‘कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण विधेयक 2010’
- उपासना बेहार
रुकमणी बाई जिस ठेकेदार के पास मजदूरी का काम करती थी,वह अपने यहॉ काम करने वाले सभी मजदूरों से कम पैसे देकर ज्यादा राशी की रसीद पर हस्ताक्षर करवाता था। जब रुकमणी बाई ने ऐसा करने से मना कर दिया तो ठेकेदार ने उसको अश्लील गालीयॅ दी और छेड़छाड़ करने की कोशिश की। रुकमणी बाई ने ठेकेदार के इस आपत्तिजनक व्यवहार के कारण काम पर जाना भी छोड़ दिया और उसे अपने किये गये काम की मजदूरी भी नही मिली।
यह कोई इकलौता उदाहरण नही है, इस तरह के हजारों उदाहरण हमारे आसपास मिल जायेगें जिसमें महिलाऐं कार्यस्थल पर अपने साथ होने वाले यौनिक हिंसा के चलते काम छोड़ने को मजबूर हुई है या मानसिक तनाव से गुजरने को मजबूर हैं।
वर्तमान समय में ज्यादा से ज्यादा महिलाऐं काम के लिए घर से बाहर निकल रही हैं। परन्तु उन्हें कभी ना कभी किसी ना किसी रुप में कार्यस्थल पर यौनिक हिंसा का शारीरिक या मानसिक रुप भोगना पड़ता है। इसका असर महिलाओं के पूरे व्यक्तित्व पर पड़ता है। जिन स्त्रीयों ने इसे भोगा है वही इसकी पीड़ा को समझ सकती हैं। महिला का आत्म विश्वाश डगमगाने लगता है। उस स्थिति में वह अपने को असहाय समझने लगती है। उसके आत्मसम्मान को तार तार कर दिया जाता हैं। ज्यादातर महिलाऐं चाह कर भी यौनिक हिंसा करने वाले के खिलाफ कोई कार्यवाही नही कर पाती है और घुट घुट कर मानसिक तनाव में जीने को मजबूर रहती हैं।
यही असुरक्षा की भावना स्त्रियों को कई बार ना चाहते हुए भी चार दीवारी में कैद कर देती है। जिससे उसका स्वंय का विकास तो रुकता ही है साथ ही देश के लिए भी एक बड़ा वर्ग कोई प्रोडक्टीव कार्य नही करता और देश के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान नही दे पाता।
यह स्थिति कमोवेश संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं की है पर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के साथ यह बात ज्यादा लागू होती है, ऐसे परिस्थितियों में वे समझ नही पाती की न्याय के लिए कहॉ जायें, किससे शिकायत करें, किसे अपनी पीड़ा बताऐं?
ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वह महिलाओं को कार्यक्षेत्र में सुरक्षित और सम्मानिय माहौल प्रदान करे। इसी को ध्यान में रखते हुए केद्र सरकार ‘कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण विधेयक 2010’ नामक नया कानून लाने जा रही है
इस विधेयक को केद्रीय मंत्रिमंड़ल की रजामंदी मिल चुकी है। अब सरकार इसे संसद में पेश करने वाली है।
इस प्रस्तावित कानून का मुख्य उद्देश्य है कि किसी भी क्षेत्र ( संगठित और असंगठित ) में काम करने वाली या काम करवाने वाली महिला को भय रहित माहौल मिल सके तथा महिला स्वतंत्र और सुरक्षीत महसूस करते हुए अपने काम को अजांम दे सके।
यह नया विधेयक भी ‘विशाखा दिशा निर्देश ’ का विस्तार ही है। जिसमें कार्य क्षेत्र के दायरे को ज्यादा विस्तृत किया गया हैं। उच्चतम न्यायलय ने विशाखा गाइड लाइन में यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया था उसे ही इस विधेयक का मुख्य आधार बनाया गया है। जिसमें महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार से शारीरिक सम्पर्क करना या उसका प्रयास करना, अश्लील टिप्पणी करना, अश्लील चुटकुले सुनाना, यौन संबंध बनाने की मांग करना, दबाव डालना, अश्लील फब्तियां कसना, अश्लीलफोटो ,पत्र-पत्रिका, फिल्म, सी.डी. दिखाना, ई मेल के जरिए किसी महिला को यौन संबंधों के लिए उकसाना, यौन इच्छा के मंशा से किसी महिला को परेशान करना, देर तक रोकना इत्यादी को यौन उत्पीड़न के दायरे में रखा है।
इस विधेयक की कई खास बातें है जैसे इसमें कार्यस्थल के तौर पर सरकारी और प्रायवेट (संगठित/असंगठित) दोनो क्षेत्रों को शामिल किया गया है। विधेयक में दिये गये प्रावधानों को लागू करना इन दोनों क्षेत्रों के लिए समान रुप से अनिवार्य होगा।
इसके अनुसार जिला स्तर पर एक स्थानीय शिकायत कमेटी होगी। इस कमेटी में असंगठीत क्षेत्रों में कार्यर्त महिलाओं पर होने वाले यौनिक हिंसा की शिकायत की जा सकेगी। स्थानीय शिकायत कमेटी जिम्मेदारी जिला अधिकारी की होगी।
सबसे बड़ी बात यह भी है कि शिकायतों के निपटारे के लिए समयसीमा बांध दी गई है। संगठीत/असंगठित क्षेत्रों की शिकायत कमेटी को उनके पास आयी शिकायत का निपटारा 90 दिनों के अंदर करना होगा और दिये गये निर्णय को सबंधित कम्पनी या जिला अधिकारी को 60 दिनों के अदंर लागू करना होगा। अगर कमेटी के निर्णय को नही माना जाता तो दोषी पक्ष का लायसेन्स रदद या जुर्माना ( 50,000) लगाया जा सकता हैं।
साथ ही इस विधेयक में यह भी है कि जब तक जांच चलेगी तब तक पीड़ित महिला चाहे तो स्वंय का स्थानांन्तरण करा सकती है, या जिसके खिलाफ उसने शिकायत की है उसका स्थानांन्तरण करवा सकती हैं। अगर पीड़ित पक्ष कमेटी के निर्णय से संतुष्ट नही है तो वह जिला मजिस्ट्रट या कोर्ट भी जा सकते हैं।
इस कानून के अनेक खसियतों में एक यह भी है कि सार्वजनिक कार्यस्थलों में आने वाली महिला जैसे उपभोक्ता, कॉलेज/विश्वविद्यालयो की विधार्थी, दैनिक या अस्थायी महिला कर्मचारी, अस्पताल में इलाज के लिए आने वाली महिलाऐं भी वहॉ अपने साथ होने वाली यौनिक हिंसा की शिकायत कमेटी में कर सकती हैं।
केद्र और राज्य सरकार यह सुनिश्चत करेगी कि इस कानून को सही तरिके से लागू किया जा रहा है या नही, उसकी निगरानी भी समय समय पर लगातार की जायेगी।
लेकिन इस प्रस्तावित विधेयक की सबसे बड़ी खामी यह है कि घरों में काम करने वाली महिलाओं को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है। जबकि देखने में आता है कि इसी वर्ग का सबसे ज्यादा शोषण होता है। इस वर्ग की महिलाऐं हमेशा से ही हाषिए पर रही है और इस विधेयक में उन्हें शामिल ना करना एक बहुत बड़ी भूल है। इसके अलावा विधेयक में यह भी प्रावधान रखा गया है कि अगर शिकायत करने वाली महिला अपने उत्पीड़न को साबित नही कर पाती तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। यह प्रावधान इस विधेयक को भोथरा बना देता है क्योकि यौन उत्पीड़न के कई मामले ऐसे होते है जिन्हें साफ साफ साबित नही किया जा सकता। इसी के चलते बहुत सारी महिलाऐं इस बनने वाले नये कानून का उपयोग नही कर पायेगी। वे शिकायत करने से डर जायेगी।
प्रस्तावित विधेयक की इन कुछ खामियों को दूर कर इसे असरदार बनाने की आवष्यकता है। केद्र और राज्य सरकार को यह ध्यान में रखना होगा कि इस बार प्रस्तावित इस कानून केवल कागजी बन कर ना रह जाये सरकार को कड़ाई से इसे जमीनी स्तर पर लागू करना होगा। नही तो इसका भी हश्र पूर्ववर्ती कानूनों की तरह हो सकता है।
अगर हम चाहते है कि महिलाओं को घर और बाहर सुरक्षीत माहौल मिले,उसके साथ होने वाली यौनिक हिंसा खत्म हो तो समाज में गहराई से व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच को भी बदलना होगा। उन सभी रीति रिवाज, परम्परा, मान्यताओं, रुढ़ीयों को खत्म करना होगा जो महिलाओं के पैरों को जंजीरों से बांध देते हैं। पुरुषों को ये समझना होगा कि घर के बाहर की दुनिया में उनका ही एकाधिकार नही होगा वहॉ आधी दुनिया भी आहिस्ता आहिस्ता दस्तक दे रही हैं और अपनी उपस्थिति का एहसास मजबूत और मुक्कमल तरिके से करवा रही है।
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