सभ्यताएं खुद अपना विनाश कर लेती हैं :- स्टीफन हॉकिंग


सभ्यताएं खुद अपना विनाश कर लेती हैं - स्टीफन हॉकिंग


    अनुवाद – अशोक पांडे




"स ब्रह्माण्ड से अधिक बड़ा या पुराना कुछ नहीं है. मैं जिन प्रश्नों की बाबत बात करना चाहूँगा वे हैं: पहला, हम कहाँ से आये? ब्रह्माण्ड अस्तित्व में कैसे आया? क्या हम इस ब्रह्माण्ड में अकेले हैं? क्या कहीं और भी एलियनजीवन है? मानव जाति का भविष्य क्या है?

1920 के दशक तक हर कोई सोचता था कि ब्रह्माण्ड मूलतः स्थिर और समय के सापेक्ष अपरिवर्तनशील है. फिर यह खोज हुई कि ब्रह्माण्ड फैल रहा था. सुदूर तारामंडल हमसे और दूर जा रहे थे. इसका अर्थ यह हुआ कि पहले वे एक दूसरे के नज़दीक रहे होंगे. यदि हम पीछे इसके विस्तार में जाएं तो पाएंगे कि आज से करीब १५ बिलियन वर्ष पहले हम सब एक दूसरे के ऊपर रहे होंगे. यही बिग बैंगथा, ब्रह्माण्ड की शुरुआत.

लेकिन क्या बिग बैंग से पहले भी कुछ था? अगर नहीं था तो ब्रह्माण्ड की रचना किसने की? बिग बैंग के बाद ब्रह्माण्ड उस तरह अस्तित्व में क्यों आया जैसा वह है? हम सोचा करते थे कि ब्रह्माण्ड के सिद्धांत को दो भागों में बांटा जा सकता है. पहला यह कि कुछ नियम थे जैसे मैक्सवेल की समीकरण वगैरह और यह देखते हुए कि एक दिए गए समय में समूचे स्पेस में उसकी जो अवस्था थी उसमें सामान्य सापेक्षता ने ब्रह्माण्ड के विकास को निर्धारित किया. और दूसरा यह कि ब्रह्माण्ड की प्रारंभिक अवस्था का कोई प्रश्न ही नहीं था.

हले हिस्से में हमने अच्छी तरक्की की है, और अब हमें केवल सबसे चरम परिस्थितियों के अलावा अन्य सभी परिस्थितियों में विकास के नियमों का ज्ञान है. लेकिन अभी हाल के समय तक हमें ब्रह्माण्ड के लिए प्रारम्भिक परिस्थितियों की बाबत बहुत कम ज्ञान था. यह और बात है कि विकास के नियमों में इस तरह का वर्गीकरण और प्रारम्भिक परिस्थितियां अलग और विशिष्ट होने के साथ ही समय और स्पेस पर निर्भर होती हैं. चरम परिस्थितियों में, सामान्य सापेक्षता और क्वांटम थ्योरी समय को स्पेस में एक अलग आयाम की तरह व्यवहार करने देती हैं. इस से समय और स्पेस के बीच का अंतर मिट जाता है, और इसका यह अर्थ हुआ कि विकास के नियम प्रारम्भिक परिस्थितियों को भी निर्धारित कर सकते हैं. ब्रह्माण्ड अपने आप को शून्य में से स्वतःस्फूर्त तरीके से रच सकता है.

सके अलावा, हम एक प्रायिकता की गणना कर सकते हैं कि ब्रह्माण्ड अलग-अलग परिस्थितियों में अस्तित्व में आया था. ये भविष्यवाणियाँ कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड के WMAP उपग्रह के पर्यवेक्षणों, जो कि बहुत शुरुआत के ब्रह्माण्ड की एक छाप है, से बहुत ज्यादा मेल खाती हैं. हम समझते हैं कि हमने सृष्टि के रहस्य की गुत्थी को सुलझा लिया है. संभवतः हमने ब्रह्माण्ड का पेटेंट करवाकर हर किसी से उसके अस्तित्व के एवज़ में रॉयल्टी वसूलनी चाहिए.

ब मैं दूसरे बड़े सवाल से मुख़ातिब होता हूँ क्या हम अकेले हैं या ब्रह्माण्ड में और भी कहीं जीवन है? हम विश्वास करते हैं कि धरती पर जीवन स्वतःस्फूर्त ढंग से उपजा, सो यह संभव होना चाहिए कि जीवन दूसरे उपयुक्त ग्रहों पर भी अस्तित्व में आ सके जिनकी संख्या पूरी आकाशगंगा में काफी अधिक है .

लेकिन हम नहीं जानते कि जीवन सबसे पहले कैसे अस्तित्व में आया. हमारे पास इसके पर्यवेक्षणीय प्रमाणों के तौर पर दो टुकड़े उपलब्ध हैं. पहला तो 3.5 बिलियन वर्ष पुराने एक शैवाल के फॉसिल हैं. धरती 4.6 बिलियन वर्ष पहले बनी थी और शुरू के पहले आधे बिलियन सालों तक संभवतः बहुत अधिक गर्म थी. सो धरती पर जीवन अपने संभव हो सकने के आधे बिलियन वर्षों बाद अस्तित्व में आया जो कि धरती जैसे किसी गृह के दस बिलियन वर्षों के जीवनकाल के सापेक्ष बहुत छोटा कालखंड है. इससे यह संकेत मिलता है कि जीवन के अस्तित्व में आने की प्रायिकता काफी अधिक है. अगर यह बहुत कम होती तो आप उम्मीद कर सकते थे कि ऐसा होने में उपलब्ध पूरे दस बिलियन वर्ष लग सकते थे.

दूसरी तरफ, ऐसा लगता है कि अब तक हमारे गृह पर अजनबी ग्रहों के लोगों का आगमन नहीं हुआ. मैं UFO’s की रपटों को नकार रहा हूँ. वे सनकियों या अजीबोगरीब लोगों तक ही क्यों पहुँचते हैं? अगर ऐसा कोई सरकारी षडयंत्र है जो इन रपटों को दबाता है और अजनबी ग्रहवासियों द्वारा लाये गए वैज्ञानिक ज्ञान को अपने तक सीमित रखना चाहता है, तो ऐसा लगता है कि यह नीति अब तक तो पूरी तरह से असफल रही है. और इसके अलावा SETI प्रोजेक्ट के विषद शोध के बावजूद हमने किसी भी तरह के एलियन टीवी क्विज़ शोज़ के बारे में नहीं सुना है. इससे संभवतः संकेत मिलता है कि हमसे कुछ सौ प्रकाशवर्ष की परिधि में हमारे विकास की अवस्था में कहीं कोई एलियन सभ्यता नहीं है. इसके लिए सबसे मुफ़ीद उपाय यह होगा कि एलियनों द्वारा अपहृत कर लिए जाने की अवस्था के लिए बीमा पालिसी जारी की जाएं.

ब मैं सबसे आख़िरी बड़े प्रश्न पर आ पहुंचा हूँ; मानव सभ्यता का भविष्य. अगर हम पूरी आकाशगंगा में अकेले बुद्धिमान लोग हैं, तो हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारा अस्तित्व बना रहे और चलता रहे. लेकिन हम लोग अपने इतिहास के एक लगातार अधिक खतरनाक होते हुए दौर में प्रवेश कर रहे हैं. हमारी आबादी और हमारी धरती के सीमित संसाधनों का दोहन बहुत अधिक तेज़ी से बढ़ रहे हैं, साथ ही हमारी तकनीकी क्षमता भी बढ़ रही है कि हम पर्यावरण को अच्छे या बुरे दोनों के लिए बदल सकें. लेकिन हमारा आनुवांशिक कोड अब भी उन स्वार्थी और आक्रामक भावनाओं को लिए चल रहा है जो बीते हुए समय में अस्तित्व बचाए रखने के लिए लाभदायक होती थीं. अगले सौ सालों में विनाश से बच पाना मुश्किल होने जा रहा है, अगले हज़ार या दस लाख साल की बात तो छोड़ ही दीजिये.

मारे अस्तित्व के दीर्घतर होने का इकलौता अवसर इस बात में निहित है कि हम अपनी पृथ्वी ग्रह पर ही न बने रहें, बल्कि हमें अन्तरिक्ष में फैलना चाहिए. इन बड़े सवालों के उत्तर दिखलाते हैं कि पिछले सौ सालों में हमने उल्लेखनीय तरक्की की है. लेकिन यदि हम अगले सौ वर्षों से आगे भी बने, बचे रहना चाहते हैं तो हमारा भविष्य अन्तरिक्ष में है. इसीलिये मैं हमेशा ऐसी अन्तरिक्ष यात्राओं का पक्षधर रहा हूँ जिसमें मनुष्य भी जाएँ.

पनी पूरी ज़िन्दगी मैंने ब्रह्माण्ड को समझने और इन सवालों के उत्तर खोजने की कोशिश की है. मैं भाग्यशाली रहा हूँ कि मेरी विकलांगता गंभीर अड़चन नहीं बनी. वास्तव में इसके कारण मुझे उससे अधिक समय मिल सका जितना अधिकतर लोग ज्ञान की खोज में लगाते हैं. सबसे आधारभूत लक्ष्य है ब्रह्माण्ड के लिए एक सम्पूर्ण सिद्धांत, और हम अच्छी तरक्की कर रहे हैं.

मैं समझता हूँ कि यह बहुत संभव है कि कुछ सौ प्रकाशवर्षों के दायरे में हम इकलौती सभ्यता हों; ऐसा न होता तो हमने रेडियो तरंगें सुनी होतीं. इसका विकल्प यह है कि सभ्यताएं बहुत लम्बे समय तक नहीं बनी रह पातीं, वे खुद अपना विनाश कर लेती हैं."





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