शस्त्रापूजन - क्या इस बार हथियारों के पूजे जाने पर अंकुश लगेगा ?

सुभाष गाताडे


राजधानी दिल्ली से निकलनेवाले दो अग्रणी अख़बारों (नई दुनिया एवम जनसत्ता) में 24 सितम्बर के दिन एक जैसी ख़बरें ही प्रकाशित हुई थीं, फरक महज इतनाही था कि एक ख़बर का ताल्लुक हरियाणा के मेवात जिले के गांव भादस स्थित गुरूकुल में हुए विस्फोट से था, जिसमें उसके दो कमरे और आगे के बरामदे क्षतिग्रस्त हुए थे तो दूसरे का ताल्लुक ग्वालियर के अन्तरराज्यीय बस डिपो पर उत्तर प्रदेश के परिवहन की बस से बरामद 14 रिवाल्वरों से था।

क्या दोनों घटनाएं बाबरी मस्जिद को लेकर आनेवाले अदालती फैसले को लेकर किसी किस्म की तैयारी का संकेत कही जा सकती हैं और उसके पीछे किस संगठन का हाथ है, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि दोनों ही मामलों में पुलिस की जांच महज एक खानापूर्ति थी और मामले को रफा दफा करने पर ही लोगों का जोर था।

दरअसल हथियारों की बरामदगी के मसले का ताल्लुक कुछ ही समय बाद विजयादशमी के दिन होने वाले शस्त्रापूजन एवम पथसंचलन से भी हो सकता है, जिसमें कुछ सालों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता बाकायदा बन्दूकों, राइफलों एवम तलवारों को लेकर सड़कों पर निकलते रहते हैं। और कई स्थानों पर हवा में फायर करके समूचे वातावरण को भी आतंकित करते रहते हैं। ध्यान रहे कि शस्त्रापूजन की इस विधि का कहीं धार्मिक आधार नहीं है और न खतरनाक हथियारों को लेकर मार्च निकालने को कहीं से धार्मिक कहा जा सकता है। मुमकिन है कि देश के किसी कोने में सामाजिक परम्परा की तरह यह सिलसिला चलता आ रहा हो, जिस पर धार्मिकता की मुहर हिन्दुत्ववादी संगठनों की तरफ से लगायी गयी है। विडम्बना ही कही जाएगी कि पुलिस भी अपनी तरफ से इस मामले में कोई सक्रियता नहीं दिखाती और मीडियावाले भी खामोशी ही बरतते हैं।

याद रहे कि पिछले साल का ‘शस्त्रापूजन’ का यह कार्यक्रम भोपाल के कमला नगर इलाके में बने सरस्वती बाल मन्दिर जैसे बच्चों के स्कूल में हुए शस्त्रापूजन और इसी दौरान नरेन्द्र मोटवानी नाम से 50 साल उम्र के संघ के कार्यकर्ता की वहीं गोली लग कर हुई ठौर मौत से अधिक विवादास्पद बना था। (28 सितम्बर 2009) मालूम हो कि संघ के इस कार्यकर्ता की वहीं सरेआम दूसरे कार्यकर्ता की गोली से हुई मौत को ‘आत्महत्या’ साबित करने की उसके अपनों ने ही कोशिश की थी। नरेन्द्र मोटवानी के अन्तिम संस्कार में हाजिर संघ के एक अन्य वरिष्ठ ‘जीवनदानी’ कार्यकर्ता ने भी इसी बात को दोहराया था। इतनाही नहीं श्यामलाल गुर्जर नामक जिस दूसरे कार्यकर्ता की पिस्तौल की गोली से मोटवानी मारे गए थे, उसे वहीं से हथियार के साथ भगाने में उन लोगों ने ही मदद की थी। अगर मोटवानी के परिवार के लोगों ने दबाव नहीं बनाया होता और मीडिया के एक हिस्से द्वारा सक्रियता नहीं बरती गयी होती, तो इस अस्वाभाविक मौत का किस्सा अब तक दफन हो चुका होता। आज भी मोटवानी परिवार का यही कहना है कि उनकी हत्या हुई है।

घटनाा के पांच दिन बाद जब संघ का भगौडा कार्यकर्ता श्यामलाल गुर्जर पुलिस के हत्थे चढ़ा तो शस्त्रापूजन कार्यक्रम का दूसरा घिनौना पहलू सामने आया। जब उसे पूछा गया कि उसके पास 9 एमएम की पिस्तौल कहां से आयी, तब उसने कहा कि वह जब भोपाल से लगभग पचास किलोमीटर दूर सलकानपुर से लौट रहा था तब उसे जंगल में पड़ी मिली थी। गुर्जर का यह वक्तव्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित इस शस्त्रापूजन एवम पथसंचलन के बारे में एक और असुविधाजनक प्रश्न खड़ा करता है, यही कि इनमें तमाम गैरकानूनी एवम गैरलाइसेन्सी हथियार प्रयोग किए जाते हैं और संघ का नेतृत्व ऐसी हरकतों को वैधता प्रदान करता है।

वैसे जहां नरेन्द्र मोटवानी की अस्वाभाविक मौत ने शस्त्रापूजा से जुड़े विभिन्न पहलुओं को उजागर किया था, वहीं यहभी स्पष्ट है कि दशहरा के दिन की वही एकमात्रा विवादास्पद घटना नहीं थी। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्राी जनाब शिवराज सिंह चौहान ने भी अपने आधिकारिक निवास पर ‘शस्त्रापूजन’ किया , जहां इस बात की तस्वीरें भी प्रकाशित हुई कि मुख्यमंत्राी महोदय तमाम आटोमेटिक एवम सेमीऑटोमेटिक हथियारों को पूज रहे हैं। चर्चित सेक्युलर कार्यकर्ता श्री एल एस हरदेनिया ने पिछले साल इस सम्बन्ध में लिखा था:

‘‘आर्म्स एक्ट, 1959 के मुताबिक प्रतिबन्धित हथियारों और गोलाबारूद को पास रखना या उनका इस्तेमाल करना, भले ही अस्थायी तौर पर हो, केन्द्र सरकार की विशेष अनुमति के बिना, पूरी तरह प्रतिबन्धित है। निजी आवास पर ऑटोमेटिक हथियारों की पूजा, जिसमें सरकारी व्यक्ति को आवंटित बंगला भी शामिल है, का अर्थ है कि प्रतिबन्धित हथियारों को अस्थायी तौर पर पास रखना, जिस पर आर्म्स एक्ट के तहत कार्रवाई हो सकती है। इतनाही नहीं, हथियारों की पूजा करने के बाद , मुख्यमंत्राी ने हवा में गोलियां भी चलायी हैं।’’
यह कहना मुश्किल है कि सरकार के मुखिया द्वारा किए गए कानून के इस उल्लंघन को लेकर उन पर कोई मुकदमा कायम हुआ था या नहीं।

यही वह दिन था जब शहर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी -पुलिस अधीक्षक -के व्यवहार की भी जबरदस्त आलोचना हुई, जिन्होंने हवा में एके 47 चलायी और अपने छोटे बच्चे को भी ऐसा करने में मदद की। यह याद रखना जरूरी है कि हर गोली एक विस्फोटक पदार्थ होती है और इसलिए ऐसी कोईभी कार्रवाई जिससे किसी को नुकसान पहुंच सकता हो, वह भारतीय दण्ड विधान की धारा 286 के तहत अपराध में शुमार होती है। साफ बात है कि पुलिस अधीक्षक का यह कदम पूरी तरह गलत एवम विधिसम्मत नहीं था।

इसी दिन, जब संघ के कार्यकर्ता ‘पथसंचलन’ करते हैं, जहां वे हाथों में हथियारों को लेकर चलते हैं, छोटे बच्चों ने भी अपने हाथों में नंगी तलवारें ली थीं। आर्म्स एक्ट के तहत अवयस्क किसी भी तरह के हथियार रख नहीं सकते हैं। पिछले कुछ सालों से, हथियारों के साथ पथसंचलन का काम कमसे कम मध्य प्रदेश एवम आसपास के इलाकों में जोरदार हो रहा है। अभी पिछले साल की बात है जब इन्दौर में आयोजित पथसंचलन में शामिल संघ के कार्यकर्ताओं ने शहर के प्रमुख पार्क में खड़े होकर काफी देर तक हवाई फायर किया था, जहां पुलिस महज दर्शक बनी खड़ी थी। अन्दाज़ा ही लगाया जा सकता है कि ऐसे तमाम लोग/संगठन, जो संघ के विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं, या वे ऐसे समुदायों से जुड़े होते हैं जिनको संघ द्वारा हमेशा निशाने पर लिया जाता है, उन पर ऐसी हरकतों का कितना डरावना असर पड़ता होगा।

साफ है, शस्त्रापूजन करनेवालों में भाजपा के एकमात्रा स्टार जनाब शिवराज सिंह चौहान नहीं थे। गुजरात के विवादास्पद मुख्यमंत्राी नरेन्द्र मोदी ने भी अपने सरकारी आवास पर बन्दूकों एवम एनएसजी राइफलों की पूंजा की और इस सवाल को फिर खड़ा किया कि उनके ओहदे पर बैठे व्यक्ति को क्या ऐसा काम करना चाहिए ? मालूम हो कि वर्ष 2002 से ही वह नियमित इस काम को करते रहते हैं।

मेल टुडे की रिपोर्ट (29 सितम्बर 2009) बताती है कि- ‘पूजा के वक्त जबकि नेशनल सिक्युरिटी गार्ड और राज्य के पुलिस दर्शक थी, सबमशीन गन्स, एके सिरीज की असॉल्ट राइफलें और प्रतिबन्धित बोअर पिस्तौलें पूजा स्थल पर रखी थीं। दरअसल ये वो हथियार हैं जो एनएसजी और अर्द्धसैनिक बलों और सेना को दिए जाते हैं। इन बन्दूकों, राइफलों के साथ तलवारें, त्रिशूल आदि भी रखे हुए थे।’.

दो घण्टे तक पूजा चलती रही और इस दौरान किसी भी एनएसजी कमाण्डो के पास हथियार नहीं थे क्योंकि उनके हथियार उस रस्म में रखे गए थे।

गौरतलब है संघ के नवनियुक्त ‘युवा’ सुप्रीमो मोहन भागवत ने भी शस्त्रापूजन किया, जिसके लिए उन्होंने महात्मा गांधी की जयन्ती के दिन को चुना। दिल्ली के द्वारका में आयोजित इस कार्यक्रम में अगल बगल के इलाकों में फैली संघ की 200 से अधिक शाखाओं में जानेवाले स्वयंसेवक  शामिल हुए थे, जिसमें लगभग 15,000 संघ स्वयंसेवक खाकी हाफपैण्ट, सफेद शर्ट और काली टोपी पहने उपस्थित थे।

जिन दिनों संघ कार्यकर्ता नरेन्द्र मोटवानी की शस्त्रापूजन के वक्त दूसरे संघ स्वयंसेवक के हाथों हुई अस्वाभाविक मौत/हत्या को लेकर संघ-भाजपा को आलोचना का शिकार होना पड़ा था, उन दिनों यही सुना गया था कि वर्ष 2010 से संघ ‘प्रतीकात्मक पूजा’ करने पर जोर देगा। आज इसकी कोई बात नहीं करता। बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर अदालती फैसले के मद्देनज़र चल रही जिस ‘तैयारी’ की तरफ लेख की शुरूआत में इशारा किया गया है, उसके देखते हुए यह उम्मीद करना बेकार है कि संघ-भाजपा के लोग धार्मिकता के आवरण में लिपटे इस नितान्त गैरकानूनी काम से खुद तौबा करेंगे।

क्या इस मुल्क के इन्साफपसन्द एवम अमनपसन्द नागरिकों या सचेत समूहों का यह फर्ज़ नहीं बनता है कि वह संविधान में उनके लिए प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इन सम्भावित गैरकानूनी कामों को रोकने के लिए जनहित याचिका दायर करें या अन्य तरीकों से अपनी आवाज़ बुलन्द करें।


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