सर्जिकल स्ट्राइक, सेना और सियासत


जावेद अनीस



भारतीय सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह ने बीते 29 सितम्बर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जब यह जानकारी दी थी कि सेना ने एलओसी पार करके आतंकी ठिकानों पर हमले किए हैं उसके बाद से इस पर शुरू हुई सियासी नूराकुश्ती थमने का नाम नहीं ले रही है. स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद यह पहला मौका है जब सेना के किसी कारवाई को लेकर इतनी सियासत की जा रही है, इस घातक में सरकार और विपक्षी दल सभी शामिल है. जहाँ भाजपा और केंद्र सरकार के मंत्री सर्जिकल स्ट्राइक का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री को दे रहे हैं वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार सेना के इस कार्यवाहीं का सियासी फायदा उठाने से बचे.  ऐसा लगता है हमारी सियासत इस विवाद को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मंच पर ले जाना चाहती है. पूरे देश में युद्धोन्माद बढाया जा रहा है और दूसरों के देशभक्ति पर सवाल उठाये जा रहे हैं.

री हमले के बाद केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हर तरफ से हमले बोले जा रहे थे. दूसरी तरफ मोदी के कट्टर समर्थकों का धैर्य जवाब दे रहा था तो दूसरी तरफ युद्ध विरोधी लोग प्रधानमंत्री के सीने की नाप याद दिला रहे थे लेकिन जिस तरह से यह सर्जिकल स्ट्राइक किया गया है उससे अब हर तरफ प्रधानमंत्री की तारीफ हो रही है. यहाँ तक कि राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल जैसे उनके कट्टर विरोधियों ने भी इसपर ख़ुशी जताया.

हालांकि पाकिस्तान की तरफ से भारत के सर्जिकल स्ट्राइक के दावे का लगातार खंडन किया गया. संयुक्तराष्ट्र संघ और अमरीका की कुछ अखबारों में भी कुछ इसी तरह की ख़बरें आयीं. जिसके बाद से भारत में भी पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब करने के लिए सबूत सामने रखने की सलाह और मांग की जाने लगी. ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा भी चाहती थी सर्जिकल स्ट्राइक पर  सवाल उठें ताकि आगामी चुनावों को देखते हुए उग्र राष्ट्रवाद और युद्धोन्माद को हवा दी जा सके. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विपक्ष को निशाने पर लेते हुए  कहा भी कि “आप जैसे लोग जितना बोलेंगे हमारा वोट उतना ही बढे़गा”. शुरू में अरविन्द केजरीवाल और संजय निरुपम जैसे नेता इस जाल में फंसते हुए भी नजर आये. भाजपा समर्थकों और मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा बहुत ही आक्रमक तरीके सर्जिकल स्ट्राइक पर किसी भी तरह का सवाल उठाने या सबूत मांगने वालों को देशद्रोही बताया जाने लगा. इस पर विपक्षियों का  सवाल है कि सर्जिकल स्ट्राइक के नाम के साथ भाजपा नेताओं की होर्डिंग लगाना कौन सी देशभक्ति है ?

गले साल उत्तरप्रदेश में चुनाव होने वाले है, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद बीजेपी द्वारा यूपी में इसको लेकर बड़े पैमाने पर सियासी पोस्टर लगाये गये. सरकार भी खुद को शाबाशी देते हुए दिखाई दी रही है. देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ही इस बयानबाजी में सबसे आगे रहे हैं. उन्होंने  रहस्योघाटन किया है कि सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे 'संघ की शिक्षा' है, इससे पहले वे 'सर्जिकल स्ट्राइक' का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे चुके है, यही नहीं उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि  “सेना को अपनी ताकत का एहसास इस सरकार के आने के बाद हुआ है.”

शहरे के दौरान वाराणसी में लगाये गये एक पोस्टर में पीएम मोदी को भगवान राम, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को रावण और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को रावण के बेटे मेघनाद के रूप में दिखाया गया. बीजेपी सांसद मनोज तिवारी दिल्ली के एक रामलीला में अंगद का किरदार निभाते हुए सर्जिकल स्ट्राइक का गुणगान करते हुए नजर आये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल लखनऊ में दशहरा मनाया, वे ऐशबाग की मशहूर रामलीला में मुख्य अतिथि बन के गये वहां भी सर्जिकल स्ट्राइक ही केंद में रहा, वहां प्रधानमंत्री 'जयश्रीराम' के नारे लगाकर अपने वोटरों को सन्देश देते हुए नजर आये. विपक्षी दलों ने इसे एक धार्मिक समारोह का सियासी इस्तेमाल की कोशिश बताया. धर्म,सियासत और उग्र राष्ट्रवाद का यह मिश्रण एक आजमाया हुआ फार्मूला है जो जनता के वास्तविक मसलों से उनका ध्यान हटाता है.

रअसल सर्जिकल स्ट्राइक पर किसी ने भी सेना पर सवाल नहीं उठाया था जो लोग सबूत मांग रहे थे उनका कहना था कि जिस तरह से पकिस्तान सर्जिकल स्ट्राइक को नकार रहा है सरकार की तरफ से  उसको जवाब दिया जाना चाहिए. लेकिन भाजपा द्वारा इसे सेना पर सवाल उठाने से जोड़ दिया गया .

राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मसलों पर जरूरी है कि इसको लेकर देश में एकजुटता और आमराय हो. लेकिन दुर्भाग्य से यहाँ भी सियासी-नफा नुक्सान देखा जा रहा है. इसी बहाने विरोधियों के देशभक्ति पर सवाल उठाये जा रहे हैं. सर्जिकल स्ट्राइक के राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशेँ देश पर बहुत भारी पड सकती हैँ. हमारी सेना हमेशा से राजनीति से दूर रही है इसलिए बेहतर होगा कि उसे राजनीति में ना ढकेला जाए. हमें पडोसी पाकिस्तान से सीखना चाहिए जहाँ सेना और सियासत के घाल-मेल ने उसे एक विफल राष्ट्र में तब्दील कर दिया है. सेना की रूटीन कार्रवाइयोँ को लेकर पोस्टरबाजी और चुनावी फायदे की कवायद किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराई जा सकती. जरूरी है कि सैन्य कार्यवाई को लेकर स्वयं का प्रचार और राजनीति बंद हो, यूपी में लगाये गए पोस्टरों और फ्लेक्स हटाये लिए जायें और विरोधियों को देशद्रोही देना का तमगा बंद किया जाए.

मारे मौजूदा सरकार की दिक्कत यह है कि वह हमेशा चुनावी मूड में दिखाई पड़ती  है. प्रधानमंत्री के चुनावी भाषणों और सरकारी भाषणों में फर्क कर पाना मुश्किल है. संवेदनशील और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भी चुनावों को ध्यान में रखते हुए कदम उठाये जा रहे हैं. 

में यह भी याद रखना होगा कि हमारा मुकाबला पाकिस्तान से नहीं है,हम उससे काफी आगे बढ़ चुके हैं. पकिस्तान चाहेगा की हम अपने रास्ते से भटक जायें. जंगी माहौल हमें हमारे रास्ते से भटका सकता है और हमारे तरक़्क़ी के सफ़र में भी रूकावट पैदा हो सकती है. अगर ऐसा हुआ तो यह भी एक तरह से पाकिस्तान की जीत ही होगी.


पिछले दिनों टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कार्टूनिस्ट संदीप अधवार्व्यु का कार्टून प्रकशित हुआ है जिसमें पाकिस्तान में सेना को राजनेता के कंधे पर सवारी करते हुए और भारत में सेना के कंधे पर राजनेता को सवारी करते हुए दिखाया गया है. हमारे राजनेताओं को सेना के कंधे पर सवार होने की अपनी यह नयी आदत जल्दी ही बदल लेनी होगी नहीं तो कंधा बदल भी सकता है .

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