हिन्दुत्व आतंक पर खत्म न होता स्मृतिलोप

सुभाष गाताडे



"असीमानन्द जिस साजिश में शामिल था, धीरे धीरे उसका विवरण विस्तृत होता गया। हमारी तीसरी और चैथी मुलाका़त में, उसने मुझे बताया कि उसकी आतंकी गतिविधियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च नेतृत्व की- संघ के सुप्रीमो मोहन भागवत की सहमति प्राप्त थी, जो उन दिनों संगठन के जनरल सेक्रेटरी थे। असीमानन्द ने मुझे बताया कि भागवत ने इस हिंसा के बारे में कहा ‘‘यह बहुत महत्वपूर्ण है कि उसे अंजाम दिया जाए। मगर आप को ध्यान रखना होगा कि संघ का नाम कहीं इससे न जुड़ें।
असीमानन्द ने मुझे जुलाई 2005 में सम्पन्न एक मीटिंग के बारे में बताया।....मन्दिर से कई किलोमीटर दूर नदी किनारे लगे तम्बू में, भागवत और कुमार असीमानन्द और उसके सहयोगी सुनिल जोशी से मिले थे। जोशी ने भागवत को देश के कई हिस्सों में मुसलमानों को निशाने पर लेने के बारे में बताया। असीमानन्द के मुताबिक, संघ के दोनों नेताओं ने इसके प्रति अपनी सहमति जता दी, और भागवत ने उसे बताया, ‘‘आप इस योजना पर सुनिल के साथ काम कर सकते हैं। हम इसमें शामिल नहीं होंगे, मगर आप अगर इसे कर रहे हैं, तो आप हमें अपने साथ समझ सकते हैं।’’

(रिपोर्टेज: द बिलीवर: स्वामी असीमानन्दस रेडिकल सर्विस टू द संघ, लीना गीता रघुनाथ, 1 फरवरी 2014, कैरवान मैगजि़न,Caravan Magazinehttp://www.caravanmagazine.in/reportage/believer ½

अपने चर्चित उपन्यास आलिवर्स टिवस्टमें चार्लस डिकन्स द्वारा प्रयुक्त यह धारणा कि कानून मूर्ख होता हैया कानून गधा होता है’, आज बिल्कुल अलग सन्दर्भ में दक्षिण एशिया में लागू होती दिखती है। और इसका सबसे बेहतर प्रमाण हिन्दुत्व आतंक की परिघटना की मौजूदा परिणति में नज़र आ रहा है।

इस काम की योजना बनानेवालों को, मास्टरमाइंड कहे जा सकनेवाले लोगों को और इसके लिए धन मुहैया करनेवाले व्यक्तियों को आज भी जिस तरह कानून के शिकंजे में लाया नहीं गया है, जिस तरह एक के बाद एक मामलों में इसके अभियुक्तों को बरी किया जा रहा है, जिस तरह आज केन्द्र में सत्तासीन एक सेक्युलर कहलानेवाली सरकार ने ऐसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहे फासीवादी संगठनों पर पाबन्दी लगाने से इन्कार किया है और जितनी असम्पृक्तता के साथ मीडिया ने - जो अपने आप को लोकतंत्रा का प्रहरी बताता है - गणतंत्रा की बुनियाद पर आघात करनेवाले इस खतरे की अनदेखी की है, वह अभूतपूर्व है।

और विचित्र लेकिन सत्य की श्रेणी में शुमार किए जा सकनेवाले लेफ्टनन्ट कर्नल पुरोहित जैसे मामलों के बारे में जितना कम कहा जाए उतना ही ठीक है। यह शख्स, जो मिलिटरी इंटेलिजेन्स के साथ काम करता था, जो विगत पांच साल से अधिक समय से कई सारे आतंकी हमलों के अभियुक्त या मास्टरमाइंड के तौर पर जेल में पड़ा है, यह ऐसे काण्ड रहे हैं जिनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई कार्यकर्ता एवं अन्य हिन्दुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ता भी शामिल रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद इसे सेना से निलम्बित नहीं किया गया है। और तो और इसे आज भी पूरी तनखाह मिल रही है। (एक क्षेपक के तौर पर यहां यह बताना मुनासिब होगा कि यह सूचना पुरोहित के सहअभियुक्त रमेश उपाध्याय - जो खुद सेना से रिटायर्ड है - द्वारा सूचना अधिकार के तहत हासिल सामग्री के तहत प्राप्त हुई है।) इतनाही नहीं आला अदालत ने आतंकवादी घटनाओं की जांच के लिए विशेष तौर पर गठित नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी को पुरोहित से पूछताछ करने पर पाबन्दी लगा रखी है। मगर फिलवक्त़ एजेण्डा में सबसे ऊपर है यह ताज़ा खुलासा कि हिन्दुत्व ब्रिगेड के सर्वोच्च नेता न केवल इस हिंसक दौर के बारे में जानते थे बल्कि वही उसके संरक्षक भी थे।

अपनी रिपोर्ताज द बिलीवर: स्वामी असीमानन्दस रेडिकल सर्विस टू द संघमें लीना गीता रघुनाथ ने कैरवाननामक अंग्रेजी पत्रिका के फरवरी 2014 के अंक में इसके बारे में विवरण प्रस्तुत किए हैं। http://www.caravanmagazine.in/reportage/believer ) गौरतलब है कि दो साल के अन्तराल में असीमानन्द के साथ उसने जो चार साक्षात्कार लिए - जिनकी लम्बाई 9 घंटे और 26 मिनट तक है - उसी के जरिए यह बात सामने आयी है।

श्री अनंत नाथ और डा विनोद के जोस - जो कैरवान के सम्पादक और कार्यकारी सम्पादक हैं - द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक

असीमानन्द द्वारा उद्घाटित संवेदनशील जानकारी की राष्ट्रीय अहमियत को देखते हुए, जो उन साक्षात्कार में उपलब्ध हुई है, जो असीमानन्द की पूरी सहमति से लिए गए हैं, हम लोगों ने इस पूरी जानकारी को लोगों के सामने उपलब्ध करने का निर्णय लिया है, यह जानकारी टेप रिकार्ड और मोहन भागवत को लेकर हुई बातचीत के विवरण के रूप में हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है।’’

विदित हो कि असीमानन्द, जिसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ अपने बचपन से ही काम करना शुरू किया और बाद में जिसने संघ के आनुषंगिेक संगठन वनवासी कल्याण आश्रमको अपने काम का फोकस बनाया, वह इन दिनों आतंकी घटनाओं में शामिल होने के आरोपों के चलते जेल में बन्द है। अजमेर बम ब्लास्ट, मक्का मस्जिद बम ब्लास्ट और समझौता एक्स्प्रेस बम धमाके के आरोपी असीमानन्द पर हत्या, आपराधिक षडयंत्रा और देशद्रोह के आरोप लगे हैं। उसका नाम दो अन्य आरोपपत्रों में भी शामिल है, मगर उसे अभी तक अभियुक्त नहीं बनाया गया है। कुल मिला कर इन पांच हमलों में 119 लोग मारे गए हैं।

यह शख्स जो लेखक के मुताबिक हिन्दू अतिवादी आतंकवाद का शायद सबसे प्रमुख चेहरा हैवह इन दिनों उसी कोठरी में बन्द है जिसमें गोपाल गोडसे को रखा गया थाऔर उसके कथन के मुताबिक ‘‘वह आईडी के निर्माण के लिए उसने फण्ड उपलब्ध कराए हैं, योजना बनायी है और निशाने भी तय किए हैं, और जिन लोगों ने बम रखे हैं उन्हें उसने शरण दी है और उनकी सहायता की है।
संघ के सुप्रीमो मोहन भागवत और उसके एक नेता इंद्रेश कुमार के साथ अपनी बैठकों का विवरण देते हुए उसने लेखक को बताया:

‘‘फिर उन्होंने मुझे बताया, ‘‘स्वामीजी, अगर इसे अंजाम देंगे तो यह ठीक होगा। आप के साथ कोई गड़बड़ी नहीं होगी। क्रिमिनलायजेशन नहीं होगा। अगर आप इसे करते हैं, फिर लोग यह नहीं कहेंगे कि हम लोगों ने अपराध करने के लिए अपराध किया। उसे विचारधारा से जोड़ा जाएगा। यह हिन्दुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आप उसे जरूर करें। आप को हमारा आशीर्वाद है’’

वह आगे बताती हैं कि किस तरह

जांच एजेंसियों द्वारा दाखिल आरोपपत्रा बताते हैं कि इन्दे्रश कुमार ने इन साजिशकर्ताओं को नैतिक और भौतिक समर्थन प्रदान किया, मगर वह भागवत जैसे किसी वरिष्ठ को इसमें शामिल नहीं करते हैं। हालांकि सीबीआई ने कुमार से एक बार पूछताछ की, मगर बाद में इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अपने हाथ में लिया, जिसने फिर साजिश के इस पहलू को असीमानन्द और प्रज्ञा सिंह से आगे नहीं बढ़ाया है।

यहां इस बात का उल्लेख महत्वपूर्ण है कि असीमानन्द द्वारा निभाए गए आपराधिक-आतंकी भूमिका के बावजूद, आज तक न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और न ही भाजपा ने उससे अपने आप को अलग किया है और न ही संघ के प्रति दी गयी सेवाओंको लेकर उसे दिए गए स्पेशल गुरूजी सम्मान’ - जो उसे गोलवलकर की जनमशती के अवसर पर 2005 में दिया गया था - को उससे वापस लिया है। असीमानन्द ने कैरवानको यह भी बताया कि संघ से जुड़े वकील उसे कानूनी सहायता प्रदान कर रहे हैं।

वैसे यह कोई पहली दफा नहीं है कि संघ के नेताओं पर ऐसे आरोप लगे हैं। संघ के तमाम कार्यकर्ता और अन्य हिन्दुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ता जो इन दिनों विभिन्न आतंकी घटनाओं में अपनी संलिप्तता के चलते सलाखों के पीछे हैं, उन्होंने जांच एजेंसियों को संघ के वरिष्ठ नेताओं के साथ अपनी अन्तक्र्रिया के बारे में - विशेषकर इन्द्रेश कुमार के साथ अपनी बातचीत के बारे में या कथित तौर उसने दिए निर्देश, यहां तक कि इन आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए की फण्ड की व्यवस्था - आदि के बारे मे बताया है। लेकिन यह शायद पहली दफा है कि मोहन भागवत का नाम ऐसी घटनाओं से जुड़ा है।

हम सभी इस बात के गवाह रहे हैं कि किस तरह जब इन्द्रेश कुमार के खिलाफ जब पहली दफा 2010 में आरोप लगे थे, तब संघ की क्या प्रतिक्रिया रही थी और किस तरह पूरे संघ ने उसका साथ दिया। किस तरह देश के अलग अलग हिस्सों में संघ की पहल पर हिन्दू विरोधीसंप्रग सरकार की मुखालिफत करने के लिए धरनों का आयोजन हुआ और किस तरह अभूतपूर्व कहे जा सकनेवाले एक कदम में खुद मोहन भागवत एक धरने में शामिल हुए।

इन धरनों का असर यही रहा कि इन्द्रेश कुमार की आसन्न गिरफ्तारीकी ख़बरें लगभग विलुप्त हो गयीं। न जांच एजेंसियां इस बात में रूचि लेती दिखीं और न ही केन्द्र में सत्तासीन सरकार इस बात के लिए प्रयत्नशील दिखी कि इस जांच को अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचा दें, भले ही 2010 को कांग्रेस पार्टी के बुरारी अधिवेशन में कांग्रेस ने यह ऐलान किया था कि संघ के कथित आतंकी रिश्तों के बारे में समग्रता में जांच की जाएगी।

लता आगे बताती हैं कि: “जांच एजेंसी के साथ सक्रिय एक अधिकारी ने, नाम न लेने की शर्त पर, मुझे गृहमंत्रालय में प्रस्तुत एक गोपनीय दस्तावेज का देखने की अनुमति दी। इस रिपोर्ट में संघ के नेताओ को कारण बताओ नोटिस जारी करने के बारे में लिखा गया था, यह पूछते हुए कि उनके खिलाफ जो सबूत उपलब्ध हैं, उसे देखते हुए उन पर पाबन्दी क्यों न लगायी जाए। गृहमंत्रालय ने इस सिफारिश के बारे में अभी आगे कार्रवाई नहीं की है।’’

इन मामलों की जांच आगे ले जाने में राष्ट्रीय जांच एजेंसियों को जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उसका भी वह उल्लेख करती हैं। उदाहरण के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनिल जोशी हत्याकांड में प्रज्ञा सिंह से पूछताछ करने से राष्ट्रीय जांच एजेंसी को इस आधार पर रोका कि इस सम्बन्ध में प्रथम सूचना रिपोर्ट तब जारी की गयी थी जब एजेंसी का अभी गठन नहीं हुआ था।

फिलवक्त इस बात की भविष्यवाणी करना मुश्किल है कि यह सभी मामले कितने दिन चलेंगे ?

मगर सबसे अहम सवाल यही है कि क्या इस मामले में अब तक चल रही ढिलाई को त्याग कर कांग्रेस के नेतृत्ववाली संप्रग सरकार इतना साहस बटोरेगी कि हिन्दुत्व आतंक के प्यादों तक सीमित रहने के बजाय उसके असली कर्णधारों पर हाथ डालेगी ? हम याद कर सकते हैं कि वर्ष 2010 में कांग्रेस के अग्रणी नेता राहुल गांधी ने कहा था

‘‘यहां की सरजमीं पर पैदा अतिवाद, जो पाकिस्तान या अन्य इस्लामिस्ट समूहों द्वारा हो रहे आतंकी हमलों की प्रतिक्रिया पर आकार लेता दिख रहा है, एक वास्तविक खतरे के तौर पर मौजूद है और जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। (इंडियन एक्स्प्रेस, 18 दिसम्बर 2010)

हम कह सकते हैं कि सत्ताधारी पार्टी के नेतृत्वकारी हिस्से में जमीनी आतंकवादके बारे में स्पष्ट एहसास के बावजूद इसे काबू में करने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाए जा सके हैं।

इस समूची परिस्थिति में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि धर्मनिरपेक्ष और वाम ताकतें इस परिस्थिति के प्रति अपनी प्रतिक्रिया कैसे देती हैं। इसमें निर्णयकारी तत्व यही है कि वे महज घरानेशाहीऔर उसके लग्गूभग्गूओं तक अपनी आलोचना को सीमित रखेगी या वे इस तरह रणनीति बनाएगी कि गणतंत्रा की बुनियाद को ही खोखला करने में आमादा बहुसंख्यकवादी ताकतों को निशाने पर लाया जा सके।

English version of the article Here

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Subhash Gatade is a New Socialist Initiative (NSI) activist. He is also the author of Godse's Children: Hindutva Terror in India, and The Saffron Condition: The Politics of Repression and Exclusion in Neoliberal India.

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