“गाय” और “धर्मांतरण” के बहाने मध्यप्रदेश में निशाने पर हैं अल्पसंख्यक
जावेद अनीस
हाल के
दिनों में गौरक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले और उन्हें आतंकित के
मामले बढ़े हैं. इसी कड़ी में
पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मंदसौर रेलवे स्टेशन पर तथाकथित गौरक्षकों की बेलगाम गुंडई एक बार
फिर देखने को मिली जहाँ गौ-मांस ले जाने के आरोप में दो
मुस्लिम महिलाओं को सरेआम पीटा गया इस दौरान पब्लिक और पुलिस प्रशासन के लोग
तमाशाई बने रहे. बाद में हुई जांच में पाया गया कि इन
महिलाओं से बरामद किया मांस ह गोमांस नहीं बल्कि भैंस का गोश्त था. इस पूरे मामले में पुलिस का भूमिका और
राज्य के गृह मंत्री के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं. मोबाइल कैमरे में कैद हुई इस घटना में साफ़ देखा जा सकता है कि जब इन दोनों महिलाओं को पीटा जा रहा था तो
वहां पुलिस मौजूद थी लेकिन उनकी तरफ से इसे रोकने का गंभीर प्रयास नहीं किया गया.
उलटे इन महिलाओं के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया
गया. मध्यप्रदेश के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह का पूरा जोर इस घटना को “छोटी-
मोटी धक्कामुक्की” साबित करने पर रहा उके अनुसार यह एक “स्वाभाविक जनाक्रोश” था
और इसे इंटेशनली नहीं किया गया था. यही नहीं उन्होंने बिना किसी जांच के यह बयान भी दे दिया कि इस मामले में कोई भी व्यक्ति हिंदू संगठनों से नहीं जुड़ा है. जबकि पीड़ित महिलाओं का आरोप है कि उनके साथ मारपीट करने वाले बजरंग
दल के लोग थे. मंदसौर से बीजेपी विधायक यशपाल सिसोदिया ने
तो और आगे बढ़ते हुए इसे क्रिया की प्रतिक्रिया बता
डाला.
मध्यप्रदेश
में मंदसौर जैसी घटनायें नयी नहीं हैं. यहाँ इस तरह की घटनायें होती रही हैं. सुरेन्द्र
सिंह राजपुरोहित जैसे लोग अपने “गौ रक्षा
कमांडो फोर्स” के माध्यम से गौरक्षा के नाम पर आतंक का साम्राज्य चलाते रहे है. लेकिन स्थानीय मीडिया और
विपक्षी पार्टियां इनको लेकर उदासीन बनी रहती है. मंदसौर की घटना भी मवयावती
द्वारा राज्यसभा में उठाये जाने के बाद ही चर्चा में आ सकी.
बीते 13 जनवरी 2016 को खिरकिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में एक मुस्लिम
दंपति के साथ इसलिए मारपीट की गयी थी क्योंकि उनके
बैग में बीफ होने का शक था. मोहम्मद हुसैन अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद किसी रिश्तेदार
के के यहाँ से अपने घर हरदा लौट रहे थे इस दौरान खिरकिया स्टेशन पर गौरक्षा समिति के
कार्यकर्ताओं ने उनके बैग में गोमांस बताकर जांच करने लगे
विरोध करने पर इस दम्पति के साथ मारपीट शुरू कर दी गयी.इस दौरान दम्पति ने खिरकिया में अपने कुछ
जानने वालों को फ़ोन कर दिया और वे लोग स्टेशन पर आ
गये और उन्हें बचाया. इस तरह
से कुशीनगर एक्सप्रेस के जनरल बोगी में एक बड़ी वारदात होते–होते रह गयी.खिरकिया में ही
इससे पहले 19 सितम्बर 2013 को गौ
हत्या के नाम पर दंगा हुआ हो चूका है जिसमें
करीब 30 मुस्लिम
परिवारों के घरों और सम्पतियों को आग के हवाले कर दिया
गया था. कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे, बाद में पता चला था कि जिस गाय के मरने के बाद
यह दंगे हुए थे उसकी मौत पॉलिथीन खाने
से हुई थी. इस मामले में भी मुख्य
आरोपी गौरक्षा समिति का सुरेन्द्र राजपूत था.यह सब करने के बावजूद
सुरेन्द्र सिंह राजपूत
कितना बैखौफ है इसका अंदाजा उस ऑडियो को सुन कर लगाया जा सकता है जिसमें उसने हरदा के एसपी को फ़ोन पर धमकी देकर कहा था कि अगर मोहम्मद हुसैन दम्पति से मारपीट के मामले में उसके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर से केस वापस नहीं
लिया गया तो खिरकिया में 2013 को एक बार फिर दोहराया जाएगा.
इसी साल 6 से
9
जनवरी के बीच धार जिले में स्थित मनावर
में जो साम्प्रदायिक झडपें हुई थीं उसमें अपने “बाग प्रिंट” के लिए पूरी दुनिया में मशहूर खत्री परिवार
को भी निशाना बनाया बनाते हुए उनके कारखाने में आग लगा दी गई थी. खत्री परिवार
द्वारा इसकी शिकायत पुलिस में भी की गयी थी लेकिन इसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई,
इन सब से तंग आकर यह परिवार जो
बाग प्रिंट के लिए 8 नेशनल और 7 यूनेस्को अवॉर्ड
जीत चुका है को यह कहना पड़ा कि
उनको लगातार धमकियाँ दी जा रही हैं, वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और डरे हुए हैं इसलिए अगर हालत नहीं सुधरे तो आने वाले कुछ महीनों वे देश
छोड़कर अमेरिका में बसने को मजबूर हो जायेंगें. इस पूरे हंगामे को लेकर हाई कोर्ट
में एक दायर जनहित याचिका भी दायर की गयी थी इस याचिका धार प्रशासन को अक्षम बताते हुए कहा गया था कि जिले में कानून व्यवस्था पूरी तरह
से बिगड़ चुकी है और प्रशासन अल्पसंख्यक,
दलित और
आदिवासियों को सुरक्षा मुहैया कराने में असफल साबित हो रहा है, यहाँ तक कि बाग प्रिंट के जरिए विश्व में भारत को प्रसिद्धि दिलाने वाले मोहम्मद यूसुफ खत्री का परिवार भी
असुरक्षित है.
सूबे में ईसाई समुदाय भी लगातार निशाने पर
रहा है जहाँ धर्मांतरण का आरोप लगाकर उन्हें प्रताड़ित किया जाता हैं. सबसे तजा
मामला रीवा जिले के मऊगंज का हैं जहाँ बीते जुलाई माह में बजरंग
दल के कुछ कार्यकर्ता ईसाई समाज के एक पास्टर और उसके एक साथी पर धर्म परिवर्तन कराने
का आरोप लगाते हुए उन्हें जबरदस्ती पास के जंगल में ले गए और वहां उनके साथबुरी तरह से मारपीट करने के बाद वहीँ पेड़ पर बांध कर चले आये.
बाद में उन्हें पुलिस वहां से वापस लायी.
इसी तरह की एक और घटना बीते 14 जनवरी की है जिसमें धार जिले के देहर गांव में धर्मांतरण
के आरोप में एक दर्जन ईसाई समुदाय के लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था
गिरफ्तार किये गये लोगों में नेत्रहीन दंपति भी
शामिल थे. इन आरोपियों का कहना था कि
उन्होंने किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवाया उन पर यह कार्रवाई
हिन्दुतत्ववादी संगठनों के इशारे की गयी
है, उनका यह
भी आरोप था कि पुलिस द्वारा उनके घर में
घुसकर तोड़फोड़ और महिलाओं के साथ बदसलूकी की गयी.
दरअसल मध्यप्रदेश में धर्मांतरण के नाम पर
ईसाई समुदाय लगातार निशाने पर रहा है .वर्ष 2013 में राज्यसरकार द्वारा
धर्मांतरण के खिलाफ क़ानून में संशोधन कर उसे और ज्यादा सख़्त बना दिया
गया था जिसके बाद अगर कोई नागरिक अपना मजहब बदलना चाहे तो इसके लिए उसे सबसे पहले
जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी. यदि धर्मांतरण करने वाला या कराने वाला ऐसा
नहीं करता है तो वह दंड का भागीदार होगा.इसी तरह ने नए संसोधन के बाद “जबरन
धर्म परिवर्तन” पर जुर्माने की रकम दस गुना तक बढ़ा दी गई है और कारावास की
अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई है. हिन्दुतत्ववादी संगठनों द्वारा ईसाई
समुदाय पर धर्मांतरण का आरोप लगाकर प्रताड़ित किया जाता रहा है, अब कानून में परिवर्तन के
बाद से उनके लिए यह और आसन हो गया है । इन सब के खिलाफ ईसाई समुदाय के तरफ से
आवाज भी उठायी जाती रही है, आर्कबिशप लियो कॉरनेलियो ने कह चुके हैं कि है कि मध्य प्रदेश में
धर्मांतरण विरोधी कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है और ईसाईयों के खिलाफ जबरन
धर्मांतरण के फर्जी केस थोपे जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह
चौहान भले ही अपने आप को नरमपंथी दिखाने का मौका
ना चूकते हों लेकिन उनके राज में जिस तरह से अल्पसंख्यकों को
निशाना बनाया जा रहा है उसे नजरअंदाज नहीं किया सकता है. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान दावा करते हैं कि
जबसे उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला है तब से
मध्यप्रदेश की धरती पर एक भी दंगा भी नहीं हुआ. लेकिन आंकड़े कुछ और ही बयान करते हैं. वर्ष 2012 और 2013 में दंगों के मामले में मप्र का तीसरा स्थान रहा है.जबकि 2014 में पांचवे स्थान
पर था इसी तरह से साल 2015 में जनवरी से दिसंबर के बीच करीब 41
सांप्रदायिक दंगे और तनाव की घटनाएं हुई हैं.
इन सबके बीच मध्यप्रदेश में “गाय” और “धर्मांतरण”
ऐसे हथियार है जिनके सहारे मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना बहुत आसान
और आम हो गया है. हिन्दुतत्ववादी संगठन इनका भरपूर फायदा उठा रहे हैं जिसमें
उन्हें सरकार और प्रशासन में बैठे लोगों का शह भी प्राप्त है. ऐसे में इन घटनाओं
की पुनरावृत्ति ना हो ऐसी उम्मीद कैसे की जाए ?
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