त्राहि त्राहि नर्मदे
जावेद अनीस
हम पुराने समय से
ही कर्मकांड करने में माहिर रहे हैं जिसमें से ज्यादातर का मकसद खुद का कल्याण
करना होता था. इधर मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार भव्य कर्मकांड
आयोजित करने में बहुत आगे साबित हुई हैं. इसकी ताजा कड़ी “नमामि
नर्मदे यात्रा”” है
जो हाल ही में एक भव्य कार्यक्रम के साथ समाप्त हुई है. नर्मदा सेवा के नाम से
करीब पांच माह तक चली यह यात्रा नदी संरक्षण के बजाये अपने भव्य
प्रचार प्रसार और आयोजनों के लिए चर्चित रही है . यात्रा के दौरान बड़े-बड़े साधू-संत, राजनेता, फिल्मी सितारे,
हाईप्रोफाइल समाजसेवक करोड़ों रुपया खर्च करके बुलाये
गये जिनका शाही सत्कार किया गया. प्रचार-प्रसार में भी कोई कोताही नहीं बरती गयी
इसके लिए पूरे देश में विज्ञापन दिए गए. कुल जमा यह कि इस दौरान ज्यादातर ऐसे काम
किये गये जिनका नर्मदा संरक्षण से कोई सम्बन्ध ही नहीं था.यह एक
ऐसा अनुष्ठान था जिसमें नमामि नर्मदे यात्रा और खनन माफिया दोनों एक साथ चले.
कमजोर विपक्ष का
आरोप है कि इस पूरी यात्रा के दौरान सरकारी धन को पानी की तरह बहाया गया है जिसमें
करीब 1500 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं. अकेले समापन कार्यक्रम
में ही 100 करोड़ से ज़्यादा ख़र्च करने का आरोप लगाया गया है. उधर यात्रा के
समापन पर मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि यह एक सामाजिक आन्दोलन बन गया है और इस
यात्रा के बाद 25 लाख लोग नर्मदा सेवा से जुड़ गये हैं. जबकि हकीकत यह है कि यह
पूरी तरह से सरकारी यात्रा थी और जिस समापन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री इसके
सामाजिक आन्दोलन होने का दावा कर रहे थे उसमें शामिल होने वाले प्रति व्यक्ति को
500 रूपये भुगतान करने का दावा की किया गया है.खैर मुख्यमंत्री द्वारा नर्मदा के
उद्गम स्थल अमरकंटक को मिनी स्मार्ट सिटी बनाने की भी घोषणा कर दी गयी है.
विपक्ष जो भी कहे और नर्मदा का जो भी हो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को तो
इस अनुष्ठान का इनाम मिल गया लगता है. इस यात्रा के बाद देश के बहुचर्चित जल पुरुष
राजेन्द्र सिंह उन्हें 'नदी नायक' की उपाधि से नवाज चुके हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नर्मदा सेवा
यात्रा को दुनिया की एक असंभव और असामान्य घटना बताया है और जूना
अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि नमामि नर्मदे अभियान मध्य प्रदेश के समग्र विकास की दिशा में एक दिव्य
अनुष्ठान है और मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के लिए आधुनिक भागीरथ साबित हुए है.
पांच महीने तक चलायी गयी नर्मदा
सेवा यात्रा का समापन 15 मई को
अमरकंटक में किया गया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए. इस भव्य कार्यक्रम
से श्री रविशंकर द्वारा पिछले साल दिल्ली में यमुना के किनारे किये गए भव्य
कार्यक्रम की याद ताजा हो गयी जिस पर एनजीटी द्वारा गंभीर सवाल उठाये गए थे. यूनेस्को द्वारा भारत के जिन 10 जैव मंडल रिजर्वों को विश्व धरोहर घोषित किया गया है उसमें अमरकंटक भी शमिल है लेकिन ऐसा लगता है कि इतने
भव्य आयोजन से पहले इसपर ध्यान नहीं दिया गया. एनजीटी का पहले से ही निर्देश है कि
अमरकंटक में आयोजित होने वाले कार्यकर्मों में डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को शामिल
होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन इस निर्देश को दरकिनार करते हुए 5 लाख लोगों को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया. इसके लिये
विधायकों और प्रशासन को भीड़ जुटाने के लिए बाकायदा
लक्ष्य दिए गये थे. सोशल मीडिया पर सिंगरौली के कलेक्टर द्वारा अपर मुख्य सचिव को
लिखा पत्र भी वायरल हुआ जिसमें प्रधानमंत्री की सभा में जनमानस को लाने ले जाने के
लिए 85,60000
रुपये उपलब्ध कराने
की मांग की गयी थी. समापन कार्यक्रम के बाद क्षेत्र की कितनी बर्बादी हुई होगी इसका अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल नहीं हैं.
“जितने पैसा शिवराजजी ने नर्मदा सेवा यात्रा में लगाया उतने में एक नई नर्मदा खोद लेते” यह वाक्य नर्मदा के किनारे रहने वाले एक ग्रामीण का
है. नई नर्मदा खोद लेने वाली बात बढ़ा-चढ़ा कर कही गयी जरूर लगती है लेकिन उस ग्रामीण ने इसके पीछे जो गणित दिया है उसपर ध्यान देने की जरूरत है, उनका कहना है कि नर्मदा सेवा यात्रा पर सीधे तौर पर कुल 1500 करोड़ रूपये खर्च होने की बात कही जा रही है लेकिन इसमें जिस
तरह से आंगनबाड़ी से लेकर टॉप तक स्टेट मशीनरी को लगाया गया था उसका खर्चा शामिल
नहीं है, जिलों के लगभग सभी विभागों से अधिकारी इसमें लगे रहे उनका खर्चा जोड़ लीजिये, इसकी वजह से आम जनता का रूटीन कार्य प्रभावित हुआ उसका नुक्सान अलग से जोड़ा जाना चाहिए.
विपक्ष का कहना
है कि एक दिन के समापन कार्यक्रम के आयोजन में ही 100 करोड़ रूपयों से ज्यादा
खर्चा किया गया है. जिसमें पूरे सूबे से लगभग लाखों लोगों की भीड़ को लाने-ले जाने
पर परिवहन में 17 करोड़ 65 लाख रूपये, नाश्ता-भोजन पर लगभग 4 करोड़ 12 लाख रूपये, टेंट आदि पर
5
करोड़ रूपये और प्रचार-प्रचार
पर लगभग 50
करोड़ रूपये का भारी-भरकम
खर्च शामिल है. यही नहीं 15 मई को हुए समापन कार्यक्रम को स्वच्छता अभियान के
प्रेरकों के लिए एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम
के तौर पर पेश करते हुए आयोजन में पहुंचने वाले लोगों को व्यक्ति 500 रू का भुगतान भी करने
का आरोप है.
जाहिर है नर्मदा के नाम पर राज्य के खजाने को बहुत बेदर्दी से लुटाया गया है और वह भी राजनैतिक लाभ व स्वयं की
ब्रांडिंग के लिए. सब मान रहे हैं कि रुपया पानी की तरह बहाया गया लेकिन सूबे में मजबूत विपक्ष
ना होने के कारण इसका कारगर विरोध नहीं हो सका. विज्ञापन के दबाव में मीडिया ने भी
अपना मुंह बंद रखा.
नर्मदा को
मध्यप्रदेश की जीवनधारा माना जाता है, लेकिन यह नदी लगातार खत्म हो
रही है, पहले जहाँ जहाँ गर्मियों
में दस फीट में पानी होता था अब मुश्किल से घुटने भर पानी बचता है. आज हालात यह
हैं कि कई स्थानों पर नदी का प्रवाह बंद हो गया है, नदी में शैवाल बढ़ गए
हैं
और इसका पानी लगातार गन्दा होता जा रहा है. मुख्यमंत्री
शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा नदी को बचाने के लिए 11 दिसंबर 2016 से 'नमामि देवि नर्मदे' - सेवा यात्रा की शुरुआत की थी. 148 दिन में करीब 3300
किमी की दूरी तय की गई, 16 ज़िलों से गुज़रने
के बाद सोमवार 15 मई को इस यात्रा का समापन किया गया. लेकिन नर्मदा सिर्फ
जीवनधारा नहीं है इसका धार्मिक और राजनीतिक महत्त्व भी है यह सूबे के 96 विधानसभा क्षेत्रों से होकर बहती है.
अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में नर्मदा सेवा यात्रा के राजनीति,
धर्म और भावनाओं के घालमेल होने से कौन इनकार कर सकता है. नर्मदा मध्यप्रदेश के
लोगों के लिए नर्मदा मैया हैं. शिवराज सिंह चौहान से अच्छा कौन समझता होगा कि माँ नर्मदा
से जनता के एक बड़े हिस्से की धार्मिक आस्थायें जुडी हुई हैं.
मध्यप्रदेश सरकार
बहुत कुशलता के साथ खुद को हिन्दू धर्म के संरक्षक के तौर पर पेश करने में कामयाब
रही है. यहाँ कई बार राज्य और धार्मिक संस्था के बीच का फर्क मिटता हुआ नजर आया है. पिछले साल सरकार
ने खुद कुंभ का आयोजन किया था, यह पूरी तरह से सरकारी आयोजन था जिसमें संघ परिवार
के संगठनों की भी बड़ी भूमिका थी. पिछले साल नवम्बर में लोक मंथन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसे राष्ट्रवादी
विचारों के महाकुंभ के तौर पर पेश किया गया था. “नमामि
नर्मदे यात्रा” इसी कड़ी का ही एक और आयोजन था. इसी यात्रा के दौरान देशभर के अख़बारों में
मध्य प्रदेश में आदि शंकराचार्य प्रकटोत्सव के आयोजन के विज्ञापन छपे थे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने ब्लॉग पर लिखा था कि ‘“आज
से लगभग 1,200 वर्ष
पूर्व यानी 792 ईस्वी
में आदि शंकराचार्य मध्य प्रदेश में नर्मदा तट पर ज्ञान प्राप्ति के लिए आए थे.सरकार
ने फ़ैसला लिया है कि मध्य प्रदेश में आदि शंकराचार्य के पाठ शिक्षा की पुस्तकों
में जोड़े जाएंगे साथ ही ओंकारेश्वर में शंकर संग्रहालय, वेदांत प्रतिष्ठान और शंकाराचार्य की बहुधातु मूर्ति
स्थापित की जाएगी”.’
बताया जाता है कि शिवराज सिंह के करीब एक दशक के शासनकाल
में मध्य प्रदेश में करीब 2 लाख करोड रूपए से ज्यादा की कीमत
का अवैध उत्खनन किया जा चूका है जिसमें नेताओं, अफसरों
और माफिया की मिलीभगत रही है, कहा तो यहाँ तक जाता है कि नदियों पर सरकार ने जितने
पुल नहीं बनाए, उससे ज्यादा तो अवैध खदान करने वालों ने ट्रकों का लंबा चक्कर
बचाने के लिए बना दिए हैं. अवैध खनन को लेकर जितने मामले प्रदेश की अदालतों में
हैं, उतने अन्य किसी राज्य में नहीं हैं. शिवराज के पूरे कार्यकाल में माइनिंग माफिया पूरी तरह
हावी रहा है, अकेले 2016 में खनन माफिया एक आईपीएस अधिकारी समेत 13 लोगों की जान ले चुका है. अवैध खनन से प्रदेश की प्रमुख नदियां सूख रही हैं और कई तो
लुप्त हो चुकी हैं. अभी भी शायद ही ऐसी कोई छोटी-बड़ी नदी हो, जिस पर
रेत का उत्खनन न हो रहा हो. नर्मदा जिसके नाम पर इतना बड़ा ताम-झाम किया गया, में पोकलेन
और जेसीबी मशीनों से इतना खनन किया जा चूका है कि उसके तट खोखले हो चुके हैं. खुद
मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुधनी, नसरुल्लागंज अवैध उत्खनन के सबसे बड़े
गढ़ के तौर पर बदनाम रहे हैं.
ढकोसला देखिये राष्ट्रीय हरित
प्राधिकरण अवैध खनन रोकने के लिए राज्य सरकार को कई बार सख्त निर्देश जारी कर चूका है लेकिन शिवराज सिंह
की सरकार हर बार कान में तेल डाल कर बैठी रही क्योंकि अवैध रेत-खनन को सरकार में बैठे लोगों का संरक्षण प्राप्त है, आरोप
यहाँ तक लगते हैं कि कई रेत ठेकेदार मुख्यमंत्री के रिश्तेदार हैं. इस यात्रा के दौरान संजय पाठक कि उपस्थिति ध्यान देने
लायक रही. वे शिवराज सरकार में सबसे अमीर मंत्री हैं और मुख्यमंत्री के चहेते भी,
कुछ दिनों पहले ही
उनका कटनी हवाला कांड में नाम आ चूका है. कुछ सालों पहले ही जब संजय पाठक कांग्रेस में थे तो भाजपा के लोग ही उन्हें
माइनिंग माफिया कहा करते थे. आरोप गलत भी नहीं थे संजय
पाठक मध्य प्रदेश में खनन के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक माने जाते रहे हैं.
शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में ही मंडला जिले के
चुटका में नर्मदा किनारे ही परमाणु संयंत्र के साथ 35 थर्मल पॉवर प्लांट प्रस्तावित किये गए हैं जिसके लिये पानी नर्मदा से ही
लिया जाएगा और बाद में इसके बिजलीघर नर्मदा नदी को ही प्रदूषित करेंगें. इसी तरह
से प्रदेश में कई बड़े प्रोजेक्ट आ रहे हैं जो नर्मदा को ही नुक्सान पहुचायेगें. इस
साल के शुरुआत में ही राज्य सरकार ने होशंगाबाद में कोका कोला संयंत्र को स्वीकृति दी है जिसे पर्यावरणविद नर्मदा
नदी के लिए एक गंभीर खतरा बता रहे, उनका कहना है कि कोका-कोला संयंत्र प्रतिदिन नर्मदा
से कम से कम 2.5 लाख गैलन पानी का उपयोग करेगा.
शायद इसीलिये
‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की मेधा पाटकर ने आरोप लगाया था कि ‘शिवराज सरकार ने नर्मदा
सेवा यात्रा नर्मदा के व्यावसायिक उपयोग करने के लिये निकला है जिसका सीधा लाभ आने
वाले समय में उद्योगपतियों को मिलेगा.’ आलोक अग्रवाल जो एन.बी.ए.
के साथ लम्बे समय तक काम कर चुके हैं और वर्तमान में मध्यप्रदेश में आम आदमी
पार्टी के संयोजक का काम देख रहे हैं, का आरोप है कि शिवराज सिंह के कार्यकाल में
पूरी नर्मदा घाटी में नर्मदा के दोनों तरफ रेत खदाने खोद खोद कर पूरी नर्मदा को
छलनी कर दिया गया है, नर्मदा में बड़े बांधों में लाखों एकड़ जंगल को डुबो
दिया गया है जिसकी 1% भी भरपाई नहीं हो पाई है. नर्मदा के लाखों पुत्र-पुत्रियों
को बिना पुनर्वास डुबो दिया गया है ऐसे में संपूर्ण नर्मदा को बर्बाद करने के बाद
शिवराज सिंह द्वारा नर्मदा सेवा यात्रा के नाम पर मध्य प्रदेश के आम आदमी का अरबों
रुपया खर्च करना सबसे बड़ा ढोंग है.
एक और
बानगी देखिये जिस समय नर्मदा सेवा का भव्य समापन हो रहा था ठीक उसी समय भाजपा नेता
कमल पटेल अवैध उत्खनन को लेकर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे थे, उन्होंने
बहुत ही खुले तौर पर कहा कि ‘“एक तरफ सीएम शिवराज सिंह चौहान नर्मदा को स्वच्छ
रखने के लिए नर्मदा सेवा यात्रा निकाल रहे हैं वहीं प्रशासन के कुछ अफसर रेत
माफिया के साथ मिलकर सीएम की मंशा को पलीता लगाते हुए नर्मदा का सीना चीर रहे हैं”.’
कमल पटेल ने एनजीटी में नर्मदा में हो रहे
रेत खनन की शिकायत भी दर्ज कराई है जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का
विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है.
इस
पूरी यात्रा को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही उठाया जा रहा था कि अगर नर्मदा के संरक्षण को लेकर शिवराज सिंह चौहान इतने ही ईमानदार हैं तो उन्होंने अवैध खनन पर पूरी
तरह से प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया. अमरकंटक में खुद
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपरोक्ष रूप से नर्मदा के खनन पर
चिंता जताई थी. जिसके बाद 22 मई को मध्यप्रदेश के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा अचानक नर्मदा में अवैध रेत खनन
रोकने के लिए एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने की घोषणा की गयी है और समिति
की रिपोर्ट आने तक नर्मदा में रेत खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है.
हालांकि सरकार के इस घोषणा को विधान सभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह ने ढोंग बताते हुए कहा है कि ‘एनजीटी
ये प्रतिबंध वर्ष 2015 में
ही लगा चुकी है, तब सरकार ने ही महंगी रेत का
तर्क देकर इस प्रतिबन्ध को हटवाया था, यह कदम सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिए उठाया
गया है,
क्योंकि मानसून में रेत
उत्खनन का कार्य नहीं होता
है.’ प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता के. के. मिश्रा ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि ‘सरकार
के इस फैसले से मुख्यमंत्री के उन रिश्तेदारों को फायदा पहुंचेगा जिन्होंने बड़ी मात्रा में रेत जमा कर रखे
हैं.’ इस फैसले के बाद सीपीएम के राज्य सचिव बादल सरोज ने फेसबुक पर लिखा कि
‘जिन्हें दुआ करना आता है और उसमें यकीन है, वे नर्मदा के लिये दुआ करें”.’
नर्मदा को मैया बुलाने वाले भक्त संस्कृत में एक श्लोक पढते हैं जिसका एक
अंश है ““नर्मदा तुम्हें नमस्कार है, मुझे विषधर सापों से बचाओ”.” फिलहाल तो नर्मदा को ही ढोंगियों से बचाने की जरूरत
है .
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