ट्यूबवेल से पानी पीने पर दलित बच्चे की पिटाई



सीहोर जिले के इछावर थाना क्षेत्र में स्थित दुदलाई गांव में रहने वाले दलित भय और आतंक की स्थिति में जी रहे हैं। दिनांक 3 अप्रैल को अशोक नाम के 13 वर्ष के अनुसूचित जाति के बच्चे की इसलिए पिटाई की गई क्योंकि उसने एक ऊँची जाति के किसान के ट्यूबवेल से पानी पिया। भागीरथ नाम के जाट ने उसे इतना मारा कि उसके एक हाथ की हड्डी टूट गई। इसके बाद इस गांव के ऊँची जाति के लोग इसलिए नाराज़ हो गए क्योंकि पीडि़त बालक के परिवार की ओर से घटना की रिपोर्ट थाने में दर्ज की गई।

रिपोर्ट लिखने के बाद डोंडीपिटवा कर उच्च जाति के लोगों ने अनुसूचित जाति के लोगों के पूर्ण बहिष्कार की घोषणा दी। यह तथ्य हमें गांव के अनुसूचित जाति के लोगों ने बताया। घटना की खबर लगते ही भोपाल से एक जांच दल दुदलाई गया। जांच टीम में राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के एल.एस. हरदेनिया, डा. अंबेडकर सामाजिक न्याय केंद्र की अनिता मालवीय, एक्शन एड की सारिका सिन्हा एवं स्वाति शामिल थे।
 गांव में पहुंचकर हम सीधे पीडि़त परिवार के घर गए। हमने पाया कि अशोक के हाथ में प्लास्टर लगा हुआ है। बच्चे ने बताया कि वह अपनी भाभी के साथ पशुओं को चरा रहा था। उसी दौरान उसे प्यास लगी। पास में एक ट्यूबवेल से पानी निकल रहा था वहां हमने पानी पिया। मैं और मेरी भाभी पानी पी ही रहे थे कि खेत मालिक भागीरथ जाट वहां आ गया और हमारे साथ गालीगलौंच करने लगा।
उसने पहले मेरी भाभी को लाठी से मारना चाहा। भाभी ने उसका चिल्लाकर विरोध किया। इसके बाद उसने मुझे मारना प्रारंभ किया। पिटाई से मैं बेहोश हो गया। किसी ढंग से हम घर पहुंचे। बाद में पता लगा कि मेरे एक हाथ की हड्डी टूट गई है। अशोक के पिता बाबूलाल जांगड़ा ने बताया कि दूसरे दिन इछावर रिपोर्ट लिखवाने गए, पर थानेदार ने हमारी रिपोर्ट नहीं लिखी न ही कोई कार्यवाही की। उसके दो-तीन दिन बाद घटना की खबर अखबारों में छपी। उसके बाद पुलिस प्रशासन ने कार्यवाही की। ज्योंही हमने रिपोर्ट लिखवाई गांव के पूरे अनुसूचित जाति के लोगों के बहिष्कार की घोषणा कर दी गई।
इस गांव में अनुसूचित जाति के लोगों के करीब 100 परिवार हैं। वैसे तो गांव में इनकी संख्या ज्यादा है। उसके बावजूद वे चैन से नहीं रह पाते हैं। हमारे पहुंचने के बाद बहुत लोग एकत्रित हो गए। उनमें बच्चे भी शामिल थे। हमने बच्चों से पूछा कि क्या वे स्कूल जाते हैं,सभी ने एक स्वर में कहा जाते हैं। इस पर हमने जानना चाहा कि उनके स्कूल में भेदभाव तो नहीं होता है उनका उत्तर था नहीं। इस पर हमने पूछा क्यों तो बच्चों ने बताया कि सरकारी स्कूल में सिर्फ अनुसूचित जाति के बच्चे ही पढ़ते हैं। उच्च जाति के लोगों ने सरकारी स्कूल का बहिष्कार कर अपने बच्चों के लिए प्रायवेट स्कूल खोल दिया है। अनुसूचित जाति के सदस्यों (महिलाओं समेत) से बात करने पर पता लगा कि गांव में उनका हर स्तर पर बहिष्कार है। हमें यह भी बताया गया कि गांव के मंदिरों में हम लोगों का पूजा आदि करना प्रतिबंधित है। कुछ दिन पहले हमारी जाति के लोगों ने पास के एक हनुमान मंदिर में कथा करा दी। इससे जाट समाज के लोग इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने हनुमान मंदिर का ही बहिष्कार कर दिया और उसे अनुसूचित जाति के लोगों को ही सौंप दिया। उसके बाद से उस मंदिर में कोई भी ब्राह्मण पूजा करने नहीं आता है और उच्च जाति के लोग भी वहां नहीं आते हैं।
जांच दल को बताया गया कि प्रशासन ने वहां पुलिसकर्मियों की टीम पीडि़त परिवार की सुरक्षा के लिए भेजी है। परंतु हमने पाया कि परिवार के निवास पर तो नहीं बल्कि पुलिसकर्मियों ने अपना डेरा पंचायत भवन में जमा लिया है।
टीम ने मांग की है कि इस बात की जांच की जाए कि दिनांक 4 अप्रैल को पुलिस ने घटना की रिपोर्ट क्यों नहीं लिखी और पीडि़त परिवार को तुरंत सुरक्षा प्रदान क्यों नहीं करवाई गई. टीम ने यह भी मांग की है कि इस गांव में तनाव की स्थिति के मद्देनजर वहां पर एक पुलिस चैकी की स्थापना की जाए साथ ही उन लोगों को भी दंडित किया जाए जिन्होंने अनुसूचित जाति के लोगों को बहिष्कार घोषित किया है।
हमें यह भी बताया गया कि आसपास के लगभग सभी गांवों में इसी तरह की स्थिति है। ऐसा कोई भी गांव नहीं है जिसमें अनुसूचित जाति के लोग स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हों। 


प्रस्तुति :- -एल.एस. हरदेनिया

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