भागवत जी देश को बांटने वाली बातें कहना बंद करें

एल. एस. हरदेनिया

      


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने फिर इस बात को दोहराया है कि हमारा देश एक हिन्दू राष्ट्र है और हिन्दुत्व हमारी पहचान है। कुछ समय पूर्व वे यह भी कह चुके हैं कि यदि हिन्दू एक हो जाते हैं और हिन्दुओं की एकता मजबूत हो जाती है तो हमारे देश का कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। इस संदर्भ में डा. भागवत से कुछ प्रश्न पूछना आवश्यक हैं। सबसे पहले इनसे यह जानना आवश्यक है कि वे कौन से आधार हैं जिनसे वह यह दावा करते हैं कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, क्या उनका दावा सिर्फ इस बात पर आधारित है कि भारत में रहने वालों में सबसे बड़ी संख्या उन लोगों की है जो हिन्दू धर्म को मानते हैं। यदि किसी राष्ट्र की पहचान उस देश के बहुसंख्यक निवासियों के आधार पर ही की जानी है तो दुनिया में शायद ऐसा एक भी राष्ट्र नहीं है जिसका नाम उस धर्म पर हो जिसको उस देश के बहुसंख्यक निवासी मानते हैं। राष्ट्रों के नाम वहां के बहुसंख्यक निवासियों के धर्म पर आधारित नहीं रहते हैं। दुनिया में अनेक मुस्लिम बहुल, ईसाई बहुल, बुद्ध धर्म बहुल देश हैं फिर भी उनका नाम न तो ईसाई देश है और ना ही मुस्लिम देश है। अमेरिका महाद्वीप के जितने भी देश हैं प्रायः उन सब में ईसाईयों का बाहुल्य है,परंतु उनमें से एक भी राष्ट्र का नाम ईसाई नहीं है। वे अपना नाम रख सकते थे, ईसाई नेशन, ईसाई कंट्री। परंतु किसी भी राष्ट्र ने ऐसा नहीं किया। यूनाईटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका के बहुसंख्यक निवासी ईसाई हैं, परंतु उस देश का नाम ईसाई राष्ट्र नहीं है।


अब हम दुनिया के दूसरे महादीप पर नजर डालें। यह हमदीप है यूरोप। डा. भागवत ने कहा है कि फ्रांस इसलिए फ्रांस है क्योंकि वहां के बहुसंख्यक निवासी फ्रेंच हैं। इसी तरह इटली, स्पेन, स्वीडन, इंग्लैंड, जर्मनी, पुर्तगाल इन सभी देशों में सबसे बड़ी आबादी ईसाईयों की है। यूरोप के देशों के बारे में कहा जा सकता है कि फ्रांस का नाम इसलिए फ्रांस है क्योंकि वहां की मुख्य भाषा फ्रेंच है। जर्मनी का नाम जर्मनी इसलिए है क्योंकि वहां के बहुसंख्यक निवासी जर्मनभाषी हैं। यही बात इंग्लैंड, पुर्तगाल, स्पेन के बारे में कही जा सकती है। दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसी कोई भाषा नहीं है जो हमारे देश के बहुसंख्यक निवासियों की भाषा हो। हाँ हमारे देश में कुछ राज्यों का गठन भाषा आधारित अवश्य है। तमिलनाडू इसलिए तमिलनाडू है क्योंकि बहुसंख्यक निवासी तमिल बोलते हैं। यही बात बंगाल, गुजरात, असम, उड़ीसा एवं महाराष्ट्र पर लागू है। हिन्दी भाषी राज्यों के नाम भाषा पर आधारित नहीं हैं।

अब हम विश्व के सबसे बड़े महादीप की चर्चा करें। यह महादीप है एशिया। एशिया के दो सबसे बड़े देश हैं चीन और भारत। इस समय चीन के बहुसंख्यक निवासी किसी धर्म में आस्था नहीं रखते। कैम्ब्रिज डिक्शनरी के अनुसार वहां के 20 प्रतिशत निवासियों का धर्म तवइज्म है और अन्य 6 प्रतिशत बुद्धिस्ट हैं। चाईना का नाम शायद इसलिए चाईना पड़ा है क्योंकि वहां की आबादी के एक बड़े हिस्से की भाषा चाईनीज है, जिसे मैडरिन भी कहते हैं। दूसरा सबसे बड़ा देश है भारत। इतिहास में कभी भी भारतवर्ष का नाम हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा है। हम इतिहास में अभी भारतवर्ष के नाम से जाने जाते हैं। प्राचीन ग्रंथों में हमारी पहचान भारतवर्ष के रूप में है। जब हमारा दुनिया के अन्य देशों से संबंध हुआ तो कुछ देशों के लोग हमें हिन्दी कहते थे और वह भी आधुनिकतम इतिहास के दौर में। हिन्दी इसलिए कहते थे क्योंकि हमारे देश वे बहुसंख्यक लोग जो विदेश गये थे उन्हें सिंध नदी को पार करके विदेश जाना पड़ता था। जिन देशों में हम गये उनकी भाषा में “स शब्द नहीं था। इसलिए वे “स  को “ह” के रूप में उच्चारित करते थे। दरअसल पूछा जाये तो हिन्दू धर्म नाम की कोई चीज है भी नहीं। हमारे देश के बहुसंख्यक निवासियों का धर्म सनातन धर्म है। जब हम सभ्यता और संस्कृति के शिखर पर थे उस समय भी हमारा देश हिन्दू नहीं कहलाता था। इसलिए भारतवर्ष को हिन्दू कहने का न कोई एतिहासिक, ना ही सांस्कृतिक और ना ही धार्मिक आधार है। हां यह बात अवश्य है कि जब सनातन धर्म के व्यवहार में कुछ संकुचित चीजें शामिल हो गईं थीं तो हमारे देश के अनेक महान पुरूषों ने दूसरे धर्मों की स्थापना की। भावगत कहते हैं कि हिन्दू धर्म में सभी को समाहित करने की ताकत है परंतु हिन्दू धर्म की जो परिभाषा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ करता है उस परिभाषा के अंतर्गत हिन्दू धर्म में कोई धर्म समाहित नहीं हो सकता। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अनेक प्रकाशनों में हिन्दू धर्म की परिभाषा दी गई हैं। एक पुस्तिका जिसका शीर्षक है “चर्च की चुनौती इस पुस्तिका के आखिरी कवर पृष्ठ पर दी गई परिभाषा इस प्रकार है हमारी प्रिय मातृभूति भारत माता की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए और अपने पवित्र हिन्दू धर्म तथा संस्कृति के सिद्धास्पद प्रतीक, गौमाता, मंदिर व माता-बहनों की रक्षा के लिए मैं कटिबद्ध हूं। प्रत्येक हिन्दू भाई-बहन के धार्मिक संरक्षण के लिए मेरा प्रयास रहेगा। भगवान मेरे इस संकल्प को पूर्ण करने की शक्ति और भक्ति मुझे प्रदान करें, भारत माता की जय, हिन्दू धर्म की जय। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा परिभाषित हिन्दू धर्म के अतिरिक्त किसी और धर्म में न तो गौमाता को और ना ही मंदिर को सिद्धास्पद माना जाता है। यदि हिन्दू धर्म का सिद्धास्पद प्रतीक मंदिर है तो इस्लाम का सिद्धास्पद प्रतीक मस्जिद है और ईसाई धर्म का सिद्धास्पद प्रतीक चर्च और सिक्ख धर्म का सिद्धास्पद प्रतीक गुरूद्वारा। इन भिन्नताओं के चलते यह कहना कहां तक उचित है कि हिन्दू धर्म में सभी धर्मों को समाहित करने की ताकत है और भारतवर्ष के सभी निवासी हिन्दू हैं।

यदि यही बात तथ्यात्मक है तो फिर तथाकथित हिन्दू धर्म के होते हुए वे कौन से कारण थे जिनसे बुद्ध,जैन और सिक्ख धर्मों को स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की गई। कुछ तो विकृतियां थीं जिनके कारण तथाकथित हिन्दू धर्म अपने देश के विभिन्न धर्मों को अपने में समाहित नहीं कर सका। फिर हमारे देश में इस्लाम भी आया और ईसाई धर्म भी आया। यदि हिन्दू धर्म में, दूसरे धर्मों को समाहित करने की अपार क्षमता थी तो क्या कारण था कि हमारे देश में इस्लाम और ईसाई धर्म, अनेक तथाकथित हिन्दुओं ने स्वीकार किया, क्या यह कड़वी वास्तविकता नहीं है कि हम अपने धर्म के भीतर दूसरे धर्मों को तो क्या, अनेक हिन्दू धर्म को मानने वालों को भी समाहित नहीं कर सके हैं। यदि हिन्दू धर्म में दूसरे धर्मों को समाहित करने की विशाल शक्ति थी तो क्या कारण है कि हम दलितों को हिन्दू समाज की मुख्य धारा में शामिल नहीं कर सके, क्यों आज भी दलित किसी भी मंदिर में प्रवेश करने की सुविधा से वंचित है।


कुछ और प्रश्न भी हैं जो डा. भागवत से पूछे जाने चाहिए। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि वे हमें बतायें की वे हिन्दुत्व से क्या समझते हैं, हिन्दुत्व की परिभाषा क्या है, उनके अभी हाल के बयान की जो प्रतिक्रियाएं हुई हैं उसके अनुसार सिक्खों की ओर से भी भागवत के विचारों से असहमति प्रकट की गई है। एक सिक्ख संगठन “दल खालसा” ने कहा है कि भागवत चाहें तो भारत को हिन्दू राष्ट्र बना लें परंतु हम साफ शब्दों में कहना चाहेंगे कि पंजाब किसी भी तथाकथित हिन्दू राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहेगा। न सिर्फ सिक्ख बल्कि गोवा भाजपा के एक प्रमुख नेता ने भी कहा है कि हिन्दुत्व व हिन्दू राष्ट्र के संबंध में भागवत के जो भी विचार हैं वे उनके व्यक्तिगत हो सकते हैं, भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं। कांग्रेस के प्रमुख नेता दिग्विजय सिंह ने भी यह सवाल उठाया है कि क्या हिंदुत्व धार्मिक पहचान है, उसका सनातन धर्म से क्या संबंध है, मोहन भागवत कहते हैं कि भारत के सभी निवासी हिन्दू हैं तो उनकी दी गई परिभाषा के अनुसार क्या इस्लाम, ईसाई, सिक्ख धर्म, बुद्ध धर्म ये सब हिन्दू धर्म हैं, उन्होंने स्पष्ट कहा है कि अब समय आ गया है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अब लोगों को मूर्ख बनाना बंद कर दे। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से प्रसारित एक वक्तव्य में कहा गया है कि हिन्दुत्व की बात करना देश के ऊपर बहुसंख्यकवाद लादने की एक चाल है। पार्टी की तरफ से साफ कहा गया है कि इस देश के निवासी हिंदुस्तानी है न कि हिन्दू। भागवत यह बात भी बार-बार कहते हैं कि हिंदुओं को एक हो जाना चाहिये। मेरी राय में ऐसा कहना हिंदुओं का अपमान है। हिन्दू तो क्या, इस देश के सभी निवासी एक हैं। हां उनके बीच में राजनीतिक,सांस्कृतिक एवं सामाजिक भेद हो सकते हैं पर राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। हमारा अनुरोध है कि भागवत देश को तोड़ने वाली बातें न करें और उन चीजों को बढ़ावा दें जिनसे देश मजबूत खम्बों पर खड़ा हो सके।

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