अफ्रीकी देशों के साथ मोदी सरकार की कूटनीतिक विफलता


-एल.एस. हरदेनिया



आज़ादी के बाद भारत को पहले कभी इतना व्यापक और गंभीर कूटनीतिक संकट का सामना नहीं करना पड़ा जितना पिछले सप्ताह करना पड़ा था। अफ्रीकी महाद्वीप के सभी देशों के कूटनीतिक प्रतिनिधियों ने भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले ‘‘अफ्रीका दिवसके बहिष्कार की घोषणा कर दी थी। बहिष्कार का कारण कांगो के एक युवक की हत्या थी।

इन राजदूतों का कहना था कि भारत में पढ़ने वाले अफ्रीकी छात्र सुरक्षित नहीं हैं। पिछले वर्षों में अनेक अफ्रीकी छात्रों की हत्याएं हुई हैं। भारत सरकार उन्हें रोक नहीं पा रही है। इसलिए अपना आक्रोष प्रगट करने के लिए ‘‘अफ्रीका दिवस के बहिष्कार की घोषणा की गई। विदेष मंत्री सुषमा स्वराज और विदेष राज्य मंत्री जनरल व्ही.के. सिंह द्वारा त्वरित किए गए हस्तक्षेप के कारण अफ्रीकी देषों के प्रतिनिधि ‘‘अफ्रीका दिवस समारोह में शामिल तो हो गए परंतु उनके मन में अभी भी ढेर सारी शंकाएं हैं। अफ्रीकी देषों के प्रतिनिधियों ने यह धमकी दी है कि अब वे अपने-अपने देष के छात्रों को अध्ययन करने के लिए भारत नहीं भेजेंगे। यदि वे ऐसा करते हैं तो यह हमारे लिए शर्म की बात होगी। इससे विश्व में हमारी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी। दुनिया में भारत अफ्रीकी देषों का अभिन्न मित्र समझा जाता है।

अफ्रीकी जनता के आज़ादी के संघर्ष के हम अत्यधिक शक्तिशाली समर्थक रहे हैं। महात्मा गांधी ने अपनी जान हथेली पर रखकर दक्षिण अफ्रीका की आततायी गोरी सरकार के विरूद्ध आवाज़ उठाई थी। उन्होंने अपना पहला अहिंसक आंदोलन दक्षिण अफ्रीका की धरती से ही प्रारंभ किया था।

दक्षिण अफ्रीका की आज़ादी के आंदोलन के महान नेता नेल्सन मंडेला महात्मा गांधी को अपना राजनीतिक गुरू मानते थे। मंडेला ने जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित किताबों का बारीकी से अध्ययन किया था। यूरोप के साम्राज्यवादी देषों ने अफ्रीका के देशों पर अत्यधिक क्रूरता से शासन किया था। नेहरू जी ने प्रधानमंत्री बनने के पहले एषियायी देषों का सम्मेलन आयोजित किया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू जी ने दिल्ली में अफ्रीकी देषों का सम्मेलन आयोजित किया था। पिछले वर्ष इसी तरह का सम्मेलन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आयोजित किया था। सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों को भारतीय वेषभूषा पहनाई गई थी।
नेहरू जी ने तमाम एशिया-अफ्रीका के देषों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया था। उस महान कार्य में मिस्र के लोकप्रिय नेता अब्दुल गेमल नासिर उनके प्रमुख सहयोगी थे।

यूरोप के साम्राज्यवादी देशों ने अफ्रीकी देषों को राजनीतिक आज़ादी तो दे दी परंतु उनने इन देशों  के मामले में हस्तक्षेप जारी रखा, ये देष कम्युनिस्ट विचारधारा के चंगुल में पड़ जाएं इसलिए वहीं के प्रतिक्रियावादी नेताओं को खरीद कर अफ्रीकी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप जारी रखा। अपने इन्हीं प्रयासों के चलते अमरीका की गुप्त एजेन्सी सीआईए ने अफ्रीका के एक अत्यधिक लोकप्रिय नेता पेट्रिस लुमुम्बा की हत्या करवाई। इस हत्या की हमने सोषलिस्ट देषों के साथ मिलकर जोरदार भर्त्सना की थी।

अफ्रीकी देषों से हमारी दोस्ती अनेक कारणों से प्रगाढ रहना चाहिए। अफ्रीका के देशों का आर्थिक विकास हो रहा है, इसलिए अफ्रीका से हमारे व्यापारिक संबंध की अपार संभावनाएं हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में अफ्रीकी देशों की सदस्य संख्या 54 है। ये सब देष सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के हमारे प्रयासों में सहायक सिद्ध होंगे। जैसा कि सभी को ज्ञात है चीन अफ्रीकी देषों की मित्रता जीतने के भरसक प्रयास लगातार कर रहा है।

अफ्रीका के अनेक देश अपने छात्रों को भारत भेजते हैं। हमारे देष में बढ़ती मेडिकल सुविधाओं के कारण अफ्रीका के सभी देशों के गंभीर रोगी भारत आकर अपना इलाज करवाते हैं।

आवष्यकता इस बात की है कि अफ्रीकी देषों से संबंध सुधारने के हमारे प्रयास और विस्तृत पैमाने पर जारी रहें। सरकारी स्तर से ज्यादा सामाजिक स्तर पर ऐसे प्रयास होना चाहिए। हमें हमारे देष की जनता को यह बताना चाहिए कि अफ्रीकी देशों ने कैसे साम्राज्यवादी देशों के जुल्मों का विरोध किया था। हमें अफ्रीकी देशों के गौरवशाली इतिहास से सभी को, विषेषकर छात्रों को, अवगत कराना चाहिए।

यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश की जनता का बड़ा प्रतिषत गोरी चमड़ी को पसंद करता है। वधू के लिए जितने विज्ञापन छपते हैं उनमें प्रायः यह लिखा रहता है कि उन्हें गोरी वधू चाहिए। अमरीका समेत अनेक पष्चिमी देशों ने वहां की जनता के उस वर्ग पर तरह-तरह के जुल्म सिर्फ इसलिए ढाए थे क्योंकि उनका रंग काला था। अमरीका में तो उन्हें गुलाम बनाए रखा जाता था।

हमें सबको समझाना है कि चमड़ी के रंग से इंसान की प्रतिभा का कोई संबंध नहीं है। हमें हमारे देश की जनता को यह भी बताना चाहिए कि अमरीका के मार्टिन लूथर किंग ‘‘जूनियरअपना संघर्ष जारी करने के पहले भारत आए थे और यह समझने की कोशिश की थी कि अहिंसा के सहारे कैसे संघर्ष किया जा सकता है। वे उन आश्रमों में गए थे जहां बापू रहते थे। उनने अनेक भारतीय नेताओं से मिलकर यह समझने की कोशिश की थी कि भारतीय संस्कृति में अहिंसा का क्या स्थान है।

भारत की इस सीख के बाद उन्होंने अमरीका के काले लोगों के अधिकारों के लिए एक लंबा संघर्ष किया था। यह उनके ही प्रयासों के कारण है कि अमरीकी समाज में काले लोगों को सम्मानजनक स्थान मिला। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि अमरीका का एक काला नागरिक ओबामा वहां का राष्ट्रपति बना।

यह दुःख की बात है कि जैसा व्यवहार हम अफ्रीकी छात्रों से करते हैं लगभग वैसा ही व्यवहार उत्तरपूर्व के छात्रों से भी करते हैं।इस समस्या से निदान पाने के लिए बौद्धिक एवं व्यवहारिक प्रयास जारी रखना चाहिए। इस कार्य में देश के सभी राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों को एकजुट हो जाना चाहिए। यह प्रसन्नता की बात है कि विदेश मंत्रालय ने यह तय किया है कि अब प्रत्येक तीन माह में विदेश मंत्रालय अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों की बैठक करेगा जिसमें सभी प्रकार की समस्याओं पर चर्चा होगी और निदान ढूंढे जाएंगे।


अफ्रीकी देशों से हमारे संबंधों में शीघ्र सुधार किया जाना चाहिए अन्यथा स्थिति विस्फोटक रूप ले सकती है। यह चिंता की बात है कि कांगो समेत कुछ अफ्रीकी देशों में भारतीयों और भारतीय व्यापारिक ठिकानों पर हमले प्रारंभ हो गए हैं। यदि हमारे संबंध मधुर रहेंगे तो ऐसी घटनाओं पर अपने आप रोक लग जाएगी। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि लगभग सभी अफ्रीकी देशों में भारतीय व्यापारी एवं उद्योगपति हैं। उन देशों के मूलनिवासियों की तुलना में वहां रहने वाले भारतीय ज्यादा संपन्न हैं।

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