हरदेनिया जी को देखते ही मुझे गुस्सा आने लगता है
मैं जब भी उन्हें देखता हूं, गुस्से की एक बारीक लहर मेरे दिलो, दिमाग और शरीर को भिगो जाती है। जब मैं माखनलाल में अखबारी दुनिया का ककहरा
सीख रहा था, 20 साल पहले, उस वक्त उनके लिखे को पढ़कर, उनके बोले शब्दों को सुनकर जेहन में
दुनिया का अक्स बन रहा था। वे उस वक्त भी उम्र की उस दहलीज पर थे, जहां पहुंचकर आम लोग आरामकुर्सी को अपना आसरा बना लेते हैं, और बच्चों को लताड़ने को अपना आधिकारिक स्वभाव। लेकिन वह अब भी बाल सुलभ हंसी
के साथ धरना, प्रदर्शन, गोष्ठी, तैयारी बैठक और यहां तक कि बिल्कुल शॉर्ट नोटिस तक की मुलाकातों में शिरकत
करते हैं। युवाओं को पूरी गंभीरता से सुनना, उनसे सीखना और फिर अपने अनुभव से
बातों, मुलाकातों को अपने अनूठे रंग से सराबोर कर देना, उनकी अपनी अदा
है।
जी हां, मैं बात कर रहा हूं सांप्रदायिकता पर देश की सबसे मजबूत आवाजों में से एक
लज्जाशंकर हरदेनिया जी के बारे में। बिला नागा हर सप्ताह ईमेल के इनबॉक्स में उनका
लेख नुमायां होता है। राम पुनियानी के अंग्रेजी आलेख को पढ़ना लगभग बंद कर चुका
हूं, क्योंकि हरदेनिया जी के मेल आईडी से वह तुरत हिंदी में उपलब्ध हो ही जाता है।
मैं सुबह सुबह उठता हूं तो सोचता हूं कि आज कोई काम न हो और थोड़ा और नींद
लेकर घड़ी की सूई को 11 के पार देखूं, लेकिन हरदेनिया जी सुबह उठते ही अखबारों, खबरों और घटनाओं में यूं रमते हैं, जैसे इसी काम के लिए तो दुनिया में आए हैं। बस इसी बात से गुस्सा आता है। इतनी
उर्जा, बेथकन लगातार दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिशें करने का यह हुनर हमें क्यों
नहीं आता। क्यों हम बार बार थकते हैं, खीजते हैं, खुद राह से भटकते हैं और फिर नई राह पर घिसटते हैं। और यह आदमी जैसे उम्र को
चिढ़ाते हुए हर रोज सुबह खुद को मुस्तैद करता है, मोर्चे पर। गुस्सा आना
स्वाभाविक है। आता है, बहुत गुस्सा आता है हरदेनिया जी आपको देखकर।
हरदेनिया जी की उम्र उनके चेहरे पर जो झलकती है, और जो असल में उनके
शरीर की है भी, असल में तो वे अभी उसकी आधी उम्र के हैं।
जीवंतता से भरपूर साथी कॉमरेड को 86वें जन्मदिन की बहुत बहुत मुबारकबाद। कॉमरेड अभी आपसे बहुत लड़ना है, बहुत डांट खानी है, बहुत से लेखों को सुनना है और बहुत सी गोष्ठियों, सेमिनारों में आपका अध्यक्षीय वक्त्व्य पूरे ध्यान से सुनना है और फिर आपको छेड़ना है कि नया तो कुछ बोले नहीं।
और फिर आपके गर्म हाथ को हाथों में थामकर आपकी छड़ी को सहारा देते हुए कुछ सीढ़ियां और चढ़ना है— बेहतर दुनिया की ओर
जिंदाबाद
सचिन
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