सत्ताधारी दल, फौजी कार्यवाही का राजनीतिक लाभ न उठाएं
संकट की घड़ी में देश को कैसे एक रखना
चाहिए
स्व. लालबहादुर शास्त्री से सीखें
एल.एस. हरदेनिया
‘‘पूर्व में भी अनेक बार सर्जिकल
स्ट्राइक हुई हैं परंतु उनका राजनीतिक लाभ किसी ने भी उठाने का प्रयास नहीं किया
था इस समय परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं सत्ताधारी पार्टी ने फौज के इस बहादुरी
कारनामे का अनावश्यक राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास किया है’’। ये शब्द हैं लैफ्निेंट जनरल एम.जी.
दातार (अवकाश प्राप्त) के। उन्होंने आगे कहा ‘‘वैसे
तो प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों से इस मुद्दे पर मौन रहने की अपील
की है परंतु इसके बावजूद सत्ताधारी पार्टी से जुड़े अनेक लोग इसका लाभ उठा रहे हैं।
‘‘मैं नहीं समझता कि प्रतिपक्ष के लोग
सर्जिकल कार्यवाही का सबूत मांग रहे हैं उनकी मांग है कि पाकिस्तान द्वारा जो
प्रचार किया जा रहा है उसे गलत साबित करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक हुई है, इस दावे को सही साबित करने के लिए कुछ
न कुछ किया जाना चाहिए भले ही इस संबंध में विस्तृत वक्तव्य ही जारी किए जाएं,सबसे
ज्यादा नुकसान सैनिकों का हो रहा है जो शायद इन त्यौहारों के मौसम में अपने घरों
को जाना चाहते हैं।’’
एक वरिष्ठ सेनाधिकारी का यह वक्तव्य यह
सिद्ध करता है कि भारतीय जनता पार्टी इस फौजी कार्यवाही का नाजायज़ लाभ उठा रही है।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि सत्ताधारी पार्टी और उससे जुड़े संगठन इस मुद्दे को
लेकर विरोधी संगठनों के ऊपर अनावश्यक आरोप लगा रहे हैं। इस दरम्यान जो घटनाएं हुई
हैं उनके प्रति ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है। जैसे उत्तरप्रदेश में गौमांस रखने
और खाने के आरोप पर अख़लाक की हत्या करने वाले एक आरोपी की पुलिस हिरासत में
मृत्यु हो गई उसको लेकर उत्तरप्रदेश में भाजपा से जुड़े लोगों ने बहुत जबरदस्त
हंगामा खड़ा कर दिया है। उनके समर्थकों ने इस व्यक्ति के मृत शरीर को तिरंगे में
लपेटकर यह घोषित किया है कि वह शहीद है एक आरोपित हत्यारे को शहीद कहना कहां तक
उचित है? और फिर उसकी लाश को तिरंगे में लपेटना
कहां तक उचित है?
तिरंगे में लपेटकर उन व्यक्तियों का
अंतिम संस्कार किया जाता है जिन्हें अधिकृत रूप से सरकार शहीद घोषित करती है।
आतंकवादियों या अपराधियों से लड़ते हुए जो सैनिक और पुलिसकर्मी मारे जाते हैं
उन्हें शहीद कहा जाता है। इसके साथ ही उन लोगों को तिरंगे के साथ बिदा दी जाती है
जिन्हें शासन की और से शासकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया जाता है। इसलिए किसी
प्रायवेट नागरिक को इस तरह का सम्मान देना संविधान और हमारी परंपरा के विरूद्ध है।
सर्वाधिक निंदा की बात यह है कि इस मृत व्यक्ति के परिवार से मिलने और श्रद्धांजलि
देने एक केंद्रीय मंत्री वहां गए ये मंत्री हैं श्री महेश शर्मा। इन्हें केंद्र
में संस्कृति मंत्रालय का प्रभारी बनाया गया है परंतु इन्होंने यह घोर संस्कृतिविरोधी गतिविधि
की है, उन्हें वहां पर यह सलह देनी थी कि मृत व्यक्ति को राष्ट्रीय ध्वज में
लपेटना एक निंदनीय कृत्य है।
इस समय देश को बांटने की और भी कई
घटनाएं हुई हैं हरियाणा के एक विश्वविद्यालय में सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्व.
महाश्वेता देवी जी द्वारा लिखित एक नाटक का मंचन हो रहा था इस नाटक को राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोगों ने रोक दिया और अनावश्यक शोर मचाया,इन लोगों ने
विश्वविद्यालय के शिक्षकों पर हिंसक हमला करने का भी प्रयास किया। अभी तक इस तरह
के लोगों के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई है। जिन लोगों ने नाटक के मंचन को रोका
उन्होंने विश्वविद्यालय के उन शिक्षकों को देशद्रोही निरूपित किया जो नाटक का मंचन
करवा रहे थे।
इसी तरह मध्यप्रदेश के प्रमुख शहर
इंदौर में भारतीय नाट्य संघ (इप्टा) का तीन दिवसीय सम्मलेन हो रहा था। इस सम्मेलन
में भाग लेने के लिए देश के अनेक नाटककार आए हुए थे। केरल के प्रसिद्ध नाटककार
एम.एस. सत्थू ने युद्ध की विभीषिका की निंदा की थी। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रों
के बीच समस्याओं का हल युद्ध नहीं है। उनके इस कथन के विरूद्ध संघ से जुड़े लोगों
ने जबरदस्त हंगामा किया। इप्टा द्वारा आयोजित पत्रकारवार्ता को भी छिन्नभिन्न कर
दिया और इप्टा से जुड़े सभी लोगों को राष्ट्रविरोधी निरूपित किया। इस मुद्दे को
लेकर भारतीय जनता पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी एक लेख
लिखा और देश के प्रति कम्युनिस्टों की वफादारी पर प्रश्नचिन्ह लगाया। इसी तरह
भोपाल में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के शिक्षक धरने पर बैठे हुए थे
विद्यार्थी परिषद से जुड़े कुछ लोग धरना स्थल पर पहुंचे और उन्होंने धरने में भाग
लेने वाले शिक्षकों के साथ मारपीट की। उन्होंने महिला शिक्षकों को भी नहीं बख्शा।
उनका आरोप था कि ये शिक्षक एक ऐसी संस्था के तत्वाधान में अपना आंदोलन कर रहे हैं
जिनका नेतृत्व कम्युनिस्टों के हाथों में है। उनका यह भी कहना था कि शिक्षकों के
इस संगठन द्वारा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता कन्हैया को समर्थन
दिया गया था। इसके बावजूद कि कन्हैया ने गंभीर राष्ट्रविरोधी बातें की हैं। इस तरह
विद्यार्थी परिषद के लोग यह संदेश देना चाहते थे कि कम्युनिस्टों को इस देश में
किसी भी प्रकार का आंदोलन करने का अधिकार नहीं है।
ऐसी ही एक भ्रत्सना योग्य घटना
मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में हुई है वहां के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े
एक व्यक्ति ने फेसबुक पर एक अत्यधिक आपत्तिजनक संदेश प्रसारित किया इसको लेकर वहां
के कुछ लोगों ने उसका विरोध किया। चूंकि संदेश आपत्तिजनक था इसलिए संघ के इस सदस्य
की गिरफ्तारी की मांग की गई वहां की पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया। आरोप है कि पुलिस
ने हिरासत में संघ के इस सदस्य के साथ मारपीट की है और उसे गंभीर चोटें पहुंचाई हैं।
इसको लेकर पूरे प्रदेश में आरएसएस की तरफ से विरोधी आवाज़े उठी और उन्होंने संबंधित
पुलिस अधिकारियों के विरूद्ध सख्त कार्यवाही करने की मांग की है।
शिवराज सिंह चैहान सरकार के ऊपर
जबरदस्त दबाव बनाया गया और दबाव में आकर मध्यप्रदेश की सरकार ने आधे दर्जन से
ज्यादा पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया और उन पर हत्या करने के प्रयास का
आरोप लगाया। मेरी यह राय है कि पुलिस को अपनी हिरासत में किसी भी आरोपी के साथ
मारपीट नहीं करना चाहिए। पुलिस अधिकारियों की तरफ से यह कहा जा रहा है कि उन्होंने
किसी भी प्रकार की मारपीट नहीं की है। संघ के इस स्वयंसेवक की मेडिकल जांच से यह
तथ्य सामने आया है कि उसे ऐसी चोटें नहीं लगी हैं जिनसे यह आरोप बनता है कि उसकी
हत्या करने का प्रयास किया गया।
इस बीच कुछ अन्य तथ्य सामने आए हैं।
अंग्रेज़ी समाचारपत्र हिन्दुस्तान टाईम्स के दिनांक 10 अक्टूबर,
2016 के संस्करण में
छपी खबर के अनुसार जिस दिन संघ के इस स्वयंसेवक जिसका नाम सुरेश यादव है कि
गिरफ्तारी की गई थी उस दिन अनेक लोगों ने पुलिस के वाहनों पर पत्थरबाजी की थी। खबर
में यह बताया गया है कि गिरफ्तारी का विरोध करने वाले लोगों ने न सिर्फ पुलिस
अधिकारियों के साथ हाथापाई की बल्कि यह धमकी दी कि यदि सुरेश यादव को शीघ्र नहीं
छोड़ा गया तो वे पुलिस थाने में आग लगा देंगे। यह भीड़ रातभर पुलिस थाने के पास बैठी
रही। भीड़ प्रातः साढ़े पांच बजे उस समय हटी जब उसे यह बताया गया कि सुरेश यादव को चोटें
आई हैं और उसके इलाज के लिए उसे बालाघाट ले जाया जा रहा है। कुछ पुलिस अधिकारियों
ने हिन्दुस्तान टाईम्स को बताया कि यदि असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर योगेन्द्र चैहान
को समय रहते नहीं हटाया जाता तो इस बात की पूरी संभावना थी कि उन्हें पीटा जाता और
शायद उनकी हत्या कर दी जाती।
इस तरह की घटनाएं उस समय हो रही हैं
जबकि देश में एकता की आवश्यकता है। वैसे यह कहा जा सकता है कि राहुल गांधी ने
नरेन्द्र मोदी की आलोचना करते हुए जिस भाषा का उपयोग किया वह उचित नहीं है। परंतु
भाजपा के एक नेता ने राहुल गांधी की पैदाइश पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करके अत्यधिक
घटिया दर्जे की बात की है। यह दुःख की बात है कि इस समय देश के राजनीतिक क्षेत्र में
अत्यधिक गैर-जिम्मेदाराना भाषा का उपयोग आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए किया जा रहा
है।
हिन्दुस्तान टाईम्स के दिनांक 9 अक्टूबर, 2016 के अंक में ही एक लंबा लेख छपा है।
जिसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गतिविधियों की सख्त शब्दों में आलोचना की
गई है। इस लेख में यह प्रश्न उठाया गया है कि क्या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
को देशभक्ति के प्रमाणपत्र बांटने का अधिकार है? क्या वह जो कुछ कहता है वही राष्ट्र धर्म है और उसके विपरीत विचार
करने वाले लोग क्या देश के प्रति वफादार नहीं हैं।
समाचारपत्र ने इस बात की मांग की है कि
परिषद की गतिविधियों को नियंत्रित किया जाना चाहिए क्यूंकि वे देश को विभाजित करती
हैं।
यदि हमको पाकिस्तान से निपटना है और
उसकी आतंकवादी गतिविधियों को नियंत्रित करना है तो ऐसा करने के लिए देश की एकता
आवश्यक है। यदि यह प्रदर्शित किया जाता कि देश विभाजित है तो इससे न सिर्फ
पाकिस्तान की भारतविरोधी गतिविधियों को हवा मिलेगी वरन यह भी कहा जाएगा कि हम इतने
संवेदनशील मुद्दे पर भी एक नहीं हैं।
अभी हाल की सर्जिकल स्ट्राइक के पहले
भी पाकिस्तान की सीमा पर हमने आपत्तिजनक गतिविधियों को रोकने के प्रयास किए हैं
परंतु उनका जोरशोर से प्रचार नहीं किया गया था। वर्ष 1965 में पाकिस्तान ने हमारे ऊपर हमला किया
था। उस समय की युद्ध जैसी स्थिति का विवरण देते हुए बीबीसी ने एक समाचार दिया था जिसमें
उसने कहा था कि यह युद्ध हिन्दू भारत और मुस्लिम पाकिस्तान के बीच है। इस बात का
उचित उत्तर देने के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया
था। सभा के मुख्य वक्ता तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री थे सभा का
आयोजन जिस ढंग से किया गया था वह अपने आप में बीबीसी को करारा जवाब था। सभा की
अध्यक्षता एक महान देशभक्त नेता से करवाई गई जो मुस्लिम थे शास्त्री जी के पहले जो
वक्ता बोले वह ईसाई थे। अपने भाषण के दौरान श्रोताओं को संबोधित करते हुए शास्त्री
जी ने कहा कि ‘‘आप देख रहे हैं कि मेरे आसपास कौन बैठे
हैं? मीटिंग की अध्यक्षता जनाब मुश्ताक कर
रहे हैं जो एक मुसलमान हैं। सभा के एक प्रमुख वक्ता फ्रेंक एन्थोनी हैं जो ईसाई
हैं। मंच पर इनके अतिरिक्त सिक्ख और पारसी के प्रतिनिधि भी बैठे हुए हैं। हमारे
देश में मंदिर भी हैं, मस्जिदें भी हैं, गुरूद्वारे भी हैं और चर्च भी हैं। पर
हम न तो धर्मों को और ना ही धर्मस्थानों को अपनी राजनीति में घसीटते हैं यही हमारे
और पाकिस्तान के बीच अंतर है। पाकिस्तान अपने को इस्लामिक राष्ट्र बोलता है और
धर्म का उपयोग अपने प्रशासन और राजनीति में करता है। हमने हमारे देशवासियों को
आज़ादी दी है कि वे किसी भी धर्म को अपना सकते हैं वे किसी भी पूजाघर में जा सकते
हैं। जहां तक हमारी राजनीति का सवाल है उसमें किसी भी प्रकार का धार्मिक भेदभाव
नहीं है। हम सब भारतीय हैं और हमारी राजनीति भी भारतीय है।’’ शास्त्री जी के इन प्रेरक शब्दों को
सारे देश को स्मरण रखना चाहिए और विशेषकर सत्ताधारी पार्टी और उसके एकछत्र नेता
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को।
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