रोहित की आत्महत्या से उठे सवाल


स्वदेश कुमार सिन्हा



पिछले दिनों हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में  ’’दलित शोध छात्र’’ रोहित वेमुला की आत्म हत्या की घटना ने देश भर के विद्यार्थियों तथा बौद्धिक समुदाय को उद्धेलित कर दिया। रोहित को अन्य चार छात्रो के साथ हाॅस्टल से इसलिए निकाल दिया गया था, क्योकि उन पर हाॅस्टल में ’’अम्बेडकरवादी अध्ययन चक्र ’’ (स्टडी सर्किल) चलाने का आरोप था। इस मुद्दे पर विश्वविद्यालय प्रशसन का कहना था कि छात्रावासो का उपयोग आवास तथा शैक्षिक गतिविधियोयों  के अलावा अन्य किसी कार्य के लिए नही किया जा सकता, इसलिए यह कार्यवाही की गयीं।

छात्र की आत्महत्या के विरोध में  हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक ,कवि तथा ’’ललित कला अकादमी’’ के पूर्व अध्यक्ष अशोक बाजपेयी ने कुछ वर्षो पूर्व हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा उन्हे प्रदान की गयी मानद डी0लिट की उपाधि वापस करने की घोषणा की है। एक साच्क्षात्कार में  उन्होने कहा कि ’’इस तरह की घटनाये बहुलतावाद की समाप्ति का सूचक है, विश्वविद्यालय ने मानवीय गरिमा और ज्ञान के खिलाफ कार्यवाही की है, शैक्षिक संस्थाओें में सभी जनपक्षधर विचारो को फलने-फूलने तथा अध्ययन-अध्यापन की सुविधा होनी चाहिए। ’’इस आत्महत्या के विरोध में  देश भर में  छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं , परन्तु जिस तरह इस मुद्दे को ’’दलित बनाम गैरदलित’’ बनाया जा रहा है तथा आत्महत्या का महिमामण्डन किया जा रहा है यह गम्भीर चिन्ता का विषय है।

श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में पिछड़े वर्ग के छात्रो को सरकारी नौकरियों में  27 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए ’’मण्डल कमीशन’’ रिपोर्ट लागू की गयी। इसके विरोध में  उच्च जाति के छात्रो ने लम्बे समय तक व्यापक विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली सहित अनेक जगहो पर बहुत से छात्रो ने आत्मदाह भी किया, परन्तु उस समय आत्महत्याओें की घटनाओं का किसी वर्ग या राजनीतिक दल ने कोई खास समर्थन नही किया, न ही इस दबाव में रिपोर्ट वापस ली गयी। हैदराबाद में  दलित छात्र की आत्महत्या निस्संदेह दुःखद है तथा इसकी जांच की मांग अवश्य करनी चाहिए , परन्तु इसका महिमा मंडन उचित नही है।

 सारे विश्व में समय-समय पर अनेक बड़ी हस्तियों ,जिनमें लेखक कवि -चित्रकार सभी थे ने आत्महत्यायों की। मनोविश्लेषको के अनुसार इनमें अधिकांश के पीछे डिप्रेशन (अवसाद) की भूमिका महत्वपूर्ण थी। करीब दो दशक पूर्व हिन्दी के प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि ’’गोरख पाण्डेय’’ जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के छात्र भी थे ने अपने हाॅस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्म हत्या कर ली थी, इस आत्महत्या का आरोप अनेक लोगो तथा उस ’’सांस्कृतिक संगठन’’ पर भी लगा, जिसके वे सदस्य थे, परन्तु बाद में  जाॅच पड़ताल से ज्ञात हुआ कि वे ’’स्किटजोफ्रोनिया डिप्रेशन’’ नामक गम्भीर मानसिक बीमारी के शिकार थे, जो उनकी आत्म हत्या का कारण बना। अंग्रेजी लेखिका ;’’सिल्विया प्लाथ’’ , मशहूर चित्रकार ,’’वान गाॅग’’, लेखक अनेस्ट हेमिग्वें हिन्दी के मशहूर फिल्मकार ’’गुरूदत्त’’ और उनकी पत्नी ’’गीता दत्त’’ ने भी अवसाद के कारण ही आत्महत्यायें की थी।

बढ़ती हुई सामाजिक समस्यायें अकेलापन मान -मर्यादाओं और सम्मान के नये मापदण्ड ,उम्मीदो-आशाओ के ढहते घर ये सब आज आत्महत्याओें की दर को बढ़ा रहे हैं। बहुत से लोग इस समस्स्याओं का सामना करने का साहस नही जुटा पाते तथा आत्मघात का रास्ता चुन लेते हैं।
अगर आज विश्वभर में समाजिक परिवर्तन की राजनीति से जुड़े अधिकांश लोग समस्याओं से भयभीत होकर आत्महत्याओें का रास्ता चुन लेते , तो शायद ही कोई बड़ा सामाजिक -राजनैतिक परिवर्तन हो पाता। दलित छात्र रोहित बेमुला भी किसी न किसी तरह सामाजिक परिवर्तन के संघर्षो से जुड़ा था, इसलिए उसकी आत्महन्ता सोच और आत्महत्या चैकाती ओैर दुःखी करती है ओैर हम सभी को इस विषय पर विचार करने को विवश करती है।


(ये लेखक के निजी विचार हैं )

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