हिंसा नहीं सहेंगे, हिंसा नहीं करेंगे
हिंसा के खिलाफ आमजन
हिंसा नहीं सहेंगे, हिंसा नहीं
करेंगे
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देश में
भीड़ के सड़कों पर उतारकर लोगों की हत्या करने की घटनाएं बढ़ रही हैं |
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ऐसी
घटनाएं देश के मूलभूत सिद्धांत और संविधान की मर्यादा के ख़िलाफ़ है |
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इन
घटनाओं को यदि रोका नहीं गया तो हमारी आने
वाली पीढियां सवाल पूछेंगी |
राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी 01 जुलाई 2017
राष्ट्रपति ने देश के
नागरिकों, बुद्धिजीवियों और मीडिया का आह्वान किया की हमें ऐसे लोगों को
हतोत्साहित करने के लिए प्रतिरोध का काम करना चाहिए|
( दैनिक भास्कर, भोपाल 2 जुलाई 2017 पृसं 15)
शमशेर बहादुर सिंह की एक कविता है-
जो धर्म के अखाड़े हैं,उन्हें लडवा दिया जाए
जरुरत क्या की हिन्दुस्तान पर हमला किया जाए
मुझे मालूम था पहले ही ये दिन गुल खिलाएंगे
ये दंगे और धर्मो तक भी आखिर फेल जायेंगे
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ये मंसूबा है दक्षिण एशिया में धर्म का चक्कर चले
और हिन्दू –सिक्ख-मुस्लिम में रहे टक्कर
वो टक्कर कि सब कुछ युद्ध का मैदान बन जाए
कभी जैसा नहीं था,वैसा हिंदुस्तान बन जाए
दुर्भाग्य
से कवि की ये आशंका सही साबित हुई है,और दक्षिण एशिया के भारत,पाकिस्तान और
बांग्लादेश जैसे देश इस सर्वग्रासी बाजारवादी षड्यंत्र के शिकार
ओ गए,
फासिवादोउन्मुख साम्प्रदायिकता और पहचान की राजनीती ने इन देशों के जनतंत्र को डंस
लिया है और डसते जा रहे हैं,ये इलाका भीड़ तंत्र में तब्दील हो रहा है, किसी रेलवे
स्टेशन,किसी हवाई अड्डे,किसी होटल रेस्तरां में कुछ लोग धार्मिक नारे लगाते हैं और
नर संहार करते हैं.ऐसा लगता है जैसे हिंसा का नग्न ताण्डव किसी सुनियोजित
कोरियोग्राफी के तहत हो रहा है. दुर्भाग्य
से जीवन की जगह हत्या को प्रोत्सहित करने वाली विचार धाराओं की घोषित पहचान
धार्मिक ही होती है.
कुछ
समाचार जिन्होंने मानवता को शर्मसार किया और संवेदना को झिंझोड़ दिया उनमे 13
अप्रेल 2017 से पकिस्तान में मशाल खान नामक छात्र की ईशनिंदा के नाम पर नृशंस
हत्या की गई,इसके पूर्व 2011 में पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या
हुई.बांग्लादेश में 2015 के कई ब्लॉगरों को
धर्म निरपेक्षता की पक्षधरता के आरोप में मार डाला गया,बाबरी मस्जिद ध्वंस
के बाद हुए दंगो पर पाकिस्तानी की कवियत्री फहमिदा रियाज ने एक कविता तुम बिलकुल
हम जैसे शीर्षक से थी. उसमे कहा था की तुम भारतवासी क्यों पाकिस्तान की तरह
साम्प्रदायिक हो रहे हो. भारत का परिद्रश्य कम भयाभय नहीं हैं.दंगो के इतिहास में
अगर ना भी जाएँ तो जिस तरह तर्कवादियों नरेन्द्र दाभोलकर,गोविन्द पानसरे,एम् एस
कलबुर्गी की एक ही अंदाज़ में हत्या की गई उसने सारी दुनिया का ध्यान खींचा. गौ हत्या गौ तस्करी के नाम पर जिस तरह मोह.
अकलाख,पहलु खान और दो लोगों को असर में मारा गया वो जघन्य था.और मृतकों पर वो आरोप
साबित नहीं हुए जिनके आधार पर उन्हें शिकार बनाया गया.ताज़ातरीन उदाहरण ईद की
खरीददारी कर दिल्ली से लोकल में नजब्गढ़ आ रहे जुनैद और उसके दो भाइयों पर सांप्रदायिक
लोगों का हमला और उसमे जुनैद का क़त्ल सामने है
गुजरात
में मृत गाय की खाल निकालने वाले दलितों पर जैसे बर्बर अत्याचार किये गए उजागर हैं
बुरहानपुर
में बच्चों के क्रिकेट मेच के बाद हुए मजाक को वायरल करके जिस तरह एक नाबालिग को
पीटा गया वो संघातक है.पटियाला और दिल्ली में जिस तरह वकीलों के एक गिरोह ने एक
विचाराधीन आरोपी पर हमला न्याय को ही शर्मसार कर देने वाला था.
सारहनपुर को जिस तरह तीन –तीन बार हिंसा की आग में झोंका
गया ये सब घटना दिल दहला देने वाली हैं.
मन में सवाल उठता है की क्या डर का राष्ट्रियकरण किया जा रहा है?
कोई
महफूज़ नहीं है. समस्तीपुर में रिपोर्टर बिर्जेश की हत्या होती है.दिल्ली में
साम्प्रदायिक तनाव को रिपोर्ट करने वाले पत्रकार वासित मलिक पर केवल यह जानकर हमला
कर दिया जाता है की वो मुसलमान था.इस भीड़ तंत्र का जिम्मा कोई नहीं लेता कोई नेता
सामने नहीं आता अलबत्ता कुछ साधू साध्वी पलट सासंद बने लोगों द्वारा समर्थन
पीड़ितों को अपराधी बताने वाले बयानों और हिंस पाशविकता को जायज़ ठहराने वाले ज़हरीले
प्रचार से ना सिर्फ हिंसक उन्माद को बढ़ावा मिलता है बल्कि लगता है की शासन प्रशासन
की राह से वे ऐसा कर रहे हैं, हमारे यहाँ जन से मन की बात कहने की आज़ादी छीन रही
है| अभिव्यक्ति की आज़ादी को समाप्त कर देने की साजिश चल रही है| कुछ विचारधारओं को
लग रहा है की भावनाए नहीं भड़काई गई, धर्मान्धता का अँधा जूनून नहीं फैलाया गया तो
सत्ता नहीं मिलेगी.ये आकस्मिक नहीं की 2014 के बाद इन हमलों में भीषण तेज़ी आई है.
अकेले गौ रक्षा के नाम पर 97 प्रतिशत हमले बढ़े हैं. प्रमाणित है की 52 फीसद हमले
अफवाहों के आधार पर हुए हैं?
पिछले
आठ साल में 50.8 प्रतिशत मुस्लिम 7.9 प्रतिशत दलित और 4.8 प्रतिशत हिन्दू निशाने
पर रहे. दुर्भाग्यपूर्ण आंकड़ा है की शत-प्रतिशत मामलों में पीडतों के खिलाफ ही
मामले दर्ज हुए, ये आकंडे क्या साबित करते हैं ये बताने की जरुरत नहीं केवल
मुसलमान को मारने के लिए ही उन्माद नहीं फैलाया जा रहा है| सावधान किसी को मारने
के लिए ये उत्तेजना आप का भी इस्तेमाल कर सकती है|
झारखंड
में बच्चा चोरी की आफ्वाह में उत्तम और गंगेश भी मारा गया.
ग्रेटर
नॉएडा से गाय ले जा रहे धूपसिंग और जबर सिंह को प्राणों की भीख मांगते हुए भीड़ से
कहना पड़ा की हमें मत मारो हम हिन्दू हैं, आज नहीं चेते तो कभी भी कहीं भी कोई भी किसी
भी बहाने से मारा जा सकता है. गाली,लाठी,गोली सभी अपराध है, साम्प्रदाइक घृणा
अपराध बढ़ा रही है. साम्प्रदायिक अपराधों पर बहुसंख्यक मीडिया मौन है.क्या परोक्षतः
पक्ष में दीखता है| हम हिंसा के विरुध्द हैं वो हिन्दू धर्म का लबादा औड के आये या
किसी और धर्म हम प्रतिरोध के प्रति प्रतिबध्द हैं. “हम एक हैं तो करोड़ो हैं वर्ना
कुछ भी नहीं”
ना
हिंसा सहेंगे न हिंसा करेंगे साथ-साथ रहेंगे
भवदीय
भोपाल के सभी अमन
पसंद नागरिक
(भीड़ द्वारा निर्दोष व्यक्तियों की हत्याओं के विरोध में 7 जुलाई 2017 को बोर्ड ऑफिस चौराहे पर किये गये प्रदर्शन के दौरान जारी परचा )
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