सामाजिक सम्मान एवं आर्थिक बराबरी के लिए
सामाजिक सम्मान एवं आर्थिक बराबरी के लिए
नागरिक अधिकार मंच के राज्य सम्मेलन को सफल करो
5 दिसम्बर , 2010, जबलपुर, मध्य प्रदेश
साथियों,
आजादी के 63 साल बाद भी देश की बहुमत आबादी जीवन जीने की बुनियादी आव्स्यक्ताओ पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि से वंचित है। देश के करोड़ों-करोड़ मजदूरों के श्रम से पैदा हुई दौलत पर चंद पूंजीपतियों व अमीरों का कब्जा है। सरकारों की गरीब मजदूर विरोधी नीतियों की वजह से विशाल मेहनतकष तबके के लिए दो जून की रोटी का जूगाड़ करना भी मुशकिल हो रहा है। सरकारों की आर्थिक नीतियों के कारण आज महगाई असमान छू रही है। गॉव में रहने वाली अधिकांश आबादी की गरीबी बदहाली के बात तो जग जाहिर है लेकिन देश के आर्थिक विकास के केन्द्र शहरों में आधी आबादी अमानवीय परिस्थितियों में झुग्गी-बस्तियों में रहने के लिए मजबूर है। ये शहरों में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले वे कामगार है जिनके श्रम के बिना शहर एक कदम भी नहीं चल सकता लेकिन आज शहरों में इनके सम्मानपूर्वक रहने के अधिकार पर चारों ओर से हमले हो रहे है। जो अपनी मेहनत से शहर बनाते है, शहर में उन्हीं की मेहनत का कोई मोल नहीं है।
देश तथा प्रदेश की सरकारें देश के सभी संसाधनो को पूंजीपतियों को बेच दे रही है ताकि वे हर चीज से मनमाना लाभ कमा सके।देश में पानी, बिजली,शिक्षा , स्वास्थ्य, आवास आदि सभी क्षेत्रों को पंूजीपतियों के मुनाफा कमाने के लिए खोल दिया गया है। जिसके पास पैसा है वह ये सब बाजार से खरीद सकता है और जिनके पास बाजार से खीरदने के लिए पैसा नहीं है, उनके लिए सरकार की गरीबी रेखा के नाम पर चलने वाली योजनाएं हैं जिनके सहारे शायद ही कोई गरीब जिंदा भी रह सके। सरकार की ही एक रिर्पोट के अनुसार भारत कि अस्सी प्रतिशत लोग बीस रूपया प्रतिदिन से भी कम पर गुजर-बसर करने के लिए मजबूर है।
देश के अधिकांश कामगारों के पास कोई नियमित काम नहीं है तथा उनके बड़े हिस्से को न्यूनतम मजदूरी भी हासिल नहीं है। देश में भूमि सूधार न हो पाने के कारण आज भी कृषि भूमि का बड़ा हिस्सा बड़े भू-स्वामियों के पास हैं जिसके कारण गॉव में रहने वाली अधिकांश आबादी में से कुछ के पास नाम मात्र को जमीन है और काफी संख्या में लोग भूमिहीन मजदूर है। इनमें भूमिहीन मजदूर में सबसे ज्यादा संख्या दलितों और आदिवासियों की है। आज वह समय करीब आ रहा है जब देश सभी कामगारों को एकजुट होकर अपने श्रम से पैदा हुई संपदा पर दावा करना है ताकि मेहनत की लूट पर टिकी पूंजी की इस व्यवस्था को शिकस्त दी जा सके।
बाबा साहेब अंबेडकर की अध्यक्षता में लिखा गया संविधान देश के किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव को अपराध मानता है और इसके लिए कई सारे कानून भी हैं। इसके बावजूद पूरे देश में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर उत्पीड़न और भेदभाव व्यापक रूप से जारी है। आजादी के 63 सालों के बाद भी इस देश के दलित, आदिवासी, महिला, अल्पसंख्यक और गरीब मजदूर आबादी विभिन्न सामाजिक-आर्थिक उत्पीड़न व भेदभाव सहने को मजबूर है। आज भी दलित मल व मृत मवेषी उठाने जैसे अमानवीय काम करने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं और उनके ऐसे अमानवीय कामों का विरोध करने पर सवर्ण जातियो द्वारा तरह-तरह के अत्याचा किए जाते है और सरकारी प्रशासन सब जानते हुए भी अनजान बने रहता है।
मध्य प्रदेश में सामाजिक उत्पीड़न की जड़े काफी गहरी है। दलितों को अमानवीय और गैर संविधानिक कार्य करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में दंगे फसाद होते ही रहते है। सभी तबकों में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जें की बनी हूई है।
इसलिए आज यह वक्त की पुकार है कि सभी दलित, आदिवासी, महिलाएं और युवा व अन्य कामगार तबके इस ब्राह्मणवादी तथा पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करें। आइयें हम महात्मा ज्योतिबा फुले, शहीद भगतसिंह और बाबा साहेब अंबेडकर की संघर्ष की परम्परा के साथ जुड़े ताकि व्यक्ति की गरिमा पर आधारित शोषण और अन्याय से मुक्त समाज का निर्माण किया जा सके।
इंकलाब जिंदाबाद
नागरिक अधिकार मंच, मध्य प्रदेश
नोट - साथियो अयोध्या फेसले के कारण दो बार राज्य सम्मेलन धारा १४४ लगने के कारण स्थगित करना पड़ा . इसलिए अब नागरिक अधिकार मंच का राज्य सम्मेलन 5 दिसम्बर , 2010, को जबलपुर, मध्य प्रदेश मे हो रहा है.
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