शिवराज का फरमान :-शासकीय कर्मचारी आरएसएस के सदस्य बनें, शाखाओं में जाएं
खतरनाक और असंवैधानिक है मुख्यमंत्री का आव्हान
शासकीय कर्मचारी आरएसएस के सदस्य बनें, शाखाओं में जाएं
-एल. एस. हरदेनिया
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शासकीय कर्मचारियों से आव्हान किया है कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य बनें और संघ की शाखाओं में शामिल हों। मुख्यमंत्री ने यह आव्हान भोपाल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीव्हीपी) के नवनिर्मित राज्य कार्यालय के उद्घाटन कार्यक्रम में भाषण देते हुए किया। भवन का उद्घाटन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हाथों हुआ।
मुख्यमंत्री की इस अपील की तीखी प्रतिक्रिया हुई है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य इकाई ने इसकी कड़ी निंदा करते हुए राज्यपाल को सौंपे गए एक ज्ञापन में उनसे अनुरोध किया है कि वे इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करें। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का कहना है कि मुख्यमंत्री ने संविधान का उल्लंघन किया है।
यह सर्वज्ञात है कि सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के किसी भी राजनैतिक दल का सदस्य बनने पर प्रतिबंध है। सरकारी मुलाज़िम किसी राजनैतिक गतिविधि में भाग नहीं ले सकते और न ही वे किसी राजनैतिक मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से अपना मत व्यक्त कर सकते हैं। वे राजनीति से जुड़े मसलों पर अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में लेखन भी नहीं कर सकते। यद्यपि आरएसएस प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में भाग नहीं लेता व इसलिए औपचारिक या तकनीकी अर्थ में उसे राजनैतिक पार्टी नहीं कहा जा सकता, परंतु व्यावहारिक तौर पर संघ और राजनैतिक दलों में कोई विशेष अंतर नहीं है। संघ की गतिविधियां किसी राजनैतिक संगठन जैसी ही हैं।
भाजपा और उसके पूर्ववर्ती अवतार जनसंघ का निर्माण संघ ने इसलिए किया था ताकि वे उसकी ओर से राजनीति में भाग ले सकें। जनसंघ और भाजपा उन दर्जनों संगठनों में से हैं जिन्हें संघ ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपने संदेश को फैलाने और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गठित किया है। ये संगठन सामूहिक रूप से “संघ परिवार“ कहलाते हैं और इस कुटुम्भ का मुखिया आरएसएस है। वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासियों के बीच काम करता है और एबीव्हीपी विद्यार्थियों के बीच। इसी तरह भारतीय मजदूर संघ, श्रमिकों के बीच सक्रिय है और भारतीय किसान संघ, किसानों के बीच। संघ द्वारा गठित अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय ऐसे संगठनों की एक लंबी सूची है।
संघ अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों को इन संगठनों में डेप्यूटेशन पर भेजता है और उनके हुक्म पर ही ये संगठन चलते हैं। भाजपा अपने “संगठन मंत्रियों“ के पथप्रदर्षन में कार्य करती है। संगठन मंत्री, संघ के कट्टर प्रचारक होते हैं और भाजपा में अखिल भारतीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक इनकी नियुक्तियां होती हैं।
जनसंघ के दूसरे अध्यक्ष बलराज मधोक ने पार्टी में संगठन मंत्रियों के हस्तक्षेप पर आपत्ति प्रकट की थी। न केवल उनकी आपत्ति दरकिनार कर दी गई वरन् उन्हें उनके पद से हटाए जाने में भी ज्यादा देर नहीं की गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि संघ का भाजपा पर प्रत्यक्ष और संपूर्ण नियंत्रण है। भाजपा के उच्च पदाधिकारी और भाजपा-शासित प्रदेषों के मुख्यमंत्री, संघ की सहमति से ही नियुक्त होते हैं। एनडीए सरकार की मंत्रिपरिषद के गठन में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका सर्वज्ञात है। संघ पदाधिकारी, भाजपा के मुख्यमंत्रियों से मिलने नहीं जाते। उल्टे, मुख्यमंत्री, संघ नेताओं के दरबार में हाजिरी देते हैं। क्या यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि भाजपा का नियामक और नियंता कौन है? अभी बहुत समय नहीं हुआ जब लालकृष्ण आडवानी को भाजपा का अध्यक्ष पद इसलिए छोड़ना पड़ा था क्योंकि संघ को आडवानी द्वारा जिन्ना पर की गई टिप्पणी पसंद नहीं आई थी। संघ के नेता आए दिन मीडिया के सामने व सार्वजनिक मंचों से राजनैतिक मुद्दों पर अपने विचार प्रकट करते रहते हैं।
सन् 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। प्रतिबंध के बाद तत्कालीन संघ प्रमुख एम. एस. गोलवलकर ने भारत सरकार से बार-बार यह प्रार्थना की कि संघ को गैर-कानूनी घोषित करने वाला आदेश वापिस ले लिया जाए। इन अनुरोधों के प्रतिउत्तर में तत्कालीन उपप्रधानमंत्री व केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने संघ से अपने सिद्धांतों और लक्ष्यों को स्पष्ट करने और अपना संविधान बनाने के लिए कहा। संघ ने सरदार पटेल के निर्देषों का पालन किया। संघ ने अपना एक संविधान बनाया जिसमें उसने स्वयं को “सांस्कृतिक संगठन“ घोषित किया। उसने यह वायदा भी किया की वह राजनीति से दूर रहेगा।
परंतु असल में आरएसएस का राजनीति को अलविदा कहने का कोई इरादा नहीं था। राजनीति में हिस्सेदारी करने के लिए उसने एक नायाब रास्ता ढूढ़ा। संघ ने “भारतीय जनसंघ“ की स्थापना की जो राजनीति के प्रांगण में उसके एजेन्ट के रूप में काम करने लगा। आपातकाल के बाद जनता पार्टी का गठन हुआ और जनसंघ का इसमें विलय हो गया। जनसंघ के सांसदों और जनता पार्टी सरकार में मंत्रियों ने आरएसएस की सदस्यता छोड़ने से इंकार कर दिया और इस मुद्दे पर जनता पार्टी की सरकार गिर गई। इसके बाद भाजपा का गठन किया गया और तबसे भाजपा ने जनसंघ का काम संभाल लिया।
आरएसएस स्वयं को “सांस्कृतिक संगठन“ बताता है परंतु हममें से शायद ही किसी ने कभी यह सुना होगा कि संघ ने कोई नृत्य, नाटक या संगीत समारोह आयोजित किया हो। आरएसएस के उच्च पदाधिकारी किसी सांस्कृतिक विधा में प्रवीण नहीं हैं। उनमें से कोई भी लेखक, कवि, चित्रकार या गायक नहीं है। सच तो यह है कि संस्कृति केवल वह पर्दा है जिसके पीछे से संघ अपनी राजनैतिक गतिविधियां संचालित करता है। चुनाव के दौरान संघ खुलकर भाजपा उम्मीदवारों का समर्थन करता है। संघ के कार्यकर्ता, मतदान केन्द्रों में भाजपा के पोलिंग एजेन्ट के रूप में काम करते हैं। अगर भाजपा भारतीय राजनीति में इस मुकाम तक पहुंची है तो इसका मुख्य श्रेय संघ के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा को दिए गया समर्थन व सहयोग को जाता है।
हमारे संविधान में दो प्रकार की कार्यपालिका की व्यवस्था है-पहली स्थायी कार्यपालिका और दूसरी राजनैतिक कार्यपालिका। जहां राजनैतिक कार्यपालिका का काम शासन की नीतियों का निर्धारण करना है वहीं स्थायी कार्यपालिका की जिम्मेदारी इन नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करना है। चुनाव प्रक्रिया का संचालन भी स्थायी कार्यपालिका द्वारा किया जाता है। इस व्यवस्था का उद्धेष्य यही है कि चुनाव संचालन और नीतियों के क्रियान्वयन का कार्य ऐसे व्यक्तियों के हाथ में रहे जो राजनैतिक रूप से निष्पक्ष हों। यदि शासकीय कर्मचारी आरएसएस की सदस्यता लेने लगेंगे तो शासकीय तंत्र की राजनैतिक निष्पक्षता गंभीर रूप से प्रभावित होगी और इससे हमारे संसदीय प्रजातंत्र की जड़ें कमजोर होंगी ।
28 मार्च 2011 को आयोजित कार्यक्रम में सरकारी कर्मचारियों से संघ की सदस्यता ग्रहण करने का आव्हान करने के बाद शिवराज सिंह चौहान, मोहन भागवत की तरफ पलटे और बड़े गर्व से उन्हें बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस का सदस्य बनने पर लगे प्रतिबन्ध को हटा लिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस तरह के निर्णय और ऐसे आव्हान बहुत खतरनाक हैं और इन्हें जितनी जल्दी वापिस लिया जावेगा उतना ही राष्ट्रहित में होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साम्प्रदायिकता के विरूद्ध प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं)
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