादा की मौत के बाद आपके वालिद सलाहउद्दीन ओवैसी ने उनकी जागीर को आगे बढ़ाया. आपके वालिद भले ही मुसलमानों की बात करते थे, कभी कभी हिंदुओं के खिलाफ बोलते और गरजते भी थे पर आपने तो सारी हदें ही पार कर दी हैं. आप जैसे लोग अपनी मांद से निकल कर गरजते हैं और फिर उसी में छुप जाते हैं.आप हैदराबाद के बाहर देख नहीं सकते, ठीक उसी तरह जैसे राज ठाकरे मुम्बई के शिवाजी पार्क से उत्तरभारतीय और बिहारी हिंदुओं और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलते हैं लेकिन मुम्बई से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करते. इस देश का आम आदमी समझ चुका है कि आप और ठाकरे जैसे लोग आपस में मिले हुए होते हैं. एक मुसलमान और उत्तरभारत के बिहारियों के खिलाफ जहर उगलता है तो दूसरा सौ करोड़ हिंदुओं के खिलाफ.
अकबरुद्दीन ओवैसी. सुनिए.देश को समझिए.आपका खानदान सदियों से जागीरदारी करता रहा है पर मुसलमानों को जागीर समझने की मानसिकता से बाहर निकलिए.आपके वालिद ने जो राजनीतिक जागीर छोड़ी है उसे आप और आपके बड़े भाई असदुद्दीन ओवैसी ढो रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे राज और उद्भव नफरत की जागीर के वारिस बने बैठे हैं.आपकी राजनीति का कुछ लाभ हैदराबाद के 42 प्रतिशत मुसलमानों में से कुछ को तो मिलता होगा पर देश के बाकी मुसलमानों का नाम लेकर हिंदुओं को सबक सिखाने की जो आप बात कहते हैं, उससे 25 करोड़ो मुसलमानों का कोई लेना-देना नहीं है.एमआईएम के छह-सात विधायकों से आप आंध्रप्रेदेश की एसम्बली को कुछ हद तक प्रभावित तो कर सकते हैं पर आंध्रप्रदेश की सीमा से बाहर न तो आपका कोई वजूद है और न ही आपकी पार्टी का.क्योंकि आम हिंदू और आम मुसलमान न तो लड़ना चाहता है और न ही एक दूसरे से नफरत करना जानता है.ये आप जैसे लोग हैं, बुखारियों का कुनबा है जो देश के मुसलमानों को नफरत सिखाते हैं.आपकी परम्परा परवीण तोगड़िया, अशोक सिंघल और बुखारियों से जुड़ती है.

बड़े मियां असदुद्दीन भी कम नहीं
आप अभी चालीस के हैं. आने वाले तीन चार दशक आपके सामने हैं.आने वाले इस युग को नफरत के जहर से विषैला बनाने की कोशिशों से बाज आइए.
बुखारी-तोगड़िया की परम्परा के वाहक
हां मैं यह मानता हूं कि आपके कुनबे ने हैदराबाद में दो चार-दर्जन स्कूल, कुछेक अस्पताल, कुछ यतीमखाने और गरीब महिलाओं के लिए सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण केंद्र खोल कर कुछ अच्छे काम भी किये हैं.आप ओवैसी हासपिटल के प्रबंध निदेशक भी हैं. जहां रोगियों का इलाज भी करवाते हैं.सब ठीक है.पर इसका मतलब यह नहीं कि उसके बदले में हैदराबाद से सटे आदिलाबाद के निर्मल टाउन में 15-20 हजार मुसलमानों के मजमे में हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलिए और अपने कारिंदों से “नारा-ए-तकबीर अल्लाह हो अकबर” की सदा बुलंद करवाकर मजहबी ब्लेकमेल करिए. उस दिन यानी 24 दिस्मबर को जिस तरह शेरवानी के दामन को लहरा लहरा कर आप गरज रहे थे, आपका अंदाज जिन्ना से मिलता-जुलता लग रहा था. आप गफलत में हैं कि पुलिस को हटा लिया जाये तो आप सौ करोड़ हिंदुओं को सबक सिखा दीजिएगा.हिंदू तो दूर, खुद मुसलमान आप जैसे लोगों को लोकतांत्रिक तरीके से सबक सिखा देंगे. आप हैदराबाद की अपनी मांद से निकल कर तो देखिए.
निजी जीवन में भी हिंसा से वास्ता
आपका सार्वजनिक जीवन 24 दिसम्बर से पहले भी उजागर हो चुका है.पर निजी जीवन भी आपका हिंसक ही रहा है.आपकी निजी दुश्मनी मोहम्मद पहलवान से रही है.2011 में आप पर चाकुओं और गोलियों से हमला भी किया गया था.आपकी दुश्मनी प्रोपर्टी डीलरों से रही है. जब आप की निजी दुश्मनी खुद मुसलमान से इस स्तर पर रही है कि गोली-बारूद तक मामला पहुंच जाये तो आप गरीब मुसलमानों के हक की लड़ाई ईमानदारी से कभी नहीं लड़ सकते. आप तसलीमा नसरीन के खिलाफ मौत का फतवा जारी करते हैं.नसरीन को हैदराबाद आने से रोकते हैं.मुसलमानों के जज्बात से खिलवाड़ करते हैं.
आपको मश्वरा है कि आप ऐसे बयानों और तकरीरों से बाज आइए.मुसलमानों के लीडर बनने का बड़ा शौक है तो गरीब और पसमांदा मुसलमानों की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करिए, जैसा कि कुछ हद तक आपके दादा जान और अब्बू जान ने किया था.

http://naukarshahi.in से साभार 

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