जाति व्यवस्था का पुनरुत्थान वाया चेयरमैन भारतीय इतिहास शोध संस्थान
जावेद
अनीस
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"जाति
व्यवस्था प्राचीन समय में बहुत अच्छे से काम कर रही थी और हमें किसी
पक्ष से कोई शिकायत नहीं मिलत, .इसे शोषक सामाजिक व्यवस्था के रूप में
बताना एक गलत व्याख्या है।' यह विचार हैं प्रो. वाई सुदर्शन राव के जो वारंगल स्थित काकातिया युनिवर्सिटी के इतिहास विभाग
के प्रोफेसर रहे हैं ,नयी सरकार द्वारा हाल ही में ह्न्हें आईसीएचआर यानी भारतीय
इतिहास शोध परिषद जैसी महत्वपूर्ण संस्था
का अध्यक्ष नियुक्ति किया है, जिसका कि अकादमिक क्षेत्र में खासा विरोध हुआ और इस
पद के लिए उनकी योग्यता पर सवाल खड़े किये गये। एक
इतिहासकार के रूप में उनकी ऐसी कोई उपलब्धि भी नहीं दिखाई पड़ती है जिसे याद रखा जा
सके।
वाई सुदर्शन राव ने वर्ष 2007 में लिखित
अपने ब्लॉग में जाति व्यवस्था की जमकर तारीफ करते हुए लिखा था
कि, यह कोई शोषण पर आधारित समाजिक और आर्थिक व्यवस्था नहीं है और इसे
हमेशा गलत समझा गया है। “इंडियन कास्ट सिस्टमः अ
रीअप्रेजल' शीर्षक लेख में सुदर्शन राव
ने जाति
व्यवस्था की उन तथाकथित खूबियों
की जोरदार वकालत की है जिनका कि उनके
हिसाब से पश्चिम
परस्त और मार्क्सवादी इतिहासकारों द्वारा
केवल निंदा ही किया जाता रहा है। उनका निष्कर्ष है कि प्राचीन काल में जाति
व्यवस्था बहुत बेहतर
काम कर रही थी,उस दौरान इसके
ख़िलाफ किसी पक्ष द्वारा
शिकायत का उदाहरण नहीं मिलता
है, इसे तो कुछ खास सत्ताधारी तबकों द्वारा अपनी सामाजिक
और आर्थिक हैसियत को बनाए रखने के लिए दमनकारी सामाजिक व्यवस्था के रूप में
प्रचारित किया गया। जाति व्यवस्था
की सारी बुराईयों
को भारत में तथाकथित मुस्लिम काल के सर मढ़ते हुए वे लिखते हैं कि कि
“अंग्रेजीदां भारतीय हमारे समाज के
जिन रीति रिवाजों पर सवाल उठाते हैं, उन बुराइयों
की जड़ें उत्तर भारत के सात सौ काल के मुस्लिम शासन में मौजूद थीं।“ सुदर्शन राव अपने लेख में
इस बात का उम्मीद जताते हैं कि , "भारतीय
संस्कृति के सकारात्मक पक्ष इतने गहरे हैं कि प्राचीन व्यवस्थाओं के गुण फिर से
खिलने लगेंगे।“ कुल मिलकर वे जाति-वयवस्था को सही
ठहराते हुए इसके पुनर्स्थापित करने की वकालत करते हुए नजर आते हैं। किसी ऐसे ऐसे व्यक्ति
को इंडियन काउंसिल ऑफ
हिस्टॉरिकल रिसर्च (आईसीएचआर) का चेयरमैन बनाया जो जाति वयस्था से सम्बंधित उन
विचारों को नए सिरे से स्थापित कराने का प्रयास करता है जिनसे आधुनिक भारत एक अरसा पहले पीछा छुड़ा चुका है एक गंभीर
मसला है। अपने हालिया साक्षत्कारों में उन्होंने महाभारत और रामायण
जैसे ग्रंथों की एतिहासिकता और कालखंड तय करने और उनसे जुडी घटनाओं, पात्रों,
तारीखों आदि को इतिहास के नजरिये से प्रमाणित करने को अपनी पहली प्रार्थमिकता
बताया है। जबकि देश के आला- इतिहासकार इस बात को बार – बार रेखांकित
कर रहे हैं कि इतिहास को आस्था पर नहीं बल्कि आलोचनात्मक अन्वेषण पर
आधारित होना चाहिए, ऐसे में सवाल उठाना लाजमी है क्या नयी सरकार द्वारा उन्हें
इन्हीं सब कार्यों के लिए आईसीएचआर अध्यक्ष चुना गया है ? सुदर्शन
राव के विचारों को हलके में नहीं लिया जा सकता
है आखिरकार वे भारतीय
इतिहास शोध संस्थान के अध्यक्ष हैं, जो कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उच्च शिक्षा
विभाग के अधीन काम
करने वाली एक एजेंसी है।
यह कोई इकलौता
मामला नहीं है, नयी सरकार के गठन के बाद लगातार ऐसे प्रकरण सामने आ रहे हैं
जो ध्यान खीचते हैं ,दरअसल मोदी सरकार के सत्ता में आते ही संघ परिवार बड़ी
मुस्तैदी से अपने उन एजेंडों के साथ सामने आ रहा है, जो काफी विवादित रहे है, इनका
सम्बन्ध इतिहास, संस्कृति,
नृतत्वशास्त्र, धर्मनिरपेक्षता तथा अकादमिक जगत में खास
विचारधारा से लैस लोगों की तैनाती से है।
हाल ही में इसी
तरह का एक और मामला सामने
आया था जिसमें तेलंगाना के एक भाजपा विधायक द्वारा टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को
“पाकिस्तानी बहु” का खिताब देते हुए उनके
राष्ट्रीयता पर सवाल खड़ा किया गया,
क्यूंकि उन्होंने एक पाकिस्तानी से शादी की है, दरअसल दो ग्रैंड स्लैम जीत चुकी
सानिया मिर्जा की पूरी दुनिया में श्रेष्ट भारतीय महिला टेनिस खिलाडी के रूप पहचान
तो है ही साथ ही साथ वे उन लाखों भारतीय मुस्लिम लड़कियों के लिए एक प्रतीक और प्रेरणाश्रोत
भी हैं जो शिक्षा, पोषण, अवसरों आदि के मामलों में बहुत पीछे हैं यहाँ यह याद दिलाना भी जरूरी
है कि सानिया कट्टरपंथी मुसलमानों को भी पसंद नहीं आती हैं, उनके स्कर्ट पहनने को
लेकर कई बार सवाल उठाया जा चूका है।
इसी कड़ी में गोवा के एक
मंत्री दीपक धावलिकर का वह बयान काबिलेगौर है जिसमें उन्होंने यह ख्वाहिश जतायी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी के नेतृत्व में भारत हिन्दू राष्ट्र बन कर उभरेगा, लगे हाथों गोवा के ही उप-मुख्यमंत्री
ने भी घोषणा कर डाली कि भारत तो पहले से ही एक हिन्दू राष्ट्र है।
समाचारपत्रों
में शिवसेना के एक सांसद द्वारा एक रोजेदार के मुंह में
जबरदस्ती रोटी ठूसे जाने की तस्वीरों की स्याही तो अभी तक सूखी नहीं है, यह घटना संविधान
के उस मूल भावना के विपरीत है जिसमें देश के सभी नागरिकों को गरिमा और पूरी आजादी
के साथ अपने-अपने धर्मों पालन करने की गारंटी दी गयी है।
गुजरात के सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में भगवा एजेंडा लागू किए जाने का वह मुद्दा भी सवालों के घेरे में है
जिसके तहत दीनानाथ बत्रा की विवादित किताबें अब विद्या भारती द्वारा
चलाये जा रहे सरस्वती बाल मंदिर स्कूलों
से निकल कर सरकारी शालाओं की तरफ कूच कर चुकी हैं, दीनानाथ बत्रा संघ से जुडी संस्थाओं , विद्या भारती और भारतीय शिक्षा बचाओ समिति के अध्यक्ष है। गुजरात राज्य
पाठ्य पुस्तक बोर्ड द्वारा मार्च 2014 में दीनानाथ बत्रा द्वारा लिखित आठ पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है और गुजरात
सरकार द्वारा एक सर्कुलर जारी करके इन
पुस्तकों को राज्य के प्रार्थमिक और माध्यमिक स्तर के बच्चों अतरिक्त पाठ्य के रूप
में पढ़ाने को कहा गया है, इसको लेकर विपक्ष का आरोप है कि राज्य सरकार बच्चों पर आरएसएस का एजेंडा थोप रही है और उन्हें पूरक साहित्य के नाम पर व्यर्थ जानकारी वाली किताब पढ़ा रही
है। इन पुस्तकों में श्रीलंका, पाकिस्तान,
अफगानिस्तान आदि देशों को भारत का ही अंग बताकर अखंड भारत बताया
गया है कई अन्य बातें भी हैं जिनका शिक्षा से कोई वास्ता नहीं है इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट
के अनुसार इन किताबों में पुष्पक विमान को दुनिया का सब से
पहला विमान बताया गया है जो की भगवान राम द्वारा उपयोग में लाया गया था , एक किताब
में नस्लीय पाठ भी हैं, जिसमें बताया गया है की भगवान ने जब पहली रोटी पकाई तो वह
कम पकी और अंग्रेज पैदा हुए, भगवान् ने जब दूसरी बार रोटी पकाई तो वह ज्यादा पक कर
जल गयी और नीग्रो पैदा हुए, भगवान ने जब
तीसरी रोटी बनायी तो वह ठीक मत्रा में पकी और इस तरह से भारतीयों का जन्म हुआ । इन किताबों
में हमारे पुराने ऋषियों को विज्ञानिक
बताया गया है जिन्होंने . चिकित्सा,
टेक्नोलॉजी, और विज्ञान के क्षेत्र में कई
सारी ऐसी खोज की हैं जिन्हें पश्चिम द्वारा हथिया लिया गया है। हालांकि देश के
शीर्ष इतिहासकारों द्वारा दीनानाथ बत्रा
के इन पुस्तकों को फेंटेसी करार देते हुए इसकी जमकर आलोचना की गयी
है और इसे शिक्षा के साथ खिलवाड़ बताया गया है ।प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर इसे “अंधरे दिनों” का संकेत
मानती है, उनके अनुसार यह आस्था द्वारा इतिहास के अधिकार क्षेत्र अतिक्रमण है, वे
इसे महज इतिहास और आस्था का टकराव नहीं मानती हैं उनके अनुसार
यह धर्म और आस्था के आवरण में छुपे एक खास तरह की राजनीति का इतिहास के साथ टकराव है।
स्पस्ट है कि मोदी सरकार आने
के बाद से संघ परिवार के हिंदुत्व परियोजना को पंख मिल
गयी है, आशंकायें सही
प्रतीत हो रही है , बहुत सावधानी के साथ उस विचारधारा को आगे बढाने की कोशिश की जा
रही है , जिसका देश के स्वभाविक मिजाज़ के
साथ कोई मेल नहीं है यह विचारधारा देश की विविधता को नकारते हुए हमारे उन मूल्यों को चुनौती देती है जिन्हें आजादी
के बाद बने नए भारत में बहुत दृढ़ता के साथ
स्थापित किया गया था, यह मूल्य समानता, धर्मनिरपेक्षता , विविधता ,असहमति
के साथ सहिष्णुता के हैं । इन मूल्यों के
साथ छेड़-छाड़ एक जनतांत्रिक समाज के तौर पर भारत के विकास यात्रा को प्रभावित कर
सकती हैं, कट्टरवाद ,संकुचित मानसिकता
और यथास्थितिवाद का उदय आधुनिक
और प्रगतिशील भारत के लिए आने वाले समय
में बड़ी चुनौती साबित होने वाले हैं। ऐतिहासिक शोध से जुड़े देश के एक
प्रमुख संस्थान के नए चेयरमैन
का जाति-
व्यस्था को लेकर
विचार और हाल में घटित दूसरी घटनायें इसी
इसी दिशा को ओर बढ़ते कदम प्रतीत हो रहे हैं ।
1 August 2014 Danik Jagran |
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