कमलनाथ की फील्डिंग
जावेद अनीस
(17 to 23 September 2018 ) Chauthi Duniya |
लम्बे समय बाद
मध्यप्रदेश में कांग्रेस को ऐसा अध्यक्ष मिला है जो क्षत्रपों को साधने और पार्टी
पर नियंत्रण पाने में कामयाब नजर आ रहा है. कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के
तौर पर इस साल 1 मई को कमान
संभाला था आज चार महीने बीत जाने के बाद संगठन पर उनका नियंत्रण साफ झलकता है. इस
दौरान भोपाल स्थित पार्टी कार्यालय मिजाज बदला है साथ ही पार्टी में अनुशासन भी बढ़ा है. कमलनाथ यह सन्देश देने में काफी हद तक
कामयाब रहे है कि पार्टी में पद या टिकट की दावेदारी पहले की तरह किसी गुट के
सदस्य के आधार पर नहीं बल्कि परफारमेंस के आधार पर तय होगा. पार्टी ने कमलनाथ के
साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था जिसके
बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिये दो ही दावेदार रह
गए थे. आज जनता के बीच कमलनाथ के मुकाबले ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही ज्यादा
लोकप्रिय हों लेकिन पार्टी संगठन पर कमलनाथ का नियंत्रण ज्यादा नजर आ रहा है. अपने
उम्र का 70 साल पार कर चुके कमलनाथ बहुत अच्छे तरीके से जानते है कि मुख्यमंत्री
बनने का उनका यह पहला और आखिरी मौका है इसीलिये अपने लिये कोई कसर बाकी नहीं रखना
चाहते हैं वो बहुत सधे हुये तरीके से कांग्रेस और खुद अपने लिये फील्डिंग जमा रहे
हैं.
चार महीने में “कमल”
की कांग्रेस ?
कमलनाथ ने हमेशा से ही खुद को छिंदवाड़ा तक ही सीमित रखा
था, वे जीवन भर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे.
मध्यप्रदेश की राजनीति में उनकी भूमिका किंग मेकर तक
ही सीमित रही है. यह पहली बार है जब वे मध्यप्रदेश की राजनीति में इस तरह से
सक्रिय हुये हैं. जाहिर है अब वे किंगमेकर नहीं किंग बनना चाहते हैं. कमलनाथ के आने के बाद से
उनकी छाप हर जगह देखने को मिल रही है, लम्बे समय बाद भोपाल स्थित प्रदेश कार्यालय
की डेंटिंग पेंटिंग हो रही है और अब वहां संजय गांधी की तस्वीरें भी लगा दी गयी
हैं जो इस बात का संकेत है कि अब यहां नियंत्रण कमलनाथ का है.
इस साल एक मई को
उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी
मिली थी, इन चार महीनों के दौरान उनका फोकस संगठन और गठबंधन पर रहा है, वे खुद कहते हैं कि “पिछले 4 महीने में मैंने
संगठन के काम में ज्यादा जोर दिया है, हमारी लड़ाई बीजेपी संगठन से है, धनबल
से है. हम मैदान में चले जाएं और पीछे कोई संगठन ना हो, कोई सिस्टमैटिक
अप्रोच ना हो, तो ठीक नहीं”. इसी सोच के चलते इस दौरान उन्होंने
पंद्रह साल से सुस्त पड़ चुके संगठन को सक्रिय करने पर जोर लगाया है. कमलनाथ, जिनका दावा है कि करीब 4 माह में उन्होंने संगठन में जान
फूंक दी है और जल्दी ही पार्टी बूथ स्तर तक खड़ी दिखाई देगी. अभी तक करीब सवा लाख से ज़्यादा पदाधिकारियों की नियुक्ति की जा चुकी है और प्रदेश जिले, ब्लॉक, उपब्लॉक, मंडल, सेक्टर और बूथ
तक की कमेटियां में नियुक्ति के
काम को लगभग पूरा कर लिया गया है. वे कहते हैं कि ‘अब तक कांग्रेस के
संगठन को मजबूत करने में व्यस्त था अब मैदानी मुकाबले के लिए निकल रहा हूं.’
पिछले चार
महीनों में संगठन में जान फूंक देने के दावे में कितना दम है इसका पता आने वाले
दिनों में चल ही जायेगा लेकिन इसका श्रेय वे खुद अकेले ही ले रहे हैं. कमलनाथ ने पिछले चार महीनों के दौरान सिंधिया
के मुकाबले अपनी दावेदारी को मजबूत करने का काम भी किया है. वे अपने पत्ते बहुत धीरे-धीरे लेकिन बहुत सधे हुये तरीके से खोल रहे हैं, प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने यह संदेश लगातार दिया है कि वे
निर्णायक भूमिका में है, कमान उनके हाथ में है और पार्टी की तरफ से शिवराज के
मुकाबले वही हैं. अभी तक सीधे तौर पर कोई दावा तो नहीं किया है लेकिन खुद को
शिवराज के मुकाबले खड़ा करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ा है. वे लगातार सन्देश देते
आये हैं कि मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी निभाने के
लिये वे पूरी तरह से तैयार हैं और यदि सूबे में कांग्रेस सत्ता
में आती है तो मुख्यमंत्री पद के पहले दावेदार वही होगें.
कमलनाथ का
व्यवहार भावी मुख्यमंत्री की तरह है और शिवराज की घोषणाओं के मुकाबले वे वचन दे
रहे हैं. अभी तक वे कई वचन दे चुके हैं जिनमें से कुछ प्रमुख इस तरह से हैं, कांग्रेस अगर सत्ता में आयी तो किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा, तत्काल प्रभाव से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमशः 5 और 3 रुपए की
कमी की जायेगी, प्रदेश की हर पंचायत में गोशाला का निर्माण
किया जाएगा, भाजपा के शासन काल में प्रदेश में हुई व्यापमं
घोटाले जैसी गड़बड़ियों की जांच के लिये ‘जन आयोग’का गठन किया
जायेगा, व्यापम परीक्षा से जुड़े करीब 15 लाख परीक्षार्थियों की फीस वापस किया
जायेगा आदि.
छिंदवाड़ा मॉडल
की पेशकश
मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों “छिंदवाड़ा मॉडल” की बहुत चर्चा है, इसको लेकर कमलनाथ ने कहा था कि “शिवराज छिंदवाड़ा आकर बुधनी और छिंदवाड़ा के विकास की तुलना
करते-करते हैरान होते रहते हैं”. छिंदवाड़ा कमलनाथ का कर्मक्षेत्र रहा है यहाँ से वे 9 बार सांसद चुने जा चुके हैं. इसी “छिंदवाड़ा मॉडल”
को कमलनाथ के काबलियत के तौर पर पेश किया जा रहा है. प्रदेश
कांग्रेस अध्यक्ष का पद सँभालने के बाद ही कमलनाथ ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा
था कि “छिंदवाड़ा विकास में प्रदेश के कई जिलों से आगे है,
जाकर छिंदवाड़ा का विकास देखें और फिर लोगों के बीच जाकर विदिशा और छिंदवाड़ा के
विकास के बारे में बताएं”.
पिछले दिनों भोपाल में “छिंदवाड़ा मॉडल” नाम की एक पुस्तक का विमोचन किया गया इस
विमोचन समारोह के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर
द्वारा “छिंदवाड़ा मॉडल”
की जमकर तारीफ की गयी और छिंदवाड़ा
सांसद कमलनाथ की शान में कसीदे गढ़े गये. इस दौरान गौर ने कमलनाथ को विकास पुरुष
बताते हुये कहा कि उनके संसदीय क्षेत्र
छिंदवाड़ा का जिस तरह और तेजी से विकास हुआ वोह तारीफ़ के काबिल है,
कमलनाथ की कोई बराबरी नहीं कर सकता, छिंदवाड़ा का
विकास मॉडल सर्वश्रेष्ठ है. बाबूलाल गौर यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि ‘कमलनाथ का
मध्य प्रदेश के विकास में भी योगदान है, जब यूपीए की सरकार थी तब मैं विकास के लिए
पैसा लेने कमलनाथ के पास गया, तो उन्होंने
मुझे निराश नहीं किया बल्कि मेट्रो की डिटेल सर्वे रिपोर्ट के लिए बिना देर किए
तीन करोड़ रुपए दिए थे.’ बाबूलाल गौर द्वारा इस तरह से खुलकर कमलनाथ की तारीफ करने
से सूबे के सियासत में हलचल मच गई, इसपर कमलनाथ ने कहा कि 'बाबूलाल गौर जी
एक सच्चे इंसान हैं, बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं, जिन्होंने
सच्चाई स्वीकार की'. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह
द्वारा भी कमलनाथ की तारीफ करने पर बाबूलाल गौर की जय जयकार की गयी उन्होंने ट्वीट
किया कि "बाबूलाल ग़ौर भाजपा में एक मात्र शेर है, गौर साहब
आपकी हिम्मत की मैं दाद देता हूँ, गौर साहब ज़िंदाबाद.”
खुद दिग्विजय सिंह भी “छिंदवाड़ा मॉडल” की तारीफ करते
हुये मुख्यमंत्री के
तौर पर भावी कमलनाथ की दावेदारी को आगे बढ़ा चुके हैं. पिछले दिनों अपने बेटे के एक
ट्वीट को रीट्वीट किया था जिसमें जयवर्धन सिंह ने लिखा था "जो विकास कमलनाथ
ने छिंदवाडा़ में किया है वह विकास शिवराज सिंह चौहान म.प्र. में 15 वर्ष में नहीं
कर पाये हैं. हमारा संकल्प है कि म.प्र. में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने के बाद
को पूरे प्रदेश में छिंदवाडा़ मॉडल लागू किया जायेगा."
जाहिर है
छिंदवाडा़ मॉडल बिना कमलनाथ के तो लागू नहीं हो सकता है. यह एक तरह से दिग्विजय
सिंह की स्वीकृति है कि इस बार अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस को जीत
हासिल होती है तो मुख्यमंत्री के तौर उन्हें कमलनाथ कबूल होंगे.
जारी है कमलनाथ बनाम सिंधिया की जोर-आजमाइश
कांग्रेस आलाकमान
द्वारा मध्यप्रदेश में कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और सिंधिया
को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाकर संतुलन साधने की कोशिश
की गयी थी. यह एक नाजुक संतुलन जिस पर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिये खरा उतरना आसान नहीं है. 6 जून को
मंदसौर में हुई रैली के दौरान भी राहुल गाँधी ने कमलनाथ के साथ सिंधिया की जो
जोड़ी के साथ आगे बढ़ने पर जोर दिया था. लेकिन बीच-बीच में इन दोनों जोड़ीदारों के
बीच की जोर-आजमाइश उभर कर सामने आ ही जाती है. पिछले दिनों सोशल मीडिया पर इन
दोनों के समर्थकों के बीच जंग छिड़ गयी थी जिसमें एक तरफ सिंधिया के समर्थक ‘चीफ मिनिस्टर
सिंधिया’ के नाम से अभियान चला रहे
थे जिसका नारा था “देश में चलेगी विकास की आंधी, प्रदेश में
सिंधिया केंद्र में राहुल गांधी” वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ समर्थक #कमलनाथनेक्स्टएमपीसीएम के नाम से
अभियान चला रहे थे जिसका नारा था “राहुल भैया का संदेश, कमलनाथ संभालो
प्रदेश” इस सबको दोनों
नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी से जोड़कर देखा जा रहा है.
जाहिर है
कांग्रेस की तरफ के मुख्यमंत्री के दावेदारी का मसला भले ही दो नामों के बीच सिमट
गया हो लेकिन अभी भी यह मसाला पूरी तरह से सुलझा नहीं है. अब दो ही खेमे बचे है जो
ऊपरी तौर पर एकजुटता का दावा भले करें लेकिन दोनों ही अपनी दावेदारी से पीछे हटने
को तैयार नहीं हैं.
दोनों ही
दावेदार विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार नहीं कर रहे हैं इस सम्बन्ध में ज्योतिरादित्य
सिंधिया ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि पार्टी यदि
उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कहती है तो वह इसके लिए तैयार हैं. कमलनाथ ने भी इससे इनकार नहीं किया है, पिछले दिनों इस बारे में पूछे जाने
पर उन्होंने कहा था कि 'मैंने अभी तय नहीं किया है .... ये भी चर्चा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ
हो सकती है जब इन सब चीजों
का फैसला होगा, तब मैं भी फैसला करूंगा.”
शिवराज की
बैटिंग
दूसरी तरफ
मुख्यमंत्री के रूप में अपनी तीसरी पारी खेल रहे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान
लगातार बैटिंग पिच पर जमे हुये हैं. उन्होंने अभी से ही खुद को चुनावी अभियान में
पूरी तरह से झोंक दिया है. वे पिछले 13 सालों से मुख्यमंत्री है लेकिन उनका अंदाज
ऐसा है कि जैसे वे पहली बार वोट मांगने के लिए जनता के बीच हो. वे अपने लम्बे
कार्यकाल का हिसाब देने के बजाये उलटे विपक्षी कांग्रेस से ही हिसाब मांग रहे हैं.
उनकी जन आशीर्वाद यात्रा सुर्ख़ियों में है. इसमें उमड़ रही भीड़ से सत्ताधारी खेमा
आत्ममुग्ध और उत्साहित नजर आ रहा है. लेकिन भीड़ तो कमलनाथ की रैलियों में भी
उमड़ रही है, इसलिये यह दावा नहीं किया जा सकता है कि जन आशीर्वाद यात्रा
में आ रही भीड़ वोट भी करेगी. शायद शिवराज को भी इसका एहसास हो गया है इसलिये उनकी
रणनीति में भी बदलाव देखने को मिल रहा है और अब उनकी भाषा “मैं”
से “हम” की तरफ आ रही है
अब वे अपने अलावा दूसरों को भी श्रेय देने लगे हैं. पिछले दिनों टीकमगढ़ जिले के एक
जनसभा में उन्होंने यह कह कर चौका दिया कि “वर्ष 2003 में
प्रदेश को बर्बाद करने पर उतारू दिग्विजय सिंह की सरकार को हटाने में उमाश्री
भारती ने बड़ी भूमिका निभाई थी, उमाश्री भारती, बाबूलाल गौर हम
तीनो ने मिलकर प्रदेश की किस्मत बदलने का काम किया है”.
दोहरी लडाई
फिलहाल मुकाबला
कमलनाथ और उनके नालायक दोस्त शिवराज के बीच ही बनता नजर आ रहा है लेकिन कमलनाथ की
लड़ाई दोहरी है पहले तो उन्हें अपने जोड़ीदार ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर
पंद्रह सालों से वनवास झेल रही अपनी पार्टी को जीताकर सत्ता में वापस लाना है
जिसके लिये उन्होंने नारा भी दिया है “कर्ज माफ, बिजली का बिल हाफ और इस बार भाजपा साफ”. अगर वे इसमें कामयाब होते हैं तो इसके बाद उन्हें अपने इसी जोड़ीदार के साथ
मुख्यमंत्री पद के लिये मुकाबला भी करना है. फिलहाल तो वे “कमलनाथ ही “कमल” की काट” नारे के साथ अपनी बैटिंग के लिये तैयार
हो रहे हैं.
Duniya In Dinon October 2018 |
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