मध्यप्रदेश में दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है


एल.एस.हरदेनिया
Savindra Sawakar, Foundation of India, Courtesy - www.opendemocracy.net



मध्यप्रदेश में पिछड़ी जातियों, विशेषकर दलितों और आदिवासियों के साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव किया जा रहा है। इस भेदभाव से दलित सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। पिछड़ी जातियों, विशेषकर दलितों के संरक्षण के लिए काम करने वाली एक संस्था ने दलितों, विशेषकर दलित बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां एकत्रित की हैं। संस्था द्वारा एकत्रित जानकारियों के अनुसार समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें दलितों के साथ भेदभाव नहीं किया जाता हो। इन क्षेत्रों में शिक्षण संस्थाएं प्रमुख हैं। न सिर्फ शिक्षण संस्थाएं वरन संविधान द्वारा गठित संस्थाओं में भी उनके साथ भेदभाव होता है। ऐसी ही एक संस्था है राज्य लोकसेवा आयोग। सर्वेक्षण में पाया गया कि 70 ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें दलितों के साथ भेदभाव होता है।

वैसे तो यह दावा किया जाता है कि मध्यप्रदेश अत्यधिक तेज गति से विकास करने वाला राज्य है। परंतु लगता है कि इस विकास से समाज के पिछड़े वर्गों को कोई विशेष लाभ नहीं मिला। मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्रों में भेदभाव के उदाहरण मिले। परंतु इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित बुंदेलखंड का क्षेत्र है। सर्वेक्षण में पाया गया कि धार जिले के दाही नामक गांव में स्कूल में पढ़ने वाले दलित बच्चों को स्कालरशिप का भुगतान उसी समय होता है जब ये बच्चे ऐसी फोटो पेश करते हैं जिनमें उनके परिवार के सदस्यों को मरे हुए पशुओं की खाल निकालते हुए दिखाया जाता है। उनसे कहा जाता है कि यदि तुम्हारा परिवार इस परंपरागत काम को नहीं करता है तो वह दलित की श्रेणी में नहीं आता है। इसी तरह छतरपुर के कथारा नामक गांव में मध्यान्ह भोजन के समय दलित बच्चों को अलग पंक्ति में बिठाया जाता है। इसके साथ ही यह भी पाया गया कि अनेक स्कूलों में दलित बच्चों के लिए पीने के पानी की पृथक व्यवस्था है। वे किसी भी हालत में पके हुए खाने को हाथ नहीं लगा सकते। उन्हें पुकारा भी जाता है तो उनके जातिसूचक नामों से। इस सर्वेक्षण पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अनुसूचित जाति-जनजाति विभाग के मंत्री ज्ञान सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री समेत हम सभी इन मामलों की संवेदनशीलता के प्रति जागरूक हैं। इस तरह की कोई भी घटना यदि हमारे ध्यान में लाई जाती है तो हम तुरंत आवश्यक कार्यवाही करते हैं। हम शीघ्र ही भेदभाव के मामले पर गंभीरता से विचार करने वाले हैं।

दलित अधिकार अभियान ने यह सर्वेक्षण पांच अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर किया था। सर्वेक्षण के दौरान 10 जिलों के 30 गांवों में रहने वाले 62,500 लोगों से जानकारी एकत्रित की गई थी। सर्वेक्षण में 412 दलित परिवारों, 61 पंचायत प्रतिनिधियों, अनुसूचित जाति के अनेक सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों से भी जानकारी एकत्रित की गई। एक्शन एड की सहायता से इसी वर्ष जनवरी और अगस्त में यह सर्वेक्षण किया गया था। जिन जिलों में यह सर्वेक्षण किया गया था वे हैं-खंडवा, हरदा, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, मौरेना, भिण्ड, रीवा, सतना, सागर और छतरपुर।

जिन 70 क्षेत्रों में भेदभाव किया जाता है उनमें सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र और लोग बुंदेलखंड में पाये गए। ‘‘जब कभी इस तरह के भेदभाव को प्रभावित लोग चुनौती देते हैं तो उसके नतीजे में उच्च जाति के लोग उनके ऊपर तरह-तरह के जुल्म, ज्यादतियां करते हैं’’, ऐसा दावा इस अध्ययन से जुड़े राजेन्द्र बंधु ने किया है। उनने बताया कि इसी वर्ष जून माह में मनोज नाम के एक दलित दूल्हे के साथ इसलिए हिंसा की गई क्योंकि वह घोड़ी पर सवार होकर बारात में जा रहा था। इस भेदभाव के कारण दलित बच्चों का शिक्षण भी प्रभावित हो रहा है। सर्वेक्षण के दौरान यह ज्ञात हुआ कि भेदभाव के कारण लगभग 31 प्रतिशत दलित बच्चे स्कूल जाना बंद कर देते हैं। 75 प्रतिशत दलित परिवारों ने बताया कि उनके बच्चों को ठीक से नहीं पढ़ाया जाता है। यह भी बताया गया कि दलित बच्चे शिक्षण के दौरान किसी भी प्रकार के सवाल नहीं पूछ सकते। आंगनवाडि़यों में भी भेदभाव के अनेक उदाहरण देखने को मिले। सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश, 2013 में उन राज्यों में शामिल था जहां दलितों के ऊपर सर्वाधिक ज्यादतियां होती हैं।

 स्कूल और समाज के जीवन के अनेक क्षेत्रों के अतिरिक्त मध्यप्रदेश का राज्य लोकसभा आयोग भी पिछड़ी हुई जातियों के साथ भेदभाव करता है। एक लोकप्रिय समाचारपत्र के अनुसार आयोग जब विभिन्न सेवाओं के लिए इंटरव्यू लेता है उस दौरान पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव किया जाता है। यह बताया गया कि जब भी इंटरव्यू होते हैं उच्च जाति के उम्मीदवारों को सबसे पहले बुलाया जाता है। उसके बाद पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को और फिर आदिवासी और दलित उम्मीदवारों को बुलाया जाता है। यहां तक बताया गया कि पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को परीक्षा में अंक भी भेदभाव के आधार पर दिए जाते हैं।

अधिकृत सूत्रों के अनुसार यह प्रावधान है कि यदि अनुसूचित जाति या जनजाति के विद्यार्थियों के अंक सामान्य श्रेणी के विद्यार्थियों से ज्यादा आते हैं तो उसे सामान्य वर्ग के कोटे से नौकरी दी जाती है और उसकी रिजर्व सीट पर किसी और को नौकरी दे दी जाती है। इसे रोकने के लिए लोकसेवा आयोग के अधिकारी भेदभावपूर्ण प्रक्रिया को अपनाते हैं। इंटरव्यू में कम मिले अंकों के बावजूद कुछ पिछड़ी जाति, दलित तथा आदिवासी श्रेणी के उम्मीदवार इसलिए विभिन्न सेवाओं के लिए चयनित हो जाते हैं क्योंकि उन्हें लिखित परीक्षा में अच्छे-खासे अंक मिल जाते हैं। इस तरह वे लोकसेवा आयोग में किए जाने वाले षडयंत्र को विफल कर देते हैं। जिन सेवाओं के लिए लोकसेवा आयोग परीक्षा आयोजित करता है वे हैं- डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी, सहायक संचालक, वाणिज्य कर अधिकारी, जिला आबकारी अधिकारी, जिला पंजीयक, रोजगार अधिकारी, सहायक पंजीयक, श्रम अधिकारी, महिला एवं बाल विकास अधिकारी, विकास खंड अधिकारी, उपअधीक्षक जेल, सहायक अधीक्षक जेल, नायब तहसीलदार आदि क्लास 2 के पद हैं। इस संबंध में संपर्क करने पर लोकसेवा आयोग के सचिव मनोहरलाल दुबे ने बताया कि आयोग में इस तरह की प्रक्रिया काफी पुरानी है। हम भी उसी को अपना रहे हैं। अगर आपको लगता है कि इससे रिजल्ट प्रभावित होता है तो आप पुनः रिजल्ट के आंकड़ों के आधार पर हमें पू्रफ उपलब्ध करवाएं तभी हम इसमें कुछ परिवर्तन कर सकते हैं। इसके बावजूद समाचारपत्र ने यह दावा किया है कि जो कुछ भी लिखा गया है वह अक्षरशः सत्य और सही है


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