बच्चो को हिंसक बना रहा है छोटा पर्दा


स्वदेश कुमार सिन्हा 


इस वर्ष 25 जनवरी को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से यह चैकाने वाली खबर समाचार पत्रों  में छपी कि एक 13साल के बच्चे ने 7 साल की बच्ची के साथ बलात्कार करने की कोशिश की। अपनी गिरफ्तारी के बाद उसने बताया कि उसने टी0वी0 पर ऐसे एक दृश्य को देखकर यह काम किया। यह अकेली घटना नही है, पिछले दिनों ऐसी अनेक घटनायें  महानगरों के प्रतिष्ठित स्कूलो तथा घरो में  घटी जिसमें बच्चो ने यह स्वीकार किया कि उन्होने ऐसे दृश्य टी0वी0 पर देखे। पिछले एक दशक में अनेक छोटे बच्चो द्वारा यौन हिंसा और हत्या की घटनायें सामने आ चुकी हैं ।

मीडिया में  हिंसा और बच्चो पर उसके प्रभावो को लेकर काम रही संस्था ’’सेन्टर फार एडवोकेसी एण्ड रिसर्च ’’ के मुताबिक टी0वी0 पर दिखायी जा रही हिंसा का बच्चो पर जबरदस्त प्रभाव पड रहा है। सी0एफ0आर0 द्वारा पांच  शहरो में कराये गये सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी कि रहस्य और हिंसा हर तरह के माध्यम में बच्चो का सबसे प्रिय विषय रहा है। सर्वेक्षण के मुताबिक विभिन्न चैनलो पर हर मिनट में चार हिंसा के दृश्य होते हैं , यानी हर सेकेण्ड में एक। यह भी बात सामने आयी है कि दैवीय तथा हिंसक ताकतो के प्रभावों को बच्चे सच मानने लगते हैं , इसके प्रभाववश देश के प्रमुख महानगरो के बच्चो में वास्तविक जीवन में भी हिंसा ओैर फोरंसिक रिपोर्टो में गहरी दिलचस्पी पैदा होने लगी है । बड़े -बड़े अपराधी कैसा व्यवहार करते हैं कैसी विलासितापूर्ण जिन्दगी जीते हैं यह उन्हे आकर्षित कर रहा है। बच्चो के ’’कार्टूनचैनलजो उनके लिये सुरक्षित माने जाते हैं वे भी अपनी लोकप्रियता तथा टी0आर0पी0. बढ़ाने के चक्कर में इनमें भी हिंसा तथा युद्ध के दृश्य दिखा रहे हैं  जो बच्चो के बालसुलभ मन पर नकारात्मक प्रभाव ही छोड़ रहे हैं । बहुत से चैनल अपराधो के सीरियल देर रात दिखाते हैं  , जिससे बच्चे उन्हें ना देखें । परन्तु स्मार्ट मोबाईल फोनो पर वे चैबीस घण्टे उपलब्ध रहते हैं , बच्चे उन्हे कभी भी देख सकते हैं । एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी थी बच्चे एक दिन में दस से बारह घण्टे टी0वी देखते हैं । हफ्ते के अन्त में टी0वी0 देखने का समय और भी बढ़ जाता है नतीजन इसके बाद उनके पास किताबे  पढ़ने बाहर घूमने तथा दोस्तो से मिलने का समय नही रह जाता इसका नकारात्मक असर उसके स्वास्थ्य तथा मनोवृत्तियों  पर पड़ रहा है।

एक टी0वी0 चैनल के मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष बच्चो के साथ माता-पिता के आदतो के बारे में चेताते हैं  कि ’’अच्छे कार्यक्रमो के दर्शको की संख्या तेजी से घट रही है माता पिता खुद ही हिंसा से भरे कार्यक्रम देखते है  , बच्चे उन्ही का आदर्श अपनाते हैं । ’’जी टी0वी0’’ की अध्यक्षा माधवी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा भी कार्यक्रमो में हिसां को बढ़ावा दे रही है। मै एक मां  होने के कारण अच्छे धारावाहिक दिखाया जाना पसन्द करती हूँ  , लेकिन दर्शक संख्या को देखते हुए हमें सभी तरह के धारावाहिक देखाने पड़ते हैं ।

अहमदाबाद के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा0 विश्वमोहन ठाकुर कहते हैं कि माता पिता को बच्चो के लिए समय देना होगा तथा उन्हे यह भी जानना जरूरी है कि उनके बच्चे क्या देख रहे हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि अगर आपका बच्चा दस घण्टे टी0वी0देख रहा है। तो उसको काल्पनिक दुनिया औैर वास्तविक दुनिया का अन्तर आसानी से समझ में नही आ रहा है।


    (ये लेखक के अपने विचार हैं)  

No comments: